कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की ग़ज़ल
राहें सूनी, गलियाँ सब वीरान हो गए हैं
खून से लथपथ हाथ,ज़मीर हैं मरे हुए
नहीं किसी की चीख़-पुकार सुने कोई
बस खुद की जेबें भरते हैं ये देखो
चप्पे-चप्पे पे पड़ी हैं बिखरी लाश यहाँ
नफ़रत की अब बू आती सब चेहरों से
ये कैसी आबो-हवा “दीप” ये मंज़र कैसा
RELATED ARTICLES