निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझे देखकर मेरी मौत भी, मेरे पास आने में डर गई
मेरी आरज़ू रही आरज़ू, युँ ही उम्र सारी गुज़र गई।
की तमाम कोशिशें उम्र भर, न बदल सका मैं नसीब को।
चली गुलसिताँ में जो आँधियाँ, तो कली-कली के नसीब थे।
वो नज़र जरा सी जो ख़म हुई, मैंने समझा नज़र-ए-करम हुई।
मेरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं, मेरा ला-इलाज है ये मरज़।
ये तो अपना अपना नसीब है, कोई दूर कोई करीब है।
ये खुशी निज़ाम कहाँ से कम, कि हैं साथ अपने हज़ारों ग़म।
RELATED ARTICLES