गर्मी का मौसम था मगर बाहर बेमौसम बादल छाए हुए थे। नीले आकाश में काले बादल उमड़ घुमड़ रहे थे इधर रागिनी के मन में भी भावनाओं के बादल उमड़ – घुमड़ रहे थे ।राघव को उससे दूर हुए एक लंबा अरसा बीत गया था फिर भी वह चाह कर भी उसे पूरी तरह से भुला नहीं पाई थी । घर हो या ऑफिस किसी भी काम को करते वक्त अचानक से उसे राघव याद आ जाता है और उसकी आंखों की कोर गीली हो उठती ।
कुछ दिनों से उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था सर्दी खांसी और बुखार के लक्षणों के चलते उसने अपना कोरोना टेस्ट कराया था ।कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और वह घर पर ही होम आइसोलेशन मे रहकर ट्रीटमेंट ले रही थी ।इसे बीमारी या अकेले रहने का असर कहा जाए या कुछ और ,उसे अनचाहे ही राघव बहुत याद आ रहा था।उसने मन बहलाने के लिए टीवी चालू की मगर उस पर चल रही उबाऊ खबरों से उकताकर उसने एक किताब पकड़ ली लेकिन उसका मन वहां भी नही लगा । फिर उसने दवाई ली और तकिए पर सिर टिकाते हुए आंखें बंद की तो राघव की यादे एक बार फिर उसका पीछा करने लगी।
उसका मन अतीत के जंगल में किसी हिरन सा कुलांचे मारने लगा।वह और राघव बचपन के दोस्त थे दोनों एक ही साथ स्कूल में पढ़ते थे ।बचपन की दोस्ती समय के साथ-साथ जवां होने लगी ।एक दूसरे के साथ पढ़ते- खेलते तकरार करते हुए वह एक दूसरे के कब इतने करीब आ गये इसका पता उसे उस दिन चला जब उसके घर में उसकी शादी की बात हो रही थी। किसी और के साथ शादी के ख्याल भर से उसकी रूह कांप उठी।
साथ जीने मरने की कसम खाने वाले वह और राघव अपने अपने क्षेत्र में सभी बाधाओं को पार करके सफलताओं के परचम फहराते गए मगर अपने परिवारों की रुढिवादी सोच एवं समाज की बनाई जातिगत दीवारो की बाधा को पार न कर सके उनका प्यार जाति की इन मोटी और ऊंची दीवारों के आगे हार गया और उनके रास्ते जुदा हो गए ।
अचानक से मोबाइल की रिंग बजने से वह यादों के उस बियाबान जंगल से बाहर आई और उसकी आंखों से आंसूओ के बडे- बडे मोती उसके गुलाबी गालों पर टपक पड़े। उसने मोबाइल चेक किया तो एक अजनबी नंबर था।
“इस वक्त कौन फोन कर सकता है ?” उसने स्वयं से सवाल किया । फिर यह सोच कर कि शायद किसी को मुझसे जरूरी काम हो ,उसने फोन रिटर्न किया दूसरी ओर से एक चिर – परिचित आवाज थी ।
“हेलो रागिनी तुम ठीक हो ” उस आवाज को सुनकर जैसे उसके दिल के तार एक बार फिर से उस जादुई और मोहक आवाज से जुड़ से गए और वह एक ही पल में पुरानी बातें भूल कर फिर उसी उत्साह से बोली
“मेरी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है।”
“तुम कैसे हो और तुम्हें मेरा नंबर कहां से मिला?”
वह अपने उत्साह में बोले जा रही थी
“अरे बाबा अब तुम चुप होगी तब ही तो मैं कुछ बोलूंगा।” राघव ने हंसकर कहा
“ओह सॉरी राघव तुम बोलो।” उसने कहा
पता नहीं क्यों रागिनी मुझे कुछ दिनों से ऐसा लग रहा था जैसे तुम ठीक नहीं हो ।मेरा मन बहुत बेचैन हो रहा था इसीलिए तुम्हारी फ्रेंड दिव्या से तुम्हारा नंबर लेकर तुम्हें फोन लगाया
“सॉरी अगर तुम डिस्टर्ब हुई हो तो……” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ते हुए कहा ।
“नहीं, तुमने बहुत अच्छा किया ,मुझे कोरोना हो गया है और मैं होम आइसोलेशन मे हूं । इस वक्त मैं बहुत अकेला फील कर रही थी। सच पूछो तो मुझे तुमसे बात करके बहुत अच्छा लग रहा है । “उसने कहा
फिर दोनों के बीच कुछ देर के लिए खामोशी छा गई ।
“हैलो रागिनी तुम सुन रही हो ना।”दूसरी ओर से राघव ने कहा
“हा मैं सुन रही हूं तुम बोलो।” उसने कहा
बातों का जो सिलसिला टूट गया था वह फिर से चल पड़ा दोनों ओर से भावनाओं का सैलाब बह निकला जिसके आवेग मे बर्षो से जमी मतभेद की सारी पर्ते बह गई ।और उनके मन में विशुद्ध प्रेम की धारा बहने लगी।जिसके आगे जाति की मोटी और ऊंची दीवार भी ढह गई।
आज वह बीमार होने के बावजूद भी अच्छा महसूस कर रही थी, इधर राघव ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और निकल पड़ा अपने बिछुड़े प्यार से मिलने को।