टेबल पर खाना लगा चुकने के बाद इंदु ने विजय जी को आवाज लगाई –”आइए खाना तैयार है …” 80 वर्षीय विजय जी धीरेधीरे चलकर टेबल तक पहुंचे। कुर्सी पर बैठते ही आदतन पूछा –” क्या बनाया है आज ? “

आपकी पसंदीदा मटर पनीर की सब्जी ….” एक कौर मुंह में डालते ही वह बोले –” बहुत तेज मिर्ची हैं…” इंदु ने एक चम्मच सब्जी चखी और बोल पड़ी –“जरा भी तो तीखी नहीं है, मैंने मिर्ची भी बहुत कम डाली थी ।आपके मुंह में छाले तो नहीं हो गए ? “

तुम्हें तो मेरी हर बात गलत ही लगती है ……” विजय जी कुछ नाराजगी से भर उठे। इंदु चुप हो गई। एक कटोरी में दही डालकर उनके आगे रख दी—” यह डाल लें सब्जी में तो तीखी नहीं लगेगी….”

खाने की टेबल पर हर 10 -15 दिनों में पतिपत्नी के बीच नोकझोंक हो ही जाती है। विजय जी शुरू से ही खाने के शौकीन रहे हैं कभी उन्हें नमक कम मिर्च ज्यादा, कभी तेल अधिक ,कभी खटाई ज्यादा ,कभी सब्जी ठीक से पकी नहीं तो कभी बहुत अधिक पक गई जैसी शिकायतें होती हैं। इंदु कभी तो चुप लगा जाती है पर कभीकभी चिढ़ भी जाती है फिर दोनों के बीच नोकझोंक या हल्की सी तकरार भी हो जाती है।

विजय जी के परिवार में पत्नी के अलावा बेटा बहू और दो पोते हैं। बेटा नामीगिरामी कंपनी के प्रबंधक है और बहू भी एक कंपनी में उच्च पद पर आसीन है। दोनों ही सवेरे  9:30 बजे निकल जाते हैं और शाम 6 बजे के बाद ही लौटते हैं इंदु को खाना बनाने का शौक भी है और वक्त भी अच्छा कट जाता है इसलिए बेटे बहू के कहने पर भी उन्होंने खाना बनाने के लिए किसी को स्वीकार ना कर स्वयं ही बनाना जारी रखा। दोनों पोते बहुराष्ट्रीय कंपनियों में दूसरे शहर में नौकरी करते हैं ।साल में दोतीन बार परिवार के साथ यहां सब को मिलने जाते हैं।

जून का महीना था। हवा में उमस थी ।विजय जी इंदु घर के समीप बने बगीचे में गए। कोने में रखी सीमेंट की कुर्सी उनकी प्रिय है अक्सर वहीं जाकर बैठते हैं। आजकल बगीचों में भी ज्यादा भीड़ नहीं होती ।बच्चे अपनी पढ़ाई, क्लासेस , मोबाइल में व्यस्त हैं। समय ही नहीं उनके पास। उनके जैसे कुछ बुजुर्ग दंपत्ति इधर उधर की सीटों पर बैठे दिख जाते हैं। विजय जी ने इंदु का हाथ पकड़ कर कहा –” तुम्हें दोपहर को मेरी बात का बुरा लगा ना….. सॉरी …..” ।इंदु अकबका गईछोड़ो भी यह तो चलता ही रहता है……” उसने देखा विजय जी की आंखों में सचमुच पछतावे के भाव नजर रहे हैं। वह झट बोली –” कोई दूसरी बात करो। हां बहुत दिन हो गए कोई गाना नहीं सुनाया आपने….” विजय जी कई बार पुराने मनपसंद गीत गुनगुनाते रहते हैं इंदु के कहने पर वे गुनगुना उठे –” मेरी जोहरा जबीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवान, तुझ पर कुर्बान मेरी जान ….” हमेशा की तरह इंदु शरमा कर मुस्कुरा दी।एक मिनट ठहरोविजय जी ने कहा और समीप लगे गुलाब के पौधे से फूल तोड़ इंदु के बालों में लगाने लगे।

ये क्या कर रहे हैं कोई देखेगा तो क्या कहेगा बुढ़ापे में…….”

कहने दो अपनी बीवी को लगा रहे हैं कोई दूसरी तो नहीं…..” विजय के कहते ही इंदु के चेहरे पर सिंदूरी सूरज की सैकड़ों रश्मियां बिखर गई।

* * *

आज मेरी किटी पार्टी है कौन सी साड़ी पहनूं ?” इंदु पूछ रही है विजय जी से।

कुछ भी पहन लो तुम पर तो हर साड़ी हर रंग फबता है…” विजय जी के कहते ही इंदु बोलीआप भी ना , मैंने राय मांगी और आप मजाक करने लगे

अच्छा ठीक है यह गुलाबी सिल्क पहन लो …” किट्टी से वापस लौट कर इंदु बड़े उत्साह से बताने लगी –” आज का दिन बड़ा लकी रहा ।गेम में भी प्राइज मिला और तंबोला में भी फुल हाउस का प्राइज मिला।विजय जी ने इंदु का हाथ पकड़कर कहा –” आज का दिन ही क्यों ,तुम्हारे लिए तो हर दिन लकी दिन रहता है। तुम हो ही इतनी भाग्यशाली

इंदु बनावटी गुस्से से बोली –” बस हो गए शुरु। मौका चाहिए आपको मुझे कुछ ना कुछ सुनाने के लिए। 
पगली , यह तो प्यार है। इतना भी नहीं समझ सकी अभी तक…” विजय जी की आंखों में प्रेम देख इंदु मुस्कुरा दी।

पचहत्तर वर्ष की उम्र में भी इंदु बहुत सक्रिय रहती है। सामाजिक कार्य, गतिविधियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती हैं। कुछ ग्रुप्स, क्लबों की सदस्य बनी हुई है इसलिए प्रोजेक्ट के सिलसिले में बाहर जाती रहती हैं। विजय जी ने कभी इस बारे में आपत्ति नहीं उठाई क्योंकि इस क्षेत्र में उसकी रुचि स्वयं उन्होंने ही पैदा की थी।

स्नातक तक की पढ़ाई की थी इंदु ने जब उसकी शादी विजय जी के साथ हो गई। वे पेशे से एडवोकेट थे तथा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते थे ।सामाजिक गतिविधियों में हरदम अग्रणी रहते तथा अपने मिलनसार स्वभाव द्वारा खासे लोकप्रिय थे। दोस्तों की सलाह पर मेयर पद के लिए चुनाव लड़ा और जीत गए शहर के विकास के लिए काफी अच्छे महत्वपूर्ण कार्य किए। उस दौरान काफी लोगों का उनके पास आना जाना लगा रहता था वह इंदु का परिचय सबसे कराते जब किसी कार्यक्रम में जाते तो वह अक्सर उनके साथ रहती। धीरेधीरे इंदु भी मुखर होती गई उसकी पहचान भी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में होने लगी।

मेयर के कार्यकाल के दौरान विजय जी का वकालत का पेशा काफी धीमा पड़ गया था ।कार्यकाल पूरा होने के उपरांत उन्होंने दोबारा अपने पेशे की तरफ अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया था। इस बीच इंदु दो बच्चों की मां बन गई थी। सास बच्चों की परवरिश में बहुत सहयोग करती थी ।बच्चे भी दादी दादी करते उनके आगे पीछे डोलते रहते पांच सात साल का समय गुजर गया।

उस वर्ष मेयर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित था। विजय जी ने जब इंदु को इस बारे में बताया तो वह बोली – “मुझे क्या लेना देना है इससे….”

मैं सोच रहा हूं तुम इस पद के लिए चुनाव लड़ो……”

ना बाबा ,मुझे इन झमेलों में नहीं पड़ना। मैं अपने बच्चों, परिवार में ही खुश हूं व्यस्त हूं।व्यर्थ की बाहर की दौड़ भाग, जिम्मेदारियां राजनीति की चालें.. मुझे कोई रुचि नहीं।

मैं हूं ना तुम्हारे साथ। मुझे तो सभी अनुभव हैं ही, अगर अवसर मिल रहा है तो क्यों छोड़ा जाए? फिर तुममें तो काबिलियत भी है। तुम जरूर जीत जाओगी..” विजय जी ने दबाव डाला। उनके बारबार कहने पर तथा उनके मित्रों के भी आग्रह करने पर आखिर इंदु मान गई।

चुनाव में 10 महिलाओं ने नामांकन कराया लेकिन बाद में पांच ने अपने नाम वापस ले लिए। टक्कर 5 में ही थी। अंत में विजय इंदु की ही हुई। निसंदेह इसमें विजय जी की छवि, उनके रुतबे , कार्यों का काफी प्रभाव था। 2 वर्ष के कार्यकाल में इंदु ने पति के सहयोग से शहर के विकास कार्यों के लिए काफी परिश्रम, दौड़ भाग की। फलस्वरूप राज्य सरकार की ओर से बेस्ट मेयर पुरस्कार की हकदार बनी। कार्यकाल पूरा होने के बाद उसने स्वयं को अपनी गृहस्थी तक सीमित कर दिया। बच्चे बड़े हो रहे थे उनकी ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता थी इस बात को वह अच्छी तरह समझती थी। केवल दोतीन सामाजिक संस्थाओं के सदस्य के रूप में उसने स्वयं को सीमित कर लिया।

दोनों बच्चे कॉलेज पहुंच गए थे। बेटी ने मेडिकल लाइन ली थी जबकि बेटा एमबीए करना चाहता था ।विजय जी अपनी प्रैक्टिस में व्यस्त रहते लेकिन रात को पूरा परिवार साथ बैठता, खाना साथ ही खाते ।एक दूसरे के बारे में जानने, बोलने का यही समय होता ।माता पिता के आपसी प्रेम, सहयोग ,लगाव को बच्चे बचपन से ही देख रहे थे। सो उनके अंदर भी वैसे संस्कार बनते चले गए

बेटी डॉक्टर बन गई परिवार की तरफ से एक छोटी सी गरिमा मय पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें रिश्तेदारों के साथ ही विजय जी इंदु के नजदीकी मित्रगण थे ।पार्टी के दौरान ही एक मित्र ने अपने डॉक्टर बेटे के लिए विजय जी की बेटी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। कुछ दिनों बाद ही सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद उनकी शादी तय हो गई ।मित्र का डॉक्टर बेटा विदेश में नामी अस्पताल में कार्यरत था शादी के बाद वह पत्नी को भी साथ ले गया।

बेटे सुभाष को एमबीए के बाद एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई कंपनी में अपनी सहकर्मी नीता के साथ कार्य करते हुए दोनों ही एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए ।साल भर में ही में विवाह सूत्र में बंध गए ।विजय जी इंदु दोनों ही इस रिश्ते से खुश थे। नीता भी परिवार में घुल मिल गई थी तथा यथासंभव सहयोग देती थी ।अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कभी पीछे नहीं रही।
दो जुड़वा बेटों के जन्म के बाद दोतीन साल के लिए नीता ने नौकरी छोड़ दी थी ।इंदु अकेली दो बच्चों को कैसे संभाल पाएगी यही सोचकर यह निर्णय लिया गया ।जब बच्चे स्कूल जाने लगे तो इंदु ने स्वयं ही नीता से कहा –” तुम चाहो तो अब नौकरी कर सकती हो ,बच्चों को मैं देख लूंगी वैसे अब तुम्हारे ससुर जी भी सेवानिवृत्त होने वाले हैं ।हम दोनों मिलकर उन्हें संभाल लेंगे।
सुभाष ने भी स्वीकृति दे दी कुछ ही समय बाद नीता को एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। समय का चक्र चलता रहा ।अब तो पोते भी बाहर नौकरी करते हुए परिवार बसा चुके हैं।

पिछले कुछ समय से विजय जी का बाहर आना जाना कम हो गया है ।कुछ अशक्त महसूस करते हैं ।उनके मित्र गण ही कभीकभी उनके पास जाते हैं। फिर लंबे समय तक गपशप चलती रहती है। इंदु भी कुछ देर बैठती फिर उनके चाय पानी के इंतजाम में लग जाती उसका भी महीने में पांच सात बार बाहर जाना हो ही जाता था ।कभी कोई आयोजन, कभी किटी पार्टी ,कभी किसी सामाजिक संस्था का कार्यक्रम।

उस दिन इंदु किटी पार्टी से लौटी तो वह काफी खुश थी। तंबोला में तथा गेम में उसे इनाम मिले थे ।वह उत्साह से विजय जी को बताने लगी तभी वह बोल पड़े –“तुम तो अपना वक्त अच्छा काट के इंजॉय कर आती हो! मैं यहां अकेला बोर होता रहता हूं……” इंदु अवाक रह गई इनको क्या हो गया ? इस तरह के ताने पहले तो नहीं देते थे ।उसे गुस्सा भी गया बोली ,–” तो अब मैं बाहर जाना बंद कर दूं …..”
मैंने यह तो नहीं कहा ,…” विजय जी संभलते हुए बोले
जिस तर्ज में बात कर रहे हो उसका अर्थ तो यही निकलता है ..” कहते हुए इंदु अपने कमरे में चली गई ।कपड़े बदलकर आई तो टीवी चला दिया विजय जी चुपचाप सोफे पर बैठे रहे।

रात के खाने पर बेटे बहू को महसूस हुआ दोनों चुप हैं इंदु का उतरा चेहरा देखकर बहू ने पूछ लिया –” मम्मी जी सुस्त क्यों हैं ? आज की किटी पार्टी कैसी रही ? “
कुछ नहीं थोड़ी थकान सी लग रही है ।पार्टी अच्छी रही।इंदु ने संक्षिप्त सा जवाब दिया। बेटा बहु जानते हैं विजय जी और इंदु का आपस में आत्मीय प्रेम , लगाव है लेकिन ऊपरी तौर पर नोकझोंक भी चलती रहती है ।विजय जी थोड़े शॉर्ट टेंपर्ड जो हैं। रात को सोते समय विजय जी ने इंदु का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा
अभी तक नाराज हो ? क्या करूं तुम अगर ज्यादा देर बाहर रहती हो तो मैं ऊब जाता हूं ..”
मैंने कहा ना आगे से मैं कहीं नहीं जाऊंगी ।तुम्हें अच्छा नहीं लगता ना …”
तुमसे यह किसने कह दिया ? मुझे भला क्यों आपत्ति होने लगी ? पगली , 50 साल साथ रहकर भी मेरे प्यार को नहीं जान पाई ।मैं तुम्हें मिस करता हूं
अगर किसी दिन मैं इस दुनिया से हमेशा के लिए चली गई फिर क्या करोगे ..? इंदु के कहते ही विजय जी ने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा –“ऐसा कभी मत कहना मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगा….” उनकी आंखें नम हो गई थीं। इंदु ने उनकी आंखों को पोंछते हुए कहा –” इतने भावुक मत बनो मैं नहीं जाने वाली तुम्हें छोड़कर चलो अब मुस्कुरा दो …”विजय जी ने इंदु के माथे पर चुंबन जड़ा और शुभरात्रि कह कर सो गए
सवेरे इंदु उठी अपनी दिनचर्या से निपट विजय जी को उठाने आईं। आवाज लगाने पर भी वे नहीं उठे तो उन्हें हिलाया ।उनकी गर्दन एक और लुढ़क गई ।बेटे बहू को बुलाया वह समझ गए विजय जी इस संसार से विदा ले चुके हैं ।डॉक्टर को बुलाया उसने बताया सोते सोते ही उन्हें दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इंदु के मन में उनके अंतिम वाक्य प्रतिध्वनित रहे थे –” मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगा…..”

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