आदमी के आँखों का सूखता पानी और बहते आंसू की जिम्मेदारी भी बदलते दौर की कहानी हो चली है | रिश्ते ख़त्म होने की चली बयार में विश्वास,अपनापन, प्यार, लगाव के पत्ते पतझड़ के मानिंद सूखे हो गिर चुके हैं और बचा है केवल तना हुआ रिश्ते का नंगा दरख़्त जिसके नीचे संवेदनाये दम तोड़ती नजर आ रही हैं और हम बचे हुए रिश्तों के कंकाल को ढोते हए विकास की तरफ बढ़ रहे हैं | हम उस पगडंडी को छोड़कर तेज़ रफ़्तार जिन्दगी जीने के लिए सीमेंट कि दौड़ती सड़क की ओर मुड़ गए जिस पर केवल रिश्तों की लाशों के ढेर पड़े हैं | इंसान रोबोट बनते जा रहें है और रोबोट इंसान | इस दौर में रिश्ते जीना तो चाहते हैं पर निभाना नहीं | रिश्तों का दर्द उठाना नही चाहते हैं | आनेवाली पीढ़ी रिश्तों को एन्जॉय तो करना चाहती है पर पैनिक नहीं | वो उस फिल्म के रोबोट की तरह नहीं बनना चाहती जिसमे रिश्तों के कारण रोबोट की आँखों में आंसू आ गये हो |रिश्ते कब विकसित होंगे ? जब रिश्ते नहीं होंगे तो ख़ुशी भी मर जायेगी | रिश्ते इबारती प्रश्न के उत्तरों की तरह है, पर हम जुटे हैं उन्हें बहुविकल्पीय बनाने में, केवल जीवन की उत्तरपुस्तिका में काले गोले भरने और मिटाने जैसे | 
रिश्तों के विकास को देखते देखते हम कहाँ आ गए | प्यार से उपजे रिश्ते को लिव-इन-रिलेशन में बदलते देखा | इसमें प्यार भी और संवेदनाये भी पर जिम्मेदारियों से टकराव था | अब नए दौर के रिश्तों को नयी परिभाषा मिल रही है जिसमे न लिव है न रिलेशन है न जिम्मेदारी का टकराव , फीलिंग्स का डेड एंड | केवल मौजा….ही…मौजा ……..!
जाने कब, सुबह हो गई, पता ही नहीं चला, तकिए में घुसे सर को निकालकर देखा सूरज उग आया था, मोटे मोटे पर्दों के बीच से सूरज की किरणें सोने सी लकीर बन सामने रखें कांच के बतख के जोड़े पर पड़रहीथी | वह बतख का जोड़ा उस सूर्य की किरणों में हजारों आफताब सा दमक रहा था| कांच के उस बर्तन में लाल भरे हुए पानी में जब पर्दा हिलता और चुपके से उस पर लवेंपसर जातीं तो उस जोड़े की खूबसूरती में प्यार का रंग घुल जाता| उसकी झिलमिलाहट से उसकी आंखें चौंधिया जाती| आंख फिर से बंद कर ली, “शिट……!”, इतनी देर हो गई मुझे किसी ने जगाया भी नहीं, वरना रोज सुबह तो सातबजने के पहले ही मम्मी दरवाजा तोड़ने लगती, पर आज क्या हुआ मम्मी का गुंजार कमरे में गूंजा नहीं और फिर से आंखों में नींद छाने लगी | नींद की ढलान पर फिसलती हुई चौक गई, अरे आज तो मेरी कवि के साथ शाम को डेट है और कितने सारे काम बाकी है| पार्लर जाना, ड्रेस सेलेक्ट करनी, वगैरह वगैरह ढेरो काम है | शाम सातबजे तक उसे सारे काम पूरे करने हैं| एक बारगी ही उठ बैठी| चादर उतार फेंकी| सिर भन्ना रहा था, आंखें नींद से भारी, आखिर इतने दिनों की नींद एक रात में पूरी थोड़ी होगी| कई रातों से ठीक से सोई भी नहीं थी| जबसे बंगलौर से वापस आयी| तब से कोई न कोई रिलेटिव मिलने आ रहे थे| घर में इतनी हाच-पाच थी कि वह दिन में भी ठीक से सोनपाती थी | इन कुछमहीनों में लाइफ में इतना कुछ एक साथ हो गया कि उसे कुछ सोचने समझने का वक्त भी ना मिला|  खैर… उसे वक्त की शायद जरूरत भी न थी| उसे इस रिश्ते से कोई एतराज भी ना था| उसके आने की खुशी में पापा ने अपने दोस्तों को पार्टी दी| उसी पार्टी में शर्मा अंकल ने उसे देखा और अपने बेटे के लिए प्रपोजल दिया| पापा मम्मी ने फौरन हाँ कर दी और इंकार करने की कोई वजह भी न थी| शर्मा अंकल शहर के जाने-माने कारोबारी थे, पैसे की अफरात थी, बड़ी सी कोठी, नौकर-चाकर, गाड़ी एशो आराम  सब कुछ था इस रिश्ते में | प्यारा सा छोटा परिवार था, दो बेटे, बड़ा बेटा कवि सॉफ्टवेयर इंजीनियर था | छोटा बेटा आरव अभी पढ़ाई कर रहा था| पत्नी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थी| पापा कीरजामंदी होते ही, दूसरे दिन वह अपनी पत्नी के साथ आए जिससे कि बाकी की बातचीत भी हो जाए| अंकल का मानना था कि जाने समझे घर से लड़की आए तो अच्छा रहेगा, वरना आजकल तो लड़कियां भी कितनी बिगड़ी हुई होती है| पैरेंट से एडजस्ट करना तो दूर पति से भी एडजस्ट नहीं कर पाती है| मेरा बेटा विदेश में पढ़ा लिखा है|अच्छी नौकरी कर रहा है| चाहे तो अपनी पसंद की शादी कर सकता है| पर उसने यह जिम्मेदारी अपने मां-बाप को सौंप दी | अब हमारी भी जिम्मेदारी है हम उसे संस्कारी पत्नी दें | संस्कारी……. यह शब्द कानों में पड़ते ही काव्या के अंदर कुछ दरक सा गया | खैर… तय हुआ कि दोनों बच्चे आपस में मिल ले| फिर उनकी रजामंदी के साथ ही इस रिश्ते को आयाम दिया जाएगा|
दो दिन पहले ही कवि और काव्या की फोन पर बात हुई| दोनों ने आपस में मिलने का समय तय किया| वह भी कोई डिसीजन लेने से पहले उससे मिलना चाहती थी| बहुत एक्साइटेड थी| नींद को झटक कर उठ गई और टावल लेकर बाथरूम में घुस गई| सारे दिन व्यस्त रहने के बाद शाम को सातबजे कवि से मिलने पहुंच गई|बेहद भीड़ भाड़ वाला इलाका था | चारों तरफ गाड़ियों की चिल्ल-पों हो रही थी| कितनी अनरोमांटिक सी जगह थी| समय पर वह तो पहुंच गई पर जनाब किसी पुरानी फिल्म के हीरो की तरह अपनी हीरोइन को इंतजार करा रहे थे| वह इधर उधर निहारती रही, सुबह की सारी तैयारी वेस्ट हो रही थी|इस उमस और गर्मी से उसका बुरा हाल हो रहा था | सारे दिन की तपती धूप से शाम को भी काफी तपन महसूस हो रही थी | आस पास कोई ढंग का रेस्टोरेंट भी ना था|खीजती, क्या ना करती, पैर पटकते पास लगे बरगद के पेड़ की मुंडेर पर बैठकर मोबाइल देखने लगी | एक बार ख्याल आया, फोन करूं क्या? फिर सोचा जिसको इतना मैनर्स नहीं कि लेट हो रहा है तो कम से कम एक फोन ही कर देता| मन ही मन गुस्सा आ रहा था और दुःख भी हो रहा था | कोई भला ऐसा करता है, यह बातें दिमाग में चल ही रही थी कि तभी सामने से सुंदर सा स्मार्ट नौजवान फोन पर बात करते चला रहा था| ध्यान खींच लेने वाला आकर्षक युवक था|काव्या कि आंखें बस उसे ही देखती रह गई | सारे सवाल नदी की तरह बहती तपती गर्मी में बह गए| थोक  में खिले चमेली के सुंदर फूल की तरह हरे हरे पत्तों के बीच मन खिल उठा | उसकी आंखें बसस उसी पर अटक गई| पल भर में उसके साथ जिंदगी गुजारने का ख्याल भी आ गया| तभी वो युवक पास आया और बड़ी अदा से बोला,
“ काव्या ..?” मुस्कुराती आंखों से बोला
“सॉरी मुझे थोड़ा लेट हो गया वह हमारे शहर का ट्रैफिक भी ना..|”
 फोन पर तो रोज ही बातें होती थी पर फेस टू फेस आज पहली बार मिले हैं| उसने बेझिझक आशिके-सादिक की तरह काव्या का हाथ पकड़ा, उसका लम्स उसे नया एहसास दे गया और पास खड़ी गाड़ी की ओर चल दिया| उसके हाथ पकड़ते ही उसे लगा ठंडी ठंडी पुरवाई चलने लगी हो ,मन मयूरी बन नाचने को हो आया, एक सिरहन सी पूरी बदन में दौड़ गई| थोड़ी ही देर में वह यूनिवर्सिटी के अहाते में थे| चारों तरफ वीरानी सी छाई हुई थी| आसपास बनी पुरानी इमारतें अपने ऐतिहासिक होने का परिचय दे रही थी| चारों तरफ गुलमोहर के पेड़ लगे हुए थे, जिनके फूल झर झर के लाल कालीन समान बिछ गए थे| अहाते का दायां हिस्सा गुलमोहर के फूलों से सिंदूरी सी आभा बिखेर रहा था| उसने वहीं पास पड़ी सीमेंट की बेंच पर काव्या को प्यार से बैठाया उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था| उसे अपनी दोस्त की पहली डेट की बतायी बातें याद आ रही थी| कैसे उसके बॉयफ्रेंड ने उसे किस किया, फिर अपनी बाहों में भर लिया, सोच के मन में गुदगुदी सी हो रही थी, उसकी डेट तो वाओ….!! कितनी रोमांटिक जगह है ये और वह पता नहीं क्या-क्या सोच बैठी थी अपने फियान्सी के बारे में| तभी दिलों की धड़कनों को रोकते हुए कवि बोला,
“तुम भी सोच रही होगी इतने सारे सुंदर रेस्टोरेंट को छोड़कर मैं तुम्हें यहां पुरानी जर्जर हो रही इस इमारत में ले आया ?”
सुनसान इसलिए है कि यहां इस समय वेकेशन चल रही है | यह मेरी यूनिवर्सिटी है |जब मैं यहां पढ़ता था तो लगभग मेरे हर फ्रेंड की गर्लफ्रेंड थी पर मैंने कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनाई| ऐसा नहीं था कि मेरे कोई दोस्त नहीं थे लेकिन जिसे खास दोस्त कह सकूं ऐसा कोई नहीं बन सका था | सब मेरा मजाक उड़ाते थे कैसा बोरिंग लड़का है | खैर .. छोड़ो… मुझे ये दिल फेंक नेचर नहीं पसंद था| आज इससे दोस्ती, कल ब्रेकअप, दूसरे से दोस्ती की फिर ब्रेकअप| मेरा यह मानना था ऐसी लड़की अच्छी-अच्छी गर्ल फ्रेंड तो बन सकती हैं पर बीवी नहीं| जो एक संस्कारी परिवार से होगी जिसमें मां बाप के दिए संस्कार होंगे वह लड़की मेरी पत्नी बनेगी और गर्लफ्रेंड भी | आज मैं तुम्हें लेकर इस जगह इसलिए आया हूं क्योंकि मैंने सालों पहले सोच लिया था मेरी पहली डेट यहीं होगी| सबके मन में प्यार करने के लिए पहले से तय एक मूरत होती है| जिसकी तलाश में लोग हमेशा लगे रहते हैं| जब ऐसा कोई मिल जाता है तो तलाश वहीं पूरी हो जाती है| मेरा मानना है दोस्ती प्रेम से अलग नहीं होती है लेकिन जिस प्रेम की परिकल्पना दोस्ती से अधिक की होती है उसमें एक साथी दूसरे से प्यार की उन सारी फंतासियों को भी जीना चाहता है जिस पर बस उसका पूरा हक हो यानी कि एक्सक्लूसिव हक हो | मानता हूं काव्या, प्रेम की शक्ल में व्यक्ति अधिकार की मांग करता है, समाज भी प्रेम में इस तरह अधिकारों को सही ठहराता है यानि सम्पूर्ण प्रेम …| मुझे भी बस ऐसा ही प्रेम चाहिए, जब से तुमको देखा लगा मेरी मंजिल मिल गई|  मुझे ऐसे ही हमसफर की तलाश थी पर मुझे नहीं पता बतौर दोस्त तुम्हे मेरा साथ पसंद आया कि नहीं ? प्रेम रिश्तो की अहमियत को सहेजता है | लजाते हुए काव्या बोली,
“आपको देखते ही सारी जिंदगी साथ गुजारने का ख्याल आया | शायद यही प्यार है | आई एम सो लकी की आप………|”
कवि ने उठकर उसके ललाट को चूम लिया|  उस एक लम्हे में उसकी झोली में हजारों जुगनू एक साथ बिखर गए | रश्क हो आया उसे अपनी किस्मत पर | छुईमुई की तरह वह अपने प्यार की बाहों में सिमट गई | उसकी आंखें अमलान की तरह चमक गई| उसके इश्क में सिर्फ मोहब्बत भरी थी | जिन्सी की रंच मात्र जगह न थी | उसने उसके शानों पर सर रख टिका दिया| उसका इश्क तहजीब के दायरे में था|
हौले से उससे बोला,
“प्यार महसूस किया जाता है|”
 सर उठा कर वो भीमुस्कुरा दी|  इसके बाद कुछ पल और साथ बिताने के बाद वो वापस घर आ गए | घर से चार कदम पहले ही उसने काव्या को छोड़ दिया|
सब कुछ अच्छा था पर काव्य बेचैन थी क्यों?वह इतनी अतृप्त क्यों थी ?  कहीं दिल में बार बार कसक सी उठाती |
“ काव्या तुम मेरा पहला प्यार हो आज तक मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी|” 
शायद तभी…. रह-रहकर कवि के कहे ये शब्द उसके कानों में गूंजते| जैसे ही अंदर गई हंसी ठहाकों की आवाज ड्राइंग रूम से आ रही थी | आहट आते ही मां ने आवाज लगाई काव्या आ गई बेटा..? हाँ … मम्मी | काव्या ने थके मन से बोला | इधर तो आओ देखो कौन आया है | ड्राइंग रूम में जा कर देखा कवि के मम्मी पापा बैठे थे | उसके पहुंचते ही हंसते हुए बोले,
“कैसी रही आप की पहली डेट?”
वो चौक गई| एकाएक शरमा कर वहां से भाग गई| कमरे में आते ही गाना गुनगुनाने लगी| मन ही मन अपने होने वाले पति की तस्वीर को दिल की गहराइयों में उतारने लगी|क्या पुरुष भी इतने सुंदर हो सकते हैं ? उसके गाल शरमाकर लाल लाल टमाटर जैसे हो रहे थे| तभी दिमाग में विचार कौंधा क्या कवि ने अपने पापा मम्मी को डेट के बारे में बता दिया था? लेकिन वह तो अपनी पर्सनल लाइफ अपने पापा मम्मी से शेयर नहीं करती थी | प्यार भरे हरे,गुलाबी,नारंगी  सतरंगी बादलों में गोते लगाते वो अपने  सपनों में खो गयी|
 लगभग सब कुछ वैसा ही चल रहा था जैसा चलना चाहिए था| सगाई की तारीख भी तय हो गई थी | सगाई के पहले तक दोनों कई बार डेट कर चुके थे| धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे में समाते  चले जा रहे थे|  सगाई शहर के नामी होटल में होना तय हुई थी | सगाई वाले दिन काव्य और कवि दोनों ही बहुत सुंदर लग रहे थे|काव्या आने वाले पल से बेनियाज अपनी सगाई के पलों को समेट लेना चाहती थी | सगाई की रस्म के बाद कवि के पापा अपने मेहमानों से दोनों को मिला रहे थे|
एका-एक एक शख्स से मिलाते ही काव्य के होश उड़ गए|लहू आंखों में आ कर जम सा गया, ऐसा लगा आँखों का दरिया बहते बहते थम गया हो | वह बेहद घबरा गयी| लेकिन शीघ्र ही अपने जज्बातों पर काबू कर वहां से हट गई क्योंकि वह शख्स बार-बार यही कह रहा था शायद मैंने आपको पहले कहीं देखा है, आपसे पहले कहीं मिल चुका हूं | उसके लाख कोशिशों के बाद भी एक छोटा सा सुराग भी नहीं मिला| इस अभेद्य दीवार में जिससे कि वह कुछ कह पाता| इतने दिनों से बेचैन काव्या को अब समझ में आया | सब कुछ तो उसके पास था फिर कैसी बेचैनी सता रही थी| अब समझी सोचने लगी गलती नहीं थी, दबाव नहीं था, धोखा भी नहीं था, जबरदस्ती भी नहीं थी, एक्सीडेंट भी नहीं था , सिर्फ लम्हों के सुख ने उसे आज इस दोराहे पर खड़ा कर दिया था| बीता हुआ पल किताब के वरक की तरह फड़फड़ाने लगा और वो अपराधबोध से घिर गयी | 
कितने हसीन दिन थे जब बारहवीं पास करते ही उसे कस्बाई जिन्दगी से मुक्ति मिल गयी थी | कितने खुशनुमा होते थे दिन और रात | जब न कोई बंधन था न कोई रोक टोक, मन आजाद पंछी की तरह उन्मुक्त गगन में घूमता रहता | मम्मी के दिए हर संस्कारों के आदेश का पालन किया|  लेकिन बड़े शहर के कॉलेज लाइफ में मम्मी के संस्कारों वाली लड़की की जगह न थी| सब उसका मजाक उड़ाते थे उसे बहन जी टाइप कहते,यही वो समय जब वो अन्वी के नजदीक आई| कुछ ही समय में दोनों अच्छी दोस्त बन गई थी| थर्ड ईयर में दोनों की इंटर्नशिप एक साथ एक ही कंपनी में बेंगलुरु में लगी| दोनों वहां एक साथ ही पीजी में रहती थीं | और जिन्दगी के मजे उड़ाती| अब तक काव्या में अन्वी कि बुरी आदतों का असर दिखने लगा था|अक्सर ब्रेक के दौरान दोनों सामने टपरी में सिगरेट और चाय पीने चली जाती थी| हां इतनी मर्यादा कायम थी कि सबके सामने न पीतीं, सामने वाली गली के अंदर चली जाती, जहां लोगों का आना जाना न के बराबर ही था| उनके पहुंचते ही दुकान वाला मुस्कुराते हुए उन्हें सिगरेट थमा देता| सिगरेट लेकर अदा से बालों को पीछे झटकती हुई दोनों अपने अड्डे पर पहुंच जाती और सिगरेट पीते हुए धुएं के छल्ले उड़ाती| एक दिन दोनों कार्नर में खड़ी सिगरेट पी रही थी| तभी उसने देखा कि उनके साथ काम करने वाली स्पर्धा सुंदर सी शॉर्ट ड्रेस में बड़े से बंगले के गेट के सामने खड़ी थी| दुबली छरहरी काया में वह ड्रेस उस पर खूब फब रही थी, भले ही वह ड्रेस उसके ऊपरी अंगो को ढकने में नाकाम थी| दोनों ने दूर से ही हाई-फाई किया| काव्या बोली लगता है यह महरानी डेट पर जा रही हैं | अन्वी बोली लगता तो यही है | बात आई-गई हो गई|एक दिन फिर उन्होंने उसी जगह उसे एक अलग आदमी के साथ देखा तो उनसे न रहा गया | दोनों ने पूँछ ही लिया, स्पर्धा क्या तुम्हारा पहले वाले बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप हो गया? जो यह क्या नया……….?  बीच में स्पर्धा बोल पड़ी देखो यार मैं डेट पर यकीन नहीं करती यह प्यार मोहब्बत सब दिखावा है | डेट हमें सिर्फ खुशी या साथी नहीं देती, कभी कभी जिंदगी भर का गम भी देती है| शादी तो मैं मां-बाप की पसंद से ही करूंगी फिलहाल मैं तो हुक-अप पर जा रही हूं|
“हुक-अप…..!!!”  दोनों एक साथ तेज़ आवाज में बोलीं|  
“अब यह क्या है?”
 अभी तो मैं जल्दी में हूं कल तुम्हारे कमरे आती हूं फिर बात करती हूं| वह दोनों उसके आने का इंतजार करने लगी|मन में उत्सुकता सी जग आयी थी | संडे को सब एक साथ बैठ कर गैप कर रहीं थी तभी स्पर्धा ने लैपटॉप में पोर्न फिल्म लगा दी | काव्या ने झट से लैपटॉप बंद कर दिया | काव्या बोली यह क्या ?
यार, अब बनो मत, क्या तुम लोग अकेले में नहीं देखती होगी ? अब अगर हम साथ देख लेंगे, तो क्या गजब हो जाएगा| जानती हो तुम लोग, मैं तो खूब देखती हूँ| फिर हुक-अपपर जाती हूँ| 
“यार बिना कोई रिलेशन के..?”
“हाँ..हुक-अप का मतलब ही है, बिना किसी रिलेशन के वो सब कुछ ” स्पर्धा बोली 
हुक-अपबहुत आसान है| मोबाइल में एक ऐप डाउनलोड करो उसमे अपना स्टेटस डालो जिसके साथ मन करे जाओ रात गई बात गई ना वह तुम्हें याद रहेगा ना तुम उसे| बॉयफ्रेंड के नखरे से भी आजादी|
काव्या गुस्से में बोली,
“यह तो वैश्यागिरी है….”.
“न..न…न… तुम्हें क्या लगता है, मैं इसकी कीमत लेती हूं? नहीं इसमें पैसे का लेनदेन भी नहीं होता, यार यह तो बड़े शहरों में कामन है, बस लाइफ के मजे लो |” क्योंकि जब रिश्तो की बात आती है तो अलग अलग इच्छाएं होती हैं| हम कभी-कभी अकेला महसूस करते हैं और लंबे समय तक किसी के साथ झुकाओ महसूस करते हैं, साथ में घूमते हैं और डेट पर जाते हैं या रिश्ते में रहते हैं| तो उम्र और प्यार की बात जीवन में आती है| तब कई बार ऐसे पड़ाव आते हैं जब हम समझ नहीं पाते हैं क्या करना है| लेकिन हुक-अप में वचनबद्धता या कोई प्रतिबद्धता नहीं है | इस समय वह एक टीचर की तरह समझा रही थी |
 काव्य बोली,
“ओके यह ऐप डाउनलोड कर देख लूंगी|”
काव्य ने हुक-अपके बारे में तफसील से पढ़ा | लोग डेटिंग में एक रिलेशनशिप में रहते हैं,पर आज के युवा अपनी लाइफ में कोई बंधन नहीं चाहते| वह भावनात्मक रूप से भी आपस में जुड़ना नहीं चाहते| उनके लिए पहले अपना कैरियर है| यह वयस्क और किशोरों में तेजी से पनप रहा है जो कि आकस्मिक यौन संबंध बनाने में कोई गुरेज नहीं रखता एक रिश्ते में प्रतिबद्ध रहने के बजाय नए लोगों से मिलना और नई चीजों को आजमा कर जिस्मानी लज्ज़त परस्ती चाहता है |
 उस दिन से एक खास चेंज आया दोनों की लाइफ में, पोर्न देखना उनका शगल बन गया | स्पर्धा का रंग उन दोनों पर पूरी तरह उतरने लगा |
स्पर्धा के जाने के बाद दोनों आपस में उसके बारे में कितना कुछ अच्छा बुरा बोलने लगी| रात में दोनों बालकनी में बैठी कॉफी पी रहीं थीं | काव्या रेलिंग पर पैर फैलाये आसमान में टिमटिमाते तारों को निहारते हुए बोली,
“अन्वी रात का 12:00 बजा है, पर देखो कितनी चहल-पहल है हमारे शहर में तो 10:00 बजे तक सब सो जाते हैं |
“हम्म…” 
अन्वी अपने फ़ोन में बिजी थी | उसने लापरवाही से बोल दिया ठीक है|
क्या ठीक है? मैं तुमसे कुछ बोल रही हूं और एक तू है कि ढंग से जवाब तक नहीं दे रही है|”काव्या ने मुंह बनाते हुए बोला |
“काव्या …” अन्वी बोली |
“यार देखो तुझे नहीं लगता स्पर्धा जो कह रही थी उसमें बुराई क्या है ? आजकल हम सभी के बीच ये बहुत कॉमन है| यह न कोई क्राइम है, ना बुरा काम|”
“नहीं…. नहीं… नहीं… ,  मुझे तो इसमें बुराई ही बुराई दिखाई दे रही है |”
वह बातों को खत्म करने की गरज से जाने लगी | अन्वी ने हाथ पकड़ कर बैठा लिया | देख हमको जब भूख लगती तो हम खाना खाते हैं, खाना घर पर नहीं मिलता तो बाहर खाते हैं| बस सिंपल सा फंडा है,हम न किसी से अफेयर कर रहे हैं न डेट पर जा रहे हैं|मुझे तो इसमें कोई झमेला नजर नही आ रहा है | कभी सोचा तूने हमारी क्या लाइफ है? सुबह से शाम गधों की तरह काम करो, शाम को पढ़ाई करो | हमारे पास ज्यादा पैसे भी नहीं होते कि अच्छी जगह घूम सकें, मंहगे होटल में खाना खा सकें, बस साला..! घूम फिर के कोने में बनी संतरी चाचा के ढाबे में खाना या बहुत हुआ तो सड़क किनारे बने काफी हाउस में काफी पी ली, यही हमारी जिंदगी है|स्पर्धा भी हमारी जैसी फैमिली को बिलोंग करती है| कितना खुश है जो जिंदगी के मजे ले रही है,पर अन्वी ….वो… पर वर कुछ नही | यहां हमें कौन जानता है ? जब तक यहां है जिन्दगी के मजे लो, इसके बाद यहां से जाते ही फिर अपनी मम्मी-पापा की “अभिमान है बेटी बन जाएंगे”, धीरे से अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंख दबाकर अन्वीबोली|
“आगे क्या करना है, सोंचा है कुछ ?” काव्या बोली|
“देखो मैंने यह ऐप डाउनलोड करके अपना स्टेटस डाल दिया है| नंबर भी दूसरा है और नाम भी फेक है | अब तो तेरा भी अकाउंट बना देती हूं|”
“पर मेरा भी दूसरा वाला नम्बर ही रखना |”
“हाँ…..”
दोनों फोन में घुसकर कर किट-पिट करने लगीं | लेकिन अन्वी एक प्रॉब्लम है, हमारे पास तो स्पर्धा जैसे कपड़े नहीं है | तुझे नहीं लगता कि हुक-अप के लिए मॉडर्न कपड़े जरूरी है ? कल संडे है और साउथ-वे माल में सेल लगी है क्यूँ न हम शौपिंग कर लें |  हम तीन-चार ड्रेस लाते हैं, दोनों अदल बदल के पहनेंगे,बहुत मजा आएगा| मेरा मन वैसी ड्रेस पहनने को बहुत करता था,पर पापा के डर से कभी नहीं पहनी|
तभी अन्वी चिढ कर बोली,
“मजा तो आ गया बेबी यह देख कल रात अपना हुक-अप पक्का…!!!”
“सच…..”
“हां जानेमन जरा अपने पार्टनर की पिक तो देखना मस्त हो जाएगी|”
 काव्या कुछ खो गई| ए.. ब्लशिंग करना छोड़, फटाफट ड्रेस डिसाइड कर, ये हमारा पहला हुक-उप है जान …| दोनों तैयार होकर अपने पार्टनर के साथ उस रोशनी से चमचमाती पब में पहुंची| आंखें चकाचौंध हो रही थी| पर शायद उन्हें यह समझ में ना आ रहा था किरोशनी के भी अंधेरे होते हैं| यह सब एक फेंटेसी की दुनिया है| वह जिस शॉर्टकट से जिंदगी के मजे लेने जा रही थी नहीं समझ रही थी कि नदी अगर शॉर्टकट ले ले तो जलजला आ जाता है| आदमी की बनाई इस खूबसूरत दुनिया को पल भर में नष्ट कर देती है| जब कुदरत का कहर बरपता है तो सारीजदीद्तरीन धरी रह जाती है पर जब कोई जानबूझकर गलत रास्ता इख्तियार कर ले तो क्या किया जा सकता है | बिगड़ने का आलम यही तक नहीं था, अपनी झिझक दूर करने के लिए दोनों ने खूब शराब पी और फिर अपने को अंधेरे गर्त में गिरा दिया| उनकी आंखों में तो सावन के काले बादल छाए हुए थे| दोनों लड़कियों के पैरों में छोटे-छोटे हिरन कैद हो गए थे| वह एकदम भागना चाहती थी|शरम और लाज सब खत्म हो गई थी| यह वे कस्बाई लडकियाँ थीं जिन्हें कभी बात करने में लाज आती थी,इतनी कि गाल लाल हो जाते थे और ओंठ फड़फड़ाने लगते थे | गहरे  सन्नाटे में, खिडकियों के रास्ते सुनसान सड़क पर बह निकलता था उनका मुस्कुराना | आज उसी खिड़की के रास्ते सारी शर्मो-हया बह कर सड़कों पर निकल आई है|
खिडकियों से आती चहचाहट बता रही थी कि भोर हो गई है पर आंखें भारी हो रही थी| इनके इस मिलन में न सितार बजा ना फ़िज़ा में इतर फैला, फिर भी उसका दिल बेबाक धड़क रहा था और खून गर्म होकर तेजी से नसों में दौड़ रहा था|अपने इस मसनूई रिश्ते को समेट कर खड़ी हुई और चल दी | 
एकाएक उनकी रोशनी को जर्क लग गया | एक दिन पापा ने आकर उन्हें सरप्राइज़ कर दिया था, या यूं कहें शाक्ड कर दिया| पापा आधा घंटे में कमरे पर पहुंचने वाले थे | इसबीच उन्हें वापस संस्कारी लड़की का चोला पहनना था| लेयर में कटे बालों को तेल लगाकर पोनीटेल बनाई| अलमारी से ढूंढ कर अपने भारतीय संस्कृति के पहनावे को पहना | शराब सिगरेट वहां से हटा दिया | जब पापा आये तो उन्हें अपनी वही बेटी मिली जिसे वह हॉस्टल छोड़ कर गए थे| पापा ने बेटी से सारे हालचाल लिए | बेटी की तरक्की से बाप का सीना पचास से छप्पनइंच का हो गया | वह उसकी पढ़ाई और नौकरी से संतुष्ट थे |अपनी बेटी पर जमाने की हवा न लगी देख यह सोचकर गौरान्वित हो रहे थे| दो घंटे बाद ही उन्हें वापस जाना थाऔर काव्या को दो घंटे संस्कारी होने का नाटक जारी रखना था | जाने से पहले वाशरूम गए, तो वहां टंगे छोटे छोटे कपड़े देख कर उनका माथा ठनका | बिना कुछ कहे सर पर हाँथ फेरा और चले गए | कुछ दिनों में माँ का ख़त आया | माँ का ख़त देख कर काव्या चौंक गयी | माँ ने ख़त क्यों लिखा, माँ तो कभी ख़त न लिखती थी | 
“मेरी प्यारी बिटिया, 
मैं तुम्हे अकेला छोड़ते वक्त बेहद..!! डरी हुयी थी, पर तुम खुद को अकेला और कमजोर न समझो, इसलिए अपने डर को मैंने संभाले रखा, तुम्हारे पापा जब तुम्हारे पास से  आये और तुम्हारी बात की तो मेरा डर खुद-ब-खुद दूर हो गया | मैंने तुम्हें कभी किसी चीज के लिए नहीं रोका पर आज कुछ बातें हैं जो तुम्हे जानना जरूरी है| आज तुम अपने फैसले लेने में सक्षम हो| पर नए रास्ते में तुम्हे लोगों को पहचानना होगा| कई सारे नहीं पर एक दोस्त तुम्हें चुन कर बनाना होगा जो तुम्हारा मोतबर हो, और तुम्हें सही रास्ता दिखाएं|आँख बंद करके नहीं, आंख कान खोलकर तुम्हें चलना होगा| बेटा मैंने तुम्हें कभी कुछ पहनने को नहीं रोका क्योंकि तुम कुछ भी पहनो सुंदर लगती हो| अब तुम जो भी पहनो उसमें हमारी संस्कृति और सभ्यता की झलक धुंधली न हो, बाक़ी अपना ख्याल रखना,वक्त पर खाना सोना और अपने सपने पूरे करने में फोकस रखना …| ढेर सारा प्यार..”,
तुम्हारी माँ 
ख़त पढ़ते ही काव्य को अजीब सी राहत मिली | दर्द में लिपटी और उदासी में डूबी | वक्त ने करवट ली, काव्या में बदलाव आने लगा | अन्वी तो हुक-अप पर जाती रही , पर काव्या कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल देती | माँ के एक ख़त ने उसके दबे सपनो को ज़िंदा कर दिया | अब वो सारा फोकस अपनी पढ़ाई में लगाने लगी |
तभी फोन पर मैसेज की बीप आयी और वो विचारों के अंधकूप से रोशनी की विरासत लिए वापस आगयी |
काव्या ने खिड़की का पर्दा हटा कर देखा सुबह हो गई थी| दिसंबर की खुशनुमा सुबहउसे जून की जलती दोपहर सी महसूस हुई|उसने झट पर्दा वापस खींच लिया | एक नजर दौड़ाकर कमरे को देखा | कमरे में बीती रात अबतक जिंदा थी| अब उसे अपने अधूरे- पन का एहसास हो रहा था| क्यों वो इतना परेशान थी | क्यों ना हो, उसने संस्कारी होने का मुलम्मा जो अपने ऊपर चढ़ा रखा था, शायद माँ के संस्कार किसी कोने में अब भी दबे पड़े थे, जिन्हें जरा सा पानी मिलते ही फिर से कल्ले फूट गए थे| शायद तभी वो झूठ के सहारे अपनी नई जिंदगी शुरु नही करना चाह रही थी|
कवि एक बहुत ही अच्छा लड़का था उसमें नए जमाने का असर रंच मात्र भी न था | कोई भी लड़की उसकी पत्नी बनने पर गर्व महसूस करती| शायद यही वजह थी वह उसे सब बताना चाह रही थी, पर उसे खोने के डर से बताने का साहस भी न कर पा रही थी| आईने के सामने खड़े होकर अपने से बात करते हुए बोली क्या बताऊं कि कल जिस शख्स से तुमने मुझे मिलाया उसके साथ मैं “हुक-अप” पर जा चुकी हूँ | यह सुनकर क्या कवि मुझे गले लगा लेगा ?सच बोलने पर मेरी तारीफ करेगा..?  नहीं… नहीं.. ऐसा कुछ नहीं होगा|  एक झटके में सारे रिश्ते खत्म हो जाएंगे| माँ पापा तो शायद जानकर आत्महत्या ही कर लेंगे| कितना विश्वास है उन्हें अपनी लाडली पर, कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करें?
तभी मम्मी घबराती हुयी उसके कमरे में आतीं हैं|
“काव्या…काव्या… देख तेरा फोन है| हे भगवान यह अन्वी ने क्या कर लिया ?”
“क्या कर लिया माँ ?” बड़ी बेतकुल्लफी से बोली | 
क्यूँ सारा घर पर सर पर उठा रखा है मम्मी| ऐसा क्या हो गया? तुम तो ऐसे रियेक्ट कर रही हो जैसे अन्वी मर गयी हो ? मां ने उसे सीने से चिपका लिया और बोली काव्या, अन्वी ने आत्महत्या कर ली, काव्या एकदम खो गई| वह नहीं समझ पा रही थी क्या कहें| उसे दुख भी हो रहा था | वह आंख मूंदकर अन्वी को अपने ज़ेहन में भरने लगी|
माँ बोली,
“उसकी मां का कहना है कि अभी छ: महीने पहले तो उसकी शादी की थी | सब कुछ अच्छा था, भरा पूरा परिवार था, प्यार करने वाला पति था | समझ नही पा रही हूँ कि ऐसा क्या हो गया जो अन्वी ने ये कदम उठाया |”
उसको बेचैनी सी होने लगी| उठ कर मां के पास आ गई| दूसरे दिन अन्वी की अंतिम यात्रा में सब शामिल हुए| काव्या देख रही थी सब कैसे उसे बॉडी-बॉडी कह रहे थे| कोई उसका नाम भी नहीं ले रहा था| जिस गिल्ट से उसने शायदयह कदम उठाया होगा, उसके बारे में कोई जानता भी नही यहाँ| सब उसे महज एक महत्त्वाकांक्षी समझ रहे हैं| खैर… उसकी महानता किसी को समझ ना आई| उसके मां-बाप का बिलखना देख उसने एक फैसला लिया और घर वापस आ गई| वह इतने गहरे में उतर गई थी निर्णायक हो उठी| शाम को मां के साथ मार्केट गई शॉपिंग की खूब मस्ती की | माँ भी हैरान थी,ये काव्या को क्या हो गया है| बहरहाल खुश भी थीं कि इतने दिनों से उसका उजड़ा चेहरा उन्हें कचोट रहा था|
शादी की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई | कवि ने शादी से पहले बैचलर पार्टी रखी| उसमें अपने सारे दोस्तों के साथ काव्या को भी इनवाइट किया| पार्टी में काव्याएक बार फिर उसी शख्स को देखकर असहज हो गई जिसका नाम सुगम था, पर राहत थी | सुगम भी ऐसा बर्ताव कर रहा था जैसे उसे पहचानता ना हो|काव्या कई बार कवि के दोस्तों से मिल चुकी थी, इसलिए वह सब उसके लिए अनजान नही थे | पार्टी में कवि-काव्या ने वाइन कलर की मैचिंग ड्रेस पहनी थी|वाइन कलर कि गाउन में परी लग रही थी|कवि भी बहुत ही स्मार्ट लग रहा था|कवि को देखकर काव्या को अपने भाग्य पर गर्व हो रहा था|सभी दोस्त उनके जोड़ी की तारीफ कर रहे थे, पर सुगम चुपचाप अनजान सा बैठा था|
कवि बोला,
“यार तुझे मेरी काव्या कैसी लगी?”
“बहुत सुंदर……!!!”  सपाट सा उत्तर देकर चला गया | 
काव्या बेहद परेशान थी|वो गुम थी जिंदगी के जाल में, चाहतों के आसमान पर अनहोनी के बादल अचानक उमड़ आए थे| वक्त की बिसात पर तकदीर का घोड़ा अपना ढाई घर वाली खतरनाक चाल कभी भी चल सकता था| आज तो मजबूरी की सारी हदें गुजर जाने वाली थी| मायूसी के गमनाक तीरगी से घबड़ाकर जुदाई के दर्द के साथ पसीने से लिजलिजे हुए कांपते हांथो से उसने कवि का हाथ कस कर पकड़ लिया| कवि ने पसीने से सराबोर हाथ पकड़ा तो भांप गया कि काव्या बेचैन है| उसे लगा वह शर्मीली लड़की है शायद काव्या उसके दोस्तों के साथ अन-इजी फील कर रही होगी| उसने काव्या को ऐसे बाहों में भर लिया कि लगा उसे अपने अंदर उतार लेना चाहता हो| 
“काव्या क्या बात है?”
“कुछ नहीं |”
 “कुछ तो है, एक खूबसूरत चेहरा न जाने मुझे क्यों उदास दिखाई दे रहा है, चेहरे पर शबनम की जगह मरुस्थल सा बंजार नजर आ रहा है|इन खूबसूरत आंखों में दर्द भरे सवाल नजर आ रहे हैं, अनगिनत सवाल पूछना चाहता है तुम्हारा चेहरा |”
“अच्छा ..! इतना बोलता है मेरा चेहरा ?” और चुप्पी का शमियाना सा तन गया |
तभी दोस्त दोनों को डीजे की धुन पर डांस करने को पकड़कर ले गए|  पार्टी में दोनों इतना थक गए| फिर दो दिन तक मुलाकात भी ना हुई| मम्मी का आदेश था शादी नजदीक है अब तुम लोग सिर्फ शादी में मिलोगे|काव्या का मन करता, मन में उठे सवालों के सैलाब कवि के सामने उड़ेल दे और खाली हो जाए पर उसे खोने से डरती थी | वह इतना तो समझ चुकी थी कि सच्चाई जानने के बाद कवि उससे नफरत करने लगेगा| वह हमेशा के लिए सिर्फ उसे खोन देगी, तोड़ भी देगी| जवानी के जोश में एक बार की गलती भी इतनी बड़ी सजा…!! सब कुछ खत्म हो जाएगा | जब कभी काव्या मां के साथ कवि के घर जाती तो कवि ऐसे बैठे मिलता जैसे वह उसके हिस्से का वक्त सहेज रहा हो | एकाएक कभी-कभी अपराधबोध महसूस होता| पता नहीं उसे देख मन की कौन सी कड़ी कहां जाकर जुड़ती कि  उलझने सुलझती सी लगती और कभी कभी उदासी उसके सारे वजूद मैं फ़ैल जाती, भीतर-भीतर कसमसाती खुद से रिहाई भी चाहती| मुझे नहीं पता तुम इसे कैसे समझोगे, पर अब मैं तुम्हें कुछ नहीं समझाना चाहती|
वक्त धीरे-धीरे करके करवट ले रहा था शादी के एक-एक फंक्शन होते जा रहे थे| जिसका डर था वही हो गया | कल शादी थी और आज कविउसी शख्स( सुगम) के साथ, काव्या के सामनेखड़ा था|वो एक बार फिर अपने को खाज़िल महसूस कर रही थी| खुद से डरना कितना भयानक होता है|ये शायद कवि कभी नहीं जान पायेगा और कितनी यंत्रणा होती है जब आप का डरसही सिद्ध होने जा रहा हो |काव्या मैं तुमसे मिलने आ रहा था रास्ते में सुगम मिल गया| मैं इसे भी अपने साथ ले आया | काव्या एकटक कवि को देख रही थी| 
“सब कुछ खत्म हो गया…..|”
डर से सारा शरीर कांप रहा था | महसूस हो रहा था किखून का एक कतरा भी न बचा हो | मन की प्रतिक्रया के बादरह रह कर प्रतिक्रियाओं का सैलाब घुमड़ रहा था | उसे पीड़ा भी हुई और अंत में खुद को आहत भी महसूस किया| आंखों में हजारों उठती ख्वाहिशों के साथ उसको निहारा| मन कवि की बाहों में जाने को तड़प उठा, आज दूर जाने से पहले वह उसे अपने अंदर समा लेना चाहती थी|  वह उसका पहला और आखरी प्यार जो था|
कुछ कहने को ओंठहिले ही थे कवि बोला,
“ सुगम बता रहा था कि तुम इसे अपना मुंह बोला भाई मानती थी, वैसे इसने  बताया कि तुम अन्वी के साथ एक आध बार ही मिली हो|”
तभी उसकी नजर पास रखे शादी के जोड़े पर गई|वाह..! कितना सुंदर लहंगा है| तुम पर खूब फबेगा | क्यों आंटी…?  आंटी ने प्यार से चपत लगाकर बोला बदमाश| वह आपस में बतियाने लगे|
मौका देख काव्या ने सुगम से हौले से बोला,
“तुमने झूठ क्यों बोला ? यह गलत है | हम कभी किसी ऐसे रिश्ते में नहीं बंधे| मैं इस अपराधबोध के साथ नहीं रह सकती, मैं भी खुश रहना चाहती हूं, पर झूठ के सहारे नहीं |”
काव्या जिंदगी तेज गति का प्रवाह है| कोई चाह कर भी उसमें नहीं ठहर सकता | हम ना चाहे तब भी, यह हमें बहाकर ले जाएगा, कहीं ना कहीं उसकी सिम्त होगी| मेरी नियति में यह शहर तो क्या देश भी नहीं है| हो सकता है हम आगे फिर मिल जाए, पर तब हम एक रिश्ते में बंधे होंगे| इससे पहले कि मुलाकात में हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं था न कोई भावनात्मक जुड़ाव था, लेकिन आज हमारे बीच एक रिश्ता कायम हुआ है| यह खूबसूरत झूठ है | वह झूठ सच से कई गुना बेहतर होता है जो जिंदगी को आगे बढ़ाने का रास्ता दिखाएं न कि ऐसा सच जो कई जिन्दिगियाँ को एक साथ तबाह कर दे|
काव्या बोली,
“तुम झूठे हो, तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन दुनिया का सबसे खूबसूरत झूठ|”
“हाँ काव्या …हमने कोई ऐसा गुनाह नहीं किया जिसकी सजा सारी जिन्दगी मिलती रहे | मानता हूँ जो हुआ वो समय के नेपथ्य में चला गया | वो पल जिन्दगी के कोरे कागज़ पर पेंसिल से रचे थे, जिसे रबर से मिटा दिया, फिर वो पल कोरा कागज हो गए, फिर से नए रंग भरने का समय आ गया |” और वो बिना कवि से मिले वापस चला गया | 
“काव्या … ये सुगम क्यों चला गया ?”
“ उसे कुछ अपना जरूरी काम याद आ गया |” काव्या ने राहत की सांस ली |
माँ के पास से चुनरी उठाकर सर पर ओढ़ ली | उसकी इस अदा को कवि ने अपने मोबाइल पर कैद कर लिया | आज काव्या को बेहद सुकून था | रेगिस्तान के भियान में उगे शबनम के कण फिज़ा में फ़ैल गए थे | आज उसे ऐसे लग रहा था पहली दफ़ा अपनी मोहब्बत का चेहरा देख रही हो | वो जीने लगी इस ख्वाहिश के साथ कि हमेशा के लिए सब कुछ ठीक हो गया है | इन पलों का गवाह बना चांद आसमान में टंगा था और बाहर मंद मंद गति से बयार बह रही थी|बेचैनी मोहब्बत के पलों की हत्यारी है अब कोई बेचैनी ही न थी, न अपराध बोध | आज से नई जिंदगी जीने की पहल थी |
आज काव्या के जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन था | मंडप के नीचे अग्नि के सामने उनके रिश्तों को नया आयाम मिलना था | वह अग्नि के सामने जानकी की तरह तप कर अपनी नयी जिन्दगी की शुरुआत करने जा रही थी | शादी के मंडप पर बैठी काव्या हर फेरे पर पंडित जी के साथ हर वचन को दिल से निभाने की कसम ले रही थी | पंडित जी ने सात फेरे पूरे होने पर मंत्रो के जारी रखते हुए दोनों को बैठने को कहा |
“पंडित जी मैं आठवें फेरे के साथ आठवाँ वचन लेकर कवि को अपनी उस बीती जिन्दगी में भी शामिल करना चाहती हूँ जो पल मैंने बिना कवि के गुजारे हैं | हमारे बीच में कुछ भी न रह जाय ऐसा प्यार हो,बिना कुछ चाहे उसके साथ रह सकूं वो प्यार हो, हमारा प्यार ऐसा हो कि हम ठहर जाय, जहाँ समझ की जरूरत न हो , जहाँ सोंचने की जरूरत न हो और जहाँ कोशिशे न हो ऐसा प्यार हो ये है मेरा आठवाँ वचन |”
 ये कहते हुए कवि का हाँथ पकड़ अग्नि का आठवाँ फेरा लेने लगी, अग्नि में अक्षत अर्पित करते हुए मन ही मन दोहराने लगी  ………
“नो …. हुक-अप ..प्लीज ..!!!!”

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