मीरा की मुलाकात कबीर से एक सोशल नेटवर्किंग साइट पर हुई थी मीरा को पहली ही नजर में कबीर का व्यक्तित्व
काफी दिलचस्प लगा था।इसलिए कबीर की तरफ से मिले मित्रता के प्रस्ताव को वह ना नही कह सकी थी।हालांकि रुढिवादी परिवार में पली बढी मीरा के लिए कबीर से मित्रता करना इतना आसान भी नही था।इसके लिए वह अपने आप से भी लडी थी। कबीर से मित्रता का हाथ बढाते हुए उसे अपनी फ्रेंड शालिनी की कहीं बात याद आ रही थी।
“एक लडका और लडकी कभी दोस्त नही बन सकते है।
ये तो आग पानी जैसे होते है भला आग और पानी मे कैसी यारी।”
किसी बात को जाँचे परखें बिना उस पर विश्वास कर लेना मीरा ने सीखा नही था ।इसलिए उसने अपने फैसले पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया। समय अपने पंख लगाये गुजरता जा रहा था और इसी गुजरते वक्त के साथ मीरा और कबीर की मित्रता भी गहराती जा रही थी।एक दिन कबीर ने मीरा से कहा वह उसके लिए कुछ अलग तरह की फीलिंग्स महसूस करता है।शायद मुझे तुमसे प्यार हो गया है।कबीर के मुँह से यह बात सुनकर मीरा परेशान हो उठी ।क्योंकि उसने तो  कबीर के बारे में ऐसा कुछ नही सोचा था। उसके लिए तो  कबीर उसका सबसे प्यारा और सबसे अच्छा दोस्त था।
उसे एक बार फिर अपनी उस फ्रेंडस की कही बात याद आ रही थी जिसके अनुसार लडका और लडकी अच्छे दोस्त नही हो सकते है।तो क्या मैं और कबीर अच्छे दोस्त नही है
उसके मन में विचारों की उथल – पुथल जारी थी।
इस घटना के बाद कई दिनों तक दोनों के बीच फोन पर या प्रत्यक्ष कोई संवाद नही हुआ।मीरा को लगा अब उसकी और कबीर की दोस्ती खत्म हो गई। 
मीरा को बहुत समय पूर्व अपनी फ्रेंडस शालिनी से लगाई वह शर्त  याद आ गई । जिसमें उसने कहा था
 “मीरा इस दुनिया में लडका और लडकी के बीच स्वस्थ मित्रता नही हो सकती हैं बात घूम फिर कर प्रेम संबंधों पर आ जाती है।”
तब मीरा ने बडे गर्व के साथ उससे कहा था।
“शालिनी तुम्हारी सोच बहुत घटिया है लडका और लडकी भी अच्छे दोस्त हो सकते है हमारी संस्कृति में इस बात का प्रमाण स्वयं भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की मित्रता है।”
इस पर शालिनी ने तुनक कर कर कहा ।
“आज के युग में है ऐसी कोई मित्रता की मिसाल, हो तो मुझे बताओ “
मीरा ने भी आवेश में आकर बोला “मैं दिखाऊंगी तुम्हें ऐसी मित्रता जिसमें वासना का कोई अंश भी न हो।”
शालिनी ने मीरा की हथेली पर अपना हाथ मारते हुए कहा लगाओ शर्त और मीरा ने उसकी हथेली पर अपना हाथ पटकते हुए उसकी शर्त स्वीकार कर ली थी।
लेकिन आज मीरा को लग रहा था जैसे वह शर्त नही अपनी पूरी दुनिया हार गई हो ।वह सोच रही थी उसने कबीर के प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो उसने मुझसे मुँह मोड़ लिया ।क्या कबीर के लिए उसकी दोस्ती कोई मायने नहीं रखती ? क्या वो भी अन्य लडकों और लडकियों की तरह प्रेम संबंधों को ही तरजीह देता ? क्या उसके लिए दोस्ती जैसा पवित्र रिश्ता कोई मायने नहीं रखता है? लेकिन वो जितना कबीर को समझ पाई है वो तो ऐसा न था तो क्या उससे कबीर को समझने में भूल हो गई
अपने ही सवालों के भंवरजाल मे उलझी मीरा को फोन की रिंगटोन ने बाहर निकाला।
फोन कबीर का था मीरा को डांटते हुए कह रहा था। 
“उसदिन के बाद मुझे अचानक से कुछ दिनों के लिए काम के सिलसिले में आऊट ऑफ स्टेशन जाना पडा । इसलिए जल्द बाजी मे तुम्हें बता नही पाया।वहां जाकर मेरा फोन खराब हो गया और उसमें सेव सभी नंबर डिलीट हो गए । सॉरी इस वजह से तुमसे कोई बात नही कर पाया। आज किसी तरह से तेरा नंबर मिला तब जाकर तुझे कॉल लगाया । पर एक मिनिट तेरे पास तो मेरा नंबर था, तूने मुझे फोन क्यों नहीं लगाया ? क्या यही है तेरी दोस्ती?” 
वह लगातार कहे जा रहा था और इधर मीरा की आँखों से खुशी की गंगा जमुना बहे जा रही थी ।वह रोते हुए बोले जा रही थी शुक्रिया कबीर आज तुमने मुझे और मेरे विश्वास को टूटने से बचा लिया।

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