Friday, October 4, 2024
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प्रियंका द्विवेदी की लघुकथा – कर्जा

लल्लू बेचारा गरीब ब्राहमण था गाँव जवार में सबसे अलग वह बचपन से ही पढ़ना चाहता था,
शहर के लोगों को देखता तो बोलता वहाँ के लोग वीआईपी होते हैं.
पर गरीबी और मजबूरी से घर का खर्चा ही निकलना मुश्किल था, पढ़ता कहाँ से,,,
लेकिन पूरे गाँव में नम्बर एक की खेती करता था पूरा जीवन खेतों में समर्पित करके यही सोचता मैं नही तो अपने बेटों को जरूर शहर पढ़ने भेजूंगा..
समय बीता तीन बेटे दो बेटी हुई बेटियों की शादी कर समय से उनको ससुराल भेज अब कर्जा लेकर बेटों की पढाई में लग गया..
अब रात दिन उसका खेतों में ही कटता था पूरे गाँव ऊपर खेती करता था सब पूछने आते खेती कैसे की है काका हमें भी बताओ सबको बड़े मन से बताता, जैसे किसी शहर का खेती वैज्ञानिक हो…  लल्लू अब रात दिन मेहनत करके बेटों को सेट कर चुका था, बेटों की पढाई शादी करके फुर्सत हो चुका था, गाँव के लोग आते जाते बोलते, “काका अब तुम्हारी मौज है फुर्सत हो गए हो जिम्मेदारी से सबको तुमने लाइन दे दी अब आराम करने के दिन हैं…
लल्लू भी हँस के बोलता हाँ भाई आखिर बहुत मेहनत की है आज का दिन देखने के लिए, तभी मुखिया जी बोले लल्लू अभी पिछले जन्म का कर्जा बचा है जो बेटे बनकर तुमसे कर्जा पूरा करवाने आयें हैं!
 लल्लू बोला, अरे नही मुखिया जी मेरे बेटे ऐसे नही हैं मेरा सहारा हैं मुझे बहुत आराम देंगे,,
कोई कुछ बोलता इससे पहले ही लल्लू चला गया, अपने आप में ही बोलता हुआ मेरे बेटे बुढ़ापे का सहारा है आज भी उनके ऊपर हुए खर्च पैसे का कर्जा भर रहा हूँ अनाज बेचकर.. नही नही मेरे बेटे अच्छे हैं
साल के अंत में छठ पर्व नवंबर महीने में पड़ा था, दीवाली के अगले दिन एक छठ पर्व का निमंत्रण पूरे गाँव को मिला,,
लल्लू काका स्वयं कार्ड देने गए थे। बहुत देर तक सबसे बात हुई, सबसे खुशी- खुशी , यही बताये के मेरे दोनों बेटे अपने परिवार के घर आये हैं..
दोनों बेटे गुजरात रहते हैं, वहीं अपना मकान बनवा लिए हैं, इसी साल दोनों को बेटा हुआ है, इसलिए छठ में कोसी भरी जायेगी , इसी उत्साह में लल्लू काका भी लगे थे, नाच, बैंड बाजा, डीजे, जनरेटर, शामियाना, हलवाई का सट्टा हुआ है हैसियत से ज्यादा व्यवस्था किया काका ने गाँव का कोई पूछता,, इतना खर्चा, ” अभी कर्जा सर पर है लल्लू इतना खर्च क्यों कर रहे हो, बड़े गर्व से लल्लू बोलता मेरे दो बेटे शहर कमाते हैं अब मुझे कोई चिंता नही हैं..एक हजार से अधिक लोगों के खाने खिलाने की व्यवस्था बनायी गयी है,
        लल्लू के तीन लड़के हैं, जिनमें बड़ा व मझला गुजरात में रहते हैं। छोटा वाला घर रहकर खेतीबारी का काम देखता है। शुरुआत में तो गुजरात वाले लड़के महीने मे दो चार हजार भेजा करते थे, बाद में वह भी बंद कर दिये, सब लल्लू को बोलते तो सबसे बोलता अरे देंगे नही तो जायेंगे कहाँ अभी नये नये शहर गए हैं घर  गृहस्ती जम जाए फिर पूरा खर्च उनसे ही करवाउंगा…
     अब चिंता मुक्त हो गया है इस लिए जी भर के खर्च कर रहा लल्लू पूरे गाँव को दिल खोल कर खिलाना चाहता है आज, बुरे बक्त यही गाँव वाले तो मदद किये, भूखे रह हल चलाया यही गाँव वाले रोटी दे देते थे खेत में पत्नी तो बच्चों को जन्म देते ही मर गई थी..  यहाँ से छठ की कोसी भरके,इसी बहाने गाँव जवार को खिलाने पिलाने, नाच गवनयी, धूमधड़ाका करना चाहते हैं, बेटों ने अपनी मर्जी से गुजरात में ही शादी कर ली थी, शादी में गुजरात न जा पाने वाले रिस्तेदारों को खुश करने का भी एक अच्छा बहाना रहेगा क्युकिं गुजरात कोई पहुँच न पाया था..
      छठ की रात काका के घर की सजावट किसी शादी विवाह वाले घर को भी पीछे छोड़ रही थी. एक तरफ डीजे बज रहा था तो दूसरी तरफ नाच का स्टेज सजा हुआ था , नाचने वाली भी आई थी, लौंडों की जानीमानी नाचने वाली थी इसलिए देखने हजार से भी अधिक लोग पहुंचे थे..
खाने नाश्ते की खूब व्यवस्था थी, निमंत्रण वाले और नाच देखने वाले एक साथ गुड़ की चींटियों की तरह टूट पड़े खाने में ..
चार घण्टे खाने की पात चली इतना खाना खाया गया लोग बांध के घर भी ले गए, जिसने भी खाना खाया वह दो तीन दिन तक उसके स्वाद का बखान करता रहा। उसकी बातें सुनकर लगता था जैसे अबतक अपनी ऊगलियां चाट रहा हो।
     नाचने वाली तो बात और ही निराली थी  उस समय के दो चर्चित गानों ” लाल लाल कुर्ती, पांडे जी” की फरमाइश ज्यादा रही जिसपर दो तीन बार धरी धरा की नौबत आ गयी। जो नाच पूरी रात होनी थी उसे बारह बजते बजते बंद कराना पड़ा..
वैसे नौजवानों में उसके दो नचनियों की चरचा महीनों तक रही, कुछ  बिन ब्याहे नौजवानों ने अपने विवाह में उस नाच का सट्टा लिखवाने की सौगंध भी खाई..
        ऐसी नौकरी थी मेरी कि छठ का गया एक महीने बाद मैं गाँव आया,,  सबके खेत हरे हो गये थे गेहूं के फसल की पहली सिंचाई हो गयी थी…
इन हरे हरे खेतों के बीच एक खेत किसी गंजे के सिर की तरह दिखाई दे रहा था। यह खेत लल्लू काका का था, यह उनका मुख्य खेत था जिसका रकबा सात बीघा था, इस खेत के गेहूं और धान की फसल से काका का घर भर जाता था, ऐसा क्या हुआ कि काका का खेत-?
       सोच में डूबा ही था कि काका दिखाई दे गये, राम राम (नमस्कार) के बाद  काका से बात हुई..मैंने उनके खेत की तरफ ऊँगली उठाकर पूछना चाहा तो उन्होंने रोक दिया, कुछ देर तक रोने के बाद उन्होंने जो बात बतायी बेटों का कर्जा भर रहा हूँ तुम सब सही बोलते थे अभी कर्जा भरा नही है..
उन्होंने बताया कि छठ के अगले दिन ही शहर वाले बेटे अपने अपने परिवार के साथ चले गये, उनका रिजर्वेशन था  , अभी बेटी बहने बिदा नहीं हुई तबतक उन लोगों का जाना अच्छा नहीं लगा.. शाम को जब वह लोग रेलवे स्टेशन जाने के लिए बोलेरो पर बैठ रहे थे तबतक शामियाना और जनरेटर वाले अपने रूपये के लिए आ गये।
   ” सारा हिसाब बाबूजी करेंगे ,इन्हीं से आप लोग अपना पैसा ले लीजिएगा। ” दोनों लड़के एक साथ बोल पड़े थे लल्लू रोने लगे बताते हुए..
   “मगर मेरे पास रूपये कहाँ हैं, अभी सब खेत में पानी चलाना है, खाद बीज लाना है। “
     “तो हम क्या करें, दोनों ने एक स्वर में बोलें.
इस खेती से उपजा हम एक दाना अपने साथ थोड़ी ही ले जाते हैं,, इन खेतों से जो घर बैठे मौज कर रहा है उससे ले लीजिए। ” बेटों के बोलने से पहले बहुएं ऐसा बोलकर चली गयीं..
         “खाद ,बीज, डीजल लाने के लिए जो गेहूं रखे थे वह छठ में खा खिलाकर लोग चले गये। किसी तरह व्यवस्था करके जनरेटर शामियाना का दिये, अभी जनरेटर वाले का पांच हजार बकाया है,, बरसात न होने से फसल चौपट हो गयी,थोड़ा बहुत हुआ तो किलो दो किलो छठ मे आये बेटी बहन को दिये, उनके हाथ में भी पच्चीस पचास रखना पड़ा। पैसे के अभाव में घर पर रखा गेहूं बो दिए, वह जमा ही नहीं, नतीजा दोबारा पानी चलाकर फिर से बोया हूँ।”काका जब तक बोलते रहे उनकी आंखें झरना  बनी रही..
  ”  छोड़िये काका अब तो जम ही रहा है, गेहूं चाहे नवम्बर में बोया जाये चाहे दिसम्बर में कटिया तो एक ही साथ होती है। ” मैंने जमीन से निकलते गेहूं के पीले पीले नौनिहाल अंकुरों को दिखाकर कहा..
     “मैं इसके लिए नहीं रो रहा हूँ बेटा , जाते जाते मझली बहू अपना हिस्सा अलग करने को कह गयी है मैं तो इस खेत, अपने दिल के टुकड़े की तरह रखता था कैसे इसको टुकड़ो में अलग करूँगा यही सोच रो रहा हूँ..”
     काका को समझा बुझाकर मैं घर चला आया था , पूरे रास्ते और घर आने के बाद भी मेरा मन यही सोचता रहा सबसे बड़ा कर्जा बेटों का होता है जो बाप पूरे जीवन भरता है फिर भी वह खत्म नही होता..

प्रियंका द्विवेदी
उत्तर प्रदेश
संपर्क – [email protected]
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