Monday, May 20, 2024
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संजीव जायसवाल ‘संजय’ की कहानी – काश! तुम न मिले होते

काली अंधियारी रात में पहाड़ियों में पूर्ण निस्तब्धता छायी हुयी थी। श्रीनगर से 40 किमी. दूर इन पहाड़ियों का तापमान माईनस पांच डिग्री तक पहुंच चुका था। ऐसे में बाहर निकलना मौत को दावत देने के समान था।
ब्रिगेडियर बलवन्त खन्ना और कर्नल देवांशु राय आज सुबह एक जरूरी बैठक में भाग लेने श्रीनगर गये थे। उन्हें शाम तक वापस लौट आना था किन्तु दोपहर बाद हुयी तेज बर्फबारी के कारण सारे रास्ते बंद हो गये थे। इसलिये उन्हें श्रीनगर में ही रूकना पड़ गया था। ऐसे में सीमा पर स्थित इस कैम्प की जिम्मेदारी कैप्टन डाक्टर नेहा के उपर थी।
डिनर के बाद कैप्टन नेहा ने कैम्प का एक राउंड लिया। सुरक्षा-प्रहरी अपनी जगह मुस्तैद थे। उन्हें सावधानी बरतने के निर्देश देने के बाद वह अपने काटेज में आ बिस्तर पर लेट गयी। परन्तु नींद आज उनकी आंखो से कोसों दूर थी। पता नहीं यह जिम्मेदारी का एहसास था या छठी इन्द्री की जागरूकता।
करवटें बदलते-बदलते रात के एक बज गये। रूम हीटर के कारण कमरे का तापमान कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। नेहा ने बिस्तर से उठ कर हीटर की आंच कुछ कम की फिर कांच की खिड़की के पास आ बाहर के दृश्य निहारने लगी। रात्रि के सन्नाटे में शांत पहाड़ियों को निहारना उन्हें बहुत अच्छा लगता था।
अचानक ऐसा लगा जैसे जमीन पर कोई आकृति रेंगी हो। नेहा ने ध्यान से देखने की कोशिश की लेकिन सब कुछ शांत था। कहीं कोई हलचल नहीं थी। तो क्या यह उसके मन का वहम था? नहीं यह वहम नहीं हो सकता। नेहा ने अपनी दृष्टि कैम्प के बाहर लगे तारों पर टिका दी।
उसका अंदाजा सही निकला। अंधेरे में जमीन पर लेटी एक मानव आकृति तारों को काटने की कोशिश कर रही थी। नेहा के जबड़े भिंच गये। सोचने-समझने का समय शेष नहीं था। अगर तार कट गये तो ये घुसपैठिये किसी भी क्षण कैम्प पर हमला कर सकते थे। नेहा ने अपनी ड्राअर से रिवाल्वर निकाला। खिड़की खोल कर निशाना साधा और ट्रैगर दबा दिया।
‘‘धांय’’ की आवाज के साथ घुसपैठिये की चीख ने सन्नाटा भंग कर दिया। गोली उसके कंधे में लगी थी मगर गजब की फुर्ती दिखाते हुये उसने अपनी पीठ पर लदे बैग से दो हथगोले निकाल कर कैम्प की ओर उछाल दिये। तेज धमाकों से कैम्प की चाहरदीवारी ढह गयी और इसी के साथ तीन घुसपैठिये फायरिंग करते हुये कैम्प के अंदर घुसने लगे। किन्तु सुरक्षा-प्रहरियों ने मोर्चा संभाल लिया था। थोड़ी देर में तीनों घुसपैठिये मार गिराये गये।
रात्रि के सन्नाटे ने एक बार फिर वातावरण को अपने आगोश में ले लिया था। सुरक्षा-प्रहरी दम साधे काफी देर तक किसी हलचल का इन्तजार करते रहे किन्तु कहीं से कोई आहट सुनायी नहीं पड़ रही थी सिवाय उस घुसपैठिये की कराहने के जिसे कैप्टन नेहा की गोली लगी थी। सुरक्षा-प्रहरियों ने उस घुसपैठिये को कब्जे में ले लिया। अधिक खून बह जाने के कारण उसकी हालत काफी खराब हो गयी थी।
‘‘सर, हमारे कैम्प पर चार पाकिस्तानी घुसपैठियों ने हमले का प्रयास किया था। तीन मार गिराये गये हैं, चौथे को गोली लगी है। उसकी हालत काफी खराब है’’ कैप्टन नेहा ने वायरलेस पर ब्रिगेडियर खन्ना को रिपोर्ट दी।
‘‘कैप्टन, आप लोग सुरक्षित हैं न?’’ ब्रिगेडियर खन्ना के स्वर में चिंता झलक उठी।
‘‘यस सर, हम और हमारे जवान पूरी तरह सुरक्षित हैं। किसी को खरोंच तक नहीं आयी है।’’
‘‘वेरी गुड, कैप्टन’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने प्रसंशात्मक स्वर में कहा फिर बोले,‘‘मौसम बहुत खराब है। कल से पहले हमारा वहां पहुंच पाना मुश्किल है। आपको हर हालत में उस घुसपैठिये को जिंदा रखना होगा। उससे बहुत सी जानकारियां मिल सकती हैं।’’
‘‘ओ.के. सर, मैं पूरी कोशिश करूंगी’’ कैप्टन नेहा ने वायरलेस रखते हुये कहा।
‘‘मैडम, उस घुसपैठिये की हालत बहुत खराब है। लगता है बचेगा नहीं’’ तभी एक जवान ने आते हुये बताया।
‘‘उसे आपरेशन कक्ष में ले चलो। मैं उसका आपरेशन अभी करूंगी। उसे बचाया जाना बहूत जरूरी है’’ नेहा ने आदेश दिया।
‘‘जी मैडम’’ जवान सैल्यूट मार कर चला गया।
नेहा थोड़ी ही देर में आपरेशन कक्ष में पहुंच गयी। वह घुसपैठिया आपरेशन टेबल पर बेसुध पड़ा था। उसका पूरा शरीर और चेहरा खून से लथपथ था। मुंह पर मास्क और हाथों में ग्लब्ज पहनने के बाद नेहा उसके करीब पहुंची। एक पल के लिये उसे घनी दाढ़ी वाले उस घुसपैठिया का चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा। किन्तु अपने ख्यालों को दूर करते हुये नेहा ने उसकी नब्ज थामी। वह काफी धीमी चल रही थी। उसकी गोली जल्द निकालना जरूरी था वरना स्थित खतरनाक हो सकती थी।
नेहा ने ईशारा किया तो वार्ड ब्वाय ने उसके उपरी कपड़े उतार कर उसे उल्टा लिटा दिया। सिस्टर राईमा ने स्प्रिट से उसकी पीठ साफ करने के बाद नेहा को आगे बढ़ने का ईशारा किया। नेहा कैंची और चाकू लेकर आगे बढ़ी किन्तु उसकी गर्दन पर दृष्टि पड़ते ही उसका सर्वांग कांप उठा। ‘एन’ का बड़ा सा टैटू दूर से चमक रहा था। इसका मतलब यह जावेद था। तभी दाढ़ी से भरा उसका चेहरा जाना-पहचाना सा लगा था। इतने वर्षों बाद जावेद से इन परिस्थितयों में मुलाकात होगी यह बात कल्पना से भी परे थी। कड़कड़ाती ठंढ में भी नेहा के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। उसके हाथ कांपने लगे, कैंची और चाकू छूट कर नीचे गिर गये।
‘‘डाक्टर, क्या हुआ आपको? आप ठीक तो हैं?’’ घबरायी सिस्टर राईमा ने सहारा देकर नेहा को पास रखी कुर्सी पर बिठाल दिया।
वार्ड-ब्वाय ने जल्दी से गिलास में पानी भर कर उसकी ओर बढ़ाया। नेहा ने एक सांस में गिलास खाली कर दिया और सीने पर हाथ रख अपनी उखड़ी हुयी सांसो को नियंत्रित करने लगी।
‘‘आपकी तबियत ठीक न हो तो यह आपरेशन टाल दिया जाये’’ सिस्टर राईमा ने कहा।
‘‘नहीं, इसको बचाया जाना बहुत जरूरी है’’ नेहा के जबड़े भिंच गये और अपने को संभालते हुये वह उठ खड़ी हुयी।
‘‘लेकिन आपकी तबियत…’’
‘‘मुझे कुछ नहीं हुआ है। आप दूसरे औजार दीजये’’ नेहा ने सख्त स्वर में कहा।
सिस्टर राईमा ने दूसरे औजार दे दिये तो नेहा आपरेशन में जुट गयी। दो घंटे की मेहनत के बाद उसने गोली निकाल कर टांके लगा दिये। घुसपैठिये की हालत पहले से अच्छी थी किन्तु अभी भी वह खतरे से बाहर बाहर नहीं था।
‘‘सिस्टर, इसका खून बहुत बह गया है। स्टाक में अगर ‘ओ’ निगेटिव खून हो तो इसे चढ़ा दीजये’’ नेहा ने दस्ताने उतारते हुये कहा।
‘‘आपको कैसे मालूम कि इसका ब्लड गु्रप ‘ओ’ निगटिव है’’ सिस्टर राईमा ने आष्चर्य से नेहा की ओर देखा।
‘‘क्या मैने ‘ओ’ निगेटिव ब्लड चढ़ाने को कहा है?’’ नेहा बुरी तरह चौंक पड़ी।
‘‘यस डाक्टर।’’
‘‘बहुत कम्पलीकेटेड आपरेशन था इसलिये थक गयी हूँ। शायद तभी अन्जाने में मेरे मुंह से निकल गया होगा। भला बिना जांच किये किसी को खून कैसे चढ़ाया जा सकता है?’’ नेहा ने बात संभालने की कोषिष की।
‘‘इसके खून की जांच आपके ओ.टी. में आने से पहले ही कर ली गयी थी और आश्चर्य है कि वह ‘ओ’ निगेटिव ही है लेकिन…..’’
‘‘लेकिन क्या?’’
‘‘हमारे स्टाक में इस ग्रुप का ब्लड नहीं है और यह इतना दुर्लभ ग्रुप है कि इसका मिल पाना मुष्किल होगा।’’
‘‘कोई बात नहीं। मेरा ब्लड ग्रुप ‘ओ’ निगेटिव है। आप ले लीजये’’ नेहा ने कहा।
‘‘आप एक दुश्मन को अपना खून देंगी?’’ सिस्टर राईमा आश्चर्य से भर उठीं।
‘‘सिस्टर, आप नहीं जानती कि इसकी जान कितनी कीमती है। इसलिये समय बर्बाद मत करिये और जल्द से जल्द खून चढ़ाईये’’ नेहा का स्वर तेज हो गया।
सिस्टर राईमा ने कुछ अजीब नजरों से नेहा को देखा। जैसे वह कोई अबूझ पहेली हो। फिर मशीनी ढंग से नेहा को दूसरे बेड पर लिटा कर उसका खून लेने लगी। नेहा का चेहरा संज्ञाहीन सा हो गया था और वह आंखें बंद करके लेटी रही।
खून देने के बाद उसने आपरेशन टेबल पर बेसुध पड़े घुसपैठिये पर एक दृष्टि डाली फिर बोली,‘‘सिस्टर, इसे वार्ड में शिफ्ट कर दीजये और सिक्योरिटी गार्ड से कह कर इसके दोनों पैरों में बेड़ियां पहनवा दीजये।’’
‘‘उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। इसकी हालत काफी खराब है और यह अभी एक-दो दिन उठ पाने की भी स्थित में नही होगा’’ सिस्टर राईमा ने कहा।
‘‘मैं किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती। इसलिये जो कहा जा रहा है वह करिये’’ आदेश देकर नेहा वहां से चल दी।
अपने काटेज में आते ही वह बिस्तर पर गिर पड़ी। उसके अंतर्मन में तूफान समाया हुआ था। अभी तक बहुत मुश्किलों से वह अपने को संभाले हुये थी लेकिन एकान्त का सहारा पाते ही उसका दर्द आंसू बन कर बाहर निकल पड़ा। उसे लंदन की वह रात अभी तक याद थी जब वह इसी तरह फूट-फूट कर रोयी थी।
नेहा के डैडी भारतीय उच्चायोग में अधिकारी थे। सीनयर कैम्ब्रिज में जावेद उसका सहपाठी था। उसके डैडी पाकिस्तान उच्चायोग में अधिकारी थे। नेहा और जावेद के घर आस-पास थे। सहपाठी होने के नाते दोनों एक साथ कालेज आते-जाते थे। किसी को इसमें कोई एतराज भी न था। सीनयर कैम्ब्रिज के बाद दोनों ने ग्रेजुऐशन के लिये इम्पीरियल कालेज लंदन में एडमीशन ले लिया। वहीं एक खूबसूरत शाम जावेद ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था। नेहा तो कब से उसे अपना मान चुकी थी। दोनों की जिंदगी में बहार आ गयी थी। हंसते-खिलखिलाते खुशियों भरे दिन तेजी से बीतने लगे।
एक दिन थेम्स नदी के किनारे जावेद की गोद में सिर रख कर लेटी नेहा ने पूछा,‘‘जावेद, तुम कभी मुझे भूल तो नहीं जाओगे?’’
‘‘मेरे दिल पर तुम्हारा नाम लिखा है। तुम्हें भूलने से पहले मुझे अपने को भूलना होगा’’ जावेद मुस्कराया।
‘‘मेरा नाम कहां लिखा है? दिखायी तो नहीं पड़ रहा’’ नेहा खिलखिला कर हंस पड़ी।
‘‘मैं अपना दिल तो नहीं चीर सकता लेकिन तुम्हारा नाम जरूर दिखाउंगा’’ जावेद ने कहते हुये अपने शर्ट के कालर को खींच कर अपनी गर्दन नेहा के आंखों के सामने कर दी।
वहां ‘एन’ का खूबसूरत सा टैटू बना हुआ था। नेहा उसे देख चिंहुक उठी,‘‘मेरा नाम तुमने कब लिखवाया?’’
‘‘जिस दिन तुमने मेरे प्यार को कबूल किया था।’’
‘‘तो अब तक बतलाया क्यूं नहीं?’’
‘‘कुछ चीजें बतलायी नहीं जाती है, महसूस की जाती हैं’’ जावेद हल्का सा मुस्कराया फिर बोला,‘‘अब तुम मेरे साथ रहो या न रहो तुम्हारा नाम सदा मेरे साथ रहेगा।’’
‘‘ऐसा मत कहो। मैं तुम्हारी हूं और सदा तुम्हारी रहूंगी। हमें एक-दूजे से कोई अलग नहीं कर सकता’’ नेहा ने जावेद के होठों पर हाथ रख दिये।
उन दोनों का प्यार गुपचुप तरीके से परवान चढ़ रहा था। मगर नेहा की मम्मी की अनुभवी आंखो ने बेटी की आंखो में छाये प्यार के रंग को जल्द ही पढ़ लिया। बेटी एक पाकिस्तानी से प्यार करती है यह जान उसके डैडी बुरी तरह भड़क उठे थे।
नेहा को डैडी की ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद न थी। वह उन्हें बहुत प्रगतशील मानती थी। उसने कहा,‘‘डैडी, आप इतने सालों से लंदन में रह रहे हैं और अभी भी जांत-पात को मानते हैं? क्या फर्क हैं हममें और पाकिस्तानियों में? हमारा रंग एक, रूप एक। हमारी नदियां और पहाड़ एक, फसलें और श्रृतुएं एक। अगर अंग्रेजो ने कृत्रिम बंटवारा न कर दिया होता तो आज हम सब एक देश के वासी होते।’’
‘‘तुम जो कह रही हो वह सब ठीक है लेकिन यह रिश्ता नहीं हो सकता।’’
‘‘क्यूं नहीं हो सकता? क्या कमी है जावेद में?’’ नेहा तड़प उठी।
‘‘कोई कमी नहीं हैं उसमें मगर वह पाकिस्तानी है’’ डैडी ने नजरें चुराते हुये कहा।
‘‘क्या पाकिस्तानी होना गुनाह है? उसे भी उसी भगवान ने बनवाया है जिसने हमें बनाया है’’ नेहा का स्वर तेज हो गया।
डैडी ने बेटी के स्वर में विद्रोह की खनक को भांप लिया था। उन्होंने बेबसी से हाथ मलते हुए कहा,‘‘पाकिस्तानी होना गुनाह नहीं है लेकिन हमारा भारतीय उच्चायोग में और जावेद के अब्बा का पाकिस्तानी उच्चायोग में नौकर होना गुनाह है। हमारी सरकारें कभी भी इस शादी की इजाजत नहीं दे सकतीं।’’
इतना कह कर वे पल भर के लिये रूके फिर बोले,‘‘लेकिन तुम चिन्ता मत करो। मैं नौकरी से इस्तीफा दिये दे रहा हूं। उसके बाद तुम जावेद से शादी कर सकती हो।’’
‘‘आप नौकरी छोड़ देगें?’’ नेहा ने आश्चर्य से डैडी के चेहरे की ओर देखा।
‘‘हां बेटी, तुम मेरी एकलौती संतान हो। तुम्हारी खुशी के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूं’’ डैडी ने स्नेह से नेहा के सिर पर हाथ फेरा।
‘‘नौकरी छोड़ देगें तो करेगें क्या?’’ नेहा को अपना स्वर डूबता सा लगा।
‘‘इंडिया में हम लोगों की पुश्तैनी खेती है। गांव जाकर उसे संभालूंगा।’’
‘‘आप गांव जाकर खेती करेगे?’’ नेहा को अपने सुने पर विश्वाश नहीं हुआ।
‘‘इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। जावेद से शादी करके तुम खुश रहोगी और तुम्हारी खुशी ही हम लोगों की खुशी है’’ डैडी ने मुस्कराने का प्रयास किया।
‘‘डैडी’’ नेहा बांहे पसार डैडी से लिपट पड़ी। उसकी आंखो से आंसू बह निकले। उसे डैडी की मजबूरी का एहसास हो चला था। अपनी खुशियों के लिये वह डैडी की जिंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती थी।
उसने डैडी से माफी मांग कर जावेद को हमेशा के लिये भूल जाने का वायदा कर लिया। उधर जावेद के घर में भी वही हुआ जो नेहा के घर में हुआ था। उसके अब्बा ने भी इस शादी से साफ इन्कार कर दिया था।
नेहा के डैडी समझदार थे। जानते थे कि दबी हुयी मोहब्बत की राख से कभी भी चिन्गारी भड़क सकती है। उन्होंने दो दिन बाद ही नेहा को इंडिया भेजने का इन्तजाम कर दिया था और उससे वादा ले लिया कि वह अब जावेद से कभी नहीं मिलेगी।
उस दिन नेहा ने डैडी से इजाजत लेकर जावेद से आखिरी मुलाकात की थी। दोनों एक मत थे कि अपनी मोहब्बत की खातिर वे अपने परिवार को मुसीबत में नहीं डाल सकते। फिर कभी न मिलने का वादा कर दोनों ने उस दिन एक-दूसरे से हमेशा-हमेशा के लिये विदा ले ली थी।
इंडिया आकर नेहा ने ए.एफ.एम.सी पूना की परीक्षा दी। पहले ही प्रयास में उसका मेडिकल में चयन हो गया। पांच वर्ष की पढ़ाई के बाद उसकी नियुक्ति भारतीय सेना के मेडिकल कोर में कैप्टन के रूप में हो गयी थी। पिछले छै माह से वह सीमा पर स्थित इस कैम्प में तैनात थी।
जावेद और नेहा ने एक दूसरे से कभी न मिलने का वादा किया था और दोनों ने इस वादे को पूरी ईमानदारी से निभाया भी था। किन्तु यह वादा इस रूप में टूटेगा यह कल्पना से भी परे था। आज तो जावेद बेहोश था लेकिन कल जब उसे पता चलेगा कि उसे गोली नेहा ने मारी है तब उसके दिल पर क्या बीतेगी? कैसे कर पायेगी वह उसकी आंखो का सामना? नेहा जितना सोचती उसका कलेजा उतना ही बैठता जा रहा था।
जावेद उसका प्यार था और उसने अपने प्यार पर ही गोली चला दी? यह सोच नेहा अपराधबोध से ग्रसित हो उठती तो उसका जमीर समझाने लगता कि जावेद एक घुसपैठिया है उसे गोली मार कर उसने अपने फर्ज को पूरा किया है। लेकिन अगर तुम जावेद का चेहरा देख पाती तो क्या उसके उपर गोली चला पाती? अगले ही पल नेहा की अन्र्तआत्मा उसको चुनौती देने लगती। एक अजीब से कशमकश में फंस गयी थी वह।
जावेद, प्यार, फर्ज और घुसपैठिया? सब गडमगड होने लगे। जावेद जो अपने क्लास का टॅापर था एक घुसपैठिया कैसे बन गया? नेहा की समझ से परे था। वह जितना सोचती उतना बेचैन होती जाती। बेचैनी जब हद से पार होने लगी तब वह अनायास ही उठ कर वार्ड की ओर चल दी। बाहर सुरक्षा-प्रहरी मुस्तैदी से तैनात था। उसके सेल्यूट का जवाब देतीे हुये नेहा वार्ड के भीतर पहुंची।
जावेद बिस्तर पर बेसुध पड़ा था। उसके मुंह पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ था और दोनों पैरों में बेड़ियां। होश आने पर उससे लंबी पूंछताछ होगी। थर्ड डिग्री का टार्चर! लंबी अदालती कार्यवाई! फिर आजीवन कारावास या फांसी की सजा! अब तिल-तिल करके मरना होगा जावेद को। इससे अच्छा होता कि उसकी गोली से ही उसकी मौत हो गयी होती।
नेहा का कलेजा बैठा जा रहा था। उसके कारण ही उसके प्यार को वे तकलीफें भोगनी पड़ेंगी जिसे सोच कर ही रूह कांप जाती है। तो क्या करे वह? मुक्ति दिला दे जावेद को इन सब तकलीफों से? सिर्फ चंद पलों के लिये आक्सीजन मास्क ही तो हटाना पड़ेगा उसके बाद सब कुछ शांत हो जायेगा। हमेशा-हमेशा के लिये। किसी को पता भी नहीं चलेगा। हां यही ठीक रहेगा। जिसके साथ कभी साथ निभाने का वादा किया था उससे मिलन नहीं हो सकता तो कम से कम उसकी विदाई को तो कुछ आसान बना दे। यही सच्ची वफा होगी अपनी मोहब्बत से।
सधे कदमों से वह जावेद के करीब पहुंची। ‘अलविदा जावेद, इस जन्म में हम न मिल सके लेकिन अगले जन्म में जरूर मिलेगें।’ आक्सीजन मास्क हटाने से पहले नेहा ने जावेद का हाथ थाम वादा किया। लेकिन यह क्या? उसकी नब्ज तो बहुत धीमी चल रही थी। चंद पलों का मेहमान था वह। बिदाई का पल करीब आ गया था।
‘‘सिस्टर, सिस्टर….जल्दी से एड्रीनील का इंजेक्शन लाओ’’ अचानक नेहा के अंदर का डाक्टर जाग उठा और वह पूरी ताकत से चिल्लायी।
सिस्टर राईमा बगल के केबिन में थी। वे फौरन इंजेक्शन लेकर आयीं और जावेद की बांह में लगा दिया फिर बोली,‘‘डाक्टर, आप इस समय कैसे?’’
‘‘ब्रिगेडियर साहब के आदेश हैं कि इस घुसपैठिये को हर हालत में जिंदा रखना जरूरी है। इसीलिये मैं इसे देखने आयी थी’’ जावेद की प्रेयसी को पीछे छोड़ नेहा के अंदर की कैप्टन अचानक सामने आ गयी और मोर्चा संभालते हुये बोली,‘‘बहुत दिनों बाद हम किसी घुसपैठिये को जीवित पकड़ पाये हैं। इससे बहुत सी जानकारियां हासिल हो सकती हैं। इसलिये इसको बचाया जाना जरूरी है। आप यहीं रह कर इसकी मानीटरिंग करिये और कोई भी गड़बड़ हो तो मुझे खबर करियेगा।’’
सिस्टर राईमा को आदेश दे वह काटेज की ओर लौट पड़ी किन्तु उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसके अंदर एक अजीब सा द्वन्द चल रहा था। वह तय नहीं कर पा रही थी कि वह जो करने जा रही थी वह ठीक था या वह जो करके आ रही है वह ठीक है।
एक प्यारा सा इन्सान आतंकवादी बन गया था। कहीं इसका कारण उसकी टूटी हुयी मोहब्बत तो नहीं? यह सोच नेहा के दिल का दर्द बढ़ता जा रहा था। बिस्तर पर गिरकर वह एक बार फिर फूट-फूट कर रोने लगी।
कांटो पर करवट बदलते नेहा की रात बहुत मुष्किलों से बीती । अगली सुबह जब वह मेडिकल यूनिट पहुंची तो सिस्टर राईमा ने बताया कि उस घुसपैठिये को होश आ गया है और उसकी हालत काफी बेहतर है। नेहा ने राहत की सांस ली किन्तु अगले ही पल परेशान हो उठी। कैसे सामना कर पायेगी वह जावेद का? जावेद की क्या प्रतिक्रिया होगी उसे देख कर? इन प्रश्नों का कोई उत्तर न था किन्तु मरीज के पास जाना जरूरी था। कुछ सोच कर उसने अपने चेहरे पर मास्क पहन लिया। कम से कम आज तो चेहरा छुप जायेगा फिर नियति को जो मंजूर होगा देखा जायेगा।
‘‘कैप्टन, नेहा क्या आज फिर कोई आपरेशन करने जा रही हैं जो मास्क पहना है’’ तभी ब्रिगेडियर खन्ना ने वहां आते हुये कहा।
‘‘जय हिन्द, सर’’ नेहा ने सेल्यूट मारा फिर बोली,‘‘मुझे कुछ इंफेक्शन हो गया है इसलिये घायल के पास जाने से पहले मास्क पहन लिया है ताकि इंफेक्शन उसे न हो जाये।’’
‘‘ओ.के’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने सिर हिलाया फिर बोले,‘‘कोई जानकारी मिली उससे?’’
‘‘सर, उसे अभी थोड़ी देर पहले ही होश आया है इसलिये पूछताछ नहीं हो पाई है’’ सिस्टर राईमा ने बताया।
‘‘ओ.के’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने कहा फिर वार्ड में घुस कर जावेद की ओर बढ़े। नेहा और सिस्टर राईमा उनके पीछे-पीछे थीं।
‘‘कैसे हैं जनाब?’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने उसके करीब पहुंचते हुये पूछा।
‘‘आप हिन्दुस्तानी भी अजीब हैं। शैतान और फरिश्ता दोनों के रोल खुद ही अदा कर लेते हैं’’जावेद अपने सूखे होठों पर जीभ फिराते हुये बोला।
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘सुना है जिस डाक्टर ने मुझे गोली मारी थी उसी ने मेरी गोली निकाली है और अपना खून भी दिया है’’ जावेद हल्का सा मुस्कराया फिर बोला,‘‘माशाअल्लाह, अगर जान बचानी ही थी तो लेने की कोशिश क्यूं की?’’
‘‘जान लेने की कोशिश हम लोग नहीं बल्कि तुम लोग करते हो। बताओ क्यूं आये हो यहां और क्या योजना थी तुम लोगों की?’’ ब्रिगेडियर खन्ना का स्वर सख्त हो गया।
‘‘ब्रिगेडियर साहब, क्यूं अपना वक्त जाया कर रहे हैं। आपको तो मालूम ही है कि हम जेहादी सर पर कफन बांध कर चलते हैं। जान दे देगें मगर अपना राज नहीं खोलेगें’’ जावेद हल्का सा हंसा फिर बोला,‘‘हां, आप से एक बात बताने की गुजारिश जरूर करूंगा।’’
‘‘कैसी बात?’’
‘‘वह डाक्टर कौन हैं जिसने मुझे अपना खून दिया है?’’
‘‘क्या उनका शुक्रिया अदा करना चाहते हो?’’
‘‘कुछ ऐसा ही समझ लीजये’’ जावेद एक बार फिर मुस्कराया।
‘‘वह फरिश्ता तुम्हारे सामने ही है’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने नेहा की ओर ईशारा किया।
जावेद अपने दोनों हाथ जोड़ते हुये नेहा की ओर झुका। नेहा के दिल की धड़कने तेज हो गयीं। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करे। तभी वह हुआ जिसकी किसी को कल्पना भी न थी। जावेद ने चीते के फुर्ती से झपट कर एक हाथ से ब्रिगेडियर खन्ना के होलस्टर से पिस्तौल निकाल लिया और दूसरे हाथ से नेहा को दबोच लिया।
‘‘ब्रिगेडियर, दूर हट जाओ वरना इस डाक्टर की खोपड़ी उड़ा दूंगा’’ जावेद पिस्तौल नेहा की कनपटी पर तानते हुये चीखा।
‘‘इस डाक्टर ने तुम्हारी जान बचायी है’’ हतप्रभ ब्रिगेडियर खन्ना चीख पड़े।
‘‘लेकिन इसी की वजह से मेरा मिशन नाकामयाब हो गया है’’ जावेद के गले से गुर्राहट निकली। उसके चेहरे का रंग अचानक ही बदल गया और आंखे लाल अंगारा हो उठी थी।
उसके चेहर पर छाये जुनून को देख ब्रिगेडियर खन्ना हल्का सा पीछ हटे तो जावेद दांत पीसते हुये गुर्राया,‘‘जल्दी से मेरे पैरों की बेड़ियां खुलवाओ वरना अंजाम अच्छा न होगा।’’
‘‘तुम यहां से बच कर नहीं जा सकते। भलाई इसी में है कि पिस्तौल फेंक दो’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने सख्त स्वर में समझाया।
‘‘आप मेरी नहीं इस डाक्टर की भलाई की चिन्ता कीजये। अगर मेरी बेड़ि़यां नहीं खोली गयीं तो मैं इसकी खोपड़ी खोल दूंगा’’ जावेद के आवाज की तल्खी बढ़ती जा रही थी।
ब्रिगेडियर खन्ना के चेहरे पर असमंजस के चिन्ह उभर आये। यह देख नेहा चीख पड़ी,‘‘सर, आप मेरी चिन्ता मत करिये। यह आतंकवादी यहां से जाने न पाये।’’
‘‘मैं आतंकवादी नहीं हूं’’ जावेद चीख पड़ा।
‘‘तो क्या हो तुम?’’
‘‘मैं जे़हादी हूं’’ जावेद चीखा लेकिन उसके चेहरे पर नेहा की आवाज सुन उलझन के चिन्ह उभर आये थे।
‘‘यह खून-खराबा और कत्लेआम दहशतगर्दी है। यह जेहाद नहीं है। इसे छोड़ दो तुम’’ नेहा के स्वर में उसका दर्द उभर आया।
‘‘कौन हो तुम?’’ जावेद का स्वर कांप सा उठा। शायद इस माहौल में भी उसने नेहा की आवाज पहचान ली थी। अपना शक मिटाने के लिये उसने पिस्तौल वाले हाथ से नेहा के चेहरे का मास्क हटा दिया।
‘‘तुम!’’ नेहा का चेहरा देखते ही वह बुरी तरह चौंक पड़ा।
‘‘हां, जावेद मैं’’ नेहा सिसक पड़ी।
‘‘नेहा, काश तुम न मिली होती’’ जावेद का स्वर कांप उठा।
‘‘हां, जावेद, काश तुम न मिले होते’’ नेहा सिसक उठी फिर अपने को संभालते हुये बोली,‘‘इस खून-खराबे से कुछ नहीं हासिल होने वाला। छोड़ दो यह सब।’’
‘‘नहीं नेहा, अब बहुत देर हो चुकी है। हमने जेहाद की कसम खायी है और अपने मकसद को पूरा करने के लिये हम कुछ भी कर सकते हैं’’ जावेद की आंखो से भी आंसू बह निकले लेकिन उसने नेहा की गर्दन पर अपनी पकड़ कुछ और मजबूत कर दी फिर ब्रिगेडियर खन्ना की ओर देखते हुये बोला,‘‘हम जेहादी अपनी राह में आयी हर रूकावट को दूर कर देते हैं। इसके लिये अपने-पराये का भेद नहीं करते। आप जल्दी से मेरी बेड़िया खुलवाइये वरना इस डाक्टर की मौत की जिम्मेदार आप होगें।’’
‘‘तुम कैप्टन नेहा को नहीं मार सकते’’ ब्रिगेडियर खन्ना को उन दोनों के रिश्ते का आभास हो गया था।
‘‘धांय’’ जावेद के पिस्तौल से निकली गोली नेहा के बालों को छूते हुये निकल गयी और वह दांत पीसते हुये दहाड़ा,‘‘ ब्रिगेडियर, बेड़ियां खुलवाओ वरना अगली गोली तुम्हारी कैप्टन के ज्यादा करीब से गुजरेगी।’’
जावेद के चेहर पर छाये जुनून को देख ब्रिगेडियर खन्ना समझ गये थे कि अपनी बात मनवाने के लिये वह कुछ भी कर गुजरेगा। उन्होनें सिस्टर राईमा से कहा,‘‘गार्ड से कहिये कि इसकी बेड़िया खोल दे।’’
‘‘सर, मेरी चिन्ता मत करिये। देश के लिये कुर्बानी देकर मुझे फख्र हासिल होगा। आप इसकी बेड़िया मत खुलवाईये’’ नेहा चीख पड़ी।
‘‘कैप्टन, आपकी जान इस आतंकवादी से ज्यादा कीमती है। इसकी कीमत पर मैं आपको नहीं खो सकता’’ ब्रिगेडियर खन्ना ने ईशारा किया तो सिस्टर राईमा गार्ड को बुला लायीं।
नेहा मना करती रही लेकिन गार्ड जावेद की बेड़िया खोलने लगा। किन्तु भय के कारण उसके हाथ कांप रहे थे इसलिये वह सही चाभी नहीं लगा पा रहा था। देर होती देख जावेद की झल्लाहट बढ़ती जा रही थी और वह गार्ड को बेडिंया जल्दी खोलने के लिये डपट रहा था।
नेहा को भी इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि गार्ड को बेड़िया खोलने में इतनी देरी क्यूं हो रही है। उसने गार्ड की ओर देखा तो उसने अपनी आंखो से ईशारा किया तो नेहा ने देखा कि गार्ड की कमर में भी एक रिवाल्वर लगी हुयी है।

पलक झपकते ही रिवाल्वर खींच वह जावेद के उपर तानते हुये गुर्रायी,‘‘तुम यहां से बच कर नहीं जा सकते। तुम्हारी भलाई इसी में है कि आत्मसर्मपण कर दो।’’

‘‘नेहा, मत भूलो कि तुम भी मेरे निशाने पर हो’’ जावेद दांत भींचते हुये चीखा। उसके चेहरे का तनाव काफी बढ गया था।
‘‘और तुम मेरे निशाने पर हो। मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें यहां से जाने नहीं दे सकती’’ नेहा की पकड़ रिवाल्वर पर सख्त हो गयी और उसके चेहरे पर शहादत के चिन्ह छा गये थे।
‘‘तुम्हें एक दूसरे के साथ जीने-मरने का अपना वादा तो याद होगा?’’ जावेद ने अपने पिस्तौल की चुभन नेहा की कनपटी पर बढ़ाते हुये उसकी आंखो में झांका।
‘‘अच्छी तरह याद है’’ नेहा ने दांत भींचे।
‘‘तो समझ लो उसे पूरा करने का वक्त आ गया है’’ जावेद की उंगलियां पिस्तौल के ट्रैगर पर कस गयीं।
नेहा ने भी अपनी उंगलियों का दबाव रिवाल्वर के ट्रैगर पर बढ़ा दिया किन्तु इससे पहले कि वह कुछ कर पाती। धांय….धांय….धांय… जावेद ने अपने रिवाल्वर की गोलियां अपने सीने में उतार लीं।
‘‘जावेद……यह क्या किया तुमने?’’ रिवाल्वर नेहा के हाथ से छूट गया और वह बुरी तरह फफक पड़ी।
जावेद ने डबडबायी आंखो से नेहा की ओर देखा फिर उसके होंठ थरथराए,‘‘मोहब्बत में त्याग करने का हक सिर्फ तुम हिन्दुस्तानियों को ही नहीं है, हमारे यहां भी कुर्बानी देने का रिवाज है।’’
‘‘जावेद’’ नेहा के होंठ कांप उठे।
जावेद का शरीर बुरी तरह तड़प रहा था किन्तु उसके होठों पर दर्द भरी मुस्कान तैर उठी,‘‘खुशनसीब हूं मैं जो मुझे अपने गुनाहों की सजा उसकी बांहो में मिल रही है जिसे मैने अपनी जिंदगी माना था। अब मुझे अपनी जिंदगी से कोई शिकवा नहीं है वरना तुमसे बिछडने के बाद मैं राह से भटक गया था।’’
इसी के साथ जोर की हिचकी आयी और जावेद की सांस रूकने सी लगी। उसने अपना कंपकपाता हुआ हाथ नेहा की ओर बढ़ाया।
नेहा ने असमंजस भरी दृष्टि से ब्रिगेडियर खन्ना की ओर देखा तो वे बोले,‘‘इसका हाथ थाम इसकी विदाई को आसान कर दो।’’
‘‘सर’’ नेहा के होंठ थरथराये।
‘‘हां बेटी, यह एक बिग्रेडियर का आदेश नहीं बल्कि एक बाप का अपनी बेटी से अनुरोध है’’ ब्रिगेडियर खन्ना का स्वर भी भारी हो गया।
नेहा के सिर से जैसे बोझ उतर गया हो। उसने फफकते हुये जावेद का हाथ थाम लिया तो उसके मुरझाये होठों पर शांति की मुस्कान तैर गयी,‘‘हमने अपने वालिदान से किया गया कौल निभाया है। हम नहीं मिलेगें। कभी नहीं मिलेगें।’’
इसी के साथ जावेद का शरीर एक बार फिर जोर से तड़पा और हमेशा-हमेशा के लिये शांत हो गया।

संजीव जायसवाल ‘संजय’
सी-5300, सेक्टर-12,
राजाजीपुरम, लखनऊ -226017
मो0 7318213943
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4 टिप्पणी

  1. आदरणीय संजीव जायसवाल संजय जी आपकी कहानी पढ़ी बहुत मार्मिक और प्रभावी लगी राष्ट्रहित को सर्वोपारी मानना और अपने स्वजनों से किए वादे निभाना भी बहुत बड़ा त्याग माना जाता है जिसे कहानी मे आपने बहुत बेहतर दर्शाया है और फिर सच्चे प्यार और त्याग से तो पत्थर भी पिघल जाते है एक आतंकवादी का ह्रदय परिवर्तन प्रेरक घटना के रूप मे चित्रित की आपने बहुत बधाई
    महेश शर्मा धार वाले —लखनऊ

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