नये वर्ष तू आ !

तुंद हवाएँ हैं
बागी फजाएँ हैं।
हरसू कोहरे का आलम
सन्नाटा पसरा है
चहचहा रहीं चिडियाँ
गायें रंभा रहीं है
बांग दे रहे मुर्गे
किसान तराने गा रहे हैं
नये वर्ष तू आ!
नये वर्ष तू आ!

जन आवाज बनके आ।
रितुराज बनके आ ।
महताब बनके आ।
आफताब बनके आ।
इन्किलाब बनके आ।
तू ख्वाब बनके आ।
इंसान की औलाद सा,
तू इंसान बनके आ।
नये वर्ष तू आ!
नये वर्ष तू आ!

एकता का पैगाम देने
ईद बनके आ।
नबीनों के लिए,
तू दीद बनके आ।
काबे के वास्ते,
अबाबील1 बनके आ।
दुश्मनों के लिए,
तू कील बनके आ।
नये वर्ष तू आ!
नये वर्ष तू आ!

हिम्मते मरदां बनके आ।
दौरे फरदा बनके आ।
चमकता परदा बनके आ।
न गुबार ए गरदा बनके आ।
तू फनकार बनके आ।
अवाम की झनकार बनके आ।
जर्रा जर्रा प्यासा है,
तू प्यास बुझाने आ।
नये वर्ष तू आ!
नये वर्ष तू आ!

1- अबाबील चिड़िया को लेकर इस्लाम में आस्था है। कहते हैं अबाबील के झुंड ने काबे पर हमला करने वाले नास्तिक अब्रहा की हाथियों वाली सेना को तहस-नहस कर दिया था।

बोल जमूरे

बोल जमूरे!
जंगल में मोर नाचा किसने देखा?
मुठभेड़ में कौन मरा कैसे मरा किसने देखा ?
नई बोतल में पुरानी शराब को भरते हुए किसने देखा ?
दंगे की आड़ में क्या – क्या हुआ किसने देखा ?

उस्ताद मैंने देखा – तुमने देखा
इसने देखा – उसने देखा सबने देखा – सबने देखा
गवाह बना दिए जाओगे, मुए
मालूम नहीं पुलिस से भिड़ता है
जेल जाने वाला तमाशा करता है।

बोल जमूरे !
आज के अखबार में क्या खबर खासी
उस्ताद ! रंजिश में मारे गए सत्रह पासी
खास खबर – नक्सलियों ने उड़ा दी पुलिस की टुकड़ी डायनामाइट से
आंध्रा, झारखंड़ और छत्तीसगढ़ तक
में खलबली मची हुई है
देश के गृहमंत्री का बयान है
आतंकी गतिविधियां तेज होती जा रही हैं
उस्ताद ! संसद में आतंकवाद छाया है ,
तकरार चल रही है
आरोपों – प्रत्यारोपों की बयार चल रही है।

उस्ताद ! कुछ और खास –
जमूरा हां ! एक खोजी खबरनवीस ने लिखा है
नक्सलियों के निशाने पर ना खाकी है ,
ना खादी है
उनके निशाने पर यथास्थितिवादी हैं
गोलियां उनकी खून की प्यासी हैं
खून गद्दार का भी हो सकता है
खुद्दार का भी हो सकता है
मेरा भी हो सकता है तेरा भी हो सकता है
हिंदू का मुस्लिम का सिख का ईसाई का
जैन का पारसी भाई का
किसी का भी हो सकता है।

अरे जमूरे !
डराता है मुझे
क्या तेरी मति गई है मारी
कर रहा तू नक्सलियों की तरफदारी
लग रहा खुद तो फंसेगा ही
मुझको भी फंसाएगा

उस्ताद ! मैं महाभारत का संजय हूं
और आप …
तेरे कहने का मतलब मैं अंधा धृतराष्ट् हूं
क्यों इसमें क्या बुराई है ?
धृतराष्ट्र ही हमारे देश की
आँख-कान-नाक हैं
उनकी ही राजनीति में धाक है
आप भी उसी मशीनरी के एक पुर्जे हैं
जैसे आप उस्ताद हैं हम आपके गुर्गे हैं
देश के नब्बे प्रतिशत नेता धृतराष्ट्र
शेष उसके मुर्गे हैं….

अरे जमूरे ! सच मत बोल तू
अच्छा है मुंह न खोल तू
हर तरफ अपराधों की नागफनी खड़ी है
सामंती और पूंजीवाद के कंटीले तारों से
लोकतंत्र को कैद कर दिया गया है
व्यवस्था के विरुद्ध गुरिल्ले दस्ते
खून खराबे में जुटे हैं
जन संघर्ष पर उतारूं हैं।

उधर , दूसरी ओर चम्बल के ड़कैत,
हाईटेक अपराधी
राजनीतिक माफिया पूरी दुनिया में छाए हुए हैं
….कुछ इधर है कुछ उधर हैं।

पुलिस की टुकड़ियां कांबिंग कर रही है
देश की जनता भूखों मर रही है
और माएं जज्ब कर रही है खून के आसूं
लेकिन राजनीतिक दुकानों पर हाड़ी चढ़ी हुई है
जिसमें खदबदा रहा है दाल – भात
और दाल – भात के बीच भी चल रहा है शीतयुद्ध।

उस्ताद ! जो विचारों से लैस है
वे भूखे और प्यासे हैं
उनमे कुंठा है घृणा है बेरोजगारी है
इसलिए वर्तमान से लड़ना लाचारी है
इनके हाथों में बंदूकों हैं
गोलियों से भरे पट्टे हैं
अपनी गोलियों की तड़तड़ाहट से
वे भय नहीं उपजाते हैं
बल्कि हुकूमत बदलने में लगे हैं।

उस्ताद ! यह नए दौर के परिवर्तनकामी हैं
यह नई आजादी के हामी हैं
इनके निशाने पर जन नहीं – धन नही यथास्थितिवाद है
अपनी गोलियों के छर्रों से ये
यथास्थिति के परखच्चे उड़ा देना चाहते हैं
लोकतंत्र के हिमायती यह
उग्र क्रांति करके समता – समरसता
विकास लाना चाहते हैं
मुरझाए हुए चेहरों से उदासी के पोस्टर हटाना चाहते हैं।
उस्ताद ! आपने ही बताया है कि
पुलिसिया जुबान में
हर दाढ़ी वाला व्यक्ति संदिग्ध है
सारा मुल्ला मौलवी आईएसआई का एजेंट है।

नौकरशाह और सफेदपोश चला रहे हैं निर्विघ्न
जिले – जिले में समानांतर सरकारें
और अपनी सरकारों की आँड़ में भर रहे हैं अपनी जेबें
जगह – जगह से इनके तार जुड़े हुए हैं
संसद इनकी , विधान सभाएं इनकी हैं
सिंगापुर , मलेशिया ,नेपाल , मुम्बई,
बांग्लादेश इनके
सुरक्षित जरायम के ठिकाने है

उस्ताद!सभी भ्रष्ट चालू तिकड़मबाज
आँखों में धूल झोककर
ईमानदारी का मुलम्मा ओढ़े हुए है
सफेद शालों की आड़ में अपना
दरबार चला रहे हैं
यानी रेत से तेल निकाल रहे हैं
कथित नक्सली जो आपकी दृष्टि में हत्यारे हैं
अपनी मांओ की आँखों के वे भी तो तारे हैं
लेकिन बाजार में दवा की जगह
जहर बेचने वाले हत्यारे तो नहीं
अमानवीय हो सकते हैं पर
कसाई कफनचोर नहीं
ये जो सिरफिरे हैं अपने भाई बंधु हैं
इनकी लड़ाई ही अपनी लड़ाई है
जिन्होंने दुर्ग को ढ़हाने की कसम खाई है।

जो सृजन की नहीं
विनाश की करते हैं बातें
वही जनतंत्र के रक्षक है
चलते फिरते यह जो हिरोशिमा
नागाशाकी पोखरण है
धरती के बोझ कुम्भकरण है
यह एक दिन करेंगे धायं से आवाज
चिंदी चिंदी हो जाएगा जीता जागता समाज
फिर कौव्वे मंडराएंगे
बिल्लियां चमकाएंगी अपनी डरावनी आँखें
यह शैतानी मस्तिष्क
बारूद के ढ़ेर हैं
इन्हींने छीना है
रोजी रोटी और जीवित रहने का अधिकार
मां से पुत्र पुत्रियों का प्यार
समानता का संसार
भूख अलसाये हुए आदमी को
भेड़िया बना सकती है
और लगा सकती है आग
यथास्थिति के बारूद पर खड़े लोकतंत्र में।

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