विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में जैसे हिंदुस्तानी ज़ुबान, अभिनव मीमांसा, परिंदे, रूपायन, सरिता, पाखी, प्रभात ख़बर, पुरवाई, कृति बहुमत, वाणी युवा, हिंदुस्तान आदि में कविताएँ, कहानियाँ तथा लेख प्रकाशित। जनसत्ता के सम्पादकीय कॉलम में भी लेख प्रकाशित।
पल्लवी विनोद जी बहुत ही ख़ूबसूरत कहानी है। यदि किसी भी तरह की विकलांगता हो तो सचमुच ही अन्य लोग तो क्या उसके अपने माता-पिता भी इस परिस्थिति का सामना ढंग से नहीं कर पाते और एक कॉम्प्लेक्स के शिकार हो जाते हैं और उस बच्चे का तो हाल बेहाल होता ही है। सब पात्रों के मनों की उथल पुथल ख़ूबसूरती से वर्णित है। शब्द विन्यास और शिल्प सराहनीय है। आपको बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर कहानी के लिये।
बहुत सुंदर कहानी
पल्लवी विनोद जी बहुत ही ख़ूबसूरत कहानी है। यदि किसी भी तरह की विकलांगता हो तो सचमुच ही अन्य लोग तो क्या उसके अपने माता-पिता भी इस परिस्थिति का सामना ढंग से नहीं कर पाते और एक कॉम्प्लेक्स के शिकार हो जाते हैं और उस बच्चे का तो हाल बेहाल होता ही है। सब पात्रों के मनों की उथल पुथल ख़ूबसूरती से वर्णित है। शब्द विन्यास और शिल्प सराहनीय है। आपको बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर कहानी के लिये।
वाह अति सुंदर रचना और उसके भाव भी
बहुत मर्मस्पर्शी कहानी। इतनी अच्छी कहानी के लिए बधाई!