तनवी ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर अंगड़ाई ली और दीवार से लगे शीशेदार ड्रेसिंग टेबल में उसे अपना चेहरा दिखाई दिया.वह मुस्कुराई और गर्म लिहाफों से ढके दो आकार नज़र भरकर देखती रही.एक तरफ उसका प्यारा छौना और दूसरी ओर उसका पति.बीच में वह न जाने कितनी रातें गुजार चुकी है. तनवी को सब कुछ बड़ा प्यारा सा लगता. सुर्ख गुलाबों के कशीदे जड़ा लिहाफ़ ओढ़कर गुलाबी तकिये पर अपना सर रखकर खुशियों की सपनीली यादों में वह खो जाया करती थी.अपने चारों ओर पसरती खुशियां …

उसकी अंगुलियां आहिस्ता से नन्हे मासूम की नर्म बाहों को स्पर्श करती जो अपने मसनद को भींचकर रखता .तनवी का दायां हाथ जब अपने पति की पेशानी पर रहता ,अनायास ही उसे स्वेद बिंदुओं के स्पर्श का एहसास होता और हैरत में पड़ जाती वह क़ि आखिर तुषार क्यों पसीना पसीना हो रहे हैं.

बिस्तर के बायीं ओर बनी खिड़की के शीशे में जोरों से बिजली कड़कती दिखाई दी….कानों ने सुना भी.बाहर से रोशनी भीतर छनकर आई और समूचा बेडरूम नीली दूधिया धुंधलका भरी रोशनी से नहा गया.कुछ कतरे नीली रोशनी के ,सोये हुए बेटे के चेहरे पर भी पड़े . अलौकिक सा लगा…जैसे नीलकमल पारदर्शी अनुपम जलराशि में तैर रहा हो.समय उसके हाथ से फिसला जा रहा था वरना तनय के नन्हे फूल से चेहरे को वह चूम लेती.लेकिन कड़कती बिजली के बाद तेजी से बरसती बारिश की बूंदों के तीखे तीरों से घबराकर वह दौड़ी ,खिड़की बंद करने के लिए.

कमरे के बाहर रात अब जागने लगी थी…. स्तंभित सी होकर.धूल की ताज़ा चादर ओढ़ी सड़क पर बारिश की फुहारें गिरकर उसे कीचड़ भरा बना रही थी.कुछ और तेज हुई बारिश और कीचड़ घुलकर सड़क की देह को पूरी तरह उघाड़ गया.आसमान में घटायें इतनी गहरी थी कि तनवी यह तय ही नहीं कर पाई कि पेड़ों की फुनगियां कहाँ ख़त्म हुई और कहाँ से शुरू हुआ आसमान.चक्रवाती अंधड़ शाखाओं और पत्तियों को पूरे वहशीपन से झकझोर रहा था.बेतहाशा प्यास से अधीर कूड़े का ढेर समूचा पानी अपने हलक में उड़ेलने लगा.पड़ोस के ताजा रंग रोगन किये मकान और सब्ज़ी बाड़ी बारिश से नहाने लगे थे.

खिड़की के बाहर के नज़ारे ने मानो तनवी को सम्मोहित कर लिया. बदहवास चक्रवात ने तनवी को किसी अदृश्य शक्ति से जकड रखा था.सचमुच रात की बारिश बड़ी अलौकिक होती है.अनेक रहस्य और जज्बातों को अपने पेट में छिपाकर आती है.सोचने लगी थी वह…और जब आश्वस्त हो गई क़ि रात वह पागलपन उसके घर के बाहर ही है. वह आहिस्ता से खिड़की से दूर सरकी. उसने एक गिलास पानी पिया.

तनय पर लिहाफ़ ओढाकर कान लगाकर वह उस बड़बड़ाहट को सुनने की कोशिश करने लगी जो नींद में तुषार किये जा रहा था. दरवाज़े पर ठीक उसी समय दस्तक हुई.एक मंजिले घर का प्रवेश द्वार, आगे के दो कमरों और अहाता लांघकर पड़ता था.दरवाजे पर अगर पूरी शराफत से दस्तक दी जाती तो वह सुनाई ही नहीं देती क्योंकि अब मूसलाधार बारिश की आवाज बाकी सारी रात की ध्वनियों को निगल रही थी.लेकिन यह दस्तक रुकी नहीं , लगातार जारी थी….और तेज़ और असंयत सी.मानो कोई व्यक्ति उसी उन्माद से किवाड़ पर दस्तक दे रहा हो जिस उन्माद से पानी बरस रहा था.

सहज ही था….मन में खौफ़ के सांप अचानक फ़न काढ़ने लगे.कुछ ही पल पहले तनवी के मन में खिले खुशियों के फूल मुरझा गए.उस दस्तक के चुप हो जाने की प्रार्थना वह मन में करने लगी.लेकिन वह दस्तक फिर रुक रुककर उभरने लगी. दरवाजे पर ठीक उसी तरह मानो शिकार के लिए टकटकी लगाया परभक्षी हमला करने से पहले कुछ पल यों ही मोहलत दे देता है.

तुषार ….तुषार…चीख पड़ी थी तनवी.उठो तो…प्लीज़ तुषार ! नींद में ही उसने तुषार को झकझोर डाला.अचानक नींद से उठने पर भौचक तुषार अपनी चीखती हुई पत्नी को अवाक होकर निहार रहा था.तनय भी उठकर बैठ गया. ओफ़्फ़ ओह! मैंने तो इस नन्हे बच्चे को भी डरा दिया….लेकिन क्या करूं मैं!तनवी ने बुदबुदाकर तनय को फिर सुलाने की कोशिश की.

” मत खोलना दरवाजा…. प्लीज़! मेरी बात सुनो …!उन लोगों में से ही एक होगा वह..” तनवी चेहरे पर दहशत के भाव थे.” वही अपराधी जो किसी भी समय कानून को अपने हाथों में ले सकते हैं.!तुषार , आखिर वे लोग हमारे पीछे क्यों पड़े हैं ?.तुषार का वैसे भी कोई इरादा नहीं था दरवाजा खोलने का….लेकिन वह भी चिंतित हो गया.आखिर क्या बात होगी?कौन हो सकता है दरवाजे पर?

अपने नन्हे से मुंह से तनय ने उबांसी ली.तनवी ने उसे थोड़ा सा पानी पिलाकर सुला दिया,पर इस बार यह सुनिश्चित कर लिया क़ि वह बिस्तर के बीच में सोया है कि नहीं.भगवान् न करे कोई ख़तरा बिस्तर के उसी कोने पर आ धमके जहाँ पर वह मासूम सोया है.

बदहवास दस्तक अब शोर में बदलने लगी थी.रह रहकर वह बाहर तूफानी बारिश की आवाज़ का मुंह दबाने में भी सफल हो जाती.तुषार ने घर के सारे लाइट ऑन कर लिए और बाहर के कमरे में आकर दरवाज़े से निश्चित दूरी पर रहकर आहट परखने लगा.वैसे भी दरवाज़े की आहट से सही अनुमान लगाना ज़रा मुश्किल ही होता है.कुछ ही मिनटों में …..मानो दस्तक अपनी स्खलित ऊर्जा समेट रही हो …फिर वही दस्तक …सफ़ेद फक्क पड़ा चेहरा तुषार ने तनवी की ओर घुमाया .तनवी ने सोचा क़ि बेहतर है तुषार की बांह थामकर रखूं वरना वह जरूर दरवाजा खोलने की कोशिश करेगा.तुषार की आवाज अस्पष्ट बुदबुदाहट में बदल गई थी और इसी गलतफहमी में तनवी ने सोचा क़ि शायद उसने कुछ गलत सुन लिया हो.

“तुम चाहती हो क़ि मैं दरवाजा खोलूँ? मैं! क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है?अपराधी कई दफ़े औरतों को अपने सामने देखकर नरमी बरतते हैं ,तुषार कहने लगा.आधी बुदबुदाहट और आधी झिझक भरे स्वर में ,” मुझे ऐसा ही लगता है “;.

तनवी ने ख़ूब सुन रखा था ऐसे अपराधियों के बारे में जो खूबसूरत औरतों को सामने देखकर लारी लप्पा करने लगते हैं….उनके मोम दिल जनाना आंच में पिघल जाते हैं और अपना गुस्सा पीकर अपने हथियार उस औरत के कदमों पर रख देते हैं.लेकिन मारे डर से सहम कर वह इस बात की कल्पना भी नहीं कर पा रही थी क़ि सचमुच ऐसा हो भी सकता है.

हे भगवान् ! आखिर तुषार इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है? ”  मैं क्यों दरवाजा खोलकर जो कोई भी बाहर हो उसे घर में दाखिल होने दूं?हम सभी की हत्या करवाने के लिए?लूट लेने के लिए? दर दर का भिखारी बना देने के

लिए?” फिर चीख पड़ी थी तनवी.

तुषार ने भयभीत मेमने की तरह आँखें झपकाईं और तनवी को ऐसे लगा मानो जैसे उसका पति का कीड़े की तरह है जो डर से छेद में वापस दुबककर कुंडली बना लेता है.

”  नहीं नहीं…मेरा मतलब है आदतन अपराधी भी किसी औरत पर हमला करने से पहले दुबारा सोचते हैं….मैं तुमपर दबाव नहीं डाल रहा हूँ….लेकिन उस वक्त क्या होगा अगर वे दरवाजा तोड़कर भीतर आ गए ! ” तुषार के

शब्द तनवी के कानों में झाडी के झींगुरों की झनझनाहट की मानिंद बजने लगे.आखिर आदमी कहना क्या चाहता है? तुषार और कुछ कहने का साहस नहीं बटोर सका और स्तंभित वहीँ खड़ा रह गया.दर से उसका मुंह सिकुड़ गया था.काँखों से चुहता पसीना बाहें भिगोने लगा था….हाँथ सिमटकर सीने पर गूँथ गए थे और आँखें अपने गद्दों से चौगुना बाहर उछलने लगी थीं. न जाने कितनी अनजान दस्तकें उसके मन पर हथौड़ों की तरह प्रहार कर रही

थीं.तनवी ने अपने मन पर छाये दहशत के भावों को परे झटककर सोचा कि आखर कैसे इतने बरस इस अधमरे मर्द के साथ गुजार दिए, और इसी वितृष्णा में खुद को आधा राजी भी कर लिया दरवाजा खोलने के लिए. बाकी रात बड़ी बेतरतीबी से गुजरी.वे इन्तजार करते …आपस में झगड़ते , फिर दहशत से सहमकर तू तू मैं मैं करने

लगते.उसी तरह की झूमाझटकी जो बाहर तूफानी अंधड़ और.बारिश के थपेड़ों में हो रही थी.लेकिन लम्हों के हर अल्पविराम के समय तनवी इसी बात को सोचकर हैरत में पड़ जाती क़ि क्यों और कैसे तुषार चाहता था कि वह जाकर दरवाजा खोले!

समूची बारिश को अपने भीगे आँचल से झटककर जब बादलों ने भोर में छनकर आती गुलाबी रोशनी को भेजा और कमरे में दाखिल हुई ….तनवी ख़ामोशी से किचन में चली गई.सुबह उसका ही इंतज़ार कर रही थी.सुबह और उसके सारे झंझट झमेले.

तुषार ने उठकर वही किया जो वह तनवी से कराना चाहता था उस चौंकाने वाली बीती रात को.उसने दरवाजा खोला और जोरों से चिल्लाया ,” तनवी , अरे देखो! कुछ भी तो नहीं है ! हम दोनों बेकार ही रात को डर रहे थे.तुम जानती हो तनवी! तुम नहीं , मैं भी बेख़ौफ़ होकर रात में दरवाज़ा खोल सकते थे. “;

रसोई घर में कद्दू काटते हुए तनवी ने तुषार की आवाज मेँ छिपी सिहरन साफ महसूस कर ली थी. एक पल के लिए उसने सोचा क़ि वह कह दे अपने पति से की दरवाजा खोलकर निकल जाए बाहर और कभी लौटकर न आये.लेकिन

यह तो और भी ज्यादा नाटकीय होता.ठीक उन्हीं काल्पनिक अपराधियों की तरह जो तुषार की नज़रों में औरतों को देखकर पिघल जाते हैं.और भी करीने से वह कद्दू के स्लाइस काटने में जुट गई.

अब वह संयत होकर पहले की तरह इस कीड़े का घर संभालेगी…और कभी हिचकेगी नहीं दरवाज़ा खोलने के लिए…..जब फिर किसी रात के सन्नाटे में गूंजेगी दस्तक.

खुशियों की हरी भरी चमकीली कोपलें एक बार फिर उगीं ….हरी पसरी हुई पत्तियों की चादर फैल गई…..लेक़िन इस बार उसमें अनेक छेद बन गए थे.मानो हजारों कीड़ों ने उन्हें कुतर कर खा लिया हो!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आधा दर्जन से अधिक भाषांतर और संकलन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता, कहानी आदि साहित्यिक विधाओं में सृजन जारी है.

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