शीरो
(लखनऊ के शीरो कैफे की मलंग, कर्मठ नायिकाओं को समर्पित कविता)
– अनामिका
थोड़ा मारा, रोए!
बहुत मारा, सोए!
सोकर तो ताजदम हो ही जाती है
यह औरत की जात!
हंस देती है और जिदियाकर बढ़ जाती है आगे
उसी राह पर जिससे उसको धकियाया गया था।
गांधी ने ‘सविनय अवज्ञा’ सीखी थी
औरतों से ही तो।
‘रंगभूमि’ वाले सूरदास बाबा की
शीतल झोपरिया हैं औरतें,
जितनी दफा ढाहा गया,
उठीं उतनी दफा शान से।
उनका जीवन ही प्रत्युत्तर है, एक मलंग नकार,
अनुचित का बंकिम प्रतिकार।
“आयोडेक्स मलिए, काम पे चलिए’-
बचपन में सुना हुआ रेडियो विज्ञापन
हौसला बढ़ाता हो शायद!
मैं भी कहीं नहीं रुकी,”
राबिया हुसैन ने कहा।
तेजाब से उसका चेहरा जलाया गया था,
लेकिन उस दिलकश लुनाई का सत नहीं जला था
जो हिम्मत माई की जाई हुई बेटियों से
छीन नहीं सकता है कोई!
वह मुझको ‘शीरो’ कैफे में मिली थी!
मैंने उसका हाथ धीरे से थामा, वह
मुस्का दी,
“बादल भी तेजाब ही तो बरसाते हैं
इन दिनों माटी पर
तो ऐसी बड़ी बात क्या है कि
नाकाम आशिकों ने मेरे मुंहपर
तेज़ाब दे मारा।
भली भई मेरी मटकी फूटी
मैं तो पनिया भरन से छूटी।
अब कोई पीछे नहीं पड़ता
अफवाहों के सिवा।
वो देखिए- वो वहां जो सिलाई मशीन धरी है,
मेरी ही है।
बिखरी हुई कतरनों की तरह
रंगीन अफवाहें भी सारी शाम तलक
मैं बुहारकर एक थैली में देती हूं कोंच!
मौके पर बहुत काम आती हैं!
अक्सर तो उनकी लग जाती है चिप्पी
किसी का फटा ढंकने में,
कभी-कभी उनसे मैं पैचवर्क ओढ़नी बनाती हूं,
पैचवर्ग ओढ़नी जैसे यह जिंदगी-
आपकी या मेरी
सुख-दुख की चूलें मिलाकर
क्रॉस स्टिच से कढ़ी,
रोज स्टिच से संवारी,
साटिन स्टिच से मढ़ी!
कितनी सदियाँ बीतीं-
अब जाकर यह हुनर सधा है!
जो बातें मुझको चुभ जाती हैं,
मैं उनकी सुई बना लेती हूं-
चुभी हुई बातों की ही सुई से मैंने
काढ़े हैं फूल सभी धरती पर।
हरे-भरे सारे नजारे,
आसमान के ये सितारे-
मुझसे ही टँकवाए थे उस खुदा ने!
मेरा पुराना मेहरबान है वह खुदा,
सच पूछिए तो है मेरा
एकलौता आशिक वही,
बाकी तो सब बाल-बुतरू हैं!
पूरी यह दुनिया ही मेरा
गोद लिया बच्चा हो जैसे।
बच्चों की चिल्ल-पों कान नहीं धरती,
रहती हूं मस्त और किसी से नहीं डरती!”
कहती हुई अबकी राबिया हंसी
और एक बार तो लगा-
आठवीं सदी में इराक से चली थी जो
आज वही राबिया फकीर
सामने बैठी है-
हाथ में उसके वही सब्र का धागा
साहस की तीखी सुई –
जिससे कि सदियों से
वक्त किया करता है
पाक दिलों की रफ़ूगरी।
अनामिका
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