दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 का प्रस्थान. अपने कपड़ों, सेहत, चाल-ढाल और बोली से बहुत साधारण से दिखने वाले पति-पत्नी और उनके संग दो छोटे बच्चे—दोनों ही लडकियां—नवंबर के आखिरी दिनों की एक ठंडी सुबह गेट नंबर पांच के सामने थोड़े परेशान और उदास-से खड़े हैं. उनके साथ हक्के-बक्के-से एक बुजुर्ग भी हैं. अभी सैनिकों का एक दल गेट नंबर तीन से भीतर गया है. 
आदमी की उम्र पच्चीस के आस-पास होगी. छोटा कद, पतला-दुबला शरीर, ठंड को देखते हुए कम कपड़े. उसकी छोटी बेटी लगभग पांच महीने की है. वह मां के गर्म कोट में छुपी हुई है. माँ खुद बच्ची सी दिखती है। बड़ी बेटी लगभग चार साल की है. वह ट्राली पर परेशान-सी बैठी है और रो रही है. ट्राली पर एक मामूली-सा बैग रखा है. यह आदमी बढ़ई का काम करता है और दोपहर की सवा एक बजे वाली फ्लाइट से पहली बार सऊदी अरब जा रहा है. 
परसों रात यह परिवार इलाहाबाद से प्रयागराज एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में बैठकर कल सुबह नई दिल्ली पहुंचा था. उन्होंने ट्रेन के दरवाजे के पास फर्श पर एक चादर और उस पर एक कंबल बिछाया और बड़ी बेटी को सुला दिया. दरवाजा भीतर से बंद करके पति-पत्नी और पत्नी के पिता किसी तरह बैठ गए. रास्ते में हर स्टेशन पर दरवाजा पीटा जाता. पर वह खुल नहीं सकता था. आदमी लगभग पूरी रात जागता रहा. औरत की नींद भी कई बार टूटी. 
कल दिन में वे अपने किसी संबंधी के घर रुके. सफर की थकान मिटाने के लिए—नहा-धोकर और खाना खाकर—वे सो गए. 
शाम को आदमी ने वीजा और पासपोर्ट लाने वाले एजेंट को फोन किया. एजेंट आज उसे हवाई अड्डे पर मिलेगा. इलाहाबाद की तुलना में दिल्ली में ठंड अधिक है. संबंधी ने बताया कि ऐसा पहाड़ों में बर्फ गिरने की वजह से हुआ है. 
अब आदमी एजेंट को फोन कर रहा था. एजेंट ने कहा कि वह गेट नंबर तीन के सामने है. आदमी गेट नंबर पांच से चलकर गेट नंबर तीन तक जाता है. कान पर मोबाइल लगाए वह एजेंट को भीड़ में ढूंढ़ने की कोशिश करता है. अपनी पहचान जाहिर करने के लिए वह अदृश्य एजेंट को दिखाने के वास्ते हवा में हाथ हिलाता है. नहीं! वह वहां नहीं है. आदमी फोन पर फिर पूछता है—कहां? एजेंट कहता है कि वह तीन नंबर गेट के सामने बेंच पर बैठा है, आदमी सामने देखता है. वहां कई सारी टीवी स्क्रीन्स लगी हुई हैं, जिन पर हवाई जहाजों के आने-जाने की सूचना आ-जा रही है. कुछ लोग वहां खड़े हैं. लेकिन एजेंट वहां नहीं है. फिर वह बेंच पर बैठे एजेंट को पहचान लेता है. 
इधर बड़ी बेटी जब ज्यादा जिद करने लगती है तो उसके नाना उसे गोद में लेने की कोशिश करते हैं. लड़की खिसककर नीचे आ जाती है. छोटी बेटी भी रोए जा रही है. बड़ी ने बुरा-सा मुंह बनाया हुआ और घर जाने की जिद कर रही है. मां उसे आस-पास की चीजें दिखाती है. लड़की सब कुछ को अनमने ढंग से देखती है और फिर रोने लगती है. 
आदमी एजेंट के पास जाता है. एजेंट उदयपुर से आया है. एजेंट थोड़ा इंतजार करने के लिए कहता है. इस जहाज से ग्यारह लोग जा रहे हैं, सभी इलाहाबाद के हैं. बाकी आज सुबह ही दिल्ली आए हैं और अभी थोड़ी ही देर में हवाई अड्डे पहुंचने वाले हैं. एजेंट सबको एक साथ ही वीजा और पासपोर्ट देगा. आदमी ने वीजा के लिए बीस हजार रुपए दिए हैं. वह एक हजार रियाल प्रतिमाह वेतन पर बढ़ईगीरी के लिए जा रहा है, जो भारतीय रुपयों में अठारह हजार होते हैं. उसे यहां नियमित काम नहीं मिलता था. वह महीने में लगभग सात हजार ही कमा पाता था. उसने कई जगह काम की तलाश की, पर उसे लगा कि वह इलाहाबाद में रहकर अपने परिवार को नहीं पाल सकेगा. उसने पासपोर्ट बनवाने के लिए एक एजेंट को पकड़ा. उसने डेढ़ हजार रुपए लिए और पासपोर्ट के लिए आवेदन करने के दो हफ्ते बाद स्थानीय थाने से उत्तर प्रदेश पुलिस का एक सिपाही उसे ढूंढ़ते हुए घर आया. वह पासपोर्ट की इन्क्वायरी के लिए आया था. उसने आदमी से सही रिपोर्ट देने के लिए एक हजार रुपए की रिश्वत मांगी. वह आठ सौ पर माना. इसके एक महीने बाद सीआईडी का एक आदमी आया. वह सादी वर्दी में था. सही रिपोर्ट देने के लिए उसने भी एक हजार मांगे और आठ सौ लेकर चला गया. 
लगभग एक महीने बाद आदमी का पासपोर्ट बनकर आ गया. जो डाकिया पासपोर्ट लेकर आया उसने भी दौ सौ रुपए लिए. 
इसके बाद आदमी ने जान-पहचान के एक दूसरे आदमी के जरिए अपने देश से दूर बढ़ई का काम करने के लिए यह वीजा हासिल किया. वह और दूसरा आदमी अक्टूबर में एक रात ट्रेन का सफर करके इलाहाबाद से जयपुर पहुंचे. वहां उन्होंने अपने मेडिकल टेस्ट कराए और अपने-अपने पासपोर्ट एजेंट को दिए. 
थोड़ी देर बाद एजेंट ने आदमी को बुलाया. अब सभी ग्यारह लोग वहां इकट्ठा थे. उसने सबको उनके वीजा और पासपोर्ट दिए. 
आदमी वापस आया और उसने अपनी बड़ी बेटी को गोद में लेकर चूमा. फिर उसे गोद से उतारकर छोटी बेटी को सीने से लगाया. फिर बेटी को वापस देते हुए उसने औरत से कुछ कहा. औरत जोर से रोना चाहती थी. फिर वह पत्नी के पिता की तरफ मुड़ा और बोला कि चलता हूं. बुजुर्ग ने उसके सिर पर हाथ रखा. आदमी ट्राली लेकर भीतर गया, तभी उसकी बड़ी बेटी दौड़कर आई और उसके पैरों से लिपट गई. वह सामान छोड़कर बेटी को गोद में लिए वापस आया और पत्नी और बेटी से फिर बात की. फिर वह भीतर गया और भीड़ में धीरे-धीरे खोता चला गया. 

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