Saturday, July 27, 2024
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गरिमा भाटी ‘गौरी’ की कविता – बेटियां

बेटों के लिए बांधे जाते हैं
मन्नतों के धागे,
बिन माँगे ही मिल जाती हैं बेटियाँ।
हर मुश्किल को
दरकिनार कर
पाल पोस कर बड़ी कर दी जाती हैं बेटियाँ।
जीवन भर की पूँजी लगा कर
एक आँगन से उखाड़ कर
दूसरे आँगन में रोंप दी जाती हैं बेटियाँ
खड़े रहेंगे दुख तकलीफ़ों में
हमेशा उसके लिए
इस उम्मीद में नज़दीक ही ब्याह दी जाती हैं बेटियाँ।
ना पीहर की रहती हैं,
और ना ही ससुराल की हो पाती हैं,
हमेशा ही दोराहे पर खड़ी नज़र आती हैं बेटियाँ।
ना ससुराल में इज़्ज़त मिल पाती है,
और ना पीहर में,
एक रोज़ कहीं की नहीं रह जाती हैं बेटियाँ।
भले ही कोई ख़ुशियों में पूछे
या ना पूछे उन्हें
लेकिन तकलीफ़ों में सबसे पहले खड़ी नज़र आती हैं बेटियाँ।
जिस घर में अपने जीवन का
एक बड़ा हिस्सा बिताती हैं,
फिर एक दिन वहीं से दुत्कार दी जाती हैं बेटियाँ।
जिन रिश्तों के लिए जला देती हैं
मन और शरीर दोनों को
उन्हीं रिश्तों की भट्टी में सबसे पहले झोंकी जाती हैं बेटियाँ।
जिस घर में छुपी है
उनके बीते कल की परछाईं,
उसी घर जाने के लिए तड़पती सी नज़र आती हैं बेटियाँ।
बचपन बीता जिस घर में लड़ते झगड़ते,
उसी घर में
माँ – बाप के जीते जी ही अनाथ कर दी जाती हैं बेटियाँ।
गरिमा भाटी “गौरी”
फरीदाबाद,हरियाणा (भारत)
संपर्क – [email protected]
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