मार्च मास का आगाज होते ही हरिपुर गाँव में हरियाली शबाब पर आने लगी। सरसों के खेत किसी अल्हड़ नवयोवना के बसंती दुप्पटे से हो गए और खपरेल, बटोड़ों पर घीया, तोरियों की बेलें आगे बड़ने की रेस लगाने लगी। गाँव के तालाब के पास लगभग ठूंठ हो चुके बुढ़े बरगद पर इस बार चंद नई कोपलें ही निकल पाई पर इसके चबुतरे पर अब भी गाँव के कुछ दबंग लोग निर्बलों की किस्मत के फैंसले लिखते हैं। इन दबंगों के फैंसलों से कुछ लोग धन्य हो जाते हैं तो कुछ की पीठ पर ये चाबुक से बजते हैं। गाँव के बहुत से आशिक प्रेमियों की तकदीरों के फैंसलों का भी ये चबुतरा गवाह रहा है।   
   गाँव के दबंगों की रंगिनियों के अनेक किस्से यहाँ फिजाओं में तैरते रहते हैं पर इन्हे आम युवाओं के प्रेम पर सख्त एतराज होता है। खासकर उन मामलों में तो इनका खून खोल जाता है जिनमें प्रेमी घर से भाग कर ब्याह रचा लेते हैं। कहते हैं समाज की लाख पाबंधियों के बाद भी जवानी दिवानापन नहीं छोड़ती अब हरिपुर में दबंगों की दबंगई से बेखबर गाँव से शहर में पढ़ने जा रही दो जुड़वां बहने एक नया ही गुल खिलाने लगी हैं।       
    मैं मजाक नही कर रहा यार, तुम सचमुच बहूत सुंदर हो। तुम्हे देखता हूँ तो लगता है ऐसे, कोई अप्सरा जमी पर उतरी हो जैसे। जिसकी सदा से फूल खिलें वो बहार हो तुम, फरिस्तों के भी अरमा मचल उठें, वो दिलदार हो…।”
   “बकवास शायरी को हजम करो।” सुरेखा सागर की आशिकाना शायरी के बीच में ही बोली “अक्ल से बेकार हो तुम, लवेरिया के शिकार हो तुम। आज फिर मैंने तुम्हे फूल बना दिया, वो भी गोबी का। मैं रेखा नही सुरेखा हूँ। लगता है कल रेखा दीदी को तेरे शेर सुन कर ही खांसी, जुकाम हूआ था इसलिए आज उसने कॉलेज से छुट्टी मार ली। उसके नाक की नदी उफान पर थी। अब तक तो हो सकता है उसमें वह डूब मरी हो। तू उसके वियोग में अभी से मंजनू बन कपड़े फाड़ डाल।”
   “सॉरी यार सुरेखा, मैं तुम्हे रेखा समझ बैठा। इसमें मेरी कोई गलती नहीं। तुम्हारी शक्ल ही नही हर अदा इतनी मिलती है कि तुम्हारे बूढ़े होने पर एक बार तो यमराज भी चकरा जाएगा कि इनमें से कोन सी को राम प्यारी करने आया हूँ।” 
       “बूढ़ी होगी तेरी अम्मी” मैं तो जवानी में ही राम को प्यारी हो जाऊंगी। अरे क्या खाक मजा आएगा जिंदगानी में मौत को चूम कर हम जो मर न सके जवानी में।” सुरेखा यह कह इतनी जोर से हँसी कि सागर ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया।
   “ऐसे बत्तिसी न दिखा। देखो पास बैठे परिंदे हमें कैसे घूरने लगे हैं।” सागर वहाँ कॉलेज के लॉन में घास पर बैठे लड़के, लड़कियों की तरफ देखता हूआ बोला जो अब उनकी तरफ देखने लगे थे।
    रेखा, सुरेखा दोनो जुड़वा बहने शहर के आर्य कॉलेज में एम.ए फाइनल वर्ष की छात्राएँ हैं जो पास के हरिपुर से यहाँ पढऩे आती हैं। सागर उनसे पिछले गाँव में से कॉलेज आता है। घर से निकल कर बसों में, कॉलेज में वे तीनों एक साथ रहते हैं। साथ रहने की वजह से सागर व रेखा में प्रेम के बीज अंकुरित हो गए। कस्मों वादों का दौर चला फिर फैसला हूआ कि एम.ए करते ही शादी कर लेंगे। 
    रेखा जितनी गंभीर स्वभाव की है सुरेखा उतनी ही चुलबुली। किसी भी सीरियस बात को हँसी में उड़ाना उसकी हॉबी है। दोनों की शक्ल मिलती है पर सागर रेखा के स्वभाव व उसके बदन की खुश्बू से उसे पहचान लेता है। रेखा के पास बैठते ही उस पर उसके जिस्म से निकली सुगंध से मदहोशी छाने लगती। आज लॉन में सुरेखा ने गंभीर मुद्रा में उससे कुछ दूर बैठ उसे मूर्ख बना दिया वरना वह हमेशा की तरह सटकर बैठती तो फोरन उसकी चालाकी भांप लेता। जब सागर से नही रहा गया तो उसने जेब से मोबाईल निकाल रेखा का नम्बर मिला लिया।
  “रहने दो जीजा जी, वरना दीदी फोन पर छींकेगी तो तुझे भी जुकाम हो जाऐगा।” सुरेखा फिर ठहाका लगा कर हंस पड़ी। 
   कॉलेज से छुट्टी होने पर सुरेखा घर पहुँची तो वहाँ रेखा सर पर दुप्पटा लपेटे पीठ के बल लेटी थी।दवाई भी ली है दीदी या ऐसे ही पड़ी हो?” उसने पूछा।
अभी एक खुराक लेकर लेटी थी, सर में दर्द बहूत है, तेरा कॉलेज कैसा रहा आज?” रेखा बैठते हुए बोली।
  “कैसा रहना था, लॉन में बैठकर तेरे आशिक के साथ गप्पें लड़ाती रही। एक लेक्चरर के छुट्टी पर होने की वजहं से दो पीरियडस नही लगे। पता नही कैसे नियम बना रखे हैं। हम अगर कॉलेज मिस्स कर दें तो फाइन लगा देते हैं। लेक्चररों की छुट्टी से स्टुडेंट की पढ़ाई बाधित हो तो कोई बात नही। हर कोई हमारा शोषण करने पर तुला है। हमारा दिमाग चाटने के लिए अधिक प्रोफिट के चक्कर में मिलीभगत कर एक ही सब्जेक्ट की अनेक किताबे लगा दी हैं। कवि ने ये कहा, वो कहा, एक छोटी सी कविता की चंद लाइनों से ही चार-पाँच पेज भर दिए जाते हैं जिन्हे याद करते-करते हमारे दिमाग कुन्द होते हैं। नेता कॉलेजों में गुटबंदी करवा, हमें आपस में लड़वा कर अपना उल्लू सीधा करते हैं। हमें तो कोई पूछता ही नही कि हम क्या पढऩा चाहते हैं। हमारी क्या इच्छाएँ हैं। पार्क में अगर हम किसी फ्रेन्डस के साथ बैठ जाएँ तो कयामत आ जाती है। पुलिस के साथ मीडिया…।”
  “स्टॉप, स्टॉप… बकवास बाजी बंद कर, पहले ही दर्द से सर फटा जा रहा है। ये तो तुझसे हुआ नही की रसोई में जाकर दीदी के लिए एक प्याली चाय बना दे, मेरे सर पर बैठ कर लेक्चर देने लगी।” रेखा उसकी बात बीच में ही काटती हुई गुस्से से बोली।   
  “अभी लाती हूँ। देख तू मुझसे दस मिनट पहले पैदा होने का बड़प्पन मत दिखाया कर नहीं तो सागर को पटा रफुचक्कर हो जाऊंगी।” सुरेखा रसोई की तरफ जाती हूई कुढ़कर बोली तो रेखा के होठों पर मुस्कान आ गई।  
   उनकी माँ बाजार गई थी। आते ही स्भाव अनुसार उसका पारा चढ़ गया– “साहबजादी का सर दर्द ठीक हुआ या नही, इन्हे तो कॉलेज से छुट्टी मारने का बहाना चाहिए, दवाई लाकर डाल देती हो, खाती हो नही। अरी सुरेखा कहाँ मर गई, रिक्सा से सामान उतरवा दे।” माँ बाजार से गठरी भर कर सामान लाई थी। रेखा ने उसे खोलकर देखा तो उसमें रेडिमेन्ट सूट, दरियां, खेस, चदरें भरी थी। 
 “माँ ये क्या पूरा कपड़ा बाजार उठा लाई?” सुरेखा रसोई से निकल चाय के कप उन दोनो को पकड़ाते बोली। 
  “बेटियां जवान हो जाएँ तो ऐसी कई गठरियाँ लानी पड़ती हैं। तुम दोनो की शादी एक ही मण्डप में करूंगी। मेहमानों की चायपानी का खर्चा एक ही बार हो जाएगा। तुम्हारे पापा जिंदा होते तो बड़ी धूमधाम से तुम्हे विदा करते। कमख्तो! तुम्हारे पैदा होते ही वे चल बसे। वंश चलाने के लिए बेटे की आस थी वह भी उनके साथ ही चली गई।”
  “ये भी हमने पैदा होने से पहले ही कह दिया होगा कि पिता जी हर रोज पूरी बोतल गटक लिया कर ताकी आपकी किडनी फैल हो जाएँ।” सुरेखा गुस्से से बोली।
 “तुम्हे तो बस बात बनानी आती है। पूरा दो लाख खर्चा आया था। किडनियां भी बदलवा दी वो फिर भी न रहे। मेरे तो भाग ही फूटे थे, अब किसे दोष दूं। अब तो रात-दिन तुम्हारी चिंता लगी रहती है, कैसे शादी कर पाऊंगी?” माँ बोलतेबोलते रोने लगी।
   तुम्हे मेरी चिंता करने की आवश्कता नही, मैं अपने आप शादी करवा लुंगी, सुरेखा तो अभी एम.ए करने के बाद नेट क्लीयर करेगी फिर जॉब मिलने पर ही शादी करेगी। इस प्रकार उसे भी अभी तीनचार वर्ष लगेंगे।” रेखा बोली।  
   “रेखा तुझे होश भी है, क्या बक रही है। तुम्हारे जगिरीये खानदान में आज तक ऐसी हिमाकत किसी लड़की ने नही की। बाप मरा है, तेरे ताऊ, चाचे, मामा अभी जिंदा हैं। वे तुझे काट कर दबा देंगे। अपने आप शादी करने का विचार भी कभी दिल में न लाना। अपने मामा के लड़के के बारे में तो तुम दोनो अच्छी प्रकार जानती हो। अभी जेल से छूट कर आया है।” माँ सकते में आती बोली।
  “माँ मैं इन सारे इज्जतदारों को अच्छी प्रकार जानती हूँ। ताऊ हमारी जमीन कब्जाए बैठा है, उसमें इतनी भी गैरत नही कि बिन बाप की बच्चियों का हक न मारे। वह जो पाँचसात किवंटल अन्नाज दे देता है वो ही हमें स्वीकारना पड़ता है। अंकल के चरित्र के बारे में तो पूरा गाँव जानता है। चन्नों की नाबालिक लड़की के मामले में पंचायत में पूरे पचास हजार देकर पीछा छुटा था। गरीब की लड़की थी बाप को खरीद लिया किसी रईस की होती तो बच्चू जेल में सड़ रहा होता। तेरे भाई के लड़के को मर्डर, रेप केस में अभी दो वर्ष में जमानत मिली। ये सभी तुझे इज्जतदार दिखाई देते हैं। मैंने लड़का पसंद कर लिया है। मैं अपनी मर्जी से ही शादी करूंगी। देखती हूँ मुझे कौन माई का लाल रोकता है।” रेखा ने दो टूक कहा तो माँ के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। 
 “ये तो ऐसे ही बकवास करती रहती है माँ। यह शादी तेरी रजामंदी से ही कराएगी।” सुरेखा माँ का चेहरा पढ़ते हूए बोली।
  “मेरी एक बात तुम दोनो कान खोल कर सुन लो। हमारी बिरादरी में मर्द बेशक पचास जगह मुंह मारें पर स्त्रियों को अपनी मर्जी के बिना कभी दहलीज नहीं लांगने देते। तुम भाग्यशाली हो जो पढ़ रही हो। हमारे जमाने में लड़कियाँ शादी के बाद ही बाप की देहरी से बाहर निकलती थी। मुझे बाप के घर भी पहरे में रहना पड़ा, जब इस घर में ब्याह कर आई जेठ, ससुर से बोलने तक का अधिकार नही था। मेरे पीहर में एक लड़की……।” माँ ने उन दोनों को इज्जत के नाम पर पूरा लेक्चर पिला दिया।     
    उस रात रेखा को देर तक नींद नही आई। उसके मन में विचारों की श्रृंखला चलती रही। ‘कैसा पुरूष प्रधान समाज है ये जिसमें औरत को आजादी से जीने का कोई हक नही। माँ से बहस करने से कोई फायदा नही होने वाला। वह मेरी शादी के खिलाफ नही है, बस डरी हूई है। अगर मैं अपने कुनबे के पुरूषों से डर गई तो कॉलेज में नारी मुक्ति पर दी गई मेरी स्पीच बेमानी हो जाएगी। माँ आसानी से उसके रिस्ते को स्वीकार नही करेगी। कोर्ट मैरिज करने के बाद ही उसे बताऊँगी। माँ का मन बहुत कोमल है। शादी के बाद वह उन्हे जरूर आशिर्वाद देगी।’ उसके कान में कमरे की छत पर किसी के चलने की आहट आई तो तंद्रा भंग हो गई। ‘जरुर माँ ताऊ के घर से आई होगी।’ दरवाजा खोल कर देखा तो शक सही निकला। माँ सीढ़ियाँ उतर कर अपने कमरे में चली गई।
    पहले उनका संयुक्त परिवार था पर दादा के मरने के बाद घर-बार सब बंट गया। आगेपीछे गलियों से लगती उनकी खानदानी हवेली में दिवारें उठा दी गई। आगे के बड़े दरवाजे से लगते बढ़िया कमरों को ताऊ, चाचे ने मिलकर हथिया लिया, पीछे खुलने वाले छोटे दरवाजे के साथ का एक तिहाई भाग उन्हे दे दिया गया। माँ अक्सर छत से होकर ताऊ के घर सलाह लेने चली जाती थी। उनके हिस्से में आई दस एकड़ कृषि भूमि पर वो ही खेती करता था।
    अगले रोज दोनो बहने कॉलेज के लिए बस में सवार हुई तो वहाँ सागर हमेशा की तरह उनके लिए सीट रोके बैठा था। माई डीयर हमसे ऐसी क्या भूल हुई जो कल से फोन भी नही किया। कम से कम मिस्स कॉल ही मार देती तो तुम्हारे घर आकर सिर की मालिश कर आता। मेरे हाथ में वो जादू है कि हाथ लगते ही तेरा नजला, जुखाम, खांसी सब रफूचक्कर हो जाते।” सागर खिड़की की तरफ सरकता हुआ रेखा से शिकायत करते बोला। 
  “वहाँ अब भूल से भी मत जाना जीजा जी। हमारे रिस्तेदारों ने लाठियों को तेल से चुपडऩा शुरू कर दिया है।” सुरेखा हँसते हुए रेखा के कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ी।
  प्यार करना गुनाह नही जानेमन। हमने भी चूड़ियाँ नही पहनी। एक को चांटा मारा तो दस गिरेंगे। कहो तो तेरी दीदी को पूरे गाँव के सामने हाथ पकड़ कर ले आऊँ।” सागर सीना चोड़ा कर अकड़ कर हँसते हुए बोला।
   “बच्चु जब गंडासी खड़कती है तो मैंदान में कोई सूरमा ही टिक पाता है। कई तो दिवारे पीट कर भाग खड़े होते हैं।” सुरेखा सागर की तरफ अंगुठा लहराते हुए फिर हँसने लगी। उसे सागर से छेडख़ानी करने में पूरा मजा आ रहा था। 
    “अपनी चोंच कभी बंद भी कर लिया कर।” रेखा उसे ढांटते हुए बोली। फिर वह सागर को माँ के साथ कल हुई बातचीत के बारे में बतलाने लगी। शाम को जब दोनों बहने कॉलेज से घर आई तो ताऊ उनके बरामदे में बैठा माँ से बतिया रहा था।
  ‘माँ जरूर रात को उसके प्रेम विवाह करने के बारे में बतला कर आई होगी।’ रेखा का शक सही निकला। ताऊ उन्हे देखते ही गुस्से से उबल पड़ा“अं ए, छोरियो! गाड्ण जोगी थम कालज म्हं इसी कुणसी पढ़ाई सिखण जावैं सै जो जगिरीये खानदान का जमा ए अदब कैदा भूलगी। थारे ते पैलां अड़ै छोरियाँ कौनी ओई के इस गाम म्हं? अपां के पाँच सो सालां के इतिहास म्हं किसी छोरी ने भाज कै ब्या कौनी करैया, अर मनै बुज्जो किमै एक छोरी का भी तलाक ओया सै। जड़ै भी अमनै गाल दी अपणे माँ, बाब्बू की इज्जत राक्खि अर औढ़े तै अर्थी पै ही बाहर आई सै।” 
  “प्यार करना कोई पाप नहीं ताऊ जी। पुराना जमाना अब नही रहा। अब हमें अपनी मर्जी से शादी करने का पूरा हक है। आखिर हमें अपने जीवन साथी के साथ पूरा जीवन गुजारना होता है। आप की अरेंज मैरिज में तो शादी के बाद ही अपने पति का मुंह दिखता है, भले ही वह अंधा बहरा कैसा भी हो।” रेखा बेखोफ बोली। 
   “थोबड़े पै दोचार थप्पड़ खावागी कै… तेरै चार जमात पढ़ कै घणियों जबान लागगी।” ताऊ खाट से उठ खड़ा हो गया तो माँ बीच में आते हुए बोली “रहने दो जी, जवान लड़की पे हाथ उठा दिया तो पता नही क्या कर बैठेगी।”
   “क्या कर बैठूंगी… जाकर थाने में रिर्पोट लिखवाऊंगी। ताऊ जितनी खानदानी गर्मी अपने सड़े हुए दिमाग में डाल रखी है निकाल दे तो अच्छा रहेगा। मैं पुरूषों से कम नही हूँ। कानून की हर धारा भी जानती हूँ। मैंने अपने लिए लड़का पसन्द कर लिया है। मैं भागूंगी नही बल्कि कोर्ट मैरिज करवा यहीं तुम्हारी छाती पे मूंग दलुंगी। तीस एकड़ में से हमारे हिस्से दस एकड़ आते हैं, असाढ़ी में ही छोड़ दे। मैं अपने आप खेती करूंगी। मुझे ट्रैक्टर, ट्राली, ट्यूबवेल सहित सारी मशीनरी में बराबर हिस्सा चाहिए। हमारा जो बनता है चुपचाप दे दे, कहीं ऐसा न हो मुझे कानून का सहारा लेना पड़े और तुम्हारी जग हँसाई हो।” रेखा इतनी जोर से चींखते हुए बोली कि सुरेखा भी सहम गई। उसने पहली बार अपनी दीदी का ऐसा रोद्र रूप देखा था।  
    ताऊ सकते में काफी देर तक खड़ा हुआ उसे घूरता रहा फिर बोला “छोरी क्युं म्हारी आबरू तारण पै खड़ी सै। थमनै इब्बै कालज के चीकणे दिखण आले यें छोरे पूरी दाढ़ी मूंछ आए पाछे सारे माणसा जिसे नजर आवांगे। नत्थु कोढ़ी गेल्या विश्व सुंदरी नै ब्या कै देखो। छे मिन्ने पाछै मेरी सास्सु का दूसरयां की जोरू नै ताकण लाग्जा गा। छोरी तैन्ने माणस जात का बैरा कोनी। मैं पीली पाटदेई तेरे मामें दौरे जाऊं सूं। किम्मै तेरा तां डोला गालणा ई सै।” ताऊ यह कह तेज कदमों से बाहर निकल गया। 
   “अब क्या होगा?” ताऊ के जाते ही माँ रेखा को फटकार लगाते बोली अगर मुझे पता होता तू पढ़ लिख कर हमें ये दिन दिखाएगी तो तुझे अनपढ़ ही रखती। तूने अपने ताऊ की पूरी इज्जत उतार दी। तुझे तो पता है ये पिछली बार गाँव का सरपंच रहा है। पूरे गाँव में इसका रूतबा है।”  
  “बस रहने दो माँ। भोलेभाले गाँव वालों से तरह-तरह के वादे कर दो वोट से जिता था। अगर इतना ही अच्छा था तो अब जमानत कैसे जब्त हो गई। तुम हमेशा इनकी गुलाम बन कर रही हो। ये खेत के कारण तेरे साथ चिकनी चुपड़ी बात करता है। दीदी ने इससे अपने खेतों का हिसाब माँग लिया। अब देखना ये कैसे आँख दिखाएगा।” सुरेखा भी रेखा के पक्ष में बोली।
     रेखा ने देर करना मुनासिब नही समझा। न जाने ताऊ क्या साजिश रच डाले। उसने कॉलेज ग्राऊंड में बैठकर जब सागर को सारी स्थिति से अवगत कराया तो वह आश्चर्य से बोला “डीयर तुम्हारी फैमली के लोग ओल्ड पंथी हैं क्या? मैं तो अपने डैड को दोस्त की तरह समझता हूँ। मैंने उसे तेरे बारे में पहले ही बता रखा है। डैडी हमारी शादी घूमधाम से करने का विचार बनाए हूए है। तुम बस अपने घरवालों को मना लो।”
    “सागर मैंने तुम्हे पहले भी बताया था कि मेरे पिता जी नही रहे। घर में हम दोनो के अलावा माँ ही है। बाकी ताऊ, चाचा तो हमें बरबाद करने पर तुले हैं। अगर तुम्हे मुझ से सच्चा प्यार है तो अभी दोचार दिन के अंदर ही कोर्ट मैरिज करवा लो। मुझे अपने कुनबे में किसी साजिश की बू आ रही है।”  
    “चिंता छोड़ो, सुख से जीओ। मेरी खुशी में ही मेरे मम्मी डैडी की खुशी है। मैं जैसा कहुँगा वो फोरन मान जाएंगे। हम पहले कोर्ट में शादी करवाएंगे फिर एक बड़ी पार्टी रखेंगे जिसमें डैडी अपने सारे अरमान पूरे कर लेंगे। डीजे हाई फाई होंगे, नम्बर वन डांस पार्टी होगी। मैं तो उस पंजाबी गीत पर नाचुंगा, ओए मुण्डा अपणे ब्या दे विच नचदा फिरे। बोलो अब तो खुश हो?” सागर रेखा का हाथ पकड़ शरारत से बोला।
  “प्लीज यार कभी तो सीरियस हो जाया कर।”
   “अगर ताऊ चाचों से कोई परेशानी हो तो आज ही मेरे घर चल। कोर्ट में शादी होने के बाद ही दोनों माँ का आशिवार्द लेने तुम्हारे घर चलेंगे। फिर देखते हैं किस माई के लाल में इतनी हिम्मत है जो हमें छू भी सके।” सागर बोला। 
  “नहीं ऐसी कोई बात नहीं। मेरा ताऊ हंगामा खड़ा कर रहा है। उन्हे हमारे प्यार के बारे पता चल चुका है। आज ताऊ  मेरे मामे के गाँव चला गया। जरूर वहाँ से मामे का लफंगा लड़का आएगा। मैं बस इतना चाहती हूँ हमारी जल्दी शादी हो जाए तो वे कुछ नही कर सकेंगे।” रेखा ने सागर को समझाया। 
 “ठीक है मैं घर जाकर आज ही डैडी से बात करता हूँ।” 
    सागर का डैडी एक पढ़ा लिखा समझदार किसान था। सागर ने जब अपने डैडी को पूरा किस्सा सुनाया तो उसने अगले दिन रेखा को घर ले आने को कहा। अगले दिन सागर रेखा के गाँव वाले बस स्टॉप पर उतर गया। वहाँ दोनो बहने पहले ही तैयार खड़ी थी। उसने रेखा को फोन पर बतला दिया था कि डैडी तुमसे मिलना चाहता है। सागर उन्हे लेकर दूसरी बस से अपने घर आ गया।  
    सागर की मम्मी अपनी होने वाली बहु को देखने के लिए बहुत बेताब थी। आज उसने वर्षों बाद उस खानदानी साड़ी को निकाला जिसमे मलिक खानदान की बहुएँ शादी के मण्डप में फेरे लेती आई थी। सगाई के समय ही उसे चढ़ावे की रस्म में लड़की वालों के घर भेज दिया जाता था।
   चटक लाल रंग के सितारों जड़ी साड़ी पर वह बार बार हाथ फिरा अपनी शादी की मीठी यादों को ताजा करने लगी। वहाँ सागर का डैडी सोफे पर बैठा उसे देख मंद-मंद मुस्करा रहा था। साड़ी के पल्ले पर खूबसूरत जालीदार कशीदेकारी की हुई थी जिस पर लगे रंग-बिरंगे सितारे खिड़की से आती सूरज की रोशनी में झिलमिला रहे थे। गेट पर आहट हुई तो उसकी तंद्रा भंग  हो गई।
   “जा बाहर से बेटे बहु को अंदर ले आ।” सागर का डैडी अपनी पत्नी से बोला। सागर दोनो बहनों को लेकर अपने घर आ गया। उसकी मम्मी घर के दरवाजे पर खड़ी असमंजस की स्थिति में उन दोनो हमशक्ल सुंदर लड़कियों को निहार रही थी। तब तक उसका डैडी भी बाहर आ गया। दोनो बहनों ने सागर के माता पिता के पाँव छुए। 
  “पहचानों तो इनमें से आपकी होने वाली बहु कौन सी है मम्मी।” सागर शरारत से बोला।
  “ये तो ऐसे नजर आ रही हैं जैसे एक ही लड़की डबल रोल में खड़ी हो। वैसे भी हमें कैसे पता चलेगा जब तक तुम परिचय नही करवाओगे।” उसकी मम्मी बोली। 
  “मैं रेखा हूँ मम्मी जी।” रेखा सागर के बोलने से पहले ही बोल पड़ी। 
   बहुत सुंदर है हमारी होने वाली बहु, बिल्कुल चांद का टुकड़ा, कहीं मेरी नजर न लग जाए।” मम्मी उसके गाल सहलाते इस अंदाज में बोली की रेखा ने शरमा कर दोनो हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया।
  “यहीं दरवाजे पर ही सारी बाते करोगे या घर के अंदर भी चलोगे।” सागर का डैडी बोला।
  अंदर कमरे में बैठते ही सागर का डैडी रेखा से बोलाबेटी सागर ने हमें तुम्हारे बारे में सब बतला दिया है। कोर्ट में शादी करने की आवश्यकता नहीं, मैं इस इलाके का इज्जतदार किसान हूँ। चालिस एकड़ जमीन, कोठी, कार, हर प्रकार की सुख सुविधा हमारे पास है। मैं कल ही तेरे ताऊ से मिलकर तेरा रिस्ता माँग लेता हूँ। वे इस रिस्ते को अवश्य स्वीकार करेंगे।” 
    “डैडी जी, ताऊ हमारा भला चाहेंगे तभी तो इस रिस्ते को स्वीकार करेंगे। उसका इरादा मेरी शादी किसी ऐसे मंदबुद्धि व्यक्ति से करने की है जो उसके इशारे पर नाचे। वह हमारी जमीन हड़पना चाहता है।” रेखा ने सागर के डैडी को उनकी सभी करतुतों से अवगत करा दिया।
   कमाल है, यहाँ ऐसे इन्सान भी हैं जो अपने स्वर्गवासी भाई के परिवार को सहारा देने के बजाए उसका हिस्सा हड़पते हैं। अगर ऐसा है तो मैं कोर्ट मैं तुम्हारी शादी करवा देता हूँ। बाद मैं एक बड़ी पार्टी दुंगा और तेरे चाचा, ताऊ सभी को बुलाऊंगा। देखना तुम्हारे सारे रिस्तेदार इस रिस्ते को  स्वीकार करेने लगेंगे।” सागर का डैडी पूरे आत्म विश्वास के साथ बोला।  
   “भगवान करे ऐसा ही हो। मुझे तो इसके कुनबे के बारे में सुन कर डर लगने लगा है। कल ही इनकी शादी करवा दो। मैं इसे अब वहाँ नही छोड़ना चाहती। न जाने वे इस फूल सी बच्ची के साथ क्या सलूक करें।” सागर की मम्मी रेखा के सर पर हाथ फिराते बोली।
   “ऐसा कुछ नही है। तुम तो ऐसे ही डर जाती हो। ये तो हुआ नही इन बच्चों को कुछ जलपान करवा दे। उल्टा इन्हे डराने लगी हो।” सागर का डैडी अपनी पत्नी से बोला। 
   “मैं बनाती हूँ सभी के लिए अदरक वाली कड़क चाय। पी कर चुस्ती फुर्ती आ जाएगी।” सुरेखा सोफे से उठकर माहौल हल्का करते बोली।
  “तुम बैठ जाओ बेटी। मैं ही बनाती हूँ। तुम्हे पता नही रसोई में कौन सामान कहाँ रखा है।” सागर की मम्मी उठ कर रसोई में चली गई। 
     दोनो बहनें कॉलेज बंद होने के समय तक वहीं रही। इस बीच सागर का डैडी शहर जाकर अदालत में उनकी शादी के लिए अर्जी लगा आया। शाम को विदाई के समय सागर की मम्मी दुल्हन वाली जरी की साड़ी एक थेले में डाल कर रेखा को देते हुए बोली “कोर्ट में शादी कर इसे लगा कर ही यहाँ आना। इस खानदान की सभी बहुओं ने इसे बाँध कर ही अपने पति के घर में कदम रखा है।”
  “जी माँ जी, जरूर लगा कर आऊंगी।” रेखा शरमाते  हुए बोली। शाम को दोनो बहने अपने घर आ गई।
   “इस बैग में क्या लाई हो?” माँ दोनो को शक्कि नजर से देखते बोली। 
  “ये देखो दुल्हन की लाल साड़ी, कल मैं और सागर कोर्ट में शादी करेंगे। ताऊ, चाचा हंगामा न खड़ा करें, यह कदम इसलिए उठा रही हूँ।” रेखा ने माँ को स्पष्ट बता देना ही उचित समझा।
   “हमारे सिर पर पैर रखकर करवा ले शादी। हमारी तरफ से तो तू मरे बराबर है। तेरे ताऊ ने तेरे लिए अच्छी जगह रिस्ता देख लिया है। इज्जत के साथ घर से विदा होगी तो हमारा भी मान सम्मान होगा।” माँ उसे समझाते  हुए तल्ख स्वर में बोली।  
  “मेरी पूरी जिंदगी का सवाल है। मैं उन लड़कियों में से नहीं जिन्हे जिस मर्जी खुंटे से बांधो वे उमर भर सड़ती रहती हैं। जिसे मैं प्यार करती हूँ वह बहुत नेक इन्सान है। अगर ताऊ जी हमारी भलाई चाहता है तो उससे जाकर बोल दे कि उनके बारे में पूरी जानकारी लेकर आ जाए। मैं नाम पता लिख कर दे देती हूँ। धनदोलत मानसम्मान के मामले में वो हमसे उपर हैं। अब सागर के साथ मेरी सगाई करवा दो, शादी बेशक साल बाद करवा देना।”   
    रेखा ने माँ को सागर के परिवार के बारे में पूरी जानकारी दी तो वह कुछ नरम पड़ गई “ठीक है मैं तेरे ताऊ, चाचा से अभी जाकर बात करती हूँ। उन्हे मलिक साहेब के बारे में पूरी जानकारी दे कर मनाने की कोशिस करूंगी। तेरे मामे का लड़का भी आ गया। अगर वो मान जाते हैं तो मुझे क्या ऐतराज हो सकता है। ऐसी कौन माँ होगी जो अपनी बेटी की खुशी न चाहती हो।” 
   “तुम समझती क्यों नही माँ। हम हिस्सा न माँगे इसलिए उन्होने तुम्हे बहकाया हुआ है। अनाज के दाने तो वो हमे कुढ़ कर देते हैं। वो दीदी के इस रिस्ते को क्यों मानेंगे। फिर भी तुम जाकर देखना चाहती हो तो देख लो। मुझे उनके उत्तर का पहले ही पता है।” सुरेखा अपनी माँ को समझाते हुए बोली।
    शाम को माँ विचारविमर्श करने ताऊ के घर चली गई। उसके मामे के लड़के ने एक बार सुरेखा के साथ अश्लील हरकत की तो रेखा ने उसे डांट दिया था। तभी से वह ताऊ के घर ही ठहरता था। रेखा जब सुरेखा के कमरे में गई तो वहाँ सुरेखा उसकी दुल्हन वाली साड़ी लपेट कर आइने में किसी मॉडल की तरह अलगअलग पोज बना कर देख रही थी। उसे देख रेखा को हंसी आ गईसब्र कर बन्नो, मैं बाद में शादी करूंगी पहले तेरे लिए एक हैंडसम दुल्हे की तलाश करती हूँ।”  
    “सच दीदी ये साड़ी मेरे पे कितनी अच्छी लग रही। जी करै कि सागर के साथ फेरे मैं ले लूं सुहागरात तू मना लेना, किसे पता चलेगा। हमशक्ल होने का दोनों फायादा उठाती रहेंगी।” सुरेखा हँसते हुए बोली। 
    “अच्छा अब ज्यादां स्यानी मत बन, रात बहुत हो गई, अपनी खाट पर लेट कर सो जा, पता नही माँ ताऊ के घर से क्यों नही आई, मैं छत से होकर देखती हूँ।” रेखा यह कह सीढिय़ों से छत पर चली गई। 
    ताऊ के घर की मुंढेर पर खड़ी हो नीचे झांकते हुए रेखा ने माँ को आवाज लगाई। नीचे बरामदे में उसके ताऊ ने महफिल जमा रखी थी। दो खाटों के बीच मेज थी जिस पर अंग्रेजी शराब की बोतल, भुने बादाम, उबले अण्डों की प्लेटें सजी थी। उसका ताऊ, चाचा व मामे का लड़का काँच के गिलासों में जाम पर जाम चढ़ा रहे थे। उसकी माँ, ताई व चाची भी वहाँ कुछ दूर रसोई के आगे फर्श पर बैठी बतिया रही थी।  
     रेखा ने जब माँ को आवाज लगाई तो वे सभी उसकी तरफ देखने लगे। उसके मामे का लड़का उसकी तरफ देख हँसते हुए बोला “बेबे, तलै उतर कै अजा। हम कुणसे तेरे बैरी सै, जड़ै तेरी हामी होगी ओठा ई तनै ब्या देंगे।” 
   “नीचे आजा बेटी तेरे ताऊ, चाचा सब रजामंद हैं। कल ही ये मलिक साहब का कारोबार देखने जाएंगे। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। एम.ए करने के बाद तेरी शादी कर दी जाएगी।” उसकी माँ खुशी से बोली।
    रेखा को यकीन नही हुआ। वह बचपन से ही इनकी रगरग से वाकिफ थी। ताऊ, चाचा उन्हे उजाड़ने के लिए चालें चलते रहते थे तो ताईचाची उनके नाम गाँव के आवारा लड़कों के साथ जोड़ कर उन्हे बदचलन साबित करने की कोशिस करती रहती थी।
   ‘लगता है इन्होने माँ को बहका लिया, सूरज पश्चिम से उगना शुरू हो सकता है, नदियाँ पहाड़ पर चढ़ सकती हैं, ये कंजर हमारा भला सोचने लगे ऐसा हो ही नही सकता।’ रेखा मन में विचार कर माँ से बोली “ठीक है माँ, ताऊ जी जाकर छानबीन कर लेंगे। काफी रात हो गई अब तुम घर आ जाओ।,
   “ऐ गाडण जोग्गी अड़ै क्या गैर का घर सै। इबै तो अमनै तेरी माँ ते भात की भी बतलाणी सै। अड़ैई सोजागी।” उसके मामे का लड़का उसे प्यार से ढांटते बोला।    
    रेखा ने उन शराबियों के साथ बहस करनी उचित नही समझी। वह वापिस अपने घर आ गई। वहाँ बरामदे में उसकी खाट पर सुरेखा उसकी साड़ी के सितारों वाले पल्ले को मुंह पर ओढ़ कर खुर्राटे भर रही थी।
  कैसी पागल लड़की है साड़ी लपेटे ही सो गई।’  रेखा बड़बड़ाते हुए अंदर जा सुरेखा की खाट पर लेट गई।
    ‘ये लोग क्या चाल चल सकते हैं।’ उसकी कुछ समझ में नही आ रहा था। चलो कल देखेंगे ये सागर के घर जाकर उनसे क्या बात करेंगे।’ सोचते हुए वह सोने की कोशिस करने लगी। गाँव के श्मशान की तरफ से कुत्तों के रोने की आवाजें उसके सोने में व्यवधान पैदा कर रही थी। नींद आई तो स्वप्न में वह सुनसान रास्ते पर चलने लगी। वहाँ अंधकार में पेड़ो से छन कर कुछ रोशनियाँ सी आ रही थी। उसने उपर देखा तो वह आन्नद से भर गई। उपर आकाश में बहुत बड़ा चद्रमा दिखाई दे रहा था जिसके चारों तरफ सितारे झिलमिला रहे थे।   
  ‘कितना सुंदर चद्रमा है।’ वह सितारों से बाते करने लगी। तभी आकाश में एक काला बादल दिखाई दिया। उसके पीछे से कई भयानक साये निकल उसकी तरफ बड़ने लगे तो वह डर गई। भागना चाहती थी पर भाग नही पा रही थी। वह जोर लगा कर कदम आगे को बड़ाती तो लगता जैसे कोई अज्ञात शक्ति उसे पीछे खींच रही हो। 
   उसने सायों की तरफ देखा तो वह उसके नजदीक पहुँच गए। उनके जबड़े खुले हुए थे। अब उनके हाथ उसकी गर्दन की तरफ आने लगे। वह चींखना चाहती थी पर आवाज मुंह से बाहर नही आई। रेखा ने भागने के लिए पूरी शक्ति लगाई तो वह झटके से जाग कर खाट पर बैठ गई। उसका शरीर पसीने से सरोबर हो गया, सांस धोंकनी की तरह चलने लगी।
    बाहर बरामदे में पड़ी खाट से उसने सुरेखा को जगाना चाहा पर वहाँ देखा तो दिल धक से रह गया। खाट से सुरेखा गायब थी। तभी उसे गुसलखाने के पीछे पशुओं के भूसे वाली कोठरी से घूं घूं की आवाज सुनाई दी। किसी अनहोनी आशंका से उठ कर वह उस कमरे की तरफ दोड़ी। वहाँ का दृष्य देख उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसके मामे के लड़के ने सुरेखा का मुंह दबोचा हुआ था। चाचा ने उसकी टांगे पकड़ कर उपर उठाया और ताऊ ने उसकी गरदन पंखे पर लटकी रस्सी के फंदे में डाल दी।
  “छोड़ो इसे।” वह चिल्लाते  हुए सुरेखा को बचाने दोड़ी मगर देर हो चुकी थी। चाचा ने उसकी टांगे छोड़ी तो वह फंदे पर झूल गई। रेखा उसकी टांगे पकड़ उसे उपर उठाने के लिए आगे बड़ी ताकी रस्सी गले पर टाइट न हो। तभी उसके मामे के लड़के ने उसे इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका सिर दिवार से जा टकराया। वह अंधकार में घिरती चली गई। वह बेहोश हो चुकी थी।    
    रेखा को ऐसे लगा जैसे उसके कानों में मक्खियाँ भिनभिना रही हों। फिर वह भिनभिनाहट स्त्रियों के रूदन में बदल गई। उसकी चेतना लोट आई थी। उसने देखा वह खाट पर लेटी हुई है। वहाँ बाहर बरामदे का दृष्य बहुत ह्रदय विदारक था। उसकी माँ, ताई, चाची व मोहल्ले की औरतें छाती पीटपीट कर रो रही थी। सारा माजरा उसकी समझ में आ गया। रात उसके धोखे में सुरेखा को प्यार के दुश्मनों ने मौत के घाट उतार दिया। शायद सुरेखा उसकी लाल रंग की साड़ी पहने थी इसलिये वे उसे रेखा समझ बैठे। वह उठ कर बैठ गई। तभी बाहर से आकर उन तीनो राक्षसों ने उसके पंलग को घेर लिया जिन्होने सुरेखा को फांसी पर लटकाया था।
  “देख छोरी, रेखा फांसी गाल कै मरगी सै। अर गाम के मौजिज माणसा की रजामंदी म्हं अमने वा पीली पाटदे ई चिता म्हं फूंक दी। जिसा उसनै कर्म करया वैसाइ फल मिल्या। अपणी जुबान पै ताला गाल लिये कदै आपां नै तेरी नाड़ के मापे की रस्सी बाटणी पडाजा।” उसका ताऊ सख्त लहजे में उसे धमकी देता बोला।
  “फुफा जी, या छोरी तो घणिये शरीफ सै। थम तो खामखा डरों सूं।” उसके मामें का लड़का उसकी छाती पर गंदी नजर डालते बोला।
   रेखा के जी में आया की उनके मुंह पर थूक कर बता दे कि वह रेखा ही है। सुरेखा की मौत से वह भारी सदमें में थी। वह कुछ नही बोली। उसके मन में उन तीनो राक्षसों के प्रति भारी नफरत थी। वह जी भर कर रोना चाहती थी मगर वहाँ ऐसा कंधा नही था जिस पर सर रख वह रो सके। उसे धमका वह तीनो जब बाहर चले गए तो वह छत पर चढ़ गई। उसने मोबाइल निकाल कर समय देखा तो सुबह के दस बज चुके थे। इसका मतलब वह सात-आठ घंटे बेहोश रही थी। वह सागर का नम्बर डायल कर बोली “फोरन पुलिस को इतला करो, मेरे घर वालों ने मेरे धोखे में सुरेखा को फांसी पर लटका दिया। किसी को बतलाने पर वह मुझे भी मारने की धमकी देकर गए हैं।” रेखा ने रोते हुए सागर को रात की पूरी घटना की जानकारी दे दी। 
 “ओह¡ ये तो बहुत बुरा हुआ। तुम चिंता मत करो मैं अभी डैडी से बात करता हूँ।” सागर बोला।
  “प्लीज डैडी को लेकर तुम भी जल्दी यहाँ आ जाओ, मुझे बहुत डर लग रहा है।”  
  सागर ने अपने डैडी को जब सारे मामले की जानकारी दी तो वह आश्चर्य चकित रह गया। उसने फोरन एस.पी को फोन लगाया और घटना की पूरी जानकारी दी। एक घन्टे के अंदर ही रेखा के घर पर पुलिस और पत्रकारों का जमावड़ा एकत्र हो गया। पुलिस को देख वहाँ पूरे गाँव के स्त्री, पुरूष उमड़ पड़े। 
    सागर का डैडी पुलिस को साथ लेकर रेखा के घर पहुँचा तब तक रेखा छत पर बेचैनी से इधरउधर टहलती रही। जैसे ही सागर अपने डैडी के साथ कार से उतरा वह छत से उतर कर बावलों की तरह रोते हुए उसकी तरफ भागी। उसने कभी अपने पिता को नही देखा था। वह सागर के डैडी में अपने पिता की छवी देखने लगी थी। बाहर आ वह उसके गले लग कर रोने लगी। 
     सागर का डैडी उसके सर पर हाथ रखता हुआ बोला “बेटी में सोच भी नही सकता इतनी मासूम कलियों को कुचलने वाले पापी भी इस संसार में हो सकते हैं। ये वक्त रोने का नहीं तुम पूरे होशो हवाश में एस.पी साहेब के पास अपने ब्यान दर्ज करवाओ फिर देख में कैसे इन पापियों को फांसी के तख्ते तक पहुँचाता हूँ।”   
    रेखा के ब्यान पर पुलिस ने उसके ताऊ, चाचे व मामा के लड़के पर अपहरण, साजिश के तहत हत्या, लाश को खुर्दबुर्द करने का मुकदमा दर्ज करते  हुए उन्हे गिरफ्तार कर लिया। 
   लोगों के जमघट में खड़ा गाँव का वर्तमान सरपंच हैरान था। जब उससे नही रहा गया तो वह पुलिस जीप में हथकड़ी पहने रेखा के ताऊ से बोला “मलिक साहब तो इस इलाके के जाने माने किसान हैं। इसे मैं अच्छी प्रकार जानता हूँ। यह और तुम एक ही जाति के हो, गोत्र भी नही मिलता। फिर इन बच्चों की शादी में ऐसी क्या अड़चन हुई कि तुमने इतना जघन्य अपराध कर डाला। एक ऐसी मासूम का कत्ल जो शायद अभी प्यार पेंच की दुनिया से कोसों दूर थी।”
  “सरपंच जी सुरेखा ब्या वाली साड़ी गाल्यों पड़ी थी। अम समझे रेखा घर ते भागण की तैयारी म्हं सै। मलिक साहेब तो गणाई ठाडा जिमिदार सै। अमनै बेरा कोनी था मारी छोरी मलिक साहेब के छोरे गेल्या फेरे लेण की करे सै। अम क्या ब्या करण तई नाटा थे।”
  “झूठे… पापी।” रेखा की माँ ताऊ का गिरेबान पकड़ कर बोली “रात मैंने तुम्हे मलिक साहेब के बारे में सब कुछ बता दिया था। तुमने मुझसे इसकी शादी सागर के साथ धूमधाम से करने का वादा किया था। हाय¡ मुझे नही पता था तू जमीन जायदाद के लिए इस हद तक गिर जाएगा। जमीन हड़पने की साजिश में तूने मेरी फूल सी बच्ची को मुझ से छीन लिया।” रेखा की माँ रोते-रोते ताऊ का कमीज खींचने लगी तो कुछ औरतें आकर उसे घर के अंदर ले गई। 
   गाँव का सरपंच सागर के डैडी से बोला “मलिक साहेब गए वक्त को पकड़ा नही जा सकता मगर इन पापियों को सजा दिलवाने में पूरा गाँव आप के साथ है।” फिर वह रेखा के सर पर हाथ रख आगे बोला “अब यह पूरे गाँव की बेटी है सुरेखा के क्रियाक्रम की रस्मों के बाद आप जब चाहें बारात लेकर आ सकते हैं, हम धूमधाम से इसका कन्यादान करेंगे।”
प्रकाशित पुस्तकें 6 :- ( विज्ञान, राजनीति, सामाजिक विषयों पर, जिसमें एक उपन्यास, एक हरियाणवी रागणी संग्रह है प्रकाशित, अप्रकाशित टंकित पुस्तकें 4- एक उपन्यास, कथा संग्रह, एक इंजिनियरिंग विषय पर । ) कहानियाँ, आलेख, संस्मरण, गजल़, कविता, पत्र, दैनिक ट्रिब्यून, हंस, हिमप्रस्थ, हरिगंधा, वीणा, कथायात्रा, शुभ तारीका, हरियाणा साहित्य अकादमी की व अन्य पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों में प्रकाशित। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा व्यवस्था कहानी के लिये सम्मान सहित और भी अनेक सम्मान। संपर्क - nkadhian@gmail.com

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