धुंध भरी उस भोर में मैं यूँ ही चलते चलते भीगी हुई पगडंडियों पर निकल आई।रात भर जम कर कोहरा बरसा था,अभी भी बादलों के उड़ते तैरते टुकड़े पहाड़ों की चोटियों पर अटके हुए थे। धूप के कतरे आसमान से उतर देवदार की ऊँची फुनगियों पर कहीं अटके मालूम होते थे। सूरज और धुंध की आँखमिचौली चल रही थी।कहीं धूप के खरगोश कहीं बादलों के फाहे। ऐसे मौसम में मुझे वो भोली सी लड़की बेतरह याद हो आई।ऐसी ही सुबह में मैं घूमते घूमते उसकी गुमटी पर चली आती।वो प्रायः मुझे हाथों में अँगीठी से निकला धुँआ भरती नज़र आती।उसके हाथ की चाय का जादू था या उसके गुलाबी चेहरे पर बिखरे वो मौसम के गुलाबी रंग न जाने मैं किसे देखने की चाहत में उसके पास तक रोज़ खिंची चली आती।वो बात वेबात खिलखिलाती थी। रात की रानी का सिंगार कर तारों से बातें करती थी।चाँद के साथ साथ चलते हुए रूपहले सपने बुनती थी।चकोर के जैसे अपने चाँद की स्मृति में चकराती थी।सुबह किरनों का आँचल सिर पर डाल मुस्कुराती थी। संध्या की बेला नदी के तट पर बैठ मीठे गीत गाती थी।वो प्रेम के अगाध सागर में डूब उतरा रही थी।उसकी आँखों ने प्रेम के कितने रंग बुन लिए थे।मौसम का हर रंग उसकी आँखों से होकर गुजरता और दे जाता सतरंगी सपने।
वो जब धीमे सुरों में बोलता था वो उसकी आँखों में खो जाती थी।वो पलकें उठाता था वो पलकें झुका देती थी।वो जब मुस्कुराता था इंद्रधनुष के सारे रंग लड़की की आँखों में उतर आते थे।वो उसका मंदिर था,मस्जिद था गुरूद्वारा था।लड़की उसकी पुजारिन थी।वीणा की मीठी तान जैसी उसकी शक्कर पगी बोली में डूब वो अपने आठों पहर व्यतीत करती थी।वो पग धरता था, वो उसके पदचिह्नों पर चलती थी।वो उसका चाँद था, सूरज था, आसमान था, सितारा था। कुल जमा वो उसका पूरा संसार था।
लड़के का साथ पाते ही लड़की तितली सी उड़ती फिरती थी। चिड़ियों सी चहकती थी।फूलों सी महकती थी।सिर से पैर तक आकंठ वो उसके इश्क़ में डूबी हुई थी।इश्क़! हाँ वो इश्क़ की सहराओं में गुम हो रही थी या पुनर्नवा हो रही थी।जो भी था उसे नहीं पता लेकिन वो ख़ुश थी बेहद ख़ुश।कभी वो चाँद को मुट्ठी में भरने की कोशिश करती,कभी हाथ में पकड़े जुगनू पल भर में उड़ा देती।लड़का उसकी इन शरारतों पर मुस्करा देता।
“पगली!चाँद भी कभी मुट्ठी में आता है। “
वो जोर से खिलखिला देती। लड़का उसकी उन्मुक्त हँसी में खो जाता।
“ऐसे क्या देख रहे हो?”
“तुम्हें।”
“मुझे क्यों?देखना है तो उन सितारों को देखो।”
“क्यों ?उन्हें क्यों?तुम्हें क्यों नहीं?”
“तुम पूछ रहे थे न,चाँद भी कभी मुट्ठी में आता है? “
“हाँ !आता है। देखो मेरी मुट्ठी में है।”
“कहाँ ?दिखाओ तो। मैं भी चाँद को मुट्ठी में देखूँ तो सही। “
“तुम उन सितारों को देखो। उनकी चमक से तुम्हारे चेहरे पर पड़ती उमंगो की रोशनी को चाँद बना मेैं मुट्ठी में बंद कर लेती हूँ।” कहकर वो एकटक लड़के के चेहरे को देखने लगी।
लड़के ने नज़रें झुका लीं।
“लो ये दूसरी मुट्ठी खोलो। “
“न बाबा रे। एक तो ये तुम्हारे लॉजिक।न जाने इस मुट्ठी में कायनात का क्या भर लिया होगा तुमने? मैं नहीं खोलता। “
“खोलो तो सही। “
“अच्छा !ठीक है। हाथ दो इधर।तुम्हें न भी तो नहीं कह सकता।”
मुट्ठी खोलते ही लड़के की आँखों से दो आँसू चू पड़े।चिलगोजे के नन्हें नन्हें टुकड़ों से मुट्ठी भरी थी।
“तुम इतना ध्यान क्यों रखती हो मेरा?कहाँ कहाँ भटकी इनके लिए।”
“कुछ खास नहीं।अब तुम बातें न बनाओ। जानती हूँ कुछ नहीं खाया होगा तुमने। काम के आगे कहाँ तुम्हें कुछ याद रहता है?ये लो और चलो अब।दिन छुपने लगा। अँधेरा हो चला है।”
लड़की का हाथ पकड़ लड़का उठ गया।दोनों पगडंडी पर आ गये और कुछ देर में अलग अलग दिशा में विलीन हो गये।
इश्क़ उस लड़के को भी लड़की से था या नहीं था वो नहीं जानती थी। जानती थी तो बस इतना कि उस लड़के का साथ उसे बहुत अच्छा लगता था और उसका हाथ पकड़ वो संसार की सारी मंजिल पार कर सकती थी।
सुभोर की सुंदर बेला थी।आज मिलन की घड़ी थी।कभी वो लाल रंग में अपने को रंगती कभी गुलाबी कपड़े पहन खुद भी गुलाबी हो जाती।आईना देख कुछ शरमाती फिर संतुष्टि के रंग चेहरे से फिसल जाते।फिर कभी जामुनी रंग उठाती तो कभी तोतई।पलंग पर सारे रंग बिखरे हुए थे।कोई भी रंग आज उसे समझ नहीं आ रहा था।सामने बगीचे में सफेद फूल पर सतरंगी तितली मुस्कुरा रही थी।उसने सतरंगी चुनर का दामन थामा और लड़के के पास चल दी।अब वो साथ साथ घूम रहे थे।एक दूजे का हाथ में हाथ लिए।मंद-मंद सुगंधित समीर लड़की का आँचल डुला रही थी। लड़के ने एक नज़र लड़की के श्रंगार पर न डाली।कजरारी आँखों में कुछ उदासी की कतरने उतर आयीं।वो जब मुस्कुराया वो सब भूल उसे देखने लगी।अब वो ऊँचाई पर बैठा उसे कुछ सुना रहा था। वो नीचे बैठी उसको बेखुद हो सुन रही थी।वो कुछ बोलता वो मुस्कुराती, अपनी आँखों में दुनिया जहान की मिठास लिए उसे निहारती और स्निग्ध मुस्कान बिखेर देती।वो एक मिनट चुप हो उसे देखता और फिर बतकही में लग जाता।वो उसे सुनाता किस्से अपने शौक के,अपने परिवार के,अपने आस-पास के।वो उसको सुनती जाती।प्रतीक्षा करती अब वो कहेगा तुम बहुत याद आईं। जब सूरज उगा तुम्हारा आँचल आँखों के आगे लहराया।जब तितलियाँ मुस्कुराईं तुम्हारी उजली धूप जैसी हँसी मेरे अंतस में उजाला कर गई।रात को चाँद जब आसमान पर चाँदनी बिखेर रहा था मैं चकोर के जैसे तड़प रहा था।तुमसे आज मिलने के ख्याल से मैं रात भर सो न सका।
“आज मैं रात भर सो नहीं पाया। “
“क्यों?किसकी यादों में खोये रहे? “आस का एक नन्हा जुगनू लड़की के इर्दगिर्द टिमटिमाया।
“याद में किसी की नहीं खोया।बिजली नहीं थी। गर्मी बहुत थी।छत पर मच्छर काटते रहे। “
“ओह! “
“सोचा तुम्हें मना ही कर दूँ आने को। “
“तो किया क्यों नहीं?फिर मिल लेते। “कहीं दिल में कुछ छनाक से चटक गया।
“अपने काम में लग जाना था फिर।महीनों की बात जाती। तुम्हारी कौन सुनता फिर? कितना सुनाती मुझे।”
“तो तुम मुझसे इसलिए मिलने आये कि मैं सुनाउंगी।”
“और नहीं तो क्या?चैन से काम भी नहीं कर पाता। तुम परेशान करती रहती। “सेतुबंध का एकबंध कहीं टूटकर बिखर गया।कजरारी अँखियों में ओस से मोती उतर आये।
“क्या हुआ?”
“आँख में कुछ गिर गया।”
“अपना ध्यान रखा करो। बहुत लापरवाह हो तुम। “
“सारा ध्यान तुम में ही रहता है। अपना ध्यान कैसे रखूँ?”
“इन बातों से जिंदगी नहीं कटती यार। थोड़ा प्रैक्टिकल बनो। “
जी में आया कह दे प्रैक्टिकल लोग प्यार नहीं कर सकते।प्यार तो ईश्वर का दिया मासूम सा उपहार है जिसमें बंदा सब कुछ भूल जाता है।और वो सब कुछ भूल चुकी है अपना आपा भी।बस याद है तो वो।पर कह न सकी।पता था मिलन के ये चार पल लड़ाई और आँसू की भेंट चढ़ जायेंगे। फिर न जाने वो कब तक नहीं आयेगा।
“हाँ!सही कह रहे हो तुम।इन बातों से जिंदगी नहीं कटती। “
“बस बन गया मुँह। “
“नहीं न। क्यों बनेगा? तुमने कुछ गलत नहीं कहा। “
लड़का दिल ही दिल घुट कर रह गया। कैसे कहता कि उसके साथ दुख के काँटे हैं सुख के बादल नहीं। लड़की की आँखों के झिलमिलाते आँसू उसे बैचेन कर गये। मन किया अपनी पोरों से उसके सारे आँसू चुन ले और कह दे…
“हाँ ! तुम हर पल मुझे सताती हो। खवाब में आती हो।मेरे दिल का करार लूट ले जाती हो। तुम मेरे चेहरे पर सितारों की रोशनी को मुट्ठी में कैद कर चाँद बताती हो,लेकिन मेरा तो सूरज तुम हो। मेरे जीवन की इकलौती रोशनी की किरन।”लेकिन अपने पथ के काँटे कैसे लड़की को दे देता। अजीब कश्मकश में था न उसे साथ रख दुख की परछाईंयों में घसीटना चाहता था, न उसे छोड़ कर उसके बिना जीने का तसव्वुर कर सकता था। बस दिन रात मेहनत कर रहा था, उसके सपने सँवारने को।लड़की उसकी बेरूखी से चुप थी और वो अपनी परिस्थितियों में उलझा हुआ। दोनों अपनी अपनी सोच में डूबे चुपचाप चले जा रहे थे।
दिन पखेरू से उड़ जाते।जब वो आता लड़की तितली सी उड़ती फिरती,जब चला जाता फिर उसके आने की राह तकती। लड़के के साथ लड़की को न समय का भान रहता न किसी काम का ख्याल।उस वक्त वो कमनीय चंचल बालिका बन जाती जिस पर चन्द्र किरनें अपनी शीतलता बरसा रही होती।वो अपनी बात समाप्त कर उठ जाता।उसे पता ही नहीं होता उसने क्या क्या समझाया सिखाया ?उसे बस प्यार का सबक याद था।वो उसे रोकना चाहती पर वो मुस्कुरा देता।मुझे जाना होगा अब मुझे दुनियादारी निभाने दो प्रिय।वो क्षणांश उदास हो जाती पर अपने प्रिय का कहा कैसे अनसुना करती।अपनी उदासी को मन की परतों में छुपा अपने प्रिय को विदा कर देती।फिर उसके हिस्से में आती प्रतीक्षा की लम्बी घड़ियां।अब उसके गीतों में विरह गूँजती।चाँद की किरनें उसे चुभती।फूलों के रंग फीके लगते।सूरज उदास लगता।फिर वो अपनी सारी उदासी इकट्ठी करती और विरह के अपार कल्पों में मिलन के पल को संजोये हुए वो आने वाले मिलन पलों के सपनों में खो जाती।
लड़का अपनी दुनियादारी में उलझ जाता।लड़की सोचती लड़का अपने हाथ से लगाये अपने प्यारे से बगीचे में खोया रहता है।लड़के ने दिल के एक हिस्से में मेरे नाम के फूल खिलाये हैं बाकी उसका जहाँ उसके अपने फूलों और प्यार से गुंजार है। लड़का अपनी परेशानियों में डूबा रहता और लड़की लड़के की यादों में खोई रहती।वो उसकी बातें सुनती, परेशानी चुनने की कोशिश करती। लड़की लड़के के मन के एक हिस्से के फूलों से ही बेहद खुश थी।
लड़का दिन रात एक कर रहा था। कब वो दामन भर खुशियाँ लड़की के कदमों में डाल पायेगा। प्रतीक्षा में दोनों जल रहे थे। वो लड़के से मिलन की घड़ी के लिए परेशान थी तो लड़का सारे जहाँ की खुशियाँ लड़की पर वारने को बेताब था।वो इधर से उधर बैचेन घूम रही थी। इस बार विरह के कल्प बढ़ते ही जा रहे थे। हर बार वो हवा के झोंके की तरह आता था और चला जाता था।लड़की को लड़के का पता ठिकाना कुछ मालूम नहीं था।वो मुरझाने लगी, प्रतीक्षा, प्रतीक्षा और प्रतीक्षा।वो जब गया था तो माघ की ठंडक हवाओं में थी। धूप के कतरे देह को छू गुदगुदा देते थे।हवाओं में सिहरन थी। बादलों में गुबार था।
अब नमी हवाओं से मौसम ने चुरा ली थी।खेतों में फसल पक गई थी। गेहूँ लहलहा रहे थे।हवायें गुनगुना रही थी। आसमान से निकलती धूप अब गुदगुदा नहीं रही थी देह को झुलसाने लगी थी। लड़की पर कोई मौसम असर नहीं करता था।वो उसकी प्रतीक्षा में बागों में उड़ा करती थी।सुबह से सॉंझ तक गरम बयार सी।रात से सुबह तक फगुआ के फूलों की महक सी।विरह के कल्प वो मुट्ठी में लिए गुमसुम सी घूमा करती थी।फिर मास बीते मिलन रूत आई वो आया बसन्त की बयार सा वो महक गई बासन्ती पवन सी।अब वो साथ चलते साथ खाते साथ साथ रहते।वो उसे किस्से सुनाता अपने फूलों के अपने पौधों के और वो बड़े चाव से सुनती।लड़के को सुनना लड़की को हवाओं की धनक देता था। उसके आड़ू से गुलाबी रंग पर धनक के सातों रंग उतर आते। वो शरमाती,इठलाती और उसकी बाँहों में खो जाती।लड़की लड़के के फूलों के लिए रंग बुनती, हवाओं से नमी चुराती और चन्दा की शीतलता उसके लिए उतार लाती। आसमान से तितलियाँ चुराती और उसके फूलों के लिए उसकी गोद में डाल आती।वो उसकी दीवानगी पर बारी बारी जाता और उसकी चाहत को अपना अधिकार समझ वसूले जाता।वो प्रेम में पगी थी, प्रेम से गुँथी थी।वो अब भी दुनियादारी में उलझा था।उसके पास अपने किस्से होते, अपनी उलझने होतीं।
लड़की के पास प्रेम था, कुछ फूल थे और वो लड़का था। वो थी और उसकी त्रिज्या में डूबा हुआ प्रेम का गोला था। लड़के के पास उस लड़की के लिए खुशियों की चादर बुनने के लिए रेशम के धागे नहीं थे। वो धागे इकट्ठे करने में जीजान से जुटा था।
दिन व्यतीत होते रहे। वो आता जाता रहा। वो सपने संजोती रही।वो लड़के की बगिया के फूलों और पौधे को प्रेम करती रही। उनकी देखभाल अपने फूलों के जैसे करती थी।वो अपनी दुनिया में गुम था वो उसकी दुनिया में खोई थी। प्रेम के सात बंध बाँध अब वो उसकी अर्धांगिनी बन गई।
उसके दिन सोने के होते और रात चाँदनी की।चन्द्र किरनें उसे शीतलता प्रदान करती। तारे उसकी छाँव करते और सूरज उसे उजाला देता।
उसकी नन्हीं दुनिया प्रेम पंछी और उसके फूल से गुंजार थी।
आज उसके नन्हें फूल की पंखुड़ी पहली बार फूटी थीं।सूरज की किरनों ने उसे सहला दिया। हवाओं ने प्यार किया।चाँद ने अपनी चाँदनी से उसे नहला दिया।तारों ने उजाला बिखेर दिया।सब आ कर उसकी पंखुड़ियों को प्यार कर रहे थे। वो प्रसन्न थी बहुत प्रसन्न। उसकी बाट जोह रही थी।वो आयेगा और उसकी पंखुड़ियों को सहलायेगा,दुलारेगा।प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं। सदा के जैसे वो आया। उसने अपनी दुनियादारी का पिटारा लड़की के आगे खोल दिया।वो धीमे सुरों में बोल रहा था वो उसको प्यार से सुन रही थी।वो बगीचे की ओर देखती और मुस्कुरा देती ।वो अपने फूलों के किस्से सुनाता रहा।वो प्रतीक्षा करती रही। मिलन के पल समाप्त हुए। वो मुस्कुरा कर फिर आने का वायदा कर चल दिया। दो बूँदे उसकी आँखों से टपक गईं।सेतुबंध का उखड़े बंध आज फिर टूट गये थे।उसकी सीप सी आँखें फिर झिलमिला गईं।क्या होता जो उसकी दुनिया में एक नज़र वो डाल लेता।
लड़का लड़की से मिला।उसकी सफेद आँचल पर नन्हें नन्हें कासनी फूल टँके थे।उसकी गहरी उदास आँखों में उसे देख हरियाली की पूरी रूत उतर आई थी।वो अपने फूलों की पंखुड़ियों को सहलाती, प्यार करती।वो भी प्रेम में वेणी सी गुँथी उस लड़की को देख अपनी साँसे लेता था।उसके फूलों की नन्हीं पंखुड़ियों को उसने प्यार से सहलाना चाहा लेकिन अपनी खाली मुट्ठी पर उसकी आँखें भर आईं। वो लाख कोशिश करता इस बार कुछ खुशियाँ लायेगा अपनी उस प्रेम पुजारिन के लिए लेकिन हर बार मुट्ठी रीति रह जाती। दिन रात की मेहनत भी उसे वो सब कुछ नहीं दे सकते थे जो लड़की यहाँ अपनी दुनिया में रह कर पा रही थी। उसकी आँखें भीग भीग जा रही थीं। वो जानता था जिन खुशियों को देने की तलाश में वो भटक रहा है लड़की को वो सब नहीं चाहिए था। उस लड़की की खुशियों का मरक़ज वो आप था। लेकिन कैसे समझाता जिंदगी सिर्फ प्रेम के सहारे नहीं कटती। जब यथार्थ के कठोर धरातल से गुजरो तो चाँद-तारों की ठंडक भी सूरज की तपिश से कम नहीं लगती।उसने भी कुछ सपने लड़की के लिए देखे थे।वो भी चाहता था वो उसे अपनी पलकों पर रखे। वो उन्हें पूरा करने की जद्दोजहद में लगा था।
“क्या सोचने लगे?”
“तुम इतना क्यों चाहती हो मुझे?मैं जानता हूँ तुम्हारी चाहत के जितनी किसी की चाहत नहीं हो सकती।”
“पागल हूँ न! ये सच है कितनी बार मुझे लगता है तुम्हें मुझसे इतना प्यार नहीं जितना मैं तुम्हें करती हूँ।पर प्यार की कोई सीमा कहाँ होती है?ये तो दो दिलों के बीच कभी भी कहीं भी हो सकता है।किसी को प्रेम कड़वी कुनैन की गोली लगता है,किसी को सर्द शाम की धुँध।मुझे तो तुम में प्रेम दिखता है बस। तुम मेरे सामने होते हो कायनात की हर बात मुझे अच्छी लगती है। तुम क्यों यहाँ वहाँ भटक रहे हो?सब छोड़ कर मेरे पास ही रह जाओ। “वो मुस्कराया और बोला
“इस बार आकर कभी नहीं जाऊँगा। वादा है ये मेरा। बस तुम्हारे लिए जो करना चाहता हूँ उसके अन्तिम पड़ाव पर हूँ।”
“मेरा अन्तिम पड़ाव तुम हो। कहीं न जाओ। “
“हवाओं ने जोर पकड़ लिया है अब मुझे निकलना होगा। ज़ल्दी आता हूँ।कभी न जाने के लिए।”
लड़की घबरा गई। पता नहीं क्यों इस बार की जुदाई पर दिल बेहद उदास था।लड़की की आँखों में आँसू बह चले।
“रो मत। मैं तुम्हारे आँसू नहीं देख सकता। ये गया और ये आया।” ऐसे जल्द आने का वादा कर वो चला गया लड़की झिलमिल आँखों से उसे देखती रही।
दिन बीते, मास बीते।लड़की बैचेन सी घूम रही थी।वो आज आने का वादा करके गया था।वो कभी शिद्दत से इंतज़ार करती,कभी उसकी लापरवाही से व्यथित गुस्से में यहाँ वहाँ घूमती। गुस्सा और बैचेनी बढ़ती जा रही थी।अब आयेगा तो कह दूँगी तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं रखना मुझे।ऐसी भी क्या लापरवाही?नहीं करना उसे प्रेम।हवायें जोर पकड़ रही थी। बारिश रूकने का नाम नहीं ले रही थी।लगता था तूफ़ान जोरों पर था।लड़के को लिए दूर कुछ लोग आते दिखाई दिये।वो जड़ हो गई।ये ऐसे क्यों ला रहे हैं उसे?उसकी धड़कनों ने शोर मचाना बंद कर दिया।बगीचे के फूल मुरझा गये थे।वो लोग पास आते जा रहे थे।सफेद कपड़ों में उसे लिपटा देख वो अपनी सुध खो बैठी।उसे खुशियाँ देने की चाहत में वो समुद्र में जाया करता था।उसे आज तक पता ही नहीं था लड़का उसके लिए क्या कर रहा था?उस दिन भी तूफ़ान जोर पर था।वो सुनहरी जिंदगी के सपनों को पूरा करने के लिए लाने समुद्र की ओर निकल पड़ा।पर तूफ़ान ने कुछ सोचने का मौका दिये बगैर उसे समुद्र की पनाहों में फेंक दिया।लड़के के पास से लड़की के आँचल में टँके नन्हें नन्हें फूलों की कुछ पंखुड़ियाँ ,उसका गुलाबी रूमाल जो कभी उसने चोट लगने पर उसके बाँधा था।कुछ सीपी,कुछ घोंघे,उसके गुम हुए रंग बिरंगे क्लिप और सतरंगी चुनरी का वो टुकड़ा पड़ा था जो गुलाब में अटक फट कर कहीं गिर गया था। लड़की जाऱ जाऱ रो रही थी।लड़के के प्रेम ने आकाश की ऊँचाई को छू लिया था। तटबंध के सारे बंध आज टूटकर बिखर गये थे।