काव्य लेखन एक सतत प्रक्रिया है। परिवार समाज और देश के वातावरण से विचार ग्रहण करता है कवि। अनुभूतियों और अनुभवों से उत्पन्न विचारों के मंथन से उत्पन्न बिंबों को शब्दों में उकेरना ही कविता की सृजनात्मक प्रक्रिया है। लोकगीत बचपन से ही दिल में रचे -बसे होने के कारण अधिकतर गीत ही लिखे। गेयता मेरी रचनाओं का सहज गुण है ।अनुभूति द्वारा आयोजित पंचम संवाद श्रंखला में रमेश गुप्त नीरद ने अपने ये विचार व्यक्त किए।
पर-पीड़ा से आंखें भीग जाती है इसलिए गीतों में दर्द झलकता है । कवि नीरद के शब्दों में – ‘पीड़ा के एहसासों को अंबर में लहराता हूं, मैं बन मेघ तृषित धरती की प्यास बुझाता हूं’आप नारी का सम्मान करते हैं इसलिए नारी की पीड़ा का चित्रण करते हैं अतः संयोग से अधिक वियोग श्रंगार आपकी रचनाओं में मिलता है। समाज में व्याप्त बुराइयों को देखकर अंतस जलता है इसलिए कविताओं में आक्रोश उभरता है। आपके स्कूल के शिक्षक ने आपमें अध्ययन की प्रवृत्ति विकसित की और 15 वर्ष की अल्पायु में ही आपने अग्रणी साहित्यकारों की किताबें पढ़ डाली थी। छायावादी कवि प्रसाद का आपकी आरंभिक रचनाओं पर प्रभाव है। नीरज और बच्चन से भी आप प्रभावित थे ।दक्षिण के हिंदीतर प्रदेश तमिलनाडु से सत्तर के दशक में नवगीत आंदोलन का झंडा आपने उठाया था।
उभरते लेखकों में अध्ययन की कमी देख आपके मन में पीड़ा होती है ।पढ़ना ही काफी नहीं है अपितु भाव, शब्दों बिंबों पर भी चिंतन करना चाहिए। चालीस वर्षों पहले लिखा गया अपना प्रसिद्ध गीत ‘जाने किसकी आंखों के सितारे झिलमिलाए’ सुनाकर आपने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अनुभूति के संस्थापक सदस्यों में से एक और अनुभूति के वर्तमान अध्यक्ष श्री रमेश जी सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं में आज भी सक्रिय हैं।नित नया अनुबंध ,जब याद तुम्हें मेरी आए, कहीं कुछ छूट गया है, मेरे गीत तुम्हारे साथी, तमिल की लोक कथाएं ,चिंगारी के अंश और खुली खिड़कियां आपकी कृतियां हैं।
‘गुलदस्ता’ आपकी कविताओं का संपादित संकलन है और साहित्य पथ का अनथक पथिक आपके जीवन एवं साहित्य पर प्रकाशित पुस्तक है।धर्मपत्नी श्रीमती प्रमिला देवी एक सफल गृहिणी हैं। सुनीता, विवेक, विनीता अशोक, कोमल आपकी संतान हैं। परदादा और परनाना रमेश जी अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं।
इस अवसर पर ‘संवेदना ‘विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में रचनाएं सुनाने वाले कवि थे ज्ञान जैन, गोविंद मूंदड़ा, सुधा त्रिवेदी,नीलम सारडा, मंजू रुस्तगी, नीलावती मेघानी , अरुणा मुनोथ, गौतम डी जैन और कुमारकांत ने अपनी रचनाएं सुनाई।