होम ग़ज़ल एवं गीत कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की ग़ज़ल द्वारा कुलदीप दहिया मरजाणा दीप - May 30, 2021 178 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet राहें सूनी, गलियाँ सब वीरान हो गए हैं जिंदा लाशों से देखो अब इंसान हो गए हैं।। खून से लथपथ हाथ,ज़मीर हैं मरे हुए ग़ौर से देखो दिल इनके श्मशान हो गए हैं।। नहीं किसी की चीख़-पुकार सुने कोई गूँगे-बहरे देखो इनके अब कान हो गए हैं।। बस खुद की जेबें भरते हैं ये देखो सफ़ेदपोश ये नेता सब बेईमान हो गए हैं।। चप्पे-चप्पे पे पड़ी हैं बिखरी लाश यहाँ गहरी नींद में मंदिर के भगवान हो गए हैं।। नफ़रत की अब बू आती सब चेहरों से प्रेम गुलिस्तां अब जंग के मैदान हो गए हैं।। ये कैसी आबो-हवा “दीप” ये मंज़र कैसा क्यों जानबूझकर सब इतने अनजान हो गए हैं।। hospitality equipment संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं सोनिया सोनम अक्स की दो ग़ज़लें अर्चना उर्वशी का गीत – मन की घटाएं तीन ग़ज़लें – डॉ पुष्पलता मुजफ्फ़रनगर कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.