संशोधित नागरिक कानून (सी.ए.ए.) और एन.आर.सी. के विरोध में बैठे इन नागरिकों ने एक महीने से इस सड़क को घेर रखा है और यातायात को ठप्प कर रखा है। इस भीड़ में दो से दस साल के बच्चे भी शामिल हैं जो कि सी.ए.ए. शब्द बोल भी नहीं सकते, समझना तो दूर की बात है।

शाहीन दरअसल फ़ारसी ज़बान का शब्द है जिसका अर्थ होता है सफ़ेद शिकारी पक्षी… एक तरह का सफ़ेद बाज़। और आज यही शिकारी पक्षी नोयडा और दिल्ली को जोड़ने वाली सड़क पर अपने पंजे जमाए बैठा है। कालिंदी कुंज-शाहीन बाग़ मार्ग को प्रदर्शनकारियों ने धरना-प्रदर्शन करते हुए जाम कर रखा है। राजमार्ग पूरी तरह से बंद होने के कारण दिल्ली और एन.सी.आर. के निवासियों को – जिनमें वरिष्ठ नागरिक, मरीज़ और स्कूली बच्चे भी शामिल हैं – दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 

संशोधित नागरिक कानून (सी.ए.ए.) और एन.आर.सी. के विरोध में बैठे इन नागरिकों ने एक महीने से इस सड़क को घेर रखा है और यातायात को ठप्प कर रखा है। इस भीड़ में दो से दस साल के बच्चे भी शामिल हैं जो कि सी.ए.ए. शब्द बोल भी नहीं सकते, समझना तो दूर की बात है।

कहीं इस सफ़ेद बाज़ के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृह मन्त्री अमित शाह तो नहीं हैं। थोड़ी हैरानी अवश्य होती है कि पर्दे, बुरक़े और नक़ाब में रहने वाली मुस्लिम महिलाएं बीच सड़क धरना देकर किसलिये बैठी हैं। जिनके शौहर अपनी बीवियों को अकेले बाज़ारदारी के लिये घर से बाहर नहीं जाने देते वो कैसे बरदाश्त कर रहे हैं कि उनकी बीवियां, बहनें और माएं सड़क पर बैठी नारे लगा रही हैं।

और फिर नारे भी कैसे… “लेके रहेंगे आज़ादी… हम जिन्ना वाली आज़ादी। भला यह जिन्ना वाली आज़ादी का मतलब क्या है? क्या एक बार फिर से भारत के टुकड़े करवाने का इरादा है? जबसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आज़ादी के नारे लगने शुरू हुए हैं और भारते तेरे टुकड़े होंगे की आवाज़ उठने लगी है, तभी से ये नारे अब पूरे भारत में सुनाई देने लगे हैं।

मानना पड़ेगा कि काँग्रेस ने स्वाधीनता संग्राम के अपने नारे में कोई बदलाव नहीं किया। उन्हें लगता है कि जिस नारे से अंग्रेज़ों को भगाया था उसी नारी से अमित शाह और नरेन्द्र मोदी को भी ठिकाने लगा देंगे। या फिर यह केजरीवाल की कोई व्यूह रचना है?

जब कभी इन महिलाओं से पूछा गया तो यही जवाब मिला कि सी.ए.ए. लगा कर मोदी हम मुसलमानो को देश से बाहर निकालना चाहता है। ये कौन लोग हैं जो इन सरल दिमाग़ वाली औरतों के मनों में ज़हर भर रहे हैं। जिन्हें सी.ए.ए. और एन.आर.सी. का अर्थ तक नहीं मालूम वे भी यही कह रहे रहे हैं। आठ दस साल के बच्चे भी कह रहे हैं – ये सी.ए.ए. लगा कर मोदी हम मुसलमानों को मार देना चाहता है। 

इन बच्चों ने भारत का भविष्य बनना है। मगर उन्हें इस उम्र में वरगलाया जा रहा है। वैसे एक सवाल तो बनता है कि आख़िर इतने लोगों को खाना पीना कौन मुहैय्या करवा रहा है। और अगर औरतें सड़क पर बैठी हैं तो उनके परिवार के भोजन का इंतज़ाम कौन कर रहा है। ये ऐसे परिवार तो नहीं लगते जहां पुरुष महिला को खाना बना कर खिलाता हो। 

कहीं न कहीं तो इसकी सप्लाई लाईन होगी ही। क्या ये राजनीतिक दल हैं या फिर उन दलों के समर्थक जो देश को तबाह करने की सीमा तक ले आए हैं। 

यह कोई नारी शक्ति का प्रदर्शन नहीं है। यह केवल और केवल भारत को विश्व में बदनाम करने की एक बदनीयत चाल है। यदि भारतीय जनता पार्टी को चुनावों में नहीं हरा पाए तो अब इस गुरिल्ला वार से हराने की कोशिश की जाए। मगर यह कोशिश कश्मीर में पाकिस्तान की कोशिशों से ख़ासी मिलती जुलती है। क्या इस डेडलॉक में किसी विदेशी ताकत का हाथ भी हो सकता है?

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

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