Saturday, October 12, 2024
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कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की ग़ज़ल

राहें सूनी, गलियाँ सब वीरान हो गए हैं
जिंदा लाशों से देखो अब इंसान हो गए हैं।।
खून से लथपथ हाथ,ज़मीर हैं मरे हुए
ग़ौर से देखो दिल इनके श्मशान हो गए हैं।।
नहीं किसी की चीख़-पुकार सुने कोई
गूँगे-बहरे देखो इनके अब कान हो गए हैं।।
बस खुद की जेबें भरते हैं ये देखो
सफ़ेदपोश ये नेता सब बेईमान हो गए हैं।।
चप्पे-चप्पे पे पड़ी हैं बिखरी लाश यहाँ
गहरी नींद में मंदिर के भगवान हो गए हैं।।
नफ़रत की अब बू आती सब चेहरों से
प्रेम गुलिस्तां अब जंग के मैदान हो गए हैं।।
ये कैसी आबो-हवा “दीप” ये मंज़र कैसा
क्यों जानबूझकर सब इतने अनजान हो गए हैं।।

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