Sunday, May 19, 2024
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रेणु हुसैन की कहानी – वह दुनिया की सबसे सुंदर औरत थी

वह अपने आधे निष्क्रिय पड़ गए शरीर में से पूरी ताकत संजोकर टूटती हुई सांसों की शिथिलता को तोड़ देने में निरंतर प्रयासरत थी। उसके शरीर में कोशिकाओ का गुणज से बढ़ना तेजी से चल रहा था। उसने अपने मन मस्तिष्क को प्रबल कर टेढ़े हो गए होंठों को जोड़ने का निरर्थक अभ्यास किया था। उसके मुख की टेढ़ी-मेढ़ी मुद्राओं से निहित हो रहा था कि अब वह घर जाना चाहती है। इन वाक्यों के लिए उसने कई घंटों तक अथक परिश्रम करके साहस को जुटाया था और अत्यंत कठिनाई से कह पाई थी, ’’मेरी छुट्टी करा दे…घर ले चल…..’’ उसके हाथ सुईयों से छलनी हो चुके थे।
जब वह दर्द से कराहती तो हाथा इधर-उधर पटकने लगती। इसलिए दोनों हाथों को बिस्तर के किनारों से पट्टियों से बांध दिया गया था। गले में खाने के लिए पाईप लगा दिए गए थे। जब होश आता तो आंखों से ही घर ले चलने को कहना चाहती मगर आंखों में दर्द और मुक्ति की गुहार तैर जाती। आई सी यू डाक्टरों के लिए एक प्रयोगशाला परीक्षण केन्द्र से अधिक कुछ नहीं था। मगर आई सी यू के बाहर बैठे परिजनों के लिए वह एक मंदिर और डाक्टर जीवनदाता थे। डाक्टरों की टीम ने उसका परिक्षण किया था और बाहर बैठे उसके दोनों बेटों को बुलाकर उसकी पेट की पथरी से शुरू उसकी लम्बी बीमारी जो मस्तिष्क में स्ट्रोक, पैरालाइज, पैनक्रियाज और खराब हो चुके कलपुरजों तक पहुंच चुकी थी का हवाला देकर उसकी मुक्ति का मार्ग दिखा दिया था। उसके पुत्रों की आंखों से अविरल धार बह निकली थी।
जिस समय उन्होंने मां को देखा था, वह सो रही थी। बंद आंखों से कोई पता नहीं लगा पाता था कि उसकी आंखें कुछ टेढ़ी है और आंखों के अंदर की एक पुतली अपने स्थान पर नहीं है। उसका मुख मंडल बहुत बड़ा था जबकि वह बहुत छोटे कद की औसतन भारी महिला थी।
सौंदर्य के कोणों से शून्य उसकी कमर एक बड़े पेट में बदल चुकी थी। समय के साथ उसके बड़े-बड़े गाल नीचे की ओर खिसक आए थे। उसके बाल हमेशा की तरह बदरंग खिचड़ी बने हुए थे। इस समय भी मां दुनियां की सबसे सुंदर महिला दिख रही थी। छोटा बेटा सोच रहा था कि इस खूबसूरती में चार चांद लग जायें अगर मां अपने मोटे होंठ खोल दे और मुस्कुरा दे। वह चाहता था हर शाम की तरह नौकरी से लौटने पर एक बार फिर मां से चुटकी ले और मां अपने पीलापन युक्त बड़े दांत खोलकर हंस दे। चार वर्श पूर्व पिता की असामयिक ह्रदयघात-मृत्यु के बाद उसने अपनी मां की अबोध और सर्वाधिक निर्मल हंसी को बनाए रखना ही अपने जीवन को ध्येय बना लिया था।
जब मां हंसती तो उसका साफ़ उजला मन उनके चेहरे पर हावी हो जाता। उस समय वह भोली-भाली देहाती गोरी लगने लगती। पति के देहांत के बाद वह छोटे बेटे के विवाह में ही तैयार हुई थी, बल्कि उसे रेशम की साड़ी पहनवाई गई वो भी सेफ़्टी पिन लगाकर। जीवन में पहली बार उसे पार्लर ले जाया गया था। हल्के ज़ेवर पहनकर वह खुश थी। उसे उसकी बहन-बेटी ने कहा था ’’मौसीजी, आज तो आप बड़ी सुंदर लग रही हैं, चमक ही रही हैं…!!’’ तो इस बात से उनके चेहरे का रंग गुलाबी हो गया था और उन्होंने कहा था,’’हैं….सच्ची? चल झूठी…..’’और सभी खिलखिलाकर हंस पड़े थे। बड़ा बेटा डाक्टरों के पीछे-पीछे चल दिया था।
जैसे अपने प्रयासों से वह मां की इस हालत का कारण और निवारण खोजकर मां को जीवन की ओर फिर से अग्रसर कर पाएगा। उसके जिज्ञासु प्रश्नों के उत्तर में डाक्टरों ने पुनः प्रश्न किए थे, ’’आपने पिछले वर्श अगस्त में इनका पथरी का ऑपरेशन क्यूं नहीं करवाया? एक साल से पथरी को पाल के रखा है उन्होंने, उस वजह से उन्हें स्ट्रोक हुआ, आपने पैरालाइज़ के समय इन्हें अस्पताल में भर्ती क्यूं नहीं करवाया…..चलिए ठीक है मगर उनकी पैजक्रियाज ख़राब होने का कारण पेट में तेज़ दर्द का उठना है……क्या उन्होंने ऐसा बताया कभी? यदि हां, तो उस समय इमरजेंसी में क्यूं नहीं लाए?’’ इतने सारे सवालों की झड़ी लगा कर डाक्टर आगे बढ़ गए।
बड़ा बेटा जड़वत् खड़ा रहा था। उत्तर देने से पहले उत्तर ढूँढना भी तो था। बड़ा बेटा मां की ओर उत्सुकतावश मां के आंख खोलने की प्रतीक्षा कर रहा था। वह चाहता था कि मां से पूछे कि इतना दर्द कब हुआ था? हुआ था तो बताया क्यों नहीं…..उसकी आंखों के सामने मां के दीवार को पकड़-पकड़कर, एक पैर से घसीटकर चलने का दृष्य आ गया। मां गिर जाने से डरी हुई थी, उसका आधा शरीर ही काम कर पा रहा था। वह अपने टेढ़े मुंह से मदद मांग रही थी। बहु उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर देना चाहती थी और उन्हें निरंतर अपने पैर सीधे रखने का और हाथ हिलाने का आदेश दे रही थी। इस अभ्यास में स्नानघर तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं असम्भव बन गया। आखि़र वह हार गई और लघुशंका को रोक न पाई। उसने कमरे से शोच तक का रास्ता अपने कपड़ों समेत गीला कर दिया था। उसकी आंखें शर्म से फर्श में धंसी जा रही थी।
वह अपनी बहू के तानों से पहले ही डरती रही थी। जब स्वस्थ थी तो उसकी डांट से ड़रकर घर के सारे काम कर देती थी। यहां तक कि उसे कोई समझाता तो कहती, ’’कोई नहीं बच्चे ही तो पालने हैं मैं कर लूंगी काम’’ अपने जुड़वां पोतो के मोह में उसने पति के असमय और उससे बिना मिले ही देह त्याग देने के दुःख को बांट रखा था। पर इस घटना के बाद जब-जब उसे शोच लगता अपने बेटों को बुलाने हेतु साहस जुटा कर आवाज़ लगाती। बहु-बेटे उनके ये टेढ़े शब्दों का अर्थ समझने लगे थे।
कुछेक बार तो पेट ख़राब होने पर भी देर रात बेटा-बहु के आराम में व्यवधान न पड़े, वह बिस्तर, कपड़े आदि खराब कर चुकी थीं। उसने कभी किसी से खुलकर बात नहीं की थी। उसे ठीक से बात करना आता भी नहीं था। उसका दिमाग सामान्य से जरा कम था जिसकी वजह से वह पढ़-लिख नहीं पाई थी। वह समय का पता सूरज के निकलने और ढ़लने से लगाती रही थी। कुछ फ़ोन नम्बर उसके लिए दीवार पर लिख दिए गए थे। आज उसके बेटे उसके हाथों को देख रहे थे। इन्हीं हाथों से वह ज़ायकेदार चाय और स्वादिश्ट सब्जियां बनाती थी…..उसकी बनाई तड़केदार दाल भी बहुत अच्छी बनती थी और उसने अपनी उंगुलियों से दरी, सेवियां बना सुखाकर रिश्तेदारों में बांटी थी…..जरा सी तारीफ़ करने पर वह अपने अलग ही अंदाज़ में कहती, ’’हैं…..सच्ची? मैं होर बणावांगी……’’ फिर रोज़ वही सब्ज़ी बनाने लगती जब तक उसे टोका ना जाता था।
बड़ा बेटा अश्रुपुरित उसके आंखें खोलने की प्रतीक्षा कर रहा था और कुछ समय बाद उसने आंखें खोली तो अपने दोनों बेटों को सामने देख मुस्कुरा दी। वह अपने होंठ पूरी तरह खोल नहीं पा रही थी। उसकी मुस्कुराहट में दर्द था। वह अपनी आंखों से आपना दर्द साझा करना चाह रही थी। उसकी आंखों के कोर साफ़ नहीं थे…..छोटे ने उसकी आंखें पोंछी। आज बड़ा बेटा उनसे उनका हर दर्द उन्हीं की जुबानी सुनना चाह रहा था।
वह उनके जीवनभर के शब्दों का भंडार मोती की तरह चुन लेना चाहता था। छोटा बेटा, जिसे ऐक्टिंग का शौक था, मां के साथ बनाया, कुछ माह पहले का टिक-टाक बनाकर पोस्ट कर रहा था। ’’तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है अंधेरों में भी….मिल रही रोशनी है, कैप्शन में लिखा था- अब मैं किसके लिए घर आऊंगा…..किसको हंसाऊंगा……किसके लिए ऐक्टिंग करूंगा….।
वह आज भी दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत लग रही थी।

रेणु हुसैन पेशे से अंग्रेजी की शिक्षिका हैं। इसके साथ ही, साहित्य-लेखन में भी इनकी अभिरुचि है। आपके दो कविता-संग्रह ‘पानी प्यार’ एवं ‘जैसे’ तथा एक कहानी-संग्रह ‘गुंटी’ प्रकाशित हो चुके हैं। संपर्क –renuhussain@gmail.com
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