कोठी के हालनुमा कमरे के ठीक मध्य में सफ़ेद चादर से ढंका परिवार के मुखिया का शव पड़ा है.सगे-सम्बन्धियों से घिरा. घर की औरतें छाती पीट-पीटकर रो-रोकर थकने के बाद अब खामोश हैं. पत्नी तो रो-रोकर निढाल-सी पड़ी है.उनका बेटा विदेश में प्रतिष्ठित कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत है और बेटी दिल्ली में है.दोनों को खबर कर दी गयी है,बेटे ने कहा वह तेरहवीं तक पहुँच जायेगा और बेटी ‘फ्लाइट’से पहुँच रही है.उसने कहा है उसका ‘वेट’किया जाय.पत्नी की बहनें,भाई,भाभियाँ उसे संभाल रहे हैं तसल्ली दे रहे हैं.जब वह होश में आती है एक ही वाक्य  कहती है-‘मुझे किसके भरोसे छोड़ गये! कैसे जिऊंगी मैं….”फिर अचेत हो जाती है.बहने,भाभियाँ उसके चेर्हरे पर पानी के छींटे मारती हैं-“दीदी,धीरज रखो…”
मई का तपता महीना, सूरज जैसे आग के गोले बरसा रहा हो.हाल खचाखच भर चुका था.छत पर लगे दोनों पंखे गर्मी दूर करने के स्थान पर गरम हवा के थपेड़े दे रहे थे.उपस्थित लोग बड़ी बेताबी से अर्थी उठने की प्रतीक्षा कर रहे थे.
“समय तो हो गया है” श्रीमती शर्मा फुसफुसाई.
 “उनकी बेटी का ‘वेट’कर रहे हैं.फ्लाइट आने वाली है…”माला ने बताया.
 “घंटा भर हो गया.बैठे बैठे थक गये…”
 “तुम्हारी पीठदर्द कैसी है?”
 “वैसी ही.देखती नहीं बार-बार पहलु बदलना पड़ता है.मुझे क्या पता था कि यहाँ इतनी देर लगेगी.थोडा लेट आ जाती-आज महरी भी नही आई…”
      “तो क्या तुम खुद काम करोगी?”
       “और चारा भी क्या है?”
    “मैं अपनी महरी को भेज दूँगी उसे कुछ दे देना.”अरे हाँ,मिसेज शर्मा ,माला अपने मुंह को उनके कान तक ले गयी-“तुम्हारे बेटे के रिश्ते की बात चल रही थी न कहाँ तक पहुंची?”
‘लगभग तय ही समझो . कुछ फॉरमेलिटीज पूरी करनी हैं बस…..’.
‘बधाई हो भई,लकी हो फटाफट रिश्ता हो गया ….;  
दोनों मुस्कराई एकाएक याद आया वे तो मातमपुर्सी में आयीं हैं . फ़ौरन दोनों ने चेहरों पर गंम्भीरता ओढ़ ली .कुछ जोड़ी आँखें उन पर ठहर गईं थी और उनमें से कुछ जानने को उत्सुक थे उनकी मुस्कान का सबब .
एक सम्बन्धी परिवार जनों के समीप आकर बोला –‘अभी फोन किया था एअरपोर्ट पर , फ्लाइट एक घंटा लेट है ‘.खबर हॉल में फ़ैल गयी ,भीड़ में सरगोशियाँ शुरू हो गईं .
 ‘चलो चलते हैं घंटे भर बाद फिर आ जाएँगे ‘.
‘इतनी गर्मी में जाना फिर आना , रहने दो यहीं बैठते हैं ‘.
‘घर का थोडा सा काम निबट जाएगा ..’.
‘छोड़ो यार , मैंने तो शुक्र मनाया घंटा दो घंटा घर के कामों से निज़ात मिली . सास और ननंद निबटा लेंगी सरे काम …’.
‘तुम किस्मत वाली हो जो तुम्हारी सास ,ननंद साल छह महीने में आकर तुम्हें इतनी हेल्प कर देती हैं .मेरी तो सास है ही नहीं और ननंद अपने घर ही मस्त है .कभी दो दिन से ज्यादा नहीं रहती . पति के साथ ही आती है और साथ ही चली जाती है . सारा दिन उनकी आवभगत में ही कट जाता है .’
‘तुम्हारी बेटी इस बार पी .एम् .टी. में बैठ रही है? ‘.अन्य समूह में सुगबुगाहट .
‘ हाँ , जिद कर रही थी सो हमने भी कह दिया ट्राई कर लो वरना हमें तो इंटरेस्ट नहीं मेडिकल लाइन में . पूरे दस साल खप जाते हैं पी.जी. तक और उसके बिना केवल एम
.बी.बी.एस . करने में क्या तुक है ?फ्रस्टेटेड डॉक्टरों की लाइन लगी पड़ी है आज तो …..’.
‘ सच कहती हो .आज जमाना कम्यूटर का है ,मि. शाहू की बेटी की सॉफ्टवेयर मेंपूरे पचास हजार की नौकरी लग गई है .सिर्फ चार साल की पढाईऔर इतना ब्रिलिएंट कैरियर . आज जमाना फ़ास्ट चीजों का है …’.
मृतक के कोई करीबी रिश्तेदार पहुंचे हैं , मर्द के हाथ में अटैची है . औरत दोहत्थड़ मारकर रोटी हुई हॉल में प्रविष्ट हुई .सरगोशियाँ बंद हो गई हैं माहौल फिर से गमगीन हो गया है .भीड़ का पूरा ध्यान अभी अभी पहुंचे सम्बन्धियों पर है .औरत ने मृतक की पत्नी को गले से भींच लिया है  और बुक्का फाडकर रो रही है .मृतक की पत्नी फिर से वही वाक्य दोहराने लगी है –‘ हाय ,मुझे किसके सहारे छोड़ गये .कैसे जिऊँगी मैं …..’. रो रोकर उसकी आँखें इतनी सूज गई हैं कि आँखों से अधिक ऊपर नीचे की सूजन ही नजर आ रही है .
    आगंतुक एक एक सम्बन्धी से गले मिल रोती हुई प्रलाप कर रही है .कुछ निकट बैठी महिलाऐं अपनी आर्द्र हो आई आँखों को पोंछ रही हैं ,तो कुछ रूमाल से आँख और नाक पोंछ जबरन रोने का अभिनय करती दिख रही हैं .
‘ क्या हो गया था भाई साहब को ? क्या बीमार थे ?’ आगंतुक महिला ने कुछ सहज होने के पश्चात पूछा .शायद वह मृतक की बहन थी – चचेरी , मौसेरी  या ममेरी ..
‘ सबेरे अच्छे भले उठे ,चाय नाश्ता किया .अख़बार पढने बैठे तभी सीने में दर्द उठा .डॉक्टर जब तक ऑक्सिजन और जीवनरक्षक इंजेक्शनों का इंतजाम करते तब तक वह प्राण छोड़ चुके थे .केवल कुछ ही पलों में सब कुछ समाप्त हो गया ….’निकट बैठी सम्बन्धी ने बताया .
‘ बेटी कब पहुँच रही है ?’
‘ फ्लाइट एक घंटा लेट है ,आ जाएगी घंटे भर में …’
   इतने में खाना बनाने वाली माई ट्रे में पानी के गिलास रख ले आई . पानी पीने के बाद आगंतुक महिला भी चुप बैठी भीड़ का हिस्सा बन गयी . उसके साथ आया पुरुष बाहर के बरामदे में बैठे पुरुषों के बीच जा बैठा .भाटिया ,वर्मा ,और चोपड़ा साथ ही बैठे थे .
‘अभी घंटा भर लगेगा तब तक मैं ऑफिस का चक्कर लगा आता हूँ …’
‘छोडो भी ऑफिस को ,इतने सिंसियर बनकर भी कोई भला नहीं होने वाला .आज की गैरहाजिरी लगने दो .चलो मेरे घर चलते हैं थोडा फ्रेश हो लेंगे ….’चोपड़ा फुसफुसाया . भाटिया और वर्मा दोनों फ़ौरन तैयार हो गए .तभी चोपड़ा का मोबाईल घनघनाया .
‘ हाँ ठीक है , मैं पहुँच रहा हूँ …’.
‘ घर से फोन है अर्जेंट बुलाया है …मैं घंटे भर में लौटता हूँ …’निकट बैठे परिचितों को संबोधित करते हुए चोपड़ा बोला . फिर भाटिया ,वर्मा भी धीरे से उठकर उसके पीछे चल दिए . नई इंडिका के दरवाजे बंद कर ए .सी . चलाया –‘ उफ़ ,कितनी गर्मी है ,मेरा तो वहां दम घुटने  लगा था ….’पसीना पोंछते चोपड़ा ने निःश्वास छोड़ी कालोनी से बाहर गाड़ी निकलते ही गीत बज उठा – ‘साड्डे नाल रहोगे ता ऐश करोगे …’
  पांच मिनट बाद ही गाड़ी भव्य इमारत के सामने खडी थी . मखमली लॉन के बीच बीच में रंग बिरंगे फूल महक रहे थे .एक क्यारी में विभिन्न प्रजातियों के कैक्टस जिन्हें सुंदर गोल पत्थरों से सजाया गया था अपना अलग ही आकर्षण बयां कर रहे थे .एक दो पौधों में सफेद और बैंगनी रंग के लुभावने फूल भी खिले हुए थे .
  ड्राइंग रूम के महंगे सोफों पर बैठने के पश्चात् चोपड़ा बोला –‘एक एक पैग हो जाए ?’’भाटिया और वर्मा ने एक दूजे को सवालिया नजरों से देखा .चोपड़ा जैसे किसी रहस्य पर से पर्दा उठा रहा हो उस अंदाज से बोला –‘मै जब किसी मातमपुर्सी से लौटता हूँ दो लार्ज पैग लेता हूँ .देखा नहीं ,वहां घंटे भर में कितना तनाव पैदा हो गया था ?घर वालों की चीख पुकार ,रोना पीटना मन को बेहद उदास सकर देता है .कभी कभी तो मुर्दे का चेहरा ही पीछा नहीं छोड़ता .कुछ घूँट गले से उतरते ही उन तमाम तनावों से मुक्ति मिल जाती है .’
  बोतल खुल गई .गिलास भर गये .साथ में नमकीन व् कुछ भुने हुए काजू भी आ गये .चोपड़ा ने टी . वी. का रिमोट लिया और ऑन किया .गीत बज उठा –‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान …’ ओल्ड इज गोल्ड प्रोग्राम चल रहा था . 
‘ और कोई चैनल लगाओ भई ये फिलोसफी वाले गाने छोडो ….’भाटिया चहका .
‘ लो अब ठीक है –  तू चीज बड़ी है मस्त मस्त ….हीरो हिरोईन के ठुमकों को देखकर उनकी आँखों में सुरूर उतर आया था – ‘ यार इस गाने में तो रवीना ने अपने जिस्म के एक एक अंग को झटकाकर दर्शकों को झटका दे दिया था .कुछ भी कहो चीज वाकई मस्त है …’
कहकहों के बीच चोपड़ा ने पूरा मुंह खोलकर जम्हाई ली फिर घड़ी पर नजर पड़ते ही चौंक पड़ा –‘ओह गॉड, पौन घंटा बीत गया और पता ही नहीं चला .चलो भई ,बी क्विक , ऐसा न हो हमारे पहुँचने तक अर्थी उठ जाए .’
जब वे वहां पहुंचे किसी महिला का आर्तनाद बाहर तक सुनाई दे रहा था .शायद उनकी बेटी ही थी .कुछ और धीमे ,दबे घुटे स्वर भी उसके विलाप में शामिल थे .बरामदे के बायीं ओर अर्थी की पूरी सामग्री रखी थी .वे तीनों बाहर बरामदे में ही बैठ गये .भीड़ में हल्की फुसफुसाहट फिर शुर हो गई –‘ अब किस बात की देर है ? बेटी भी आ गई है ….’
‘ थक गये हैं बैठे बैठे . दो घंटे हो गये यहाँ आए . चार बजे का टाइम दिया था छः बजने वाले हैं ….’
‘जो लोग कफन लेने गये थे वे अभी लौटे नहीं उन्हीं का इंतजार कर रहे हैं …’
‘ सबेरे से मौत हुई है और कफन लेने अभी गये ?’ स्वर में हल्का सा रोष . 
‘गर्मी कितनी है शायद कफन सीने वाला भी आराम करने घर चला गया हो …’ किसी ने व्यंग्य किया .  
    वैसे तो लोग मृतक के घर का पानी नहीं पीते और न अर्थी उठने तक घरवाले ही कुछ खाते-पीते हैं लेकिन झुलसा रही गर्मी से लोग परेशान हो उठे थे.कइयों के हलक प्यास के मारे सूख रहे थे.पसीने की धाराएँ वस्त्रों के भीतर रेंगती स्पष्ट महसूस हो रही थी.अर्थी उठने में देर होती देख अब कुछ लोगों ने मजबूरी में नौकरानी के हाथ में पकडे ट्रे से गिलास उठाने शुरू कर दिए थे.
    “इनके बेटे को चाहिए अब वह माँ को भी साथ ले जाए.यहाँ बेचारी अकेली कैसी रहेगी…”एक स्वर उभरा.
    “तुम क्या समझते हो इनका बेटा यहाँ आएगा?”दूसरा स्वर था.
    “क्यों नही?आखिर उसके पिता की मौत हुई है कैसे नहीं आएगा?”
    “बड़े भोले हो तुम.जानते नहीं युवा विदेश क्यों जाते हैं?पैसे कमाने.वहां जाकर वे पैसे-पैसे का हिसाब रखते हैं.इनके बेटे ने तो वहां की मेम से शादी भी कर ली है.वह उसे यहाँ आने देगी?आने-जाने में लाख रूपए का खर्च है…”
    “लेकिन यह तो इंसानियत नहीं हुई न…”
   “आज के ज़माने की पीढ़ी केवल हम दोनों और हमारे बच्चे तक ही सोचती है.इसके इर्द-गिर्द ही उनका पूरा संसार है.नैतिकता,इंसानियत,मानवीय मूल्यों जैसी बड़ी-बड़ी बातें उनके लिए बेमानी हैं.”
   अर्थी जब उठी तो सम्मिलित रोने,विलाप करने की आवाजें काफी तेज़ हो गयी थीं.घर की सीमा को लांघकर दूर तक जा रही थीं.पत्नी का प्रलाप जारी था-“मुझे किसके सहारे छोड़े जा रहे हो….”
  हाल तथा बरामदे में बैठे बार-बार घडी देखते और पहलू बदलते लोगों ने राहत की साँस ली.पंद्रह मिनटमें ही भीड़ सिमट गयी थी.
 मि. व् मिसेस सिन्हा एक साथ ही घर पहुंचे.नहा-धोकर दोनों ने एक-एक प्याला चाय का लिया.मि.सिन्हा बोले-“आज का पूरा दिन बेकार गया.जिस दिन किसी की मातमपुरसी में जाता हूँ मन बड़ा उदास और बोझिल हो जाता है.ऐसा करो कोई फड़कती-सी फिल्म की कैसेट मंगवा लो बोरियत दूर हो जाएगी,फ्रेशनेस आ जाएगी.
     मिसेस सिन्हा शोखी से मुस्कुराई-“तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली.दरअसल मैं खुद आज बहुत थक गयी.थोडा रिलैक्स होना चाहती हूँ.”
  “और हाँ,खाने में आज चिकन बनवा लेना.साथ में जाम भी होगा और फिल्म भी.सारी  थकान उतर जाएगी…”
 “ओ के…”मिसेस सिन्हा पलंग के नर्म,मुलायम गद्दे पर पसर गयीं.
नरेन्द्र कौर छाबड़ा
ए-201,सिग्नेचर अपार्टमेंट
बंसीलाल नगर, औरंगाबाद.-४३१००५
(महाराष्ट्र)मो.-९३२५२६१०७९
                         

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.