Sunday, May 19, 2024
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आलोक कुमार की नाट्य समीक्षा – जीवन का संदेश देता प्रताप सहगल का ‘और कोई रास्ता’

जीवन में सदा ऐसा होना चाहिए कि जिंदगी चाहे कितने भी कठिन मोड़ पर खड़ी हो या किसी दोराहे पर खड़ी हो जाए लेकिन आपको सदा कोई और रास्ता देखना चाहिए और सिर्फ देखना ही नहीं उसे अमल में भी लाना चाहिए, यही सन्देश जाने माने नाटककार प्रताप सहगल जी के लिखे एकालाप नाट्य “कोई और रास्ता” को चार अक्टूबर की शाम नई दिल्ली के एलटीजी सभागार में देखते हुए पूरी सच्चाई और मजबूती के साथ महसूस किया सभागार में बैठे हुए सभी दर्शकों ने और नाटक के इस संदेश को नाटक की मुख्य नायिका इंदु यानि सुपरचित रंग नेत्री उमा झुनझुनवाला ने अपने सशक्त अभिनय से बखूबी दर्शाया।
नाटक के कथानक की बात करें तो ये एक स्त्री इंदू के द्वारा प्यार में पड़कर सबके मना करने के बावजूद अपने मनचाहे लड़के से शादी करने के बाद उपजी विसंगतियों की त्रासदी में जीने से इंकार करते हुए अपना एक और रास्ता चुनते हुए जीवन में आगे बढ़ने की कहानी है। जो एक रेलवे स्टेशन से शुरु होकर रेलवे स्टेशन पर ही खत्म हो जाती है जहां ट्रेनें आ जा रही हैं, स्टेशन पर रुककर फिर आगे अपने गंतव्य पर चल देती हैं, वे रूकती नहीं और कहना न होगा कि नाटक का ये प्रतीक बेहद ही अच्छा था ।
इंदु बारी -बारी से रेलवे प्लेटफार्म पर अपनी यादों के चेप्टर खोलती है और अंत तक आते -आते पूरी तरह से दर्शकों को अपनी यादों के आगोश में ले लेती है हालांकि नाटक परवान तब चढ़ता है जब अच्छे प्रतीकों से दर्शाया गया इंदु का सुहागरात का दृश्य आता है और फ़िर नाटक के क्लाइमेक्स तक लोग उत्सुकता से भर जाते हैं कि अब आगे क्या रास्ता है अभिनय और कथानक दोनों ही रूपों में, हालांकि इस दृश्य के पूर्व के चेप्टर तक नाटक आप दर्शकों में उतना उत्सुकता नहीं जगा पाता दिखा जितनी उन्हें अपेक्षा हो सकती थी जबकि प्रबुद्ध दर्शक नाटक से बंधा रहा।

नाटक एकालाप था तो स्वाभाविक रूप से उमा झुनझुनवाला ने ही सभी संवादों को बखूबी निभाया लेकिन इसके साथ चार अन्य पात्र नाटक में मूक अभिनय करते हुए दिखाई देते हैं जो इंदू की जिंदगी से जुड़े अहम क़िरदार होते हैं, इसे निर्देशक निलॉय राय द्वारा एकालाप नाट्य प्रस्तुति के लिए एक नई परिभाषा गढ़ना ही कहा जा सकता है जिस पर अलग -अलग लोगों की, अलग -अलग राय हो सकती है चूंकि अमूमन एकालाप नाट्य में एक पात्र ही मंच पर दुसरे किरदारों का कैरिकेचर करता है और अगर दुसरा कोई किरदार ज़रूरी होता है तो किसी पुतले का उपयोग करते हैं जिन्हें निर्देशक ने यहां मूक अभिनेताओं में तब्दील कर दिया है । यहां कह सकते हैं कि नाटक एक प्रयोग होता है और ऐसे प्रयोग करते रहना चाहिए।
नाटक में मुरारी राय चौधरी का संगीत अच्छा था इसी प्रकार, वस्त्र विन्यास, मंच सज्जा और प्रकाश संयोजन भी अच्छा था।
नाटक को कोलकाता के रंग समूह लिटिल थेस्पियन ने प्रस्तुत किया जिसे संगीत नाटक अकादमी द्वारा संगीत नाटक अमृत पुरस्कार से सम्मानित कलाकार्मियों की पांच दिवसीय कलाओं की प्रदर्शन श्रृंखला के अंतर्गत अवॉर्डी नाटककार प्रताप सहगल के इस नाटक का प्रदर्शन किया गया।
नाटक के अंत में संगीत नाटक अकादमी द्वारा नाटककार और नाटक में भाग ले रहे लोगों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस नाटक को दिखने के लिए शहर के प्रबुद्ध जनों का जमावड़ा देखा गया।
आलोक शुक्ला
(समीक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक, निर्देशक और पत्रकार हैं।)
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