डॉ गुरविंदर बांगा की ग़ज़ल – पहुंचती ही नहीं कोई दुआ अब आसमानों पर
मुसीबत क़हर बनकर टूटती है बेज़बानों पर
थके हारे हुए इंसान तो लाचार होते हैं
वबाएं, हादिसे इस देश में पहले भी आते थे
नए चेहरे चुनावों में दिखाई देने वाले हैं
किसी दिन हादिसे की देखना ‘बांगा’ ख़बर होगी
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