देख-देख जग की सुन्दरता मुझ को बहुत प्यार आता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
मन की कली-कली खिल जाती, खिलती जब उपवन की क्यारी,
रोम-रोम हो जाता हर्षित देख चाँदनी प्यारी-प्यारी,
उगता सूरज प्रतिदिन मुझ में, नव आशाएं भर जाता है।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
मीठे बोल सुनाती कोयल, भर जाता मैं भी मिठास से,
पीउ-पीउ करता जब पपीहा, बँध जाता हूँ प्रेम-पाश से,
शुक-पिक मिलन सिखाता मुझ को सब से बड़ा प्रेम नाता है।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
जब घिरतीं घनघोर घटाएं, छटा सँवरती कई गगन में,
रिमझिम-रिमझिम नन्हीं बूंदें, भरतीं स्वप्न सुनहरे मन में,
जब खेतों में मोर नाचते, स्वयं नृत्य करना भाता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
हरी घास के ओस-कणों पर मुझ को प्यार हमेशा आया,
झरने के संगीत-सुरों ने मेरा मन हर बार रिझाया,
नदियों का अल्हड़पन हरदम जीवन में खुशियाँ लाता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
कलरव करते नभ में उड़ते खग-कुल का अपना आकर्षण,
वह हिरणों का प्रणय-समर्पण कर जाता है सुख का वर्षण,
देख, शावकों की क्रीड़ाएं, सुख का सागर लहराता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ।।
नयना चपल, अधर कलियों से, मुस्काती गालों की लाली,
कर लेते आकर्षित कंगना, ठग लेती पायल मतवाली,
भर जाती जीवन में खुशियाँ, कितना अपनापन आता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
देख-देख जग की सुन्दरता मुझ को बहुत प्यार आता है ।
बहने लगती जब पुरवाई, झूम-झूम कर मन गाता है ॥
त्रिलोक सिंह ठकुरेला समकालीन छंद-आधारित कविता के चर्चित नाम हैं. चार पुस्तकें प्रकाशित. आधा दर्जन पुस्तकों का संपादन. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - trilokthakurela@gmail.com

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