जो लोग नेशनलिज़म की यूरोपीय अवधारणा से अभिभूत हैं, उन्हें भारत की राष्ट्रीयता समझ में नहीं आती। ऐसा देश जिसे हजारों वर्ष पहले लिखे पुराणों में भी एक राष्ट्र माना गया है, जहां विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, जात-बिरादरियों, पूजा पद्धतियों के बावजूद एक एकात्मता का भाव है, जहां हजारों वर्षों से लोग देश की चारों दिशाओं में तीर्थों के लिए जाते हैं, जहां विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग राज्य व्यवस्था होते हुए भी एक राष्ट्रीय विचार हमेशा उपस्थित रहा है, उसे वे राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

क्या भारत एक राष्ट्र नहीं है…? भारत के विपक्षी गठबंधन इंडी अलायंस की सोच तो कुछ ऐसा ही दर्शाती है। गठबंधन के दो महत्वपूर्ण सदस्य कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम तो यही विचारधारा रखते हैं। 
बात 2022 की है जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने केंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ बातचीत में भारत को राज्यों का संघ के रूप में वर्णित किया। कांग्रेस नेता ने कहा कि “भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का एक संघ है।” इस पर कइयों ने आपत्ति जताई। उनसे इस पर सवाल काउंटर सवाल किए गए। आईआरटीएस एसोसिएशन के एक सिविल सेवक और कैम्ब्रिज में सार्वजनिक नीति के विद्वान सिद्धार्थ वर्मा ने राहुल गांधी को टोकते हुए कहा कि भारत राज्यों का संघ नहीं बल्कि राष्ट्र है। हालांकि राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहे। जिसपर वर्मा ने कहा कि आपका विचार न केवल त्रुटिपूर्ण और गलत है, बल्कि विनाशकारी भी है।
सोशल मीडिया में वायरल एक वीडियों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता और सांसद ए. राजा, जो कभी 2-जी टेलिफ़ोन घोटाले में फंस गये थे, एक वीडियो में पार्टी द्वारा आयोजित एक बैठक को संबोधित करते हुए दिख रहे हैं, जिसमें वह कथित रूप से कहते हैं, “भारत एक राष्ट्र नहीं है। इस बात को अच्छे से समझ लें। भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। एक राष्ट्र एक भाषा, एक परंपरा और एक संस्कृति को दर्शाता है और ऐसी विशेषताएं ही एक राष्ट्र का निर्माण करती हैं।”
राजा ने यह भी दावा किया कि भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि एक उपमहाद्वीप है। उन्होंने कहा, “क्या कारण है? यहां तमिल एक राष्ट्र और एक देश है। मलयालम एक भाषा, एक राष्ट्र और एक देश है। उड़िया एक राष्ट्र, एक भाषा और एक देश है। ऐसी सभी राष्ट्रीय श्रेणियां भारत का निर्माण करती हैं। तो, भारत एक देश नहीं है, यह एक उपमहाद्वीप है जिसमें विभिन्न प्रथाएं, परंपराएं और संस्कृतियां हैं।” 
राजा अपनी बात कहते चले गये। उन्होंने आगे कहा, “तमिलनाडु में एक संस्कृति है और केरल में दूसरी संस्कृति है। वैसे ही दिल्ली में एक संस्कृति है… ओडिशा में, एक और संस्कृति है। मणिपुर में कुत्ते का मांस खाया जाता है, जो एक सांस्कृतिक पहलू है। कश्मीर में एक संस्कृति है। हर संस्कृति को मान्यता देगी होगी।”

उन्होंने कहा, “अगर कोई समुदाय बीफ़ खाता है तो उसे मानिए, आपकी समस्या क्या है? क्या उन्होंने आपसे खाने के लिए कहा? यही विविधता में एकता है। हमारे बीच अंतर हैं और इसे स्वीकार करना होगा।”
इस बैठक में डीएमके नेता ए. राजा ने तमिल में दिए भाषण में भगवान राम के प्रति जहर उगला है। उन्होंने कहा, “यदि आप कहते हैं कि यह भगवान है। यदि यह आपका जय श्री राम है, यदि यह आपका भारत माता की जय है, तो हम कभी ऐसा स्वीकार नहीं करेंगे। तमिलनाडु स्वीकार नहीं करेगा। जाओ और कहो, हम राम के शत्रु हैं। मुझे रामायण में आस्था नहीं है, और भगवान राम में भी नहीं। यदि आप कहते हैं कि रामायण मानवीय सद्भाव का नमूना है, जहां चार भाई के रूप में पैदा होते हैं, एक कुरवार भाई के रूप में होते हैं, एक शिकारी भाई के रूप में होते हैं, एक बंदर भाई के रूप में होते हैं, एक और बंदर छठा भाई है, तो आपका जय श्री राम … है आख थू!… मूर्खो!’
अपने असफल केंब्रिज दौरे से लौटे राहुल गान्धी एक बार फिर अपने पुराने तौर तरीकों पर वापिस आ गये। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 5 मार्च को मध्य प्रदेश के शाजापुर पहुंची। इस दौरान यहां उनकी नुक्कड़ सभा भी हुई। इस सभा में राहुल गांधी ने कहा कि देश के युवा चीन के बने मोबाइल में व्यस्त हैं। वे दिन में सात-सात घंटे रील देखने में लगे हुए हैं। में चाहता हूं कि हमारे युवा 15 मिनट रील देखें। जिस मोबाइल को वे इस्तेमाल कर रहे हों उन पर मेड इन मध्य प्रदेश लिखा हो। राहुल गांधी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘जबकि मोदी जी चाहते हैं कि आप दिन भर मोबाइल पर रहो, जय श्री राम बोलो और भूखे मर जाओ।’
जब हम अपने संविधान पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि यह बात बिल्‍कुल सही है कि संविधान में भारत को राष्‍ट्र के तौर पर वर्णित नहीं किया गया है। संविधान के अनुच्‍छेद-1 में भारत को ‘यूनियन ऑफ स्‍टेट्स’ यानी ‘राज्यों का संघ’ बताया गया है। हालांकि, इसके संविधान को प्रकृति में संघीय बताया गया है। संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अंबेडकर के अनुसार, ‘फेडरेशन ऑफ स्‍टेट्स’ के बजाय ‘यूनियन ऑफ स्‍टेट्स’ को रखने की दो अहम वजहें हैं। पहला, इंडियन फेडरेशन यानी भारतीय संघ अमेरिकी फेडरेशन की तरह राज्यों के बीच एग्रीमेंट का नतीजा नहीं है। दूसरा, राज्यों को फेडरेशन से अलग होने का कोई अधिकार नहीं है। फेडरेशन एक यूनियन है क्योंकि यह तितर-बितर नहीं हो सकता है।
जो लोग नेशनलिज़म की यूरोपीय अवधारणा से अभिभूत हैं, उन्हें भारत की राष्ट्रीयता समझ में नहीं आती। ऐसा देश जिसे हजारों वर्ष पहले लिखे पुराणों में भी एक राष्ट्र माना गया है, जहां विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, जात-बिरादरियों, पूजा पद्धतियों के बावजूद एक एकात्मता का भाव है, जहां हजारों वर्षों से लोग देश की चारों दिशाओं में तीर्थों के लिए जाते हैं, जहां विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग राज्य व्यवस्था होते हुए भी एक राष्ट्रीय विचार हमेशा उपस्थित रहा है, उसे वे राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनको ऐसा लगता है कि ब्रिटिश शासन आने के बाद ही देश में एक राज्य व्यवस्था लागू हो सकी, इसलिए भारत को एक राष्ट्र बनाने के लिए ब्रिटिश शासन ही जिम्मेवार है।
फ़्रांस की आधिकारिक भाषा फ़्रेंच है, किन्तु वहां अब भी 75 अन्य क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती हैं। जो लोग भाषाई आधार पर भारत को अलग-अलग राष्ट्र के रूप में देखते हैं, क्या वे इस आधार पर वर्तमान फ़्रांस को 75 देशों का समूह मान पाएंगे। मध्य यूरोप के 39 राज्यों को मिलाकर 18 जनवरी, 1871 को जर्मनी का एकीकरण किया गया था। 19वीं सदी में एक राजनीतिक और सामाजिक अभियान ने विभिन्न राज्यों को संगठित कर के 1870-71 में इटली का एकीकरण किया गया था। यह सब संचार-परिवहन क्रांति के बिना असंभव था। इन यूरोपीय देशों की राजनीति भी विविध है, किन्तु ‘राष्ट्रीयता’ पर और अपनी ‘पहचान’ को लेकर सभी एकमत हैं। 
चीन की स्थिति भी हमें समझनी होगी। वहां 5 प्रमुख तो 20 अधिक छोटे मज़हब हैं। इसके साथ ही साथ चीन में 13 से अधिक अस्पष्ट भाषाएं बोली जाती हैं। क्या चीन में मंदारिन भाषा का अन्य भाषाओं के साथ वैसा टकराव दिखता है जैसा अकसर भारत में हिन्दी-संस्कृत का तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं को लेकर बनाया जाता है। वर्ष 1948-49 से चीन सरकार ने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने हेतु देश की अन्य पहचानों के साथ-साथ ‘राष्ट्रीयता’ और राष्ट्रीय पहचान को सुदृढ़ करने का काम भी किया है।  
जहां तक क्षेत्रफल का सवाल है रूस, अमरीका, कनाडा, चीन और आस्ट्रेलिया भारत से काफ़ी बड़े हैं। इसलिये यह कहना कि भारत एक उप-महाद्वीप है इसलिये देश नहीं है कोई मायने नहीं रखता। यह सोच ही ग़लत है कि भारत को एक देश या राष्ट्र अंग्रेज़ों ने बनाया। भारत केवल एक भौगोलिक राष्ट्र नहीं था। यहां की आत्मा एक थी, सोच एक थी, धर्म एक था और मिट्टी एक थी। स्वतंत्रता के बाद एक ख़ास राजनीतिक सोच ने यह भ्रम फैलाने का प्रयास किया है कि भारत अंग्रेज़ों से पहले देशों का समूह था और अंग्रेज़ों ने उसे एक राष्ट्र में परिवर्तित कर दिया। तमाम असहमतियों एवं अनेकता के बावजूद हम एक राष्ट्र थे, हैं और रहेंगे।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

37 टिप्पणी

  1. भारत एक राष्ट्र ही है। ऐसे में उग्र सेन के घर कंस भी जन्मते हैं,,,आज के परिपेक्ष्य में सच होती जा रही है। राम को काल्पनिक कहने वाली पार्टी के युवराज अब उस देश में जाकर अपने मन की बात करते हैं जो उसे सपेरों का देश ,,,भारतीय और ,,,त्तों का प्रवेश वर्जित है आदि अपमानजनक इतिहास के साथ याद करते हैं।
    दक्षिण की सियासत भी एक खास किस्म की वर्णांधता का शिकार रही है।
    सुंदर और सार्थक संपादकीय ,,,,जो भारतीयों को उनकी अस्मिता की याद दिलाता है।

    • राहुल गांधी पप्पू हो सकते हैं, पर उनके सलाहकार कुटिल और देश विरोधी हैं। भारत को तोड़ना उनके एजेंडे में है, ब्रिटिश लोगों ने भारत और hidu संस्कृति को कभी पसंद नहीं किया , इनके नेता पॉवेल यह कहते थे कि भारत 30 सालों में टूट जायेगा। राहुल को सहयोग ब्रिटिश लोगों और अमेरिका के एंटी इंडिया समूह से मिलता है । कांग्रेस की नीतियां ऐसी थीं कि नॉर्थ ईस्ट हिंदू विरोधी , ईसाई , कबीलों में बांटकर भारत विरोधी हुआ , कश्मीर भारत विरोधी हुआ , डीएमके ने भारत विरोध पर अपनी राजनीति रखी। कांग्रेस की सोच ही भारत विरोध की रही है , ये सीधे सीधे अपना एजेंडा नहीं कहते पर विदेशी शक्तियों के साथ हिंदुस्तान विरोधी एजेंडा चलाते हैं ।

  2. ” कोस कोस पर बदले पानी
    चार कोस पर वाणी ”

    भारत देश विभिन्न संस्कृति व सभ्यताओ का देश है इसीलिए विशेष है ।
    बाकी राहुल गाँधी और एक राजा जैसो की बात को गंभीरता से लेना ठीक नही है। ऐसे लोग सभ्य समाज के भीतर आवारा पशुओ की भांति है। इन्हे परिवार, संस्कार, देश समेत हर उस बात से समस्या है जो व्यक्ति को संस्कार मे बांधती है।

  3. जबतक पप्पू, क्षमा करें, राहुल फिरोज़ गांधी के पापा, दादी और परदादा राज्य कर रहे थे, भारत एक देश था या यूं कहें राज्य था, जहां का शासन नेहरू और (फिरोज़) गांधी परिवार परम्परया राज्य कर रहा था। अब जब से इस वंशानुक्रम के युवराज को शासन नहीं मिला। भारत राष्ट्र नहीं रहा क्योंकि राजा बदल गया तो देश बदल गया।
    जन्म से जो व्यक्ति राज्याभिषेक की तैयारी में था आज देश भर में एक सफ़ेद टी शर्ट में घूम- घूम के अपने अधिकारों के छीने जाने से सन्निपात की स्थिति में कुछ भी कह रहा है।
    दूसरे देशों को क्या, वो पराई आग में रोटी सेंकने क्या केक बेक करने आ जाते हैं।
    भारत में जयचन्द और मानसिंह जैसे तो सदा से रहे हैं। वही विदेशियों को अपने सिर पर बैठाने को तत्पर रहते हैं।
    अच्छा किया कि आपने भारतवासियों को बताया कि भारत एक राष्ट्र है। ए राजा, वैसे तो 2जी स्कैम में जेल में 15 महीने राज कर चुके हैं, लेकिन राजा तो हैं। रामचन्द्र जी पर थूक कर वो अपनी भड़ास निकाल लें।
    देश ऐसे जोकरों की नौटंकी देखने का आदी हो चुका है। कहते हैं कि “The night is always darkest before the dawn of a new day”,
    आशा है कि 2024 में ही भारत एक राष्ट्र ही नहीं सशक्त राष्ट्र की तरह विश्व पटल पर होगा।
    विपक्ष की राजनीति को सच्चाई से बताते, सार्थक सम्पादकीय के लिए हार्दिक आभार।

    • शैली जी, आपने संपादकीय को पूरी तरह समझ कर अपने आक्रोश को अभिव्यक्ति दी है। आभार।

  4. नमस्कार
    तेजेन्द्र जी
    मन को कितने कितने उद्वेलित प्रश्नों से खूँदता संवेदनशील संपादकीय! कोई कुछ भी अनर्गल बकवास करे, बदतमीज़ी करे और उसे स्वीकार कर लिया जाए? यह स्वीकार्य तो नहीँ हो सकता न? मूर्खों की सभा का गर्दभ गान सदा से होता रहा है,भविष्य में भी होगा। प्रश्न है, आपके ठहरे हुए, विवेकशील ऐसे प्रश्नों द्वारा प्रेषित वे विचार जो दूर तलक जाते हैं और मस्तिष्क के कपाट को खटखटाने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
    अति साधुवाद व अभिनंदन आपको प्रत्येक चेतन पूर्ण संपादकीय के लिए। यह आप हैं अपनी विशुद्ध पहचान संग!!

  5. सादर नमस्कार सर
    यह संपादकीय देश के प्रत्येक मागरिक तक पहुँचना आवश्यक है। मनको कई प्रश्नों ने आंदोलित कर दिया। सत्य जानते हुए भी कैसे इन लोगों के कुत्सित विचारों को सह जाते हैं हमारे कुछ लोग? विश्वास है कि भारत एक आदर्श राष्ट्र की तरह सदैव विश्व पटल पर दीप्तिमान रहेगा। युवा वर्ग का यूँ ही मार्गदर्शन होता रहे एवं आपकी शुद्ध तथा नैतिक विचारधारा विश्वभर में बहती रहे।
    धन्यवाद

    • मुझे विश्वास है अनिमा जी, आप इस संपादकीय को अपने मित्रों तक अवश्य प्रेषित करेंगी।

  6. एकदम सही कह रहे हैं जैसे एक परिवार में अलग अलग गुणों के कई भाई बहन होने के बावजूद उसे एक परिवार ही कहा जाता है, वैसे ही ये अलग अलग गुणों से भरे लोगों का एक देश है।जो लोग इस देश को राष्ट्र नहीं कहते वे महज़ वोट की राजनीति कर रहे हैं उन्होंने इस देश को कभी राष्ट्र समझा ही नहीं जहां तक प्रभु राम को उल्टा सीधा बोलने की बात है तो वे भी वोट की राजनीति ही कर रहे हैं और ये भी जानते हैं कि इससे सर कलम होने का खतरा नहीं है । ऐसे लोगों की औकात ( माफ कीजिएगा) नहीं है कि पैगम्बर के बारे में कुछ बोल सके क्योंकि तब सर कलम हो सकता है।

  7. मेरी टिप्पणी कोई मायने तो नहीं रखती बड़े-बड़े लोगों ने बड़ी बहुत अच्छे-अच्छे टिप्पणियां करी है। बहुत बढ़िया। भारत एक देश है एक राष्ट्र है इसमें कहीं कोई शक नहीं। लोगों ने सही कहा है, हर जमाने में जयचंद था अभी है हमेशा रहेगा क्या कर सकते हैं भगवान इनको सद्बुद्धि दें। बहुत बढ़िया आलेख लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई।

  8. सियासत इन राजनेताओं से क्या क्या न करा दे ! अपनी ही मातृभूमि का अपमान करते हैं । अपनी ही संस्कृति और गौरवशाली इतिहास पर आघात करते हैं । अपनी अल्पमति और अल्पज्ञान का प्रदर्शन करते इन्हें शर्म भी नहीं आती । ऊपर से अपेक्षा यह कि देश उन्हें सत्ता थमाकर अपने सर ऑंखों पर बिठायें। काश कि ऐसा प्रावधान होता जिसमें इस प्रकार से देश की एकता, संप्रभुता और सम्मान को आहत करना एक दण्डनीय अपराध होता ! बहरहाल देश की जनता अपनी वोट देने की शक्ति का प्रयोग कर उन्हें अवश्य ही दण्डित कर सकती है। यह निम्न स्तर की राजनीति संभवतः विदेशों से प्रायोजित है और देश के लिए घातक है । इसका रुकना नितांत आवश्यक है।
    आज का संपादकीय बृहत्त स्तर पर प्रसारित होना चाहिए , शायद कुछ लोगों की चेतना जागृत हो सके ।
    आज के विचारोत्तेजक संपादकीय के लिए धन्यवाद और साधुवाद!

  9. समसामयिक विषयों पर आपके स्पष्ट और महत्वपूर्ण संपादकीय आम आदमी के लिए आँख खोल देने वाले वक्तव्य की तरह होते हैं।

  10. बहुत सुंदर लेख जो ये सोचने पर विवश करता है कि हम राजनीतिक नफे-नुकसान की सोच को ध्यान में रखते हुए अपनी विचारधारा को आम जनता के सामने ज़रूर रखें पर इस तरह से न परोसें की हम जाने, अनजाने अपने देश का ही अहित कर बैठे। ये देश है तो ही हम हैं। देश से ही हमारी पहचान है। अकेले हम कुछ भी तो नहीं हैं।

    जय हिंद-जय भारत।

    • सही कहा राजेन्द्र भाई। हमारे राजनेता पार्टी पॉलिटिक्स के चक्कर में देश का अहित कर बेैठते हैं।

  11. विपक्ष की नीति ही जैसे भारत को तोड़ने की है, भारत एक राष्ट्र था, है और रहेगा। बहुत उत्तम सम्पादकीय और सर !आप ‘वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः’ की भांति भारत देश की साहित्य के माध्यम से ,ऐसे उत्कृष्ट सम्पादकीय के द्वारा सेवा कर रहे हैं

  12. आज की सम्पादकीय एक विचार है ।
    अखंड भारत को परिभाषित करते हुए कहा तो यही गया है कि “प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत वर्ष पड़ा “। पर जिन्हें देश का न तो भान है न ही मान उन्हें चक्रवर्ती का अर्थ या सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ।इन सब बातों का मूल्य पता नहीं है । देश को खंडित करना ही उनका परम लक्ष्य है ।
    Dr Prabha mishra

  13. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    संविधान के परिच्छेद-1 को आपने बेहतर समझाया।यह तो सत्य है कि भारत राज्यों का संघ है और यहाँ पर 8 संघ राज्य क्षेत्र हैं।और लगभग 28 राज्य हैं।
    भारत एक संप्रभुसत्ता सम्पन्न, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसमें संसदीय प्रणाली की सरकार है।यहाँ द्विशासन पद्धति है। राष्ट्रपति इस संघ की
    कार्यकारिणी का संवैधानिक प्रमुख है और
    राज्यों में सरकार की प्रणाली केंद्र की प्रणाली से लगभग मेल खाती है। राज्य स्तर पर सांस्कृतिक भिन्नताएँ चाहे जितनी भी हों,तब भी हमारी एक राष्ट्रीय पहचान है कि हम भारतीय हैं। यह एक राष्ट्र है, यह सौ प्रतिशत् सही है।
    राहुल गाँधी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में जो कुछ भी कहा वास्तव में वे उसको सही तरीके से समझ नहीं पाए शायद। पहले उनको समझना चाहिए था,अगर समझ लेते तो शायद कहने के पहले कई बार सोचते। यहाँ हम सिद्धार्थ वर्मा से पूरी तरह सहमत हैं।
    राजा कहलाने मात्र से कोई राजा के अधिकार प्राप्त नहीं कर लेता है और कुछ भी अनर्गल प्रलाप करने से भी उनकी बात को कोई तवज्जो दी जाएगी ,ऐसा नहीं होता;यह बात उन्हें समझ में आनी चाहिए थी।
    यह बात तो भारत का बच्चा-बच्चा थोड़ा समझदार होते ही जान लेता है कि यहाँ साँस्कृतिक भिन्नताएँ हैं पर फिर भी हम सब भारतीय हैं और यही हमारी राष्ट्रीय पहचान है- अनेकता में एकता। अगर कोई नेता नहीं जानता तो जनता को यह समझना चाहिए कि वह नेता कहलाने लायक ही नहीं है। वास्तव में नेताओं को लेकर अंधेर नगरी जैसी स्थिति बन रही है।
    ए राजा के बारे में पढ़कर हमें बहुत पुरानी एक बात अचानक ही याद आ गई। तब शायद हम मिडिल क्लास में थे। छठवीं या सातवीं में। तब वनस्थली में 10 -12 लड़कियाँ तमिलनाडु से आई थीं। भाषा की दिक्कत उन्हें भी थी और उनके प्रति हम लोगों की भी थी। उस समय बचपना ज्यादा था।वे लोग बहुत टूटी-फूटी हिंदी बोल पाती थीं।यह हम लोगों के लिये हास्यास्पद होता।एक समूह में ही रहती थीं।किसी से मिलकर रह नहीं पा रही थीं।एक बार यूँ ही एक लड़की से हमने पूछा था,”हिंदी सीखना है?इसलिए आई हो?”
    (क्योंकि उड़ीसा गवर्नमेंट ने भी तभी हर साल 10 लड़कियों को वनस्थली स्कॉलरशिप से भेजने का निर्णय लिया था 6thसे।हम पहले कैंडिडेट थे। हम 4th से पढ़ रहे थे। पर जब वो आए और उड़ीसा की लड़कियों को मिलने के लिए बुलाया गया तब हम दो बहनें ही थे। हमने पाँचवी की परीक्षा दी थी।उस समय बीजू पटनायक चीफ मिनिस्टर थे उड़ीसा के और उनका मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा सीखने पर जोर देना ही था। हमारे लिये नेताओं की महत्ता उस समय न के बराबर थी। हिंदी से वे बड़े प्रभावित हुए।यही बात दिमाग में रही।बीजू पटनायक एक अच्छे शासक रहे।)
    उस लड़की ने टूटी-फूटी हिंदी में जो जवाब दिया उसे हम अपने शब्दों में लिखते हैं कि,” हम लोग यहाँ से हिंदी सीखेंगे और सब लोगों को तमिल भाषा सिखाएँगे ,तमिल भाषा का प्रचार करेंगे। और एक दिन तमिल राष्ट्रभाषा बनेगी।”
    हालांकि इस बात पर हम लोग हँसे।पर भौंचक्के भी रह गये। यह उत्तर हम लोगों के लिए अकल्पनीय था। हम लोगों ने मजाक ही उड़ाया था।वे पूरे 1 साल भी नहीं रह पाईं थीं और वापस चली गईं । और हम लोगों ने राहत की साँस ली कि तमिल राष्ट्रभाषा बनते-बनते रह गई। वैसे हमें किसी भी प्रांतीय भाषा पर कोई भी आपत्ति नहीं है सभी भाषाएँ सम्माननीय हैं पर फिर भी दक्षिण की चारों भाषाएँ समझना थोड़ा कठिन है।
    आज आपके संपादकीय को पढ़कर उस बात की गंभीरता महसूस हुई।
    जब किसी की सोच ही एकांगी हो तो फिर उसके लिए क्या ही किया जा सकता है! किसी की सोच को बदलना इतना आसान नहीं है। पर जनता की मूर्खता ही है कि चुनाव के समय वह अंधी, बहरी, गूँगी व अति स्वार्थपरक हो जाती है। ए राजा अपना वक्तव्य देते हुए भूल गए कि हर संस्कृति को मान्यता दी है इसीलिए यह एक राष्ट्र है और सांस्कृतिक भिन्नता ही समग्रता में हमारी राष्ट्रीय पहचान है।
    इस तरह की बातें विरोधी पार्टी में होते हुए भी नहीं करना चाहिए क्योंकि राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से यह हमारी अखंडता के लिए नुकसानदेह है।
    जिसको जो खाना हो वह खाए, कौन किसको रोक रहा है? पर राष्ट्र को खाने के प्रति सावधान रहना ही होगा वह रोटी नहीं है जिसे राज्यों के रूप में टुकड़े-टुकड़े करने की सोच के साथ हजम करने की कोशिश या बात भी की जाए।
    ऐसी स्थिति में ही यह बार-बार याद आती है क्यों नहीं चुनाव लड़ने के लिए भी किसी प्रशासनिक समझ वाली डिग्रियों को प्राप्त करना जरूरी हो!
    जहाँ तक बात आस्था की या राम की है, तो राम को तो किसी के मानने या न मानने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है ,ना ही जबरदस्ती है कि उन्हें माना जाए।
    ऐसे लोग तो रावण से भी गए बीते हैं। रावण को तो पता था की राम के हाथों ही मृत्यु से उसकी मुक्ति है। इसीलिए उसने जानबूझकर राम से बैर ठाना।
    यहाँ तो यही कह सकते हैं कि,-
    “मूरख हृदय न चेत,
    जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम।।”
    कृष्ण की समझाइश और सलाह भी कंस को सुधार और समझा नहीं पाई और ब्रह्मा भी अपने पुत्र दक्ष को समझा नहीं पाए कि शिव से विरोध न करे।
    ऐसे लोगों का कुछ हो ही नहीं सकता।
    पढ़कर ए राजा पर इतना गुस्सा आया न कि बस…… ।
    कहा जाता है कि “जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन।
    बीफ़ खाने की बात करते हुए भी जिसकी ज़ुबान काँपी भी नहीं, उससे किसी अच्छी बात या इंसानियत की ही उम्मीद कैसे की जाए।

    अतीत हमारे लिए सबक की तरह होता है ।उसके अनुभव हमें कमियों व खतरों से सचेत कर एक सुखद व सफल भविष्य की प्रेरणा देते हैं ।इस बार के संपादकीय में ए राजा को पढ़कर एक चिड़चिड़ाहट सी हुई जनता के मताधिकार के चयन पर ।चुनाव को एक मजाक बना दिया गया है।

    अंततः भारत एक राष्ट्र था,है और रहेगा।
    जाते-जाते एक कहावत- कौवा कोसे ढोर मरे?
    ऐसा कभी होता नहीं।
    महत्वपूर्ण संपादकीय के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया तेजेन्द्र जी!

    • नीलिमा जी आपने ख़राब स्वास्थ्य के चलते भी इतनी विस्तृत एवं सारगर्भित टिप्पणी लिखी। हार्दिक आभार। इस टिप्पणी से हमें भी कुछ सीखने को मिला।

  14. बृहस्पति आगम अथवा बार्हस्पत्य शास्त्र के अनुसार,
    “हिमालयद् समारभ्य यावदिन्दु सरोवरम्।
    तं देव  निर्मितं  देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्ष्यते।।”
    *प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं*     
       हमारा भारत प्राचीन काल से ही अनेकों राज्यों से संगठित एक विशाल राष्ट्र रहा है। जिसमें समय-समय पर विभिन्न गणराज्य जनपदों प्रदेशों का उत्कर्ष- अपकर्ष अवश्य होता रहा,किंतु सुदूर दक्षिण से उत्तर तक पूर्व से पश्चिम तक विभिन्न अनमोल प्रांत प्रदेशों की सुंदर मोतियों की माला का सूत्रधार हमारा भारत राष्ट्र ही है। हमारे इस राष्ट्ररूपी काया की आत्मा हमारा धर्म है।
    हमारे राष्ट्र की प्राचीन विरासत और समृद्ध इतिहास जानने की अत्यंत आवश्यकता है,इस राष्ट्र के कुचाली,वाचाल राजनीतिज्ञों को। यदि राष्ट्र की अवधारणा हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को ना होती तो शायद आज हमारा राष्ट्र स्वतंत्र ही ना होता; भारत के प्रत्येक प्रांत से हर वर्ग के ( जिन्हें आज भिन्न देश कहा जा रहा है) हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है,संत-आचार्यों के देशव्यापी शिक्षाप्रद भक्ति आंदोलन, देश के प्रत्येक कोने में हुए ब्रिटिश विरोधी आंदोलन व युद्ध इस बात का शाश्वत प्रमाण है, जो द्वापर और त्रेता युग में से ही सत्य का घोष कर रहे हैं और राष्ट्र के स्वाभिमान और गौरव के प्रतीक रहे हैं। अपने राष्ट्र के प्रति इतने निंदनीय शब्दों को बोलने से पहले सांसद महोदय इस बात को कैसे विस्मृति कर सकते हैं,कि तमिलनाडु के ही युवा वीर स्वतंत्रता सेनानी कोडी कथा कुमार, जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा सर में गोली मारने के बावजूद अपने राष्ट्र के झंडे को जमीन पर नहीं गिरने दिया और आज भी उनकी वीरता झंडे का रक्षक( कोडी कथा) नाम से प्रसिद्ध है। साथ ही वहां की पहली रानी वेलु नचियार जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज़ उठाई थी..यदि इन सब की सोच भी ऐसी ही होती,तो क्या आज हम वास्तव में स्वतंत्र भारत की कल्पना कर भी सकते थे? हम भारतीयों का ऐतिहासिक त्याग ,स्वाभिमान और वीरता ही प्रत्येक युग में प्रेरणा स्रोत रहा है, जो आज हमारे गर्व और सांस्कृतिक एकता का समृद्ध पर्याय है, जिसे पल्लवित और पुष्पित होते देख,चंद जयचंद राष्ट्र विरोधी बयान बाजी में लिप्त है, ईश्वर से प्रार्थना है कि वे इन्हें सद्बुद्धि दे और हमारे राष्ट्र की अखंडता को सदैव अक्ष्क्षुण बनाए रखें।
    राष्ट्रीय हित से ओत-प्रोत अत्यंत मह्त्वपूर्ण व जागरूक करते इस संपादकीय के लिए आपको साधुवाद आदरणीय

    • ऋतु जी आपने तो स्वतन्त्रता सेनानी कोडी कथा कुमार की याद दिला कर पुरवाई के पाठकों को एक नया कोण प्रदान किया है। आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।

  15. बहुत ही अच्छा जानकारी से भरा संपादकीय.
    कुछ लोग खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते रहते हैं.
    बिहार की एक सुक्ति है पढ़पस = शिक्षित बुद्धू.
    और लोग खुद इसे साबित करने के लिए छटपटाते रहते हैं.
    ऐसे में कोई और क्या कर सकता है.

    साधुवाद, सच्चाई बताने के लिए।

  16. we are different flowers from the same garden. राहुल गांधी हमेशा कुछ ऐसा बोल जाते हैं कि वह लोगों की नजरों में खटक जाता है समझाने वाले समझा रहे हैं देश राज्यों का संघ नहीं है। पर भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं है इसलिए इन्हें 50 साल का बच्चा कहा जाता है। दक्षिण में तो कभी नहीं चाहते की हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए उन्हें लगता है हिंदी एक बहुत बड़ा मगरमच्छ है जो छोटी-छोटी सारी मछलियों को खा जाएगी। नुक्कड़ सभा क्या कहा जाए शब्दों की शालीनता आपसे सीखी जाए
    हमेशा की तरह शानदार संपादकीय

  17. भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का एक संघ है।”
    इस बात को सर्वप्रथम राहुल गाँधी ने लंदन में कहा था। यही बात द्रविड़ मुनेड कनगडम के नेता तथा पूर्व मंत्री डी. राजा ने कही है।
    ये लोग शायद भारत के इतिहास से अनभिज्ञ हैं। अखंड भारत में भारत के साथ आज का पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, भूटान, भारत, मालदीव, म्यान्मार, नेपाल, श्रीलंका और तिब्बत भी था किन्तु समय के साथ अखंड भारत टूटता गया और अब राहुल गाँधी और डी. राजा जैसे लोग अपने व्यक्तव्य से भ्रान्ति फैलाकर लोगों को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं।

    न जाने वोट के लिए ये कितना गिरेंगे। आश्चर्य तो कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पर होता है जो स्वयं को भावी प्रधानमंत्री समझते हैं। जिनकी पार्टी ने देश पर वर्षो राज्य किया तथा जो देश को आजादी दिलवाने का दावा करती है…उसकी ऐसी सोच।
    शर्म आती है देश के इन कर्णधारों पर।

    आज के आपके संपादकीय ने ऐसी सोच के लिए समाज के साथ इन जैसे नेताओं को आइना दिखाने का काम किया है। आपका कहना अक्षरश सही है कि भारत मात्र एक भौगोलिक राष्ट्र नहीं है। यहां की आत्मा,सोच, धर्म और मिट्टी एक ही है। कोई कुछ भी कहे तमाम असहमतियों एवं अनेकता के बावजूद हम एक राष्ट्र थे, हैं और रहेंगे।

  18. इस बात को लेकर चर्चा करना कि भारत एक “राष्ट्र” है, “राज्यों का संघ” है, “उपमहाद्वीप” है या फिर “Union of States” है, अपनी समझ से बाहर है। आख़िर भारत की पहचान को लेकर यह वादविवाद करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी। ज़रा ध्यान करके नज़दीक से देखा जाए कि यह सब वो लोग कर रहे हैं जिनको अपनी कुर्सी खिसकती नज़र आररही है या फिर वो निठ्ठले हैं जिन के पास और कोई काम नहीं है। यह सब लोग “खिस्यानी बिल्ली खंबा नोचे” या “हम ने काम बिगाड़े सैंकड़ों के, यह तो अपने घर का है” की category में आते हैं। राहुल गांधी, ए राजा और बहुत से कलाकारों का भी यही हाल है। हर काम में रोढ़ा अटकाना तो इन की फ़ितरत है। जहाँ इनका अपना उल्लु सीधा होता है वहाँ मन्दिर भी जायेंगे, आंखें मूंद के भजन भी करेंगे, जनेऊ भी धारण करेंगे और मौका पड़ते ही एकदम गिर्गिट की तरह रंग बदलकर भगवान राम को गालियाँ भी देना शुरू कर देंगे। भाई मेरे, आप लोगों को देश से इतना ही प्यार है तो कोई ढ़ंग की बात करो। देश की जन्ता इतनी बेवकूफ़ नहीं है जो तुम्हारी बातों में आजाये। अंग्रेज़ी की कहावात “You can fool some of the people all the time, and all of the people some of the time but can not fool all of the people all the time” आज के माहॉल में बिल्कुल ठीक बेठती है। जय श्री राम.

  19. एक बहुत ही सारगर्भित लेख… विस्तृत data के साथ..बाक़ी राहु गाँधी और उसकी सोच किसी देश के लिए हमेशा से अहितकर रही है… विदेशों में जाकर उसने हमेशा भारत को नीचा ही दिखाया है.. एक सार्थक लेख से रू ब रू कराने के लिए बहुत धन्यवाद सर

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