Saturday, July 27, 2024
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डॉ गुरविंदर बांगा की ग़ज़ल – पहुंचती ही नहीं कोई दुआ अब आसमानों पर

मुसीबत क़हर बनकर टूटती है बेज़बानों पर
पहुंचती ही नहीं कोई दुआ जब आसमानों पर
थके हारे हुए इंसान तो लाचार होते हैं
हमेशा भीड़ लगती है चढ़ावे की दुकानों पर
वबाएं, हादिसे इस देश में पहले भी आते थे
मगर इक जूं नहीं अब रेंगती हाकिम के कानों पर
नए चेहरे चुनावों में दिखाई देने वाले हैं
नज़र है हुक्मरां की इन दिनों कुछ क़ैदख़ानों पर
किसी दिन  हादिसे की देखना ‘बांगा’  ख़बर होगी
निशां देखे गए है फिर चुनिंदा कुछ मकानों पर
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