Saturday, July 27, 2024
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अरुण आशरी की कविता – हर भाव छिपा है हिंदी में

हर भाव छिपा है हिन्दी में, मत समझो केवल भाषा है,
हिन्दी को हिन्दी मत समझो, हर भाषा की परिभाषा है।
बच्चन की मधुशाला है,ये अमृत रस का प्याला है,
बादल राग और राग विराग,संयोग ये अज़ब निराला है,
मेरी सुगंध हिन्दी संग फैले,हर पुष्प की ये अभिलाषा है,
हिन्दी को हिन्दी मत समझो,हर भाषा की परिभाषा है।
हिन्दी में आसक्ति है,ये मातृ भूमि की शक्ति है,
हर शब्द सुसज्जित अलंकृत,ऐसी भावाभिव्यक्ति है,
हर बच्चे के सपने हिन्दी में,हिन्दी में पूरी आशा है,
हिन्दी को हिन्दी मत समझो,हर भाषा की परिभाषा है।
हिन्दी को मेरा वंदन है और हिन्दी का अभिनंदन है,
हिन्दी मेरी माता है,माथे पर लगा ये चंदन है,
उन्मुक्त विधा को नमन मेरा,मेरा गौरव हिन्दी भाषा है,
हिन्दी को हिन्दी मत समझो,हर भाषा की परिभाषा है।
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