Saturday, July 27, 2024
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सबाहत आफरीन की कहानी – कशमकश

अरे,कयूम बड़े दिनों बाद दिखे, आओ आओ।”
मैंने रस्मी मुस्कराहट सजाये कयूम को देखा जो दरवाज़े पे झिझक के साथ खड़ा था| मुझ पर नजर पड़ते ही उसकी गहरी धंसी आँखें चमक सी गयीं| वो पीले पड़ गये मटमैले गमछे से पसीना पोंछते हुए अंदर आ गया। तेज़ धूप से अचानक छांव में आने की वजह से वो मिचमिचाती आँखों पर गमछे का सिरा फ़िराने लगा। फिर चेहरा पोंछ कर मेरे शानदार ड्राइंग रूम को देखने लगा|
उसकी नज़रों का अंदाज़ बता रहा था कि वो कीमती सोफे और महंगी सजावट की डेकोरेशन पीस परदे और आर्टिस्टिक रख रखाव से खासा मुतास्सिर हुआ है|
ये बात अच्छी लगी मुझे, कम से कम उसने ये ढोंग तो नहीं किया कि इन महंगे सामानों का उस पर कोई असर नहीं, जैसा कि मेरे रिश्तेदार अक्सर करते हैं|
“ बैठो..बैठ जाओ आराम से|”
उसे बदस्तूर खड़ा देख कर मैंने उसे सोफे पे बैठने का इशारा किया और खुद भी सामने वाले सोफे पे आराम से बैठ गया| 
“अं.. पानी पियूँगा, बड़ी प्यास लग रही है|”
सिकुड़ कर बैठे हुए कयूम ने झिझकते हुए ज़रा आजिज़ी से कहा तो मैंने हाथ में थामे दस बार पढ़े हुए अख़बार को वापस सेंटर टेबल पे रखा और डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ गया| कांच के नक्काशीदार जग से मैंने पानी निकाला और कयूम की तरफ बढ़ा दिया|
उसने कांच के गिलास को बेहद एहतियात से थामा और तीन घूँट में गिलास ख़ाली कर दिया| फिर संकोच से अचकचा कर मेरी तरफ चोर निगाहों से देखते हुए उसने बेहद संभाल कर गिलास शीशे के सेंटर टेबल पे धीमे से रख दिया|
“क्यूँ आया होगा? इतने सालों बाद…क्या कोई मदद मांगने?”
उसका पुराना कुरता पाजामा, मटमैला सूती गमछा और खस्ताहाल सा हुलिया..चेहरे की हड्डियों का ज़ाहिरी तौर पर दिखना और आँखों का गड्ढों में धंसा होना चीख़ चीख़ कर बता रहा था कि कयूम किसी न किसी गरज़ से आया होगा…लेकिन किसलिए? किस काम से?
मेरे दिल में उसे देखते ही पहला सवाल उभरा…अक्सर गाँव से मेरे गरीब रिश्तेदार किसी न किसी मदद के सिलसिले में आते रहते थे, यूँ जैसे लखनऊ शहर में बैठा मैं नोट छाप रहा हूँ| हमारा रहन सहन, बड़ा घर और बच्चों का अंग्रेज़ी स्कूल कॉलेज में पढना… मेरे रिश्तेदारों को लगता था शहर का रईस आदमी मैं ही तो हूँ| किसी को इलाज करवाना है, किसी को बच्चे का कॉलेज में एडमिशन करवाना है तो किसी को बेटी की शादी में थोड़ी मदद चाहिए…सबने जैसे अल्ला मियां का घर देख लिया था|
क्या करूँ? सीधा मना भी नहीं कर पाता, हालाँकि कई बार बहाने बना कर टरकाये हैं मैंने, मगर फिर वही बात है कि रिश्तेदारों से एकदम पीछा छुड़ा लूँ तो शादी ब्याह मरनी करनी के वक़्त में किराये पर रिश्तेदार नातेदार थोड़ी न मिलेंगे?
और ये लोग भी कम नहीं होते, कितनी बार सलाह दिया है कि गाँव की ज़मीने खेत बारी बेच कर यहाँ शिफ्ट हो जाओ, कारोबार करो, लेकिन इन देहातियों पर कोई असर पड़े तब न? खैर क़िस्मत भी बड़ी चीज़ है, कयूम ने शहर आकर कामयाबी तलाशी तो थी मगर…
 गला खखारने की हल्की सी आवाज़ उभरी और कयूम बेवजह अपना कुरता दुरुस्त करने लगा| मेरे दिल में फिर से अंदेशे सर उठाने लगे…न जाने क्या कहने वाला था…किस बात की भूमिका बना रहा है? कितनी बड़ी मदद…जो उसे अल्फाज़ नहीं मिल रहे थे| वो अभी तक ख़ामोशी से यहाँ वहां नज़रें जमाये हुए था| मैंने दुबारा ग़ौर से देखा, उसके चेहरे पर वक़्त ने अजीब छाप छोड़ दी है, कहीं से भी मेरा हमउम्र नहीं लगता| मुझसे कहीं ज़्यादा बूढ़ा और बरसों का मरीज़ नज़र आ रहा था। 
“हद है!” 
अब वहशत होने लगी मुझे| एक ज़माना था जब वो मेरा अच्छा दोस्त हुआ करता था, हम गाँव में साथ पले बढे एक साथ कितनी सारी बदमाशियां की शरारतें की और एक साथ ही गाँव छोड़कर रोज़गार की तलाश में शहर आ गये| ज़हीन और बेहद तेज़ तर्रार कयूम कारोबार में लग गया| तेज़ी से तरक्की करते हुए देखते ही देखते बहुत जल्द उसने एक अच्छा मुकाम बना लिया था| उस वक़्त अक्सर हमारी मुलाकातें होती थीं, हम दोनों ही कामयाबी की गाडी पर चढ़े तेज़ी से भाग रहे थे| मगर वक़्त बड़ा बेरहम है, कब गाडी पलट जाये क्या भरोसा? उसी अच्छे वक़्त ने जब आंखें टेढ़ी की तब एहसास हुआ कि इंसान एक मामूली तिनके से ज़्यादा की अहमियत नही रखता। अचानक हुए रोड एक्सीडेंट ने कयूम को बिस्तर पर ला पटका! वो जो भाग रहा था वही बरसों बरस बिस्तर पर पड़ा रहा| सारा कारोबार बिखर गया था, हम लोगो ने कुछ सालों तक खोज ख़बर ली मगर कब तक? दोस्त अहबाब आख़िर कब तक मदद करते?
दुश्वारियां सबके साथ थीं, सबके अपने घर बार थे| धीमे धीमे सबने हाथ खींच लिया, और उससे मिलना जुलना लगभग बंद हो गया। वैसे सच तो ये है कि मैं ख़ुद भी उससे मिलने से कतराने लगा था, वजह ज़ाहिर है बताने की शायद ज़रूरत नही।
कैसे हो कयूम? गांव जाकर बस गए| तब से तुम्हारी कोई खोज ख़बर नही मिली| तबियत ठीक रहती है न?”
मैंने रस्मन पूछ लिया, हालांकि उसके दुबले पतले वजूद को देखकर मुझे अपने सवाल पर खीझ हो आयी। इतना सब पूछने की क्या ज़रूरत थी, अब अगर वो पैसे मांग बैठा तो? अभी पिछली बार वाले पैसे लौटा ही नही पाया, फ़िर से बीमार वजूद लेकर नाज़िल हो गया। मेरी ये फ़ितरत ये आदत एक रोज़ मुझे कंगाल बना कर छोड़ेगी| ख़ैर, अब तो पूछ बैठा था वो जो बोले सुनना ही था।
तुम तो जानते हो यहां का कारोबार चौपट हो गया, फ़िर एक्सीडेंट के बाद मुझे नयी बीमारियों ने घेर लिया। डायबिटीज़, हार्ट की परेशानी और ब्लडप्रेशर का घटना बढ़ना। इन सबने मुझे तोड़ दिया, अब तो लगता ही नही कभी मैं सेहतमंद था|”
उसकी खरखराती आवाज़ से कमज़ोरी झलक रही थी| एकदम से वो थका हुआ महसूस हुआ..मैंने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा 
“ओह..|”
अब इससे ज़्यादा बोलने की ग़लती नहीं कर सकता, जितना हो सके उतना ठंडा रवैय्या रखना है| कयूम अब फिर से चुप हो गया, गले में लटक रहे गमछे से चेहरे पे हाथ फिराया तो मैंने एसी की तरफ देखा जो अच्छा खासा कमरा ठंडा किये हुए था…शायद कयूम की आदत हो गयी थी  बार बार चेहरा पोंछने की| उसे बदस्तूर चुप देख कर मेरे दिल मे ख़याल आने लगा। 
“कयूम को खाने पर रोक लूं? दोपहर हो रही है…या सिर्फ़ चाय पिलवा कर रुख़सत कर दूं? नहीं नहीं, ज़्यादा मेल जोल दिखाऊंगा तो कहीं ये दुबारा हाथ पैर न फ़ैलाने लगे…अब तो पूरा यक़ीन हो चला है कि ये पैसे उधार मांगने आया है…. और मेरे पास भी कहाँ पैसे हैं? सब इधर उधर फंसा हुआ है। मैं भी तो परेशान हूँ, क़ारून का खज़ाना थोड़े है कि उधार बांटता चलूं|”
ये खयाल आते ही मैंने हल्का सा गला साफ़ किया और चश्मा उतारते हुए बेहद संजीदगी से कहा   
देखो कयूम, ये दुनिया है यार। यहाँ हर इंसान पैदा हुआ है मुसीबत झेलने के लिए दुख उठाने के लिए। अब मुझे देखो, ऊपर से सब कुछ ठीक ठाक लग रहा होगा, मगर कारोबार में मुसलसल घाटा हो रहा है| बच्चों को अच्छी जगह सेटल नही कर पा रहा हूं, उसकी अलग टेंशन है| अब्बा की उम्र हो गयी है उनकी दवाई में अच्छा खासा खर्च हो जाता है। क्या करें क्या कहें, बड़ी मारामारी है।”
कह कर मैंने एक ठंडी सांस भरी और पीठ सोफ़े पे टिका लिया। दरअस्ल जितनी बातें कही मैंने सब आधी सच आधी झूठ थीं। मगर कयूम से पीछा छुड़ाने के लिए ये सब कहना ज़रूरी था।
मेरी बातें सुनकर उसका सांवला चेहरा और स्याह हो उठा, जैसे उसकी हिम्मत जवाब दे गयी हो| मैंने दिल ही दिल में शुक्र मनाते हुए चेहरा उदास करते हुए कहा –
“तुम बैठो, मैं अन्दर चाय का कह कर आता हूँ|”
मेरे उठते ही कयूम भी उठ खड़ा हुआ और जल्दी से बोला –
“नहीं नहीं, चाय वगैरा नहीं..दरअसल मैं ज़रूरी काम से आया था..|”
“ज़रूरी काम? उफ़ जिसका डर था वही हुआ….झुंझलाहट दबाते हुए मैं वापस  सोफे पे बैठ गया और उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखा
कयूम उसी तरह से सिकुड़ सिमट कर बैठ गया| और दोनों हथेलियाँ एक दूसरे में उलझाते हुए सूखी आवाज़ में बोला –
ख़ुदा तुम्हारी मुश्किलों को आसान करे, बस यही दुआ कर सकता हूँ!”
इतना कह कर वो अपनी जगह से ज़रा सा तिरछा हुआ, कुरते की बायीं तरफ वाली जेब में हाथ डाला और एक लिफ़ाफ़ा बाहर निकालते हुए बोला 
 “ये..ये बीस हज़ार रुपये हैं.. मेरे कड़े वक़्त में तुमने मदद की थी, वो एहसान कभी नही भूलूंगा! तुम लोगो की दुआओं का असर है कि आज गांव में मेरा काम फिर से शुरू हो गया है, ठीक ठाक आमदनी हो जाती है| तुम्हारे जैसे दोस्तों की वजह से आज अपने पैर पर फिर से खड़ा हो गया हूँ।”
कयूम ने नोटों का लिफ़ाफ़ा मेरे हाथ मे थमाया और फ़ीकी सी मुस्कराहट लिए उठ खड़ा हुआ| जाते हुए वो मेरे क़रीब आया, क्या कह कर मेरा कंधा थपका, फिर उसी मटमैले गमछे से चेहरा पोंछते हुए दरवाज़े तक पहुंचा| रुक कर मुस्कुराया, क्या बोला..मुझे कुछ याद नही! मुझे कुछ याद नहीं! बस इतना याद है कि मेरी बायीं हथेली मेरी पेशानी पोंछ रही थी…
सबाहत आफ़रीन
प्रकाशन – “मुझे जुगनुओं के देश जाना है” नामक कहानी संग्रह प्रकाशित।
प्रभात ख़बर, स्त्रीकाल, वन माली, बया और पक्षधर पत्रिकाओं में कहानियां छपती रही हैं। समाचार पत्रों में लेख आलेख प्रकाशित हुए हैं। वर्तमान समय में लेखन के साथ साथ आकाशवाणी लखनऊ में उद्घोषिका के पद पर कार्यरत।
संपर्क – [email protected]
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