दिव्या ने जैसे ही ऑनलाइन क्लास लेने के बाद अपना मोबाइल चेक किया तो उसमें दो तीन मिसकॉल पड़े थे।नंबर वहीं चिरपरिचित सखी अपराजिता का था सो उसने तुरंत कॉल रिटर्न्स किया। क्योंकि आमतौर पर अपराजिता उसे इस समय उसकी डांस की ऑनलाइन क्लास होने की वजह से कॉल नहीं करती है।
दूसरी ओर से अपराजिता के रोने की आवाज आ रही थी।उसने अपराजिता से पूछा क्या बात है ?वह क्यों रो रही है।
“दिव्या मैं तुझे सारी बात फोन पर नही बता सकती हूं ।तू इसी समय मेरे घर आजा … कहकर अपराजिता ने फोन काट दिया।”
दिव्या सोच में पड़ गई कि क्या बात हो सकती है? अपराजिता इतनी घबराई हुई सी क्यों है? वह जल्दी से तैयार होकर टैक्सी पकडकर अपराजिता के घर के लिए निकल पड़ी और रास्ते भर यही सोचती रही कि ऐसी क्या बात हो सकती है जो अपराजिता ने मुझे फोन पर नहीं बतायी ।
वह कुछ ही देर में अपराजिता के घर पहुंच गई। जहां पहले से ही अपराजिता दरवाजे पर खडे होकर उसका ही इंतजार कर रही थी। उसने आते ही अपराजिता से पूछा वह इतनी परेशान क्यों है ?
“वो वापस आ गया है ।”अपराजिता ने रोते हुए उससे कहा।
“कौन वापस आ गया है ?”
राजेश…
“क्या” दिव्या ने चौकते हुए कहा।
“हा और उसने मुझे धमकी दी  है कि वह मुझसे मेरी बच्ची को छीन लेगा और जिसतरह उसने मेरी जिंदगी को बरबाद किया था उसीतरह वह मेरी बच्ची की भी जिंदगी बरबाद कर देगा।अब तो वह मुस्कान से मिलने भी लगा है और मेरी मासूम सी बच्ची को मेरे खिलाफ बरगलाने भी लगा है । जिसके कारण से वह मुझसे खींची – खींची सी रहने लगी है। और तो और अब तो वह मुझे ही गलत समझने लगी है।” बताते हुए वह रो पडी।
“अपराजिता मुस्कान तो अभी बच्ची है तू उसे समझाती क्यों नहीं है ? यदि तू उसे समझाएगी तो वह जरूर समझेगी।” दिव्या ने उसके आसूं पोछते हुए कहा।
“मैं उसे कैसे समझाऊं कि जिसे वह अपना बाप समझ रही है ।वह दरअसल उसका बाप नहीं एक वहशी दरिंदा है ।”कहते हुए एकाएक उसके चेहरे पर दर्द छलक आया।
“तो सिर्फ एक ही रास्ता बचता है  अपराजिता कि तू उसे सारी सच्चाई बता दें। “
“पर मैं उसे अपनी बरबादी की दस्तां कैसे सुनाऊ कहते हुए वह रुक सी गई..।”
 
उसने अपराजिता का हाथ अपने हाथों में लेते हुए उससे कहा तू चिंता मत कर अपराजिता’मैं हूं ना’ सब ठीक हो जायेगा।
” कैसे ठीक हो जाएगा दिव्या।वो आदमी मेरी मासूम सी बच्ची को मुझसे छीनने की कोशिश कर रहा है और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही हूं।”
“अपराजिता अब वक्त आ गया है कि हम उसे सारी सच्चाई बताए ।वैसे भी अब मुस्कान चौदह वर्ष की हो गई है।  उसमें इतनी समझ तो है ही कि वह अच्छे या बुरे मे फर्क कर सके। मैं उसे सच्चाई बताऊंगी और उसे यह सच्चाई स्वीकार करनी पडेगी।” दिव्या ने कहा।
तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर कहकर वह चिंता के सागर में डूब सी गई। 
अपराजिता को ढांढस बंधाकर वह अपने घर आ गई।
दूसरे दिन दिव्या के बुलाने पर मुस्कान उसके घर आई । 
दरवाजे पर आते ही मुस्कान ने दिव्या से पूछा।
“क्या बात है ? मासी आपने मुझे क्यों बुलाया?”
“वहीं दरवाजे पर खडी – खडी सारी  बात जान लेगी या अंदर भी आयेगी कहते हुए दिव्या ने उसे पास मे पडे  सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए रसोई में चली गई और वहां से गाजर के हलवे से भरी कटोरी लाकर उसे पकडा दी।वह चुपचाप  सोफे पर  बैठकर उसे खाने लगी। दिव्या ने फिर उससे उसकी पढाई के बारे में पूछा।जिस पर उसने एक संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
“आपने मुझे क्यों बुलाया मासी आपने अभी तक बताया नही।”
“मुस्कान मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है पर पहले तू हलवा खा ।”
“नही मासी पहले आप बताओ आपको क्या बात करनी है मुझसे”
 “बेटा मैं ये क्या सुन रही हूं कि तुम अपनी मां से ठीक से  बात नहीं करती हो। तुम नही जानती हो तुम्हारे इस बर्ताव से वह कितना दुखी है।” दिव्या ने कहा
मासी अगर आपको मां के बारे में बात करना है तो प्लीज मुझसे बात मत करो मैं उनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहती हूं।
“क्यों नहीं करनी है उसके बारे में बात?।तुम्हें बात करनी पड़ेगी मुस्कान।” दिव्या ने गुस्से में आकर कहा।
“देखिए मासी यह मेरा और मेरी मां का पर्सनल मामला है और आप उसमें टांग ना अडाए तो बेहतर है।”  मुस्कान तीखे स्वर में चिल्ला उठी।
“मुस्कान तुम भूल रही हो तुम्हारी मां तुम्हारी मां होने से पहले मेरी सहेली है और तुम्हारी वजह से मेरी सहेली की आंखों में आंसू आए तो मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकती हूं ।”
“तो जाओ अपनी सहेली के आंसू पूछो मेरा भेजा मत खाओ मुस्कान ने पलट कर जवाब दिया ।”
“एहसान फरामोश लड़की जिस मां ने तुझे जन्म दिया पाल पोस कर इतना बड़ा किया उसी के बारे में इस तरह बात करते हुए तुझे शर्म नहीं आती दिव्या झल्ला उठी।”
 
“जन्म दिया है तो कौन सा एहसान किया है वह तो दुनिया की हर माँ करती है ।” मुस्कान ने सीधे सपाट स्वर में कहा।
“हां एहसान ही किया है अपराजिता ने तुझे जन्म देकर
तेरा अस्तित्व बचा रहे इसलिए उसने अपना ही अस्तित्व दावं पर लगा दिया। तेरे होठों पर मुस्कान बनी रहे  इस कोशिश में उसके ओंठो से मुस्कान गायब हो गई।”
“ऐसा क्या किया है उन्होंने मेरे लिए ।”
“तुम सुनना चाहती हो तो सुनो।”
आज से बहुत बर्ष पहले मैं और अपराजिता  एक ही कॉलेज में साथ- साथ पढ़ते थे ।अपराजिता के पिता शिक्षक थे ।इसलिए उन्होंने बारहवीं के बाद गांव में कॉलेज न होने के कारण अपराजिता को आगे पढने के लिए शहर भेजना शुरू कर दिया।उनके कहने पर ही मेरे बाबूजी भी मुझे शहर पढ़ने भेजने के लिए राजी हुए थे ।गांव से बस हम दो ही लड़कियां थी जो शहर पढ़ने जाती थे बाकी लडकियों की हायर सेकेंडरी तक आते आते पढाई छूट जाती थी ।
अपराजिता बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप अपराजिता  थी। कभी हार न मानने वाली।  उसकी स्वर्ण सी काया को देखकर हर कोई ठिठक कर उसे देखता ही रह जाता था । अपराजिता के इसी  सलोने रुप को देखकर गांव के ही एक दबंग परिवार के लडके राजेश की नीयत बिगड गई। वह अक्सर कॉलेज के रास्ते आते- जाते अपराजिता को छेडा करता । मैं और अपराजिता उसकी इस हरकत को अनदेखा कर देते लेकिन एक दिन तो उसने सारी हदें ही पार कर दी । जब मैं और अपराजिता कॉलेज से वापस आ रहे थे तभी राजेश आ धमका और  अपराजिता का हाथ पकड़कर उससे बहकी- बहकी बातें करने लगा। उसकी ऐसी हरकत देखकर पहले तो अपराजिता सहम सी गई । फिर उसने अपना हाथ छुडा कर उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया और घर आकर उसने अपने भाइयों को राजेश की इस हरकत के बारे में बता दिया ।फिर क्या?उन्होंने गुस्से में आकर राजेश की पिटाई कर दी  ।जिससे वह महीनों अस्पताल के बिस्तर पर पडा रहा और इधर साल खत्म होते-होते मेरी शादी हो गई और उधर राजेश अपराजिता से उसके भाइयों द्वारा पिटाई होने से अपने अपमान का बदला लेने की फिराक में था लेकिन अपराजिता इन सब बातों से अनजान आगे की पढ़ाई के लिए अकेली कॉलेज जाने लगी। और एक दिन मौका पाते ही उसने अपराजिता को अपनी हवस का शिकार बना लिया।और उसे अधमरी अवस्था में तड़पता छोड़ कर चला गया। 
रास्ते मे कुछ राहगीरों ने उसके कराहने की आवाज सुनी तो उसे अस्पताल पहुंचाया ।
अपराजिता के साथ हुए हादसे की खबर देखते ही देखते पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। उसके माता पिता तो इस खबर से गहरे सदमे में चले गए और खुद अपराजिता को इस घटना के पूरे दो दिन बाद होश आया।
अपराजिता ने होश मे आते ही राजेश के खिलाफ अपना बयान दे दिया।  जिससे पुलिस राजेश को गिरफ्तार करने में जुट गई।इधर राजेश के घर वाले उसे बचाने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
उन्होंने गाँव में एक पंचायत बैठाई । जिसने राजेश को सजा से बचाने के लिए अपराजिता को राजेश के साथ शादी करने का फैसला सुनाया। लाचार अपराजिता के पिता ने भी इस फैसले को मान लिया।लेकिन अपराजिता को पंचायत का यह फैसला मंजूर न था ।
अंत में पंचायत बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे समाप्त हो गई ।जिससे अपराजिता के परिवार की गाँवभर मे खूब थू थू हुई।अपराजिता इस सब से गहरे अवसाद में चली गई।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में चली सुनवाई से कुछ ही महीनों में राजेश को जेल की सजा हो गई। इधर अपराजिता की तबीयत ज्यादा खराब  रहने लगी। उसके मां पापा उसे डॉक्टर के पास ले गए । जहां डॉक्टरी चेकअप के बाद पता चला अपराजिता गर्भवती है। अपराजिता के माता-पिता ने उसका एबॉर्शन कराना चाहा लेकिन उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति ठीक ना होने के कारण डॉक्टरों ने एबॉर्शन करने से इंकार कर दिया।
लिहाजा उसके माता पिता ने अपनी इज्जत बचाने के लिए अपराजिता को गाँव से दूर शहर भेज दिया ।जहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया। जिसे लोकलाज के चलते उसके माता- पिता सडक किनारे झाडियों मे फेंक आए।लेकिन जैसे ही अपराजिता को इस बात का पता चला। वह बदहवास अवस्था मे उस जगह पहुंच गई । सौभाग्य से बच्ची सही सलामत थी। जिसे उठाकर वह मेरे पास आ गई।और वो बच्ची कोई और नहीं तुम थी मुस्कान ।
पर अफसोस अपराजिता जिसके लिए पूरी दुनिया से लड गई वहीं बच्ची आज उससे लड रही है। इससे बडा दुर्भाग्य और क्या होगा उसके लिए कहते हुए दिव्या की आंखें भर आई।
“मैं आपकी बात पर कैसे यकीन करू। जबकि पापा ने तो मुझे कुछ और ही बताया। “
 
मैं जानती हूँ तुम्हें मेरी किसी बात का यकीन नही होगा। इसलिए तू मेरे साथ चल और दिव्या उसका हाथ पकड़ कर उस जगह ले गई जहां राजेश के गुनाहों का सारा कच्चा चिट्ठा रखा था।
महिला थानेदार दिव्या की परिचित थी सो उसे मुस्कान को राजेश के जुल्म के निशां दिखाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। 
मुस्कान के मन से अब संशय के सारे बादल छंट चूके थे। वह दिव्या से जल्द घर चलने के लिए जिद करने लगी । दिव्या ने घर जाने लिए ओला बुक की। टैक्सी थोडी ही देर में पहुंच गई। और दोनों उसमें बैठ गई।
मुस्कान जल्द से जल्द घर पहुंच जाना चाहती थी उसे पुलिस स्टेशन से घर की दूरी धरती से चाँद तक की दूरी लग रही थीं।दिव्या मुस्कान को छोडने उसके घर तक आई। सांझ हो चली थी  अपराजिता उस वक्त घर में बने अपने छोटे से मंदिर में दीपक रख रही थी ।
“मम्मा मुझे माफ कर दो मैंने आपको गलत समझा आपको बहुत बूरा- भला कहा आपको बहुत हर्ट किया। सो सॉरी मम्मा ।”कहते हुए मुस्कान उससे लिपट गई।और दूर खडी दिव्या मां बेटी के इस मिलन को देख एक सुखद अनुभूति से भर गई ।

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