नीरजा जी! बेहद मार्मिक और बहुत त्रासद कहानी है।वक्त कब, कहाँ, किस तरह से पलटता है यह कोई समझ नहीं पाता , किंतु जिसके प्रति अपने मन में अपार श्रद्धा रहती है, जो अपने प्रेरणा स्रोत रहते हैं ,उनको इस हालत में देखकर वाकई बहुत तकलीफ होती है। निराला और मुक्तिबोध के लिए हम हमेशा ही बहुत दुखी रहे।
यह उनके लेखकीय कृत्य का स्वाभिमान था। वे जानते थे कि उन्हें ढूँढते हुए पुनः प्रयासरत कोई यहाँ आ सकता है। इसलिए भी दोबारा कभी वहाँ नहीं आए।
बेहद मार्मिक और संवेदनशील कहानी के लिए आपको बधाइयाँ।
नीरजा जी! बेहद मार्मिक और बहुत त्रासद कहानी है।वक्त कब, कहाँ, किस तरह से पलटता है यह कोई समझ नहीं पाता , किंतु जिसके प्रति अपने मन में अपार श्रद्धा रहती है, जो अपने प्रेरणा स्रोत रहते हैं ,उनको इस हालत में देखकर वाकई बहुत तकलीफ होती है। निराला और मुक्तिबोध के लिए हम हमेशा ही बहुत दुखी रहे।
यह उनके लेखकीय कृत्य का स्वाभिमान था। वे जानते थे कि उन्हें ढूँढते हुए पुनः प्रयासरत कोई यहाँ आ सकता है। इसलिए भी दोबारा कभी वहाँ नहीं आए।
बेहद मार्मिक और संवेदनशील कहानी के लिए आपको बधाइयाँ।