‘बसंती की बसंत पंचमी’ शीर्षक से प्रबोध गोविल जी की पुस्तक पढ़ी। यह शीर्षक क्यों था और कवर पर बुजुर्ग स्त्री की तस्वीर क्यों थी यह लेखक ही बता पायेंगे।
पुस्तक में तीन अति लघु उपन्यास या दो लंबी कहानियाँ और एक लघु उपन्यास है, ऐसा भी कह सकते हैं ।
पहले कथानक में राजसी परिवार से जुड़ी भारतीय स्त्री से विदेश में गये एक भारतीय पत्रकार का परिचय होता है । उसके हनिमून सूइट में रहने के कारण पत्रकार का खोजी दिमाग स्त्री के चरित्र की छानबीन करना और उस पर संदेह करना शुरु कर देता है । फोटो आदि सहित साक्ष्य जुटाने में जुट जाता है मगर उसके खुद के चरित्र की छानबीन हो जाती है। साक्ष्य जुटा लिये जाते हैं । रोचक कृति है । अंत तक रुचि बनी रहती है। पुरुष और स्त्री की मानसिकता का बेहतरीन चित्रण किया है ।
दूसरा कथानक कोरोना काल पर आधारित है। मध्यम वर्ग की स्त्रियाँ काम वाली के बिना परेशान हैं । एक स्त्री का बेटा और उसके दोस्त मिलकर उनकी महत्वाकांक्षाओं और जरूरतों का उपहास उड़ाकर मस्ती करते हैं । अपनी मित्र को उनके यहाँ कामवाली बनाकर भेज देते हैं । पैसे तक वसूल लेते हैं । अंत में, उन्होंने गलत किया है यह संदेश भी दिया गया है।तीसरे कथानक में ऐसा विषय लिया गया है जिसकी गुत्थी मेडिकल विज्ञान ही सुलझा सकता है । पुरुष का पुरुष के प्रति आकर्षण समझ से बाहर का विषय है । जिसमें पाठक उलझकर रह जाता है । किस तरह समलैंगिक व्यक्ति का जीवन तबाह होता है यह भी दिखाया गया है । इस विषय से हर व्यक्ति कतराता है क्योंकि यह पहेली वह बुझा नहीं पाता । स्त्री के प्रति स्त्री का आकर्षण नहीं होता । अपने आसपास स्त्री शोषण देखकर स्त्री के मन में पुरुष के प्रति घृणा का बीज़ अंकुरित हो जाता है वह आत्मीय स्त्री मित्र जो समान मानसिकता की होती है उसके साथ जीवन जीने का फैसला कर लेती है यद्यपि उसका पुरुष के प्रति प्राकृतिक आकर्षण खत्म नहीं होता मगर पुरुष का पुरुष के प्रति आकर्षण शायद कोई मानसिक – दैहिक असंतुलन का परिणाम है । इस पर मेडिकल शोध पढ़ने की आवश्यकता है । यह विषय आम पाठक की समझ से परे का विषय है।
यद्यपि तीनों कृतियाँ दिल को छूती हैं और याद रह जाती हैं । सिद्धहस्त लेखक ने रचनाकर्म में जिस विषय को लिया उसके प्रति न्याय किया है । रोचकता बनी रही है । यह समय लघु उपन्यासों का ही है । 120 पन्नों में तीनों कथाएँ समेट दी गई हैं मगर पढ़ते हुये यह भी नहीं लगता कि समेटी हैं । पाठक इन्हें तीन लंबी कहानियाँ कहेगा या तीन लघु उपन्यास यह बाकी पाठकों या समीक्षकों पर छोड़ देते हैं । किताब सराहनीय है, उत्तम है, अवश्य पढ़नी चाहिये।
शीर्षक तथा मुखपृष्ठ पर लेखक/प्रकाशक का दृष्टकोण ::
“बसंती की बसंत पंचमी” शीर्षक से दूसरे कथानक में एक फिल्म का जिक्र है उसे ही नाम का आधार बनाया गया है। भीष्म साहनी का एक बहुत प्रसिद्ध उपन्यास “बसंती” था जो घरेलू काम वाली बाई की समस्या पर आधारित था, उसी की प्रेरणा से यह नाम लिया गया है जब इस समस्या का स्वरूप बदल चुका है।
कवर का चित्र तीसरे कथानक से संबंधित है जिसमें खिलाड़ी लड़कों के फ़ोटो हैं। कवर पर बुजुर्ग महिला नहीं, पुरुष ही है, वो राजकुमार जो बचपन में अपने अपराध की सज़ा पाकर विदेश चला गया और अब अज्ञातवास काट रहा है। उसका चेहरा स्त्रैण ही लिया गया है क्योंकि यही उसके दुर्भाग्य का कारण बना। यही बुजुर्ग राजकुमार अंत में विजेताओं को पुरस्कार देने के लिए बुलाया जाता है।

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