Saturday, July 27, 2024
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महेश शर्मा की कहानी – शव सत्कार

दोरजे नावांग  बहुत व्यस्त था आज |  सुबह नो बजे ही गाँव में किसी की म्रत्यु हो गई थी जिसका शवसत्कार संपन्न कर वह वापस घर आकर पत्नी वांगछोम  द्वारा दी गई सुखी मछली खा रहा था | खाने के साथ  आराक के दो गरकू पी चुका था | तभी बाहर कुछ लोगों के आने की आवाजें आई | नावांग कुछ देर घर के अन्दर ही आराम करता रहा | दरअसल उसे देर रात को सोने और दिन चढ़े तक जागने की आदत थी | सुबह आने वाले शव के कारण उसे जल्दी जागना पडा था | कुछ देर बाद नावांग बाहर निकला , पास के गाँव छूरंग   से  दो  शव एक साथ आ गए थे | शवों को नदी किनारे होरमांग ( शव सत्कार का स्थान ) पर रखते हुए  उनके रिश्तेदार दो  खाटा ( सम्मान स्वरुप दिए जाने वाले वस्त्र   ) और आराक ( देशी शराब ) की चार  बोतलें लाकर दोरजे   नावांग  के झोपड़े के बाहर बैठे थे | नावांग ने उनसे मरने वाले की कुछ जानकारी ली | उन्होंने बताया कि घर का मुखिया  गम्बू और  उसके पत्नी छारिंग दोनों नीगसाला पहाडी की ओर रोजाना की तरह अपनी  बकरियां चराने और सुखी लकड़ी लेने गए थे | अचानक उपर की ओर पहाडी का कुछ हिस्सा धंसने से   एक चट्टान  दोनों को अपनी चपेट में लेती हुई निचे गिरी और रात होते होते   दोनों की मौत हो गई | मरने वाले हमारे रिश्तेदार थे थांपा , आप उनका अच्छे से शवसत्कार  करना कहते हुए उन  लोंगों ने अपने साथ लाई सामग्री नावांग को सोंप दी |                                       
कभी कभी होता था कि आसपास के गांवो में कोई मौत रात को ही हो जाती थी तो उसके सत्कार के लिए शव को लेकर घर वाले  दुसरे दिन सुबह  ही आ जाते थे और नावांग को सुबह से अपने काम पर लग जाना पड़ता था |लगभग  १५ गांवो के बीच एक वो ही तो  था थाम्पा   जिसकी जवाबीदारी थी हर मरने वाले की लाश के शवसत्कार की |
सुदूर  पूर्वोत्तर  अरुणाचल प्रदेश  का यह  क्षेत्र मनपा जाति के जनजातीय लोगो का क्षेत्र था जो १९५२  तक तो तिब्बत का ही एक हिसा होकर तवांग के नाम से जाना जाता था किन्तु   १९५२ में एक आपसी समझोते के तहत तवांग क्षेत्र का प्रशासन  तिब्बत सरकार  से भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया और यह क्षेत्र भारत में विलय होकर अरुणाचल प्रदेश कहलाया जो प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा पूरा प्रदेश था |असंख्य छोटी बडी नदियों और  पर्वतों से समृद्ध था |                                                     
हमारे कथानक का यह गाँव  गामदोंग के नाम से जाना जाता है  जो  पश्चिम दिशा में फैले चोचोंगमु  पर्वत की तराई में निन्गसाला  और गसेला पर्वत श्रेणीयों के बिच तवांगछू  नदी के किनारे  बसा था | इसी नदी के किनारे थोड़ा आगे जाकर कुछ सुनसान एकांत में  था शवसत्कार का स्थान थामपानांग   , दोरजे नावांग का कर्मक्षेत्र | इस जनजाती के लोग  बोद्ध धर्म के अनुयायी थे , दलाई लामा के भक्त थे |  
                              जैसे भारत देश के भिन्न भिन्न प्रदेशो  की या विभीन धर्म संप्रदाय वालों  की संस्कृति  जीवनचर्या और रहन सहन में कुछ कुछ भिन्नता होती है वैसे ही जब जनजातियो की बात होती है तो ये अंतर बहुत दीर्घ रूप में और कभी कभी अजीबोगरीब भी पाए जाते हैं | अरुणाचल प्रदेश  यानी तिब्बत का तवांग जिला मूलत: तिब्बतियन सभ्यता  और संस्कृति  का ही पालन करता था जहाँ  खानपान , वेशभूषा , आपसी व्यवहार और दिनचर्या तथा जन्म म्रत्यु के संस्कार भारत  के मध्य एवं अन्य क्षेत्रो से सर्वथा भिन्न थे | एक और विशिष्ट  अंतर था इस जनजाति में म्रत्यु संस्कार को लेकर | सभी समाज में मुख्यत: दो प्रकार के  म्रत्यु संस्कार प्रचलित  है. इस्लाम  और क्रिश्चियन समुदाय के लोग अपने धर्म ग्रंथों के अनुसार म्रत्यु पश्चात शव को जमीन  में सदेह गाड़ते है | उनके लिए  एक बक्सा ( ताबूत) बनाया जाता है जिसे कोफीन कहा जाता है तथा जिसमे मृतक के पसंद की सारी चीजे रखी जा कर जमीन  में दफ़न कर दिया जाता है | हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार मृतक का अंतिम संस्कार चिता बनाकर अग्नी में दहन कर किया जाता है | कहीं कहीं गंगा जैसी पवित्र नदियों में पूरा शव प्रवाहित कर दिया जाता है  ताकि मृत आत्मा को पुण्य प्राप्ती हो , मृतक के अंतिम संस्कार की कुछ और भी प्रथाएं दुनिया में प्रचलित है किन्तु तिब्बतीय क्षेत्र की परम्पराओं से प्रभावित  अरुणाचल प्रदेश के  मनपा सम्प्रदाय के लोग अपने स्वजन को म्रत्यु पश्चात  शव  के १०८ टूकडे कर उसे पवित्र नदी में बहाना ही उचित और आवश्यक मानते हैं | इस से मृत व्यक्ती का उद्धार होता है उसे केईपेमें   यानी स्वर्ग की ,  निर्वाण की प्राप्ती होती है | यह सारी प्रक्रिया शवसत्कार  कहलाती है और इस कार्य को करने वाला निर्धारित व्यक्ती थांपा याने शव काटने वाला कहलाता है | दोरजे नावांग  पिछले पंद्रह  सालो से यह  शव काटने का  काम करता आया है शुरूआती  दौर  में वह बहुत  ही लापरवाह गंदे और असभ्य  ढंग  से अपना जीवन   गुजार रहा था |
लेकिन  अपनी बचपन  की प्रेमिका वांगछोम  से शादी हो जाने के बाद वो   कुछ सुधर गया था | 
                                      शव काटने  जैसा वीभत्स  गंदा घ्रणास्पद  कार्य  वह  क्यों  करता था ? उसके पास इस  बात का कोई  जवाब नहीं था | हाँ उसके पिता यही काम करते  थे और  उन्होंने  ही उसे यह  काम सिखाया भी , और  यह  बात उसके  दिमाग  में पूरी तरह  बिठा दी थी कि शवसत्कार करना  यानी  शव के एक सौ आठ टुकडे काट कर  नदी में बहाना एक पवित्र  कार्य  है   जिससे मृत  व्यक्ति  को  तो  स्वर्ग  में जगह  मिलती ही है  साथ  में  उसका सत्कार करने वाले  थाम्पा को  भी बहुत पुण्य मिलता  है | इसके बदले में थांपा द्वारा मृतक के परिजनों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था हाँ सौजन्य रूप में उनके द्वारा दिया जाने वाला खाटा ( एक वस्त्र ) और कुछ शराब की बोतलें स्वीकार की जाती थी | शराब तो इसलिए आवश्यक थी कि  बिना नशा किये शव काटने जैसा वीभत्स कार्य किया ही नहीं जा सकता था |  शव लेकर आये परिजनों से अपनी भेंट  स्वीकार  कर  आऊ थम्पा ने  उन्हें  बताया कि  वे चाहे तो  शवसत्कार पूरा होने  तक यहाँ  रुके  या वे  चले  जाएँ |
आने वाले  जल्दी में थे |  वे  वापस जा चुके थे और  जाते जाते वे नावांग के हाथो में कुछ नगद राशी भी जबरदस्ती दे गए थे | शव  सत्कार के लिए  आने वाले परिवार के लोग दोनों तरह के होते थे | कुछ स्थानीय या नजदीक गांवो के लोग तो शव सत्कार  संपन्न होने के बाद ही जाते थे लेकिन दूर के लोग ज्यादातर  शव को होरमांग  पर छोड़ कर  नावांग को खाटा और  शराब की  बोतलें  देकर चले जाते थे | 
दोरजे नावांग  ने  खाना खाया अपनी  प्यारी पत्नी  वांगछोम  को  प्यार किया  | दो  तीन  गरकू ( लकड़ी का पात्र ) आराक  पी इसके  बाद  अपना दाव  ( कुल्हाड़ी )  लेकर चल पडा हारमोंग   की ओर | नदी किनारे  चट्टान पर  दोनों  के शव  रखे हुए  थे |  दोनों  के शवो  पर  कुछ अच्छे कपडे  गले और हाथ  में पहने सामान्य से गहने  थे  जिन्हें  थाम्पा उनके शव काटने के पहले  उतार कर  अलग  रख  लेता था ये उसकी अतिरिक्त  आय होती थी | 
दोरजे नावांग ने सोचा पहले किसका शव  काटना चाहिए पुरुष  का या महिला का ?
उसने  पहले  महिला शव  का सत्कार करना ही चुना | उसे किसी सुन्दर  खुबसुरत   उच्च कुल   की स्त्री के शरीर से एक एक कपडे उतार कर उसको पूर्ण  नग्न करना और फिर   शरीर को  काटना एक  संतुष्टीदायक  कार्य लगता था | वह जानता था कि सामान्य लोग  यद्यपि  उसे शव काटने वाला मानकर उसे थांपा कहकर उसके प्रति एक आदर तो रखते थे ,  कि वह उनके मृत परिजनों के शव का सत्कार कर उनका परलोक सुधारता था | लेकिन नावांग उनकी नज़रों में स्वयं के प्रति  एक  अरुचि एक  घ्रणा का भाव भी देखता था | वो जनता था कि उसका कार्य भले ही उपयोगी हो लेकिन  गंदा और जुगुप्सा जगाने वाला है | नफ़रत के योग्य है | शवों को काटते हुए कई बार मृत शरीर से निकले वाले  खून पीप और मवाद आदि  के छींटे   उसके  हाथ पैर पर  उसके कपडे आदि पर भी  लग जाते थे , जिसे वो खुद तो सामान्य रूप में लेता था लेकिन लोगों की नज़रों में यह सब ज़रा भी अच्छा लगने वाला नहीं था |  लोगो के उपेक्षापूर्ण व्यवहार को याद करते हुए उसके कार्य में एक क्रूरता , एक न्रशंसता  का भी समावेश हो जाता था और  इन विचारो के दिमाग में आते ही वह ज्यादा कठोरता से क्रोध से अपना दाव चलाता था |                                                                इसके विपरीत कई बार किसी स्वस्थ कम उम्र के  पुरुष या किसी युवा महिला का शव  काटते हुए  वह  विनम्र भी हो जाता था | उस मृत सौन्दर्य को निहारता भी था उसके अहम् की तुष्टी होती थी  जब वह यह देखता सोचता था कि अच्छे संपन्न घरो की स्त्रियाँ जो जीवीत अवस्था में भले ही उसकी ओर देखना तक पसंद ना करे , लेकिन  शव  सत्कार के समय  पूर्णत: निर्वस्त्र  उसके सामने लेटी रहती हैं |  उसे निहार रही होती है | उसे मृत देह की निर्जीव आँखों में स्वर्ग प्राप्ती के लिए उसका शवसत्कार शीघ्र  और अच्छे से करने का निवेदन दिखता  था |
 सामने चट्टान पर सजीले वस्त्रो में लिपटी मृत सुन्दर स्त्री के शव को कुछ क्षण निहारने के बाद नावांग  ने महिला के शव  के कपडे उतारना शुरू  किये | मृत महिला का शव यद्यपि  आभा विहीन   था लेकिन  उसका शरीर सोष्ठव  आकर्षक  था | उसने पहले  उसके गले हाथ और कान  में पहने सामान्य से गहने उतारे | पाँव  में पहनी बिछीया उतार कर एक ओर रखी , फिर  बदन  से  साडी उतारी फिर  उसका लहंगा और ब्लाउज जिसे निकालने में उसे बहुत मुश्किल आई | 
और  अंतत:  एक युवा आकर्षक महिला का शरीर  उसके सामने निर्वस्त्र पडा था | एक बार भरपूर नज़रों से वह मृत सुन्दर महिला को देखने से खुद को रोक नहीं पाया लेकिन तत्काल  वह  इन बातों से निस्पृह भी हो गया |
इसके पहले  भी  कई कई बार दोरजे नावांग के सामने  कितनी ही  स्त्रियाँ पूर्णत:  नग्न  प्रस्तुत  हुई है | उसने  अपनी पत्नी को तो  कभी कभार ही  निर्वस्त्र देखा होगा  , लेकिन यहाँ पर  बहुत  सी स्त्रियों  को उसने  नग्न  किया है और उन्हें  अपने  मनचाहे रूप  में काटा है
लेकिन  इस  द्रश्य  सुख का उसे कभी भी  एहसास नहीं हुआ | उसे कभी भी किसी जवान  स्त्री देह  को नग्न  देख  कर  कोई  उत्तेजना नही हुई | हाँ एक  जुगुप्सा या एक संतुष्टी जरुर  महसूस हुई  कि अंतत:  सभी को  उसके सम्मुख आना है |
शव की गर्दन के निचे एक लकड़ी का पटीया लगाकर उसने प्रथम  वार धड से ठीक उपर गर्दन पर करते हुए  उसका सर अलग कर दिया |  बिना सर का धड कुछ वीभत्स लगने लगा था कटा हुआ सर पास के ऊँचे पत्थर पर रख कर अपने  पिता के बताये  निर्देशानुसार उसने  सबसे पहले  शव का बांया पैर   टखने   के  निचे  से काटा | 
फिर  घुटने  तक का हिस्सा उसके बाद  दांये  पैर  को टखने तक फिर ऊपर घुटने तक  
फिर  दोनों  हाथों को शरीर से अलग किया | कटे हुए अंगो की मन ही  मन गिनती करते हुए उन्हें  निकट ही बहती नदी में फेंकता जा रहा दोरजे नावांग एक क्षण रुका | उसने एक सुन्दर स्त्री की नग्न देह को  अब बिना हाथपैर और सर के  अजीब अरुचिकर  स्थिति में देखा |  मन में उठते भावों को सहज बनाने के लिए , किसी भी तरह से कोई अरुचि या नफ़रत शव  के प्रति मन में पैदा ना हो  नावांग ने तत्काल सामने रखी शराब की बाटल से एक के बाद एक  दो तीन  गिलास भर के  पी लिए |                                                         कुछ क्षण  रुका दोरजे नावांग तब तक  कम होता नशा फिर तेज होने लगा था |  अपने  सामने पड़े बेडोल हाथ पैर और सर विहीन शव को देख कर आराक के नशे में क्रूरता और बढ़ चुकी थी | अब वह नितम्ब , कंधे , पेट , जांघे  और क्रमश; सारे एक एक अंग काट काट कर उन्हें गिनते हुए  बहती नदी में समाहित करता गया |                                       दोरजे नावांग का प्रयास होता कि सर के अलावा  शेष एक सौ सात  टुकड़े  जहां तक हो सके उचित आकार  के हों | और इस तरह  सारा शरीर देखते ही देखते  अस्तित्वहीन होकर  धरती से अद्रश्य हो चुका था |  कुछ क्षण फिर  रुका नावांग  फिर  कटा हुआ सर हाथो में लेकर नदी की बीच धार में जहाँ  धारा का प्रवाह कुछ तेज हो जाता है कुछ श्रद्धा से सर को निहारते हुए मन ही  मन  कुछ मन्त्र  बोलते हुए  सर को भी छोड़ देता है  | धारा के तेज प्रवाह में  चक्कर खाता शव दो तीन   बार घूमते हुए आगे बहने लगता है और वो भी अद्रश्य हो जाता है |                                                                                                                            अब पुरुष के शव की बारी थी |  पूर्वानुसार उसके भी  सारे कपडे एक के बाद एक उतारकर उसे निर्वस्त्र कर फिर अपना दाव चलाकर उसका सर  धड से जुदा कर देता है |  सर को एक ऊँचे पत्थर पर रख कर फिर आगे निर्धारीत प्रक्रिया अनुसार बांये पैर से शुरू कर  पूरा शरीर एक सो सात टुकडो में काट कर बहा दिया जाता है  | अंत में  कटे हुए सर को बीच धारा में मन्त्र बोलकर  छोड़ देता है |                                                        
शव सत्कार की प्रक्रिया पुरी कर बहुत थक चुका था नावांग | नदी किनारे ही पेड़ के निचे थका थका सा आराक की दूसरी  बोतल भी खोल कर पीता रहा | कुछ ही देर में  पत्नी वांगछोम उसे पुकारती वहाँ  आ जाती है | वो जानती थी कि नावांग शवसत्कार के बाद  थक कर  वही पड़े पड़े पीता रहेगा यदि उसे जबरदस्ती घर नहीं लाया गया तो | वांगछोम  उसे घर लाकर पहले से  तैयार रखे ठन्डे  पानी  जो पासी पेड़ के सुगन्धित पत्तों से पवित्र सुगंधमयी हो चुका होता है नहाने को देती है |                            नहाकर साफ़ कपडे पहन कर  घर में आते ही नावांग  को भूख लगने लगती  है  उसका नशा भी कुछ उतर रहा होता है खाना खाकर घर के दूसरे कोने में  घास के ऊपर बिछे बिछोने पर लेटा दोरजे नावांग गौर से अपनी खुबसूरत  पत्नी को घर का काम निपटाते देखता  है  उसे एक दम उस पर प्यार आने लगता है वह कोशीश करता है कि वांग छोम  भी उसके पास आकर बिछोने पर सो जाये लेकिन वांग छोम  जानती है  कि यदि वो नावांग के पास अभी सोने चली गई तो वो उसे दिन भर नहीं छोड़ेगा उसे अभी अपनी बकरियों को लेकर जंगल जाना है शाम के लिए कुछ लकडिया लाना है  अपने खेत का भी एक चक्कर लगाना है वह बाहर निकल जाती है  और  नावांग पुरानी  यादो में खो जाता है  |                                            
बहुत संतुष्ट था वह अपने वर्तमान से क्यूंकि शादी के पहले उसका जीवन बहुत अस्तव्यस्त  बदहाल और नाकारा गुजरा था  | वांगछोम  उसके मामा की  लडकी थी जो बचपन से उसको प्रिय थी दोनों अपने संगी साथियों के साथ दिन भर जंगल में पहाडो पर घूमते रहते बकरियां चराते पेड़ों  पर चढते उन्मुक्त स्वभाव की नादान  वांगछोम बातों बातों में कभी भी किसी के भी आगे  बोल पड़ती थी कि मैं बड़ी होकर नावांग से ही ब्याह करूंगी लेकिन  होनी को कुछ ओर ही मंजूर था|                                                                 
युवा होते ,  शादी की उम्र आते आते दोनों परिवारों में ऐसा कुछ विवाद  हुआ की एक दुसरे को देखना तक बंद हो गया  और ऐसे में  वान्गछोम के पिता ने अपनी  बेटी की शादी दूर नांगसेला पहाडी के पार मुक्तो गाँव के गम्बू नामक गडरिये से कर दी | बहुत दुखी हुआ नावांग बहुत तडफा , रोया भी | लेकिन कोई हल नहीं हुआ | वांगछोम इतनी दूर जा चुकी थी कि उससे मिलना भी नहीं हो पाया नावांग का | मन में वान्गछोम की प्यारी छबी और  मासूम स्वभाव की यादें  रखे  नावांग का समय निकलता रहा | उसने  अपने पिता  को शादी से इनकार कर दिया और अपने  पैत्रक कार्य शव काटने  में ही व्यस्त हो गया |                     
पिता  बूढ़े  हो चले थे धीरे धीरे  उन्होंने  शव काटने का काम पुरी तरह से दोरजे नावांग को सोंप दिया |  अब नावांग एक कुशल  और क्षेत्र भर में जाना पहचाना थांपा के रूप में पहचान बना चुका था | अपने परिवार से अलग थामनापांग स्थान पर एक झोपड़े में रहता , दिन रात नशे में चूर | शराब की कोई कमी नहीं थी हर शव  लाने वाला दो तीन बोतले तो उसे देकर ही जाता  था  इसके बावजूद शाम को जब नावांग कस्बे में निकलता तो वहाँ  के लोग यद्यपि उसे ज़रा भी पसंद नहीं करते थे पर उसकी इज्जत भी करते और उसे बाहर बरामदे में बैठा कर आराक की बोतल पेश कर देते |                                                                          
कस्बे में देर रात तक  भटकते आराक पीते  पीते  इतना नशा हो जाता कि वहीं  कहीं सड़क किनारे मदहोश होके  पडा रहता | सुबह होते होते जब नशा कम होता तो वापस अपने झोपड़े पर आता | ना खाने का ठिकाना था ना नहाना या साफ कपडे पहनना | शव काट कर घर आकर भी नावांग नहाता नहीं था  उसके शरीर पर  उसके बालों  में जुएँ पड़ना सामान्य हो गया था उसके शरीर से हर समय एक दुर्गन्ध  निकलती रहती थी जिस कारण कस्बे के लोग उससे और  दूरिया बनाकर रहते | यह सब देख कर नावांग को गुस्सा भी आता था  |  नशे में वह उन्हें गालिया भी देता था और यह गुस्सा यह आक्रोश वह शव काटते समय उन  मृत शरीरों  पर निकालता | उसे संतुष्टी मिलती कि  अंतत: सबको एक दिन तो उसके पास आना पडेगा उसके सामने निर्वस्त्र होकर उसकी दया के लिए तरसना होगा |
ऐसे ही समय बीतता रहा | परिवार से भी विमुख होकर एकाकी जीवन जी रहे नावांग पर अचानक  नियति की कृपा हुई | यद्यपि यह कृपा तवांग इलाके के बहुसंख्यक मनपा समुदाय के लिए बहुत भारी थी | बहुत दुखद बहुत नुक्सान देह . क्योंकि अचानक एक रात तवांग घाटी में आये भूकंप  ने सेकड़ों जिंदगियां , कई  मकान कई गाँव नष्ट कर डाले | लाशो के अम्बार लग गए बहुत नुकसान हुआ जानमाल का | लेकिन  आबादी से दूर एकांत  में रहते नावांग का  बाल भी बांका नही हुआ |  हाँ  उसका सारा परिवार समाप्त हो चुका था | आसपास के कई गाँव भी भूकंप से प्रभावित हुए थे | भारत शासन और तिब्बत प्रशासन दोनों की  ओर से  सहायता शिविर  लगाए गए |  खाने पीने  के सामान के साथ स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध कराई गई अपने स्वजनों की जानकारियां  लेने नावांग भी लगातार उन  शिविरों में भटकता रहा | तभी एक दिन उसने एक तम्बू में  पलंग पर लेटे एक मरीज को देखा तो देखता ही रह गया | उसे अपनी  आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था | सामने तम्बू में पलंग पर लेटी वह महिला ! हाँ हाँ वही तो थी बिलकुल वही थी वांगछोम | 
वांगछोम ही थी वह | उसने अपने दिल के तहखाने  में रखी सारी  यादें  सारी  तस्वीरें सारे सपने ताजा किये , निकाले और दौड़ पडा उस तम्बू में |
नेह ह्रदय से ही जुडा  था जो  शायद परम पवित्र ,  स्वर्गिक और  शाश्वत था तभी तो अपने चेहरे पर झुक आये नावांग के चेहरे को कुछ ही पलो में पहचान लिया वांगछोम  ने | बेठी हो गई वह  हाथ पकड़ लिया उसने  नावांग का |
नावांग तुम  यहाँ ? 
हाँ मै …कुछ बोल ना पाया नावांग आसपास देखने लगा और कौन  है  तुम्हारे साथ ? 
रो पडी वांगछोम  | कोई नहीं नावांग कोई भी तो नहीं | मेरे दो बच्चे  पता नहीं कहाँ  है कैसे हैं ?   
ओर वो ?  नावांग  का दिल बहुत बैचेन था | बहुत जोरों से धड़क रहा था कुछ सुनने को |
वांगछोम ने सर झुका लिया | हम दोनों साथ साथ ही थे रात को | मैं  बस ज़रा बाहर गई थी बकरियों को बांधने  और  …. मेरा पूरा घर  ढह गया और वो  उसी में दब गए , रो रही थी वांगछोम | नावांग भी रो रहा था | कुछ ही देर में  कुछ साहस लौटा | वांगछोम ने भी नावांग के परिवार की जानकारी ली वो भी दुखी थी यह जानकर कि  नावांग का भी कोई अपना नहीं बचा | वे ये जानकार और भावुक हो गए कि उन दोनों के दुःख भी एक समान हैं अब |                                                                               
अगले पुरे सात दिन बाद वांगछोम को छुट्टी मिली | बड़े डाक्टर ने छुट्टी देते समय  नावांग को वांगछोम के परिवार का साथी मानकर उसे अलग लेजाकर कुछ हिदायत  दी देखो नावांग  उस रात के भूकंप के हादसे से, फिर बच्चो का कोई पता नहीं लगने  के दुःख   के कारण  तुम्हारी इस साथी को शारीरिक रूप से तो कोई ख़ास नुक्सान नहीं हुआ है लेकिन इसे  दिमागी तौर पर  बहुत चोट पहुंची  है इसकी संवेदनशीलता बहुत प्रभावित हुई है | तुम्हे  भविष्य में ध्यान रखना होगा कि इसे  कभी भी बहुत ज्यादा खुशी या बहुत दुःख  एक दम  ना होने पाए वरना ये उसे सहन नहीं कर पायेगी |  नावांग ने  वांगछोम को इस बारे में कुछ नहीं बताया |                           
अब उनके सामने त्तात्कालीन समस्या ये थी  कि अब सर छुपाने  कहाँ जाए ?  आगे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था | घर का कोई सदस्य जीवित नहीं बचा था |  पर  हाँ … दोनों एक दुसरे के साथ जरूर थे
क्या नियति को यही मंजूर है  दोनों ने सोचा |  नावांग उसे अपने साथ अपने गाँव   ले आया उसका झोपड़ा भी सलामत नहीं था | दोनों ने मिलकर अगले दो तीन  दिनों  में  झोपड़े को  अच्छा आकार दिया |  उसे   दो कमरों के  रूप में विस्तारित किया | इस बीच गाँव के बचे खुचे लोग धीरे धीरे  वापस आने लगे थे | सभी  अपने  टूटे फूटे  घरो की मरम्मत कर रहे थे  तवांग गोम्पा में भी कुछ नए लामा और सन्यासिन  आ गई थी जो ग्राम के लोगों की  सहायता करना उन्हें बुद्ध और दलाई लामा के सन्देश सुनाते हुए धीरज बंधाने का कार्य कर रहे थे | गाँव के शेष रहे लोगो को नावांग  के पुरे परिवार और  वांगछोम के भी पुरे परिवार के समाप्त होने की जानकारी पाकर बहुत दुःख हुआ | उन्होंने दोनों को सांत्वना देते हुए  अनाज और दूसरी सहायता दी | क्षेत्र के चोरगेन ने  उन्हें शासकीय सहायता भी दिलाई | तवांग गोम्पा के लामा ने उन्हें यह सलाह भी दी कि तुम दोनों चूंकि  अपने पुरे परिवार खो चुके हो तो क्यूँ ना दोनों आपस में एक दुसरे के दुःख  बांटते हुए  अपना शेष  जीवन सुधारों |         
और इस तरह  नावांग को अपने बचपन से छूटे प्यार अपने अधिकार अपने सपने  और ख्वाहिशें  वापस मिली  यद्यपि उसे अक्सर  भूकंप के बाद स्वास्थ्य शिविर में  बड़े डाक्टर द्वारा बताई गई  बीमारी और सावधानी   हर दम याद रहती थी वो बहुत ध्यान रखता था वांगछोम  का |
 सोये हुए नावांग के चेहरे पर एक  मुस्कान सी तैर रही थी सोचते सोचते  नावांग ने अपने भूतकाल का सुखद  सफ़र  पार किया ही था कि वांगछोम  की तेज आवाज ने उसे वर्तमान में ला  दिया | 
दिन भर हो गया कुछ काम नहीं करना है क्या ? वांगछोम ने एक मीठी डांट  देते हुए नावांग को उठाया चलो खेत का  एक चक्कर लगा कर आओ तब तक मैं  खाना बनाती हूँ लेकिन  नावांग ने अन्दर आती वांगछोम को  अपने दोनों हाथो से घेर कर अपने से लिपटा लिया उसके स्नेहील आलिंगन  से मुस्करा दी वांगछोम और शीघ्र ही उससे दूर होते हुए घर के काम में लग गई |                                                                      
नावांग अपने खेत की ओर जाते हुए अपनी दिनचर्या में हुए परिवर्तन के बारे में सोच रहा था कहाँ  तो वह बिलकुल गैर जिम्मेदार आवारा शराबी दिन रात नशे में रहने वाला गंदा मेले कुचेले कपड़ो में रहने वाला दुर्गन्धयुक्त  शरीर लिए भटकता रहता था | और कहाँ  अब  एक साफ़ सुथरा खेती का काम सम्हालने वाला जिम्मेदार व्यक्ति बन गया था जिसे अब कस्बे के लोग भी सम्मान से पेश आते हैं  |            
ये सारे सुखद परिवर्तन  का सारा श्रेय  वह वांगछोम को  ही देता था |  यदि वांगछोम उसके जीवन में दोबारा नहीं आती तो उसका जीवन  वैसा ही पशुओं जैसा गुजरता रहता | खेत के सूने रास्ते पर चलते हुए  पूर्ण एकांत में भी  नावांग के होंटो पर एक सुकुनदायक संतुष्टीपूर्ण मुस्कान उभरी | लेकिन  आँखों में वान्गछोम के प्रति  आभार प्रकट करती भावनाओं के साथ आँसू भी निकल पड़े | रात्री को वांगछोम ने  उसके लिए बढ़िया खाना तैयार रखा था और कस्बे से अच्छी वाली शराब की दो बोतले भी मंगा रखी थी | कुछ अच्छे कपडे पहने  वांगछोम को देख कर और घर में कुछ विशेष व्यवस्था देख कर चौंका नावांग   आज क्या है छोम उसने प्यार से पत्नी की ओर देखते हुए पूछा |
तुम बताओ क्या हो सकता है  ? 
कुछ जवाब नहीं दे पाया नावांग |
अरे गोम्पा में खूब तैयारियां  चल रही है पूरा गोम्पा सजाया जा रहा है कस्बे का मैदान भी सजाया जा रहा  है |  चार दिन बाद लोसेर ( नए वर्ष ) का उत्सव मनेगा तुम भूल गए ?              ओह  ओह्ह कैसे  भूल सकता हूँ मेरी प्यारी आज से छ: साल पहले  लोसेर पर ही तो  लामा ने हमें आशीर्वाद दिया था एक साथ जीवन बिताने के लिएऔर तुम मेरी हो गई थी |
तुम सिर्फ छ: साल कहते  हो  नावांग  मैं  तो बचपन से ही तुम्हारी थी मैं  तुम्हारे लिए ही दुनिया में आई थी  नावांग | वो तो कोई प्रेत की छाया थी जो मुझे दस सालो तक तुमसे दूर रहना पड़ा लेकिन अब मुझे  कोई भी तुमसे अलग नहीं कर सकता |
और दोनों प्रेमी युगल एक सुखद  अहसास से अभिभूत हो गए  वान्गछोम ने  बड़े प्यार से नावांग को गिलास भर भर के  शराब  पिलाई खुद ने भी पी फिर खाना खाकर दोनों एक दूसरे को प्यार करते हुए  सुखद नींद  में  खो गए |
 जीवन ऐसे ही गुजर रहा था नावांग का |  यद्यपि अब  बुढा होने से कुछ कमजोर  होने लगा था , लेकिन उसने  शव काटने का काम नहीं छोड़ा था | वो इसे एक महान पुण्य कार्य  मानता था | ईश्वर ने उसे ये जवाबदारी दी है  कि वह मृत लोगो  का परलोक सुधारे उन्हें मुक्ति  मिलने में सहायक  बने  उन्हें मर कर केईपेमे ( निर्वाण ) मिल सके |
शव काटने से कभी  फुर्सत मिलती तो  वो अपने खेत पर भी ध्यान देता इस बीच उन लोगों के परिवार में  एक नन्हे प्राणी ने जन्म ले लिया था|  नावांग ने लामा से उसकी कुण्डली बनवा कर नाम रखने  की प्रार्थना  की और लामा ने उसको एक प्यारा सा नाम  दिया  जांगछेन                                                                              
शव काटने के कार्य में  भविष्य में कोई बाधा ना आये और उसका एक  उत्तराधिकारी भी तैयार हो इस  लिए नावांग ने कसबे के एक अनाथ लड़के को भी अपना मानस पुत्र बनाकर अपने साथ रखा और उसे शव काटना सिखाना शुरू कर दिया था  | दुंदु नाम का यह लड़का धीरे धीरे कुशल होता जा रहा था | शव सत्कार  का महती कार्य करने  में  नावांग अक्सर उससे कहता रहता था कि  तुम कल  के थांपा हो इस कसबे  के मरने वाले लोगो  का परलोक सुधारने वाले | नावांग अपने  इस  उत्तराधिकारी दुंदु को तवांग गोम्पा के प्रमुख  से वहाँ के लामाओं  से और क्षेत्र के चोरगेन से भी मिलवा चुका था | दुंदु  शव  काटने में नावांग की सहायता के अलावा  घर के काम खेती के काम और नन्हे जांगछेन को भी साथ रखता था नन्हा जांगछेन अब ५ साल का हो चुका था नावांग वांगछोम से  दुंदु  की बहुत तारीफ़ करता था वो उसे थांपा की जवाबदारियाँ पुरी तरह से सोंपने  की सोच रहा था तभी बातों बातों में  वांगछोम ने एक विचित्र बात कह डाली |
नावांग चौंका ऐसी बात मत कहो छोम | नही  नावांग वादा करो यदि  मुझे कुछ हो जाता है तो  मेरे शव का सत्कार तुम्हे ही करना होगा  | 
दिल दुखाने की बात मत करो छोम  | रुआंसा हो गया नावांग खुद को बहुत कमजोर महसूस करने लगा | बिना वांगछोम के अब वह स्वयम के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर पा रहा था |                                             
देखो मेरा बचपन तुम्हारे सहारे सुखद बीता |  कुछ काले दिन  को छोड़ दो तो  फिर  मेरा शेष जीवन तुम्हारे  स्नेहील प्यार दुलार में  गुजरा | अब मेरा परलोक भी तुम सुधार देना मेरे प्यारे नावांग  कहते कहते  वांगछोम   भावुक हो गई | लिपट गई नावांग से और रोने लगी |नावांग ने उसे अपनी बांहों में  बड़ी देर तक लिपटाए रखा | उसे दिलासा देता रहा कुछ ही देर में दोनों सयंत हो कर  घर के काम में लग गए थे | लेकिन नावांग कुछ चिंतित होने लगा था |  उसे कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी थी   पिछले  ५-६ वर्षो में  – तीन चार मौके ऐसे आये थे जब  वांगछोम  चेतना शून्य  हो जाती थी और कुछ देर बाद  वापस सामान्य हो जाती थी |
उसने दुसरे ही दिन  तवांग गोम्पा जाकर  वांगछोम  के लीये  प्रार्थना की | लेकिन कई बार ऐसा लगता है  कि ईश्वर से की गई प्रार्थनाएं हमें भले ही   सुकून देती हो लेकिन  वे ईश्वर का विधान नहीं बदल पाती |    
एक माह बाद ही कस्बे में होने वाले एक उत्सव के दौरान सारा दिन  और सारी रात कस्बे वालों  के साथ नावांग के पुरे परिवार ने  खूब  मजे लिए रात भर आराक  के  गिलास एक के बाद एक पीते  रहे , नाचते  गाते रहे |  भिन्न भिन्न खेल खेलते हुए  दुसरे दिन  सुबह सभी थक हार के  आराम कर रहे थे  कि वांगछोम  के  सर में  अचानक दर्द  उठा जो बहुत तेजी से असहनीय होता गया | नावांग ने कसबे के चिकित्सक को बताया कुछ दवाईयां भी दी गई लेकिन दोपहर होते होते  वांगछोम  के प्राण पखेरू  उड़ गए और उसकी आत्मा अनन्त आकाश  में लीन  हो गई | वांगछोम का शरीर अपनी गोद में  लिए  नावांग  महा प्रलाप कर रहा था उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसकी प्राणप्यारी उसे छोड़कर जा चुकी है शेष सारा दिन  नावांग विलाप करता रहा उसके  विलाप में उसका  नन्हा बेटा जांगछेन  और दुंदु के अलावा कस्बे के सारे लोग शामिल थे | देर रात तक कुछ संयत हुआ नावांग दुसरे दिन  सुबह  की  तैयारी करने लगा |                                                             
हारमोंग  पर अपार भीड़ थी | कस्बे के सारे लोग नावांग के दुःख में शामिल थे शवसत्कार  की तैयारी हो चुकी थी |  नावांग  की घरवाली उसकी प्राणप्यारी का शव सत्कार  होने जा रहा था नावांग ने  घाट की चट्टान पर एक चटाई बिछाकर शव  को लिटाया था शव के चारों ओर पेड़ों के पत्तों  से कुछ ओट  बनाई ताकि सारे  जनसमूह की नज़रें वांगछोम के  निर्वस्त्र शरीर पर ना पड़े | 
उदास नावांग ने  सुबह  ही अपना दाव अच्छी तरह से साफ़ स्वच्छ कर रखा था |
दुंदु को साथ लेकर नावांग ने काम प्रारम्भ किया | बड़ी देर तक  वांगछोम के चहरे को निहारते रहने के बाद उसके  कपडे उतारना प्रारम्भ  किया | नावांग कर कुछ भी  रहा था लेकिन उसकी नज़रें  एकटक  वांगछोम के दमकते चेहरे पर ही टिकी थी | उसे वांगछोम का चेहरा किसी दैवीय शक्ती से ओतप्रोत  अति सुन्दर और जीवंत लग रहा था |  कुछ ही क्षणों में उसकी वांगछोम  की देह  वस्त्रों के भौतिक बन्धनों  से मुक्त  हो निर्वस्त्र  उसके सामने  लेटी थी नावांग ने  अपना दाव उठाया लेकिन तत्काल वापस उसे रख कर  निचे बैठ गया | वहीं  पर खड़े दुंदु की ओर देखते हुए अपना सर ना में हिलाने लगा |   
मुझसे नही  होगा दुंदु  ये तुम  ही करो मै अपनी वांगछोम  पर  दाव नहीं चला पाऊंगा|
नहीं  थांपा  ये आपको करना ही होगा | आप थांपा है और आपकी  पत्नी को केईपेमे मिले उसकी मुक्ती हो वो स्वर्ग में जाए  उसे ये पुण्य  आपको  ही दिलाना होगा|  
कम उम्र के  दुंदु  की समझाइश के चलते अचानक  नावांग को याद आया वांगछोम का  आग्रह  और  उसको दी गई सहमती कि वांगछोम का शव सत्कार   वो स्वयं उसके हाथों  से ही करेगा |
वो  फिर उठा अपना दाव उसने ऊपर उठाया अपने इश्वर को याद किया पवित्र दलाई लामा से शक्ती माँगी और … वांगछोम  का सर  जिसे दुंदु ने पकड़ रखा था शरीर से अलग हो गया | नजदीक की एक ऊँची चट्टान पर उसे रख दिया गया और फिर नावांग  प्रक्रिया अनुसार  दाव उठाता गिराता रहा एक..दो..तीन…चार …..और एक सो सात | वान्गाछोम के निर्वस्त्र देह के पुरे एक सौ सात तुकडे उसके  शरीर से अलग होकर  नदी में समा चुके थे | |  नदी किनारे उपस्थित जन समूह  ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था | अंत में नावांग ने पुरी श्रद्धा से वांगछोम का सर अपने दोनों हाथो में लिया  ,  नदी की बीच धार की  ओर कदम बढाए आँखे बंद कर  मंत्रोच्चार किये  और अपने जीवन संगीनी का सर  नदी में प्रवाहित कर दिया | तेज बहते पानी  में  चक्कर खाते हुए  सर तेजी से  दूर होता जा रहा था | नावांग का मन हुआ कि वह  भी इसी नदी में अपनी  वांगछोम के साथ जल समाधी ले ले | उसने  अपने विचार को कार्यान्वीत करने की  भी सोची | तभी वातावरण में एक बाल रुदन गूंज उठा यह उसके नन्हे राजकुमार  जांगछेन  का रुदन था | ओह  अभी नहीं …. अभी तो मुझे वांगछोम द्वारा उसे दिए गए उपहार  की देखभाल करना है वांगछोम की अमानत सम्हालना है  | अभी तो उसे  इस मनपा समाज के इस क्षेत्र के लिए  अगला थांपा तेयार करना है | वरना क्षेत्र  के  मृत होते लोगो को कौन  केईपेमे   दिलाएगा | नावांग  पलटा , धीमे धीमे किनारे पर आकर  अपने नन्हे , भविष्य के थांपा का हाथ पकडे   घर की ओर चल दिया |  उसके साथी उसके हितेषी गाँव के लोग  उसके साथ  धीरे धीरे  वापस जा रहे थे |  
महेश शर्मा धारी
लगभग ४५ लघुकथाएं ६५ कहानियां २०० से अधिक गीत २०० के लगभग गज़लें कवितायेँ लगभग ५० एवं अन्य विधाओं में भी.. 
प्रकाशन — दो कहानी संग्रह १- हरिद्वार के हरी -२ आखिर कब तक 
एक गीत संग्रह ,, मैं गीत किसी बंजारे का ,, 
दो उपन्यास  १- एक सफ़र घर आँगन से कोठे तक   २अँधेरे से उजाले की और 
इनके अलावा विभिन्न पत्रिकाओं जैसे हंस , साहित्य अमृत , नया ज्ञानोदय , परिकथा परिंदे  वीणा , ककसाडकथाबिम्ब सोच विचार , मुक्तांचल , मधुरांचल , नूतन कहानियां , इन्द्रप्रस्थ भारती और एनी कई पत्रिकाओं में  एक सौ पचास से अधिक रचनाएं प्रकाशित 
एक कहानी ,, गरम रोटी का श्री राम सभागार दिल्ली में रूबरू नाट्य संस्था द्वारा मंचन  मंचन  
सम्मान — म प्र . संस्कृति विभाग से साहित्य पुरस्कार , बनारस से सोच्विछार पत्रिका द्वारा ग्राम्य कहानी पुरस्कार , लघुकथा के लिए शब्द निष्ठा पुरस्कार ,श्री गोविन्द हिन्दी सेवा समिती द्वाराहिंदी भाषा रत्न पुरस्कार एवं एनी कई पुरस्कार 
सम्प्रति सेवा निवृत बेंक अधिकारी , रोटरी क्लब अध्यक्ष रहते हुए सामाजिक योगदान , मंचीय काव्य पाठ  एनी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सेवा कार्य 
संपर्क — धार मध्यप्रदेश मो न ९३४०१९८९७६ ऐ मेल –mahesh .k111555@gmail.com  
वर्तमान निवास – अलीगंज बी सेक्टर बसंत पार्क लखनऊ पिन 226024 
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