Tuesday, October 15, 2024
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डॉ देवेंद्र गुप्ता की कलम से – ख़ारिज होती मनुष्यता की पीड़ा व्यक्त करती कहानियाँ

पुस्तक : कहानी संग्रह ; बहनों का जलसा—   कथाकार : सूर्यबाला
समीक्षक
डॉ देवेंद्र गुप्ता
नयी कहानी से पहले तक जो कहानी लिखी जा रही थी हिंदी में उनका शिल्प, गठन, कहन, आरम्भ .विकास,अंत आम तौर पर लगभग प्रेमचंद जैसा ही था | सन 50 के बाद की जो नई  पीढ़ी आई  जिसमें लेखक त्रयी  राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश कमलेश्वर ने हिंदी कहानी के फोरमैट को चेंज किया | विषय वस्तु  में भी बदलाव आया | वस्तु विधान आदर्शवाद से यथार्थ  की ओर मुड गया | लेकिन देखने वाली बात यह है कि नयी कहानी के केंद्र में या फोकस में शहरी मध्यवर्ग ही रहा दूसरे वर्गों को इतना अधिमान नहीं दिया गया | हालाँकि ऐसा नहीं है की गाँव पर लिखा ही नहीं गया | उस दौर में मार्कंडेय, शिवप्रसाद सिंह, फणीश्वर नाथ रेणु थे परन्तु जब नई कहानी आन्दोलन की चर्चा होती है तो अधिकतर लेखक त्रयी के इलावा निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी आदि की चर्चा होती है | अमरकांत,शेखर जोशी ,मार्कंडेय फणीश्वर नाथ आदि की कहानियों की भी चर्चा रही  | कुछ लेखक निम्न वर्ग को भी अपनी कहानी की विषय वस्तु बनाते है और कमलेश्वर ने  उन्हें ‘सारिका’ पत्रिका के माध्यम से  समांतर हिंदी कहानी आन्दोलन का नाम दिया | और उस दौर में लिखी जाने वाले कहनी को आम आदमी की कहानी कहा गया | नई कहानी के बरक्स खड़ा किया गया  यह आन्दोलन वस्तुत लीडरशिप क्राइसिस के चलते खड़ा हुआ और जल्दी ही नयी कहानी और समान्तर कहानी आन्दोलन के बाद 70 में  एक और लेखक त्रयी बनी ; ज्ञानरंजन ,दूधनाथ सिंह और काशीनाथ सिंह की | तीनो मित्र थे और सतत लिखते हुए बेहतरीन कहानिया हिंदी साहित्य जगत को दी | कहानी ,सारिका ,धर्मयुग आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं ने कहानी आंदोलनों को खड़ा करने और हिंदी कहानी को प्रतिष्ठित करने में अमूल्य सहयोग दिया | 
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस सारी  पृष्ठभूमि में महिला कथाकारों की मौन या नगण्य भूमिका रही | नई कहानी से पहले और उसके बाद अनेक महिला कथाकारों ने 60 और 70 के दशकों में हिंदी कहानी को समृद्ध किया है | कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, उषा प्रियंवदा , कृष्णा अग्निहोत्री,सूर्यबाला, मृदुला गर्ग, मैत्रीय पुष्पा ,प्रभा खेतान, रमणिका गुप्ता की चर्चा इसलिए अधिक हुई कि उन्होंने “महिला लेखन की पारिवारिक सीमाएं तोड़ीं ,मध्य वर्गीय सीमित संसार को बड़ा किया अपितु स्त्री की अपनी जरूरतों, विवाहित जीवन में उसकी इयता को स्थापित किया तथा पारिवारिक संकोच के बन्धनों को तोडा –(डा सूरज पालीवाल ) | उस समय इस को बोल्ड लेखन कहा गया | परन्तु 1990 के बाद उदारीकरण के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था और आदमी की आर्थिकी पर ही प्रभाव नहीं पड़ा अपितु भारत जैसे पारम्परिक देश की  सामाजिक, पारिवारिक मान्यताओं, परिस्थितियों और मूल्यों में शीघ्रता से प्रभाव लक्षित किये गए और आज के डिजिटल युग में तो परिस्थितयां  आश्चर्यजनक रूप से परिघटित हो रही है | मृदुला गर्ग,मैत्रीय पुष्पा ,प्रभा खेतान, रमणिका गुप्ता ने स्त्री विमर्श  को राजेन्द्र यादव की निकलने वाली पत्रिका ‘हंस’ के माध्यम से खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई | ममता कालिया,चित्रा मुदगिल, राजी सेठ ,नमिता सिंह इसी दौर में लगातार कहानिया लिख रही थी और मधु कांकरिया, सारा राय, अलका सरावगी और महुआ माजी इत्यादि के कथा साहित्य में स्त्रियों से जुडी समस्याएं, मुद्दे तो हैं लेकिन स्त्री के देह के ‘रस रंजित’ वर्णन नहीं है | इस तरह हिंदी की कथा यात्रा आज  नई कहानी, समांतर कहानी, अकहानी ,पगतिशील, जनवादी कहानी आंदोलनों से गुजरते हुए और महिला विमर्श. दलित विमर्श और पर्यावरणीय  मुद्दों को लेकर जीवंत है |
कथाकार सूर्यबाला का हिंदी कथा लेखन में अवतरण 1970 के  प्रारम्भिक दशक दशक में हो गया था और सन 60 की नयी कहानी के दौर को अभी समाप्त हुए जुम्मा रोज ही हुए थे | जाहिर है सूर्यबाला ने भी नई कहानी को और उसके बाद के समय को  बहुत नजदीक से देखा, पढ़ा और परखा है | हिंदी के तमाम वादों, विवादों-आंदोलनों  और विमर्शों की वह साक्षी रही है | जब कहानी आंदोलनों ,विमर्श आदि की बात होती है तो कथाकार सूर्यबाला की चर्चा  नहीं होती, होती भी है तो कम होती है परन्तु उनकी समकालीन रही मन्नू भंडारी, मैत्रीय पुष्पा, ममता कालिया, चित्र मुदगल, राजी सेठ आदि की बातें ही होती है | संभवतः इस का सबसे बड़ा कारण यह भी रहा कि सूर्यबाला के लेखन में किसी विचारधारा के प्रति अंध श्रधा देखने को नहीं मिलती है | सूर्यबाला का पहली कहानी वर्ष 1972 में प्रकाशित हुई  थी और  पहला उपन्यास ‘मेरे संधिपत्र’ 1975 में बाज़ार में आया | सातवें आठवें दशक में उनकी कहानी ‘गौरा गुनवंती’ को मैंने ” सारिका” में , और कहानी  ‘न किन्नी न’ को ‘धर्मयुग’ में पढ़ा था  |ऐसी और अविस्मर्णीय कहानियाँ  नब्बे के दशक में धर्मयुग, सारिका के इलावा साप्ताहिक हिंदुस्तान, हंस, वागर्थ आदि में छपती रहीं | यह दशक इनके कथा लेखन का स्वर्णकाल कहा जा सकता है | सूर्यबाला  की अब तक 19 से भी ज़्यादा कृतियाँ, पाँच उपन्यास, दस कथा संग्रह, चार व्यंग्य संग्रह के अलावा डायरी व संस्मरण, प्रकाशित हो चुके हैं ।“मेरे संधिपत्र” उपन्यास के बाद “कौन देस को वासी :वेणु की डायरी” उपन्यास ने उन्हें  कथा जगत का स्टार घोषित कर दिया | बहरहाल, वर्ष 2023 में नए कहानी संग्रह”बहनों का जलसा’’ के आ जाने से एक बात तो तय हो गई कि उनके लेखन के नैरन्तर्य, सोंदर्य और सजगता ने यह सिद्ध किया है कि लेखक की रचना ही उसकी छवि को गढ़ती है और यह छवि निर्माण आकस्मिक नहीं होता अपितु धैर्य और  ईमानदार लेखन से बनती है | ‘बहनों का जलसा” ने सुधि पाठकों ,आलोचकों और शोधार्थियों  का ध्यान आकर्षित किया है |
‘बहनों का जलसा’ संग्रह की कहानियों में बदलते जीवन मूल्य, पीढ़ियों के  विरोधाभास और टकराहट,संबंधों का खोखलापन, स्त्री की पराधीनता, महानगरीय जीवन की त्रासद विडम्बनाओं का,संबंधों के खोखलेपन आदि को विषयवस्तु का आधार बनाया गया है | संग्रह की कहानियां यथा: वेणु का नया घर ,बच्चे कल मिलेंगे ,सूबेदारनी का पोता, पंचमी के चाँद की विजिट आदि  में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के जीवन व संस्‍कृति की एक एक बारीक बातों को यहां कथानक में जिस तरह पिरोया है वैसा सूक्ष्म चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है |. नब्‍बे के बाद देश के नव उदारीकरण एवं भू विश्‍वग्राम की अवधारणा, संचार साधनों की उपलब्‍धता और विकसित देशों की उदार अर्थव्‍यवस्‍था के चलते नए विश्‍वबाजार विकसित हो रहे थे. भूमंडलीकरण व पूंजीवादी व्यवस्थाओं के पनपने व सोवियत संघ के पतन के बाद यहां की युवा पीढ़ी में पूंजी के प्रति अगाध आकर्षण पैदा होना शुरु हुआ बाजारवाद के दौर की एक आहट भी सुन पड़ने लगी थी | भूमंडलीकरण के फलस्‍वरुप में विदेश में काम करने के अवसर उपलबध होने शुरु हुए | आज की भारतीय युवा पीढ़ी का एकमात्र  मकसद है कि वह पढ लिख कर अमेरिका जैसे देश में जाकर डालर कमाए वहां का नागरिक बने और शायद उनके सपनो की इस उड़ान में उनके मा बाप ने भी बेहताशा मेहनत की | | अमरीका की सिलीकोन वैली भारतीय टेक्‍नोक्रेट से भरती गयी| भारत की बेरोजगारी और , शिक्षित वर्ग  की उपेक्षा और रोजगार पैदा करने की संभावनाओं के लगातार क्षीण होते जाने से लोगों ने  कनाडा, आस्‍ट्रेलिया, योरोप और खाड़ी के देशों की और रूख किया और  काम के अवसर तलाशे | कथाकार के रुप में सूर्यबाला ने मुंबई से अमरीका की अनेक प्रवासी यात्राएं की है और प्रवासी भारतीयों पर अनुभव की प्रमाणिकता के आधार  पर यह  कहानियां लिखी है  | उपरोक्त कहानियों के पात्र वेणु, विभव, विकास. आकांक्षा यह वह  युवा पीढ़ी है जिनको  विदेशप्रियता के सम्‍मोहन ने अपनी जड़ो से दूर कर दिया है | यह विषयवस्तु ऐसी है जो लगता है कि हमारे जीवन के आस पास से चयनित की गयी है | इन कहानियों का परिवेश चरित्र ,परिस्थिति और घटनाओं का चित्रण बड़े प्रमाणिक और आश्वस्त तरीके से किया गया है | ‘वाचाल सन्नाटे’ में माँ अपने बेटे के घर जा रही है | वह महानगर में रहते है |लेकिन उनकी व्यस्त जिन्दगी में माँ को स्टेशन से लेने तक का समय नहीं |वह एक परिचित के साथ उनकी कार में जा रही है | कहानी का बस  इतना सा प्लाट है | जिसे बड़े मार्मिक शैली में  सूर्यबाला जी ने चित्रित करते हुए बताया कि सुविधासंपन्न घरों के बूढ़े माँ या बाप या दोनों की अब अगली पीढ़ी को कोई आवश्यकता नहीं रह गयी है | माँ का चरित्र स्वयं लेखिका ने ऐसा गढा है की वह भी प्रथम द्रष्टव्या आधुनिक बोध्हिक और विचारशील दीखता है | महानगरीय जीवन की त्रासद विडंबना से युक्त यह कहानी हमारे  पारिवारिक जीवन को कितना शोचनीय और दयनीय बना देते है इसका बड़ा उत्कृष्ट मनोवैज्ञानिक चित्रण इस कहानी में  हुआ है | ‘प्रतिद्वंद्विनी’ और ‘विजयिनी’ जैसी कहानियाँ में सूर्यबाला स्त्री पात्रों के अंतर्मन को कुरेदती है | परंपरा –आधुनिकता ,.अकेलापन  सम्प्न्नता,अव्यवस्था-बिखराव, स्वार्थपरता जैसे अंतर्भावों का बड़ी बारीकी और गहराई से वर्णन किया गया है | विजयिनी कहनी की सत्या बड़ी बहू  आज भी उन पारिवारिक  परम्पराओं का बोझ उठा  रही है जबकि नई बहू सबसे  और विशेष कर सास से कहती है की उस को बेटी की तरह माने और रखे क्योकि बहू बुलाने से उस को घुटन होती है |लेकिन सत्या इतना लाज और लिहाज करती है की बड़ों के सामने बैठक में आइसक्रीम तक सबके सामने नहीं खा पति है |आज तक उसने कभी सब के सामने बैठ कर इस तरह कुछ खाया ही नहीं था |ऐसा नहीं की वह अपने मन में उसके साथ हो रहे भेद भाव और उपेक्षा की पहचान ओए समझ नहीं रखती थी |इसलिए वह हिलाक कर रो पड़ती है |
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘बहनों का जलसा’ एक छोटी सी  रेल यात्रा  और बिछोह भरी मर्म कथा है | इन ‘कहानियों की कुछ बातें’ शीर्षक लेख में सूर्यबाला ने इस कहानी और अन्य कहानियों के बारे में अपनी  रचना प्रक्रिया के बारे में उदगार व्यक्त किये है |वह बताती है की शुरू में इस कहानी का शीर्षक अनार रखा था |क्योंकि हम में से एक बहन अपने बगीचे से अनार लेकर आई थी और हम सब ने उसका खूब मजाक बनाया था |इस कहानी में  बहनो की रेल यात्रा में हो रही जीजी, मंझली संझली और छोटी के पारस्परिक  बालपन की स्मृतियों  और उम्र की परवाह किये बगैर सारी  पारिवारिक झंझटों  से मुक्त व्यवहार में अपने आपको भूल जाने की कवायद और बारी बारी स्टशन पर उतरने और बिछुड़ने के दृश्य पाठकों को भूले नहीं भूलते |जीजी के जीवन से सम्बंधित एक दृष्टान्त आता है जब राव उमराव सिंह के कहने पर की ‘हमारे यहाँ तो बीटा होने पर वारिस का ऐलान करने के लिए बंदूक दगती है ‘ तो राय साहब फोरन ईंट का जवाब पत्र से देते हैं कि ‘हमारे यहाँ तो बीटा न होने पर भी बंदूक दगती है |…और भरी मजलिस में सदी का लोमहर्षक ठहाका लगा था |”सचमुच स्तब्ध कर जाता है |एक और प्रसंग है जिसमें सबसे छोटी बता है की कैसे एक जॉय ट्रिप में वह अपने पति और बच्चों को पूरी आलू के रोल बना कर खिलाती जाती है और उसके लिए खाने को  कुछ नहीं बचता  और पति बच्चों को इस का ध्यान तक नहीं  इस से भी ज्यदा मार्मिक है बड़ी को छोटी को इस कद्र समझाना कि ‘आगे से तू और ज्यादा पुरिया बना कर ले जाना बेटा’ यह कहानी संवेदना की तीव्रता को असरदार कहन से  अनुभूत कराती है | ‘सिर्फ एक गुजारिश है सर’ ! यह सर पिता मान सिंह है ,बेटा सोमित्र और मल्लिका मौम है |बेटा पिता के साथ वक्त गुजरना चाहता है गुहार लगता है |पात्र शैली में लिखी यह कहानी पिता पुत्र और नई मा जिसे वह मल्लिका मौम के नाम से पुकारता है के नंतर जटिल सम्न्धो और सोमित्र के अंतर्मन में उठते प्रश्नों से पाठको को भाव विह्वल कर देती है |इन तीनो के भीतर  के ‘गोपनीय०र अंदरूनी प्रकोष्ठों’ के द्वार एक दुसरे के लिए नहीं खुलते |सोमित्र के लिएचाहिए की उसको मल्लिका माँ सर मान सिंह की पहली पत्नी के रूप में स्वीकार करे,और वो भी ईमानदारी और शिष्टता सम्मान के साथ उनको अपने पिता की दूसरी पत्नी स्वीकार कर ले |मल्लिका माँ बनाने की भरपाई न करे | सोमित्र का चरित्र नयी पीढ़ी के उन पत्रों जैसा नहीं जो ऐसी स्थितियों में या तो विद्रोह कर बैठते है या फिर घर पर हर समय विचलित कर देने वाली स्थितियां बनाये रख कर जीना दुश्वार कर देते है | सोमित्र अपने मनोद्गारों में उलझा बेचैन अवश्य है पर संकेत देता है की इस बार यदि वह एक हफ्ते जल्दी जा रहा है ति अगली ब्रेक में वह उतनी जल्दी आ कर समय बिताएगा |स्थितियों को समझने परखने सुलझाने की यह चाह  आशान्वित करती है |
‘’बहनों का जलसा’’ कहानी संग्रह में जिस प्रकार की कथा भाषा का प्रयोग सूर्यबाला करती है वह महत्वपूर्ण है | पात्रों की मनोस्थितियाँ ,घटनाओं के सूक्ष्म विवरण, देश- विदेश का परिवेश दुखद विसंगतियों, विडम्बनाओं, अंत:संघर्षों को सहज लयात्मकता के साथ अभिव्यक्त किया गया है | सूर्यबाला का मानना है कि ,”लय पद्य की ही नहीं गद्य की भी होती है | जहाँ लय  टूटी, कलम अटकी !” कह सकते हैं कि स्थानीयता के या क्षेत्रीयता के भाषागत गुणों से भरपूर इन कहानियों में मध्यमवर्गीय विभिन्न आयामों को विवरणात्मक शैली में अभिव्यक्त करने की शक्ति व् सोंदर्य है | इस दृष्टि से  हिंदी की भाषिक संरचना को विकसित करने में सूर्यबाला की भूमिका महत्वपूर्ण रही है |


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1 टिप्पणी

  1. सूर्यबालाजी के कहानी संग्रह “बहनों का जलसा” की अच्छी समीक्षा की आपने देवेन्द्र जी!
    लेकिन उससे पहले जो आपने कहानी की यात्रा समझाई वह भी काबिले तारीफ है।
    बधाइयाँ आपको।

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