Saturday, May 11, 2024
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सुषमा मुनीन्द्र की कहानी – हस्‍त मिलाप

इन दिनों मुख्‍य मंत्री कन्‍यादान और निकाह योजना प्रदेश में अग्रणी बनी हुई है। अग्रणी बनने में बरस लग गये। पहले यह मुख्‍य मंत्री कन्‍यादान योजना थी। शासन द्वारा गरीबी रेखा से नीचे वाले युवक – युवतियों का सम्‍मेलन में सामूहिक विवाह कराया जाता था। पता नहीं क्‍यों सम्‍मेलन में हिन्‍दू युवक युवती ही शिरकत करते थे। बाद में मुस्लिम समुदाय का ध्‍यान योजना की जानिब गया। प्रदेश सरकार हिन्‍दू कन्‍याओं के बैंक खाते पुष्‍ट कर रही है। हमारी कन्‍याओं के खाते भी पुष्‍ट हों। देश-प्रदेश में हमारा भी हक है। मुख्‍य मंत्री के लिय अवसर था हिन्‍दुओं के चहेते बनते-बनते मुस्लिमों के भी बन जायें। सिख, ईसाई के भी बनें पर इन समुदायों ने अभी तक सम्‍मेलन का रुख नहीं किया है। मुस्लिमों की हसरत के मद्देनजर योजना में निकाह नत्‍थी कर योजना को मुख्‍य मंत्री कन्‍यादान और निकाह योजना का प्रारूप दे दिया गया। प्रसन्‍नता का विषय है योजना प्रदेश भर में अपना उन्‍मेष लिख रही है। 
आरंभिक यथार्थ कहें तो योजना को चिरंजीव और सौभाग्‍य कांक्षिणी नहीं मिल रहे थे। मुख्‍य मंत्री की दृष्टि में आला अधिकारी निठल्‍ले साबित हो रहे थे कि लोगों को भरोसे में लेना अब तक न सीख पाये। लक्ष्‍य पाने का कतई अभ्‍यास नहीं है। जबकि जनपद पंचायत, नगर पालिका क्षेत्र, नगर निगम क्षेत्र में अधिकारी – कर्मचारी लक्ष्‍य प्राप्ति के लिये हाड़-तोड़ मेहनत करते हुये सत्‍यनिष्‍ठ भाव से योजना के फायदे गिना रहे थे – विवाह को दो आत्‍माओं का पवित्र बंधन करार दिया गया है पर बंधन को पवित्र करने में गरीब बंधु-बांधवी का बहुत कुछ बिक जाता है। बेचने को कुछ न हो तो कर्ज लेना पड़ता है। सूद पर सूद चुकाते हुये उम्र वृथा हो जाती है। ……… मुख्‍य मंत्री कन्‍यादान योजना में विवाह का पूरा प्रबंध सरकार करती है। नियमानुसार बीस हजार रुपये दिये जाते हैं। पन्‍द्रह हजार कन्‍या के बैंक खाते में जमा होते हैं। पॉंच हजार वर-वधू के वैवाहिक वस्‍त्र और मंगलसूत्र में व्‍यय होते हैं। कन्‍या अठारह, वर इक्‍कीस वर्ष से कम न हों। कन्‍या अपने क्षेत्र की होनी चाहिये। वर अन्‍य क्षेत्र का हो सकता है। अधिक से अधिक लोग योजना का लाभ लें …………
योजना का लाभ लेने लोग आगे नहीं आ रहे थे। उनकी परिपाटी में विवाह पवित्र बंधन कम, इज्‍जत बड़मंसी का मामला अधिक समझा जाता है। कहने को कचहरी तैयार बैठी है आओ, दस्‍तखत करो, एक-दूजे को माला पहनाओ, दम्‍पति बन जाओ पर यहॉं वे ही दम्‍पति बनते हैं जिन्‍हें घर के लोग दुरदुरा देते हैं। विवाह समाज के सामने न हो तो पवित्र बंधन नहीं विच्‍छेद जैसा कुछ लगता है। इज्‍जत बड़मंसी ऐसा मुद्दा है जिसे सत्‍यापित करने के लिये समाज के निकष से गुजरना पड़ता है। विवाह, इज्‍जत बड़मंसी का मुद्दा न होता तो अन्‍तर्जातीय विवाह को सामाजिक मान्‍यता पाये हुये दशक हो जाते। ऑनर किलिंग जैसी क्षुद्रता न होती।
इज्‍जत बड़मंसी की माया में पड़े अधिसंख्‍यक लोगों की बुद्धि प्रसार नहीं ले रही थी। जो लोग लोचनों को चौकन्‍ना, मति को उदित रखते थे उन्‍होंने योजना को आर्थिक तरक्‍की से जोड़ कर देखा। जिन कन्‍याओं के विवाह निकटवर्ती लगनसरा (वैवाहिक मुहूर्त) में होने थे उनके पिताओं ने वरों के पिताओं की थाह लेनी चाही। वरों के पिताओं ने आक्षेप, असंतोष, असमंजस से लैस उद्गार व्‍यक्‍त किये –
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‘’मुख्‍यमंत्री यह कउन योजना चलाये हैं ? सादी न हुई, पुतरा-पुतरी का खेल हो गया कि लो आज से पुतरी, पुतरा की हुई। हमारा लड़का अनाथ नहीं है। सम्‍मेलन में काज नहीं करेंगे।‘’
‘’हमें भिखारी समझे हो ? अपनी दुलारी को सेंत में हमारे भिक्षा पात्र में बैठाना चाहते हो कि लो भिक्षा। हम सादी तोड़ते हैं। आप दुलारी को सम्‍मेलन में बियाह लो।‘’
टूटे रिश्‍ते की पीर लिये दुलारियॉं छिप कर रोई़। यह कौन सी योजना है जिसने उन्‍हें सुहागिन बनते-बनते बनने न दिया।
जिन आत्‍माओं के जनकों को मति को सही समय में सही जगह पर प्रयुक्‍त करने का अभ्‍यास था उन्‍होंने इकोनॉमी समझी। कन्‍या के खाते में आया पन्‍द्रह हजार वस्‍तुत: उनके आत्‍मज का होगा। चतुराई का प्रकटीकरण उपकार की भॉंति हुआ –
‘’सुनो समधी (भावी) जू। सम्‍मेलन में विवाह किया जायेगा फिर समाज में किया जायेगा। हम बारात लायेंगे। आप धन-धान्‍य सहित कन्‍या को विदा करेंगे। विवाह का खर्च बचाना चाहते हैं तो हम सम्‍मेलन के विवाह में संतोष कर लेंगे पर आप तय दहेज से मुकर न जाना।‘’
‘’मंजूर है।‘’
इस तरह कुछ कन्‍याओं के जनक पंजीयन कराने पहुँचने लगे। गरीबी रेखा को विलक्षणता का बोध कराने के लिये प्रथम विवाह सम्‍मेलन जनपद के दर्शनीय स्‍थल रामवन में रखा गया कि खुले गगन के नीचे स्‍थापित विशाल हनुमान प्रतिमा के दर्शन लाभ लेने, साथ ही मुफ्त का खान-पान स्‍वीकार करने के लिये लोग अच्‍छी संख्‍या में आयेंगे। लेकिन लक्ष्‍य से कम मात्र सत्‍ताईस जोड़े आये। तेरह जोड़े नगर पालिका क्षेत्र, चौदह जोड़े ग्राम पंचायत क्षेत्र से थे। धीरे-धीरे हितग्राहियों का ध्‍यान आयोजन की ओर जाने लगा। लोग संज्ञान लेते अगला सम्‍मेलन कब और कहॉं होगा। जनपद पंचायत क्षेत्र, नगर पालिका क्षेत्र जहॉं सम्‍मेलन होते जोड़े लाव लश्‍कर के साथ पहुँचने लगे। ……….. जब से रकम बढ़ाकर इक्‍यावन हजार कर दी गई है हर कोई मौरी बॉंधने को आतुर है। रकम सुन कर जगरनिया के मानस में वंचना समा गई। विवाह को सात साल हो गये। बाबू कुछ होश खबर नहीं रखता। यदि रखता तो सम्‍मेलन के बारे में थोड़ा पूँछ-तॉंछ करता। अब तक उसके विवाह का कर्जा चुका रहा है। उससे छोटी अरचनिया, अरचनिया से छोटी सरोजिया छाती पर बैठी है। शहर में नाम को छोटा कर निक नेम बनाने का चलन है। गॉंव में नाम को बड़ा कर इस तरह बिगाड़ा जाता है जैसे खुंदस निकाली जा रही हो। जगरानी जगरनिया, अर्चना अरचनिया, सरोज सरोजिया बना दी गई हैं। जगरनिया ने गॉंव से शहर आकर बखरियों में जब काम पकड़ा अपना नाम जगरानी बताना चाहती थी। अभ्‍यासवश जिव्‍हा ने जगरनिया उगल दिया जो प्रचलित हो गया। नित्‍य मन लगा कर सजने वाली सलवार कुर्ता धारण कर इकहरे बदन की पॉंच दर्जा उत्‍तीर्ण जगरनिया आधी दर पर बेसाही गई पुरानी साइकिल को कोलतार की सड़क पर प्रचंड गति से चलाते हुये दो किलो मीटर दूर से इस तरह बखरियों में आती है जैसे जमाने की खबर रखने वाली कितनी प्रवीण है। बखरियों के प्रति एक निष्‍ठ भाव रखते हुये पेशेवर हाथों से काम करती है पर 
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खुद से चार-छ: साल बड़ी प्रभाती से खास आत्‍मीयता है। प्रभाती के घर आते ही पानी पीती है। अपने लिये रखी चाय गर्म करती है। चाय पीते हुये प्रभाती के सम्‍मुख दिल खोलकर रख देती है। आज कहने लगी –
‘’जानती हो दीदी, सम्‍मेलन में काज करो तो इक्‍यावन हजार रुपिया मिलता है।‘’
‘’हॉं। अड़तालीस हजार रुपये कन्‍या के बैंक खाते में जमा होते हैं। तीन हजार व्‍यवस्‍था में खर्च होते हैं।‘’
‘’मेरी किस्‍मत खराब है। सादी हो गई। अब होती तो मैं इतने पैसे की एफ0डी0 कराती। पैसे बढ़ते।‘’
‘’सम्‍मेलन पहले भी होते थे। सम्‍मेलन में शादी क्‍यों नहीं कराई ?’’
‘’मेरा बाबू कुछ होस खबर नहीं रखता। अब भी मेरी सादी में लिया कर्जा पटा रहा है। दो बहनें बियाहने को हैं।‘’
‘’उनकी शादी सम्‍मेलन में कराना। पैसे के लालच में वे लोग सम्‍मेलन में शादी कर रहे हैं जिनकी पहले ही हो चुकी है। अखबार में छपा था विधवा भाभी ने देवर से शादी की।‘’
‘’देवरानी ने करने दी ?’’
‘’भाभी सौतन न बन गई होगी। भाभी, देवर ने आधा-आधा पैसा बॉंट लिया होगा।‘’
जगरनिया को यह उल्‍लेखनीय सूचना मिली ‘’अच्‍छी चालाक मेहेरिया है।‘’
‘’लोग इतनी गफलत करते हैं कि अचम्‍भा होता है।‘’
जगरनिया के जहन में अड़तालीस हजार जैसा लुभावन ऑाकड़ा ठहर गया। गुणों से सम्‍पन्‍न नहीं है लेकिन अपने स्‍तर पर ठीक-ठाक व्‍यक्तित्‍व वाली है। प्रभाती के परिधान और आभूषण को गौर से देखती है। अच्‍छे परिधान खरीदना चाहती है। कितनी ही कृपणता करे बैंक खाते में सौ, दो सौ से अधिक नहीं डाल पाती। प्रभाती दीदी दिल उदार हैं। बैंक में खाता खुलवा दिया वरना सौ, दो सौ भी न बचे। बचत से एक बखरी का पुराना छोटा फ्रीज खरीद लिया है। टी0वी0 खरीदना चाहती है। अभी परसोतम (पड़ोस में रहने वाला देवर) के घर सीरियल देखने जाना पड़ता है। कहने को लघोत्‍तम सिंह (पति) रिक्‍शा चलाता है पर रोज नहीं, जब मर्जी हो। ऑटो वाले वैसे भी रिक्‍शा वालों का रोजगार चौपट किये देते हैं। यह बंदा दारू के बिना बिल्‍कुल नहीं रहता। जो कमाता है दारू में उड़ा देता है। आपत्ति करो तो तक-तक कर ऐसे तीर मारता है कि दिल को चोट जरूर पहुँचे। सोचना चाहिये अभी बच्‍चे नहीं हैं, पता नहीं क्‍यों नहीं हो रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं होंगे ही नहीं। जब होंगे खर्चा बढे़गा। गरीब से गरीब मनई बच्‍चे को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं। अड़तालीस हजार मिल जाये तो भरोसा रहेगा टेंट में कुछ है। अड़तालीस हजार। ओ मेरी माई मिल जाये तो स्‍टाइल में रहूँ। मीमांसा से गुजरते हुये साइकिल पर आरूढ़ जगरनिया जब घर पहुँची चेहरे में ऐसा ज्‍वाजल्‍पमान भाव था मानो नायाब ढूँढ़ लाई है। लघोत्‍तम घर नहीं लौटा था। बगल वाले घर में परसोतम और उसकी पत्‍नी नगीना मौजूद थे। पहले लघोत्‍तम और परसोतम एक कमरे में रहते थे। 
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जगरनिया और नगीना गॉंव में रहतीं। ससुर का टंटा जगरनिया के विवाह से पहले खत्‍म हो चुका था। जोलाहर सास ने बड़े सितम ठाये। खुद सुबह से गौरी-गणेश पूजने लगतीं, उसे और नगीना को हवलदार की तरह काम में पेरे रहती। जोलाहर को एक दयालू सर्प ने डस लिया। जगरनिया ने मंगल मनाया। नगीना को लेकर शहर की रौनक देखने आ गई। परसोतम ने बगल वाले कमरे को किराये पर ले लिया। नगीना उधर चली गयी। यह लघोत्‍तम के साथ बसर करने लगी। 
साइकिल खड़ी कर जगरनिया परसोतम के कमरे में पहुँची। नगीना चाय बना रही थी। परसोतम ने टेरा – 
‘’भउजी हैं। उनके लिये भी चाय बना लेना।‘’
जगरनिया भूमि पर ऊँकड़ू बैठ गई ‘’घर में कइसे परसोतम ?’’
परसोतम बेलदारी करता है। 
‘’आज काम नहीं मिला भउजी।‘’
लाग लपेट नहीं जगरनिया ने सीधे आशय कहा – 
‘’सम्‍मेलन में वे लोग भी काज कर रहे हैं जो पहले से सादी सुदा हैं। खाते में अड़तालीस हजार आ जाते हैं।‘’
परसोतम अचम्भित नहीं हुआ ‘’जानता हूँ। मेरे साथ एक रेजा काम करती थी। उसने सम्‍मेलन में अपने पड़ोसी से बियाह किया। दोनों ने आधे-आध पैसा बॉंट लिया। अपने-अपने घर में नीके कुशल (राजी खुशी) हैं।‘’  
जगरनिया ने जागरुकता बढ़ा ली। अर्थात वही नहीं गफलत पर तमाम लोग सोचते हैं।
‘’मैं सम्‍मेलन में बियाह करूँगी। सादी के लिये कन्‍या चाहिये। मैं हूँ कन्‍या। कन्‍यादान के लिये महतारी-बाप चाहिये। बिसरामपुर (जगरनिया का पैतृक गॉंव) से बाबू और माई को बुला लूँगी।‘’
परसोतम हुलहुला कर हँसा ‘’अउर दुलहा ?’’
‘’रेक्‍सा वाले हैं न।‘’
‘’भाई मान जायेगा ?’’
‘’अड़तालीस हजार सुनकर तुम्‍हारे पुरखे भी मान जायेंगे।‘’
‘’तुम हिम्‍मत दिखाओ तो हमहूँ कुछ सोचें-विचारें।‘’
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लघोत्‍तम दिया-बाती की बेला में बहुरा।
खिली बाँछों वाली जगरनिया ने गरम करारी रोटी और तड़का वाली अरहर दाल परोस कर सदाशयता का प्रदर्शन किया –
‘’सुनो हो। मुख्‍ख मंत्री सम्‍मेलन में गरीब लड़कियों की सादी कराते हैं। जो मैं तुम्‍हारे साथि सादी करूँ मेरे खाते में अड़तालीस हजार नगदी आ जायेगी।‘’
जगरनिया का कयास था पेशकश पर लघोत्‍तम उसे उराव (उत्‍साह) से विलोकेगा लेकिन उसका लहजा वज्र जैसा   था – 
‘’तेरी सादी नहीं हुई ?’’
‘’फिर से करूँगी। तुम्‍हारे साथ। एकदम टोरिया (युवती) लगती हूँ।‘’
‘’तू टोरिया। मैं तेरा आजा लगता हूँ ?’’
जगरनिया ने ठहर कर प्राण नाथ को देखा। चार दिन की दाढ़ी में दँत निपोर लग रहा है।
‘’नसा करना न छोड़ेगे तो चार-छह साल में आजा ही लगोगे।‘’ 
‘’खाना खाने दे।‘’
‘’थोड़ा रिलैक्‍स करो। अड़तालीस हजार कमा लूँगी तो अजीरन (अजीर्ण) न हो जायेगा।‘
जगरनिया बखरियों में रिलैक्‍स जैसे अंग्रेजी शब्‍द सुनती-गुनती है।
‘’जेल जायेगी।‘’
‘’बिल्‍कुल नहीं। एक फरचंट मेहेरिया ने देवर के साथ काज किया। दूनों ने आधे-आध पैसा बॉंट लिया।‘’
‘’ढूँढ़ ले देवर।‘’
जगरनिया समझ गई बागडोर उसे ही सम्‍भालना है।
‘’देवर पड़ोस में है। उसके साथ डोले में बैठ चुकी हूँ। कहो तो काज कर लूँ पर आधा पैसा वह ले लेगा।‘’
जगरनिया की ससुराल में हरे मंडप में बहू को विदा नहीं कराते। गौना बाद में होता है। बारात लेकर लौटे दूल्‍हे का परछन अकेले नहीं जोड़ी के साथ होता है। परछन के लिये जगरनिया को परसोतम के साथ डोले में बैठाया गया था। 
‘’परसोतम से काज करने में लाज न आयेगी ?’’
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ओछापन लगा लेकिन बोली – 
‘’काज करूँगी। सु‍हाग रात न मना लूँगी। रिलैक्‍स करो। परसोतम को बुलाती हूँ।‘’
जगरनिया जोशीली गति से गई। परसोतम सपत्‍नीक फरमाबदार की तरह चला आया –
‘’भाई कमा लो। अगले सम्‍मेलन में हम कमा लेंगे।‘’
‘’ परसोतम तुम ज्ञानी मनई न बनो।‘’
जगरनिया दृढ़ प्रतिज्ञ है ‘’अच्‍छा, रिलैक्‍स करो। कल ही सम्‍मेलन नहीं हुआ जाता है। समय है। खूब सोच लो।‘’
जगरनिया के खाते का यह मधुर दिन है।
चाय सुड़क रही जगरनिया को प्रभाती ने सूचित किया –
‘’इसी छब्‍बीस को बी0टी0आई0 मैदान में सम्‍मेलन होगा। बाबू को बता देना। छोटी बहन के लिये पंजीयन करा लें।‘’
जगरनिया की धड़कनें हलक में आ गईं। बाबू कोशिश कर रहा है पर अरचनिया के लिये दुलहा अभी तक नहीं ढूँढ़ पाया। अरचनिया सम्‍मेलन में अकेले फेरे लेगी ?
‘’पंजीयन कहॉं होता है दीदी ?’’
‘’बाबू बिसरामपुर की पंचायत के दफ्तर जायें। पूरी जानकारी मिल जायेगी। राशन कार्ड, आधार कार्ड, मार्कशीट दिखाना पड़ेगा। बहन का नाम, समग्र आई0डी0 सत्‍यापन समिति को भेजा जायेगा। पंजीयन हो जायेगा।‘’
‘’खाते में पैसा कब आयेगा ?’’
‘’शादी के बाद।‘’
‘’मैं चार-पॉंच दिन की छुट्टी लूँगी। भाई का हाथ बॅटाना पड़ेगा।‘’
अड़तालीस हजार।
मुरादों वाली रकम।
आनंद और अनिश्चितता के बीच के हालत थे। जगरनिया की पेशकश को परिजनों ने दबाववश अपना मनोरथ बना लिया। भयभीत भ्रमित बाबू प्रार्थी भाव में पंजीयन के लिये प्रस्‍तुत हुआ। विभागीय लोगों ने मददगार की तरह औपचारिकतायें पूर्ण कीं। कृतकृत्‍य बाबू ने माना ऐसा सम्‍मान पहले नहीं मिला।
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हितग्राहियों को दूर न भटकना पड़े इस आशय से जनपद पंचायतों में समय-समय पर छोटे स्‍तर पर विवाह सम्‍मेलन कराये जाते हैं। पहली मर्तबा जनपद के विशाल बी0टी0आई0 मैदान में वृहद स्‍तर पर सम्‍मेलन रखा गया है। आदिम जाति कल्‍याण विभाग, महिला व बाल विकास विभाग, ग्राम पंचायत क्षेत्र, नगर पालिका क्षेत्र से पात्रता रखने वाले जोड़ों की ऑन लाइन प्रविष्टि समग्र पोर्टल पर करते हुये स्‍वीकृति के लिये जो सूचि जनपद कार्यालय पहुँची उसमें 1458 जोड़ों का नाम सम्मिलित था। पंजीयन की गौरवशाली संख्‍या बता रही थी इस हरी-नीली धरा का प्रथम सत्‍य जन्‍म और मृत्‍यु नहीं विवाह है। अधिसंख्‍यक लोग शादी के लड्डू को बिना खाये नहीं, खाकर पछताना चाहते हैं।
एक हजार चार सौ अट्ठावन जोड़े।
छियालिस निकाह। एक हजार चार सौ बारह सप्‍तपदी जिसमें एक जोड़ा दिव्‍यांग है।
तिथि – छब्‍बीस।
जगरनिया का जी करता था साइकिल दौड़ाती यकायक बी0टी0आई0 मैदान पहुँच जाये। अपनी गली के काम चलाऊ ब्‍यूटी पार्लर जहॉं मुहल्‍ले की बालिकायें मेंहदी लगाना सीखती हैं, में कल शाम फेशियल कराने के उपरांत भौंहे तरशवा ली हैं। सुबह नहा-धोकर खजूर चोटी बना ली। उसके केश भूरे और घने हैं। प्रभाती पूँछती है बालों में क्‍या लगाती है ? यह कहती है धूप सेंकती हूँ। नव वधू लाल लिबास में रूपसी लगती है पर इस अंचल में पियरी पहन कर फेरे होते हैं। जगरनिया ने सम्‍भाल कर रखी फेरे वाली पियरी धारण की। भय और लाभ के बीच दोलन करते लघोत्‍तम ने धुला कुर्ता – पैजामा पहना। वास्‍तविक विवाह में जामा जोड़ा पहने था। वैसे अब के दूल्‍हे  जामा जोड़ा को लुक खराब करने वाली पोषाक मानते हैं। सूट-बूट, शेरवानी दूल्‍हे का पर्याय बन गई है। जिनकी अर्थ व्‍यवस्‍था विपन्‍न है वे किराये की शेरवानी पहन कर महाराजा स्‍टाइल में सज लेते हैं।
जगरनिया ने मुहल्‍ले वालों से प्रसंग गोपन रखा है। बाबू, भाई, बहनों को घर न बुला कर सीधे बी0टी0आई0 मैदान पहुँचने का निर्देश दिया है। जमघट देख कर लोग कयास लगा सकते हैं। आज कौन पर्व हो रहा है। साजिश उजागर हो गई तो सीधे जेल होगी। वह, लघोत्‍तम, परसोतम, नगीना जब स्‍थल पर पहुँचे भाई, बाबू, बहनें मौजूद मिले। जगरनिया ने सबसे भेंट – मुलाकात की। माई ग्रामीण संकोची जीव ठहरी। मुँह सुखा कर बोली –
‘’कहॉं फँसा रही हो जगरनिया ?’’
‘’पदवी ऊँची कर रही हूँ माई।‘’
‘‘कन्‍यादान में मेरी जरूरत है। वैसे आने की हिम्‍मत न होती थी।‘’ 
अरचनिया ने हौसला दिया ‘’माई डरने की बात नहीं है। देखो कितना जलवा है।‘’
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सम्‍मेलन की गतिविधि क्रांतिकारी किस्‍म की जान पड़ती थी। शुरूआती उपक्रम में लोग मर्माहित हुये से आते थे कि चिरंजीव और सौभाग्‍यकांक्षिणी का परिणय, सम्‍मेलन में करने जैसी निकृष्‍टता करनी पड़ रही है। अब ढोलक पीटते आते हैं। बंधु बांधवी को लेकर कोई ट्रैक्‍टर में आये हैं, कोई ऑटो में, कोई सवारी जीप गाड़ी में। गॉंव उन्‍नत होकर पदयात्रा से सवारी गाड़ी तक आ गये हैं। जन समूह के बैठने के लिये कतार में फाइबर चेयर लगी हैं। एक ओर गद्दे बिछे हैं। जहॉं बैठना हो निर्भीक बैठो। आज गरीबी रेखा कुर्सी पर अधिकारी – कर्मचारी तैनाती पर हैं। माई, बाबू को सरपंच के सम्‍मुख नमन की मुद्रा में खड़े रहने का अभ्‍यास है। वे अधिकारियों की उपस्थिति में अतिथि – अभ्‍यागत की भॉंति कुर्सी पर बैठने में असभ्‍यता देख रहे हैं। दक्षता दिखाते हुये अरचनिया, सरोजिया ने दोनेां को खींच कर कुर्सी में स्‍थापित कर दिया। बैठ गये तो सम्‍मान का बोध हुआ। वर और कन्‍या पक्ष बराबरी पर हैं वरना जब तक कन्‍या विदा न हो जाये मेरूदण्‍ड को विश्राम नहीं मिलता। प्रत्‍येक बारात में कुछ ऐसे विघ्‍न संतोषी होते हैं जिन्‍हें अदावत किये बिना दावत नहीं पचती। अलबत्‍ता कहा यही जाता है विवाह सानंद वातावरण में सम्‍पन्‍न हुआ। विवाह के साथ सानंद वातावरण न जोड़ो तो लगता है वैवाहिक प्रकिया पूर्ण नहीं हुई।
लघोत्‍तम ढुलमुल टाइप है। वृहद व्‍यवस्‍था देख कर हौसला खो रहा है। जगरनिया के दिल को चोट पहुँचाना उसे जरूरी लगा – 
‘’फरजी काम करा रही है। मुझे कोई चीन्‍ह लेगा।‘’
चौराहे का नेता है कि इसे हर कोई चीन्‍हता होगा। जगरनिया ने लघोत्‍तम को ढाढ़स दिया –
‘’रिलैक्‍स करो। देखते नहीं कितनी भीड़ है। पता नहीं कितने लोग रोज पैदा होते हैं, कितनी जल्‍दी मौरी बॉंधने लायक हो जाते हैं। सरकार इतना इंतजाम कैसे कर लेती है ?‘’
इंतजाम।
पच्‍चीस वेदिका बनी हैं। वेदिका के सामने मगरोहन गाड़ा गया है। कलश, दीपक रखा है। रंगोली सजी है। एक वेदिका में एक साथ पच्‍चीस या उससे अधिक जोड़े फेरे लेंगे। चार पंडित माइक पर विधि विधान बताते हुये मंत्रोच्‍चार करेंगे। जोड़े पंडितों के निर्देशों का अनुसरण करेंगे। तीन काजी निकाह करायेंगे। मंच के समीप बैठे शहनाई वादक शहनाई बजा रहे हैं। व्‍यवस्‍थापक जानते हैं विवाह में शहनाई का महत्‍व होता है। बैण्‍ड बाजे वाले मौके-मौके पर प्रस्‍तुति देंगे। अधिकांश वधुयें घर से सज कर आई हैं। जिन्‍हें यहॉं सजावट चाहिये उनके लिये चार ब्‍यूटीशियन उपलब्‍ध हैं। जिन वधुओं को परिधान पर व्‍यय करना अपव्‍यय लग रहा है वे साधारण सलवार – कुर्ता पहन कर चली आई हैं। इनके लिये परिधान नहीं परिणय प्रमुख है।
जगरनिया ने लघोत्‍तम को रिलैक्‍स करो कह दिया पर स्‍वयं अस्थिर हुई जाती है। मुसलमान होती तो कुबूल है कह कर रुखसत हो जाती। रकम खाते में पहुँच जाती। सप्‍तपदी वाला पाणिग्रहण बहुत वक्‍त लेता है। वैसे अब पंडित पुरोहित शार्ट में विवाह कराने लगे हैं। पॉंव पखरी (नातेदारों द्वारा वर-कन्‍या के पैर पखारना) गजब का वक्‍त खाती है। जिसके जितने नातेदार, उतनी देर तक पॉंव पखरी चलती है। पॉंव पखरी परिचय का अवसर होती है। पुरोहित 
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वर के पिता को बताते हैं ‘’यह जो पैर पखार रहे हैं लड़की के ताऊ-ताई हैं ……….. ये चाचा-चाची …….. मामा-मामी …….. मौसी …………..।‘’ सम्‍मेलन में द्वारचार, चढ़ाव, पॉंव पखरी नहीं होती। जयमाल, कन्‍यादान, फेरे होते हैं। पता नहीं कब होंगे ? हों तो अमन मिले। अधीर होकर लघोत्‍तम से बोली –
‘’देर कर रहे हैं। पंडित सो गये क्‍या ?’’
‘’मंच में जो अफसर बैठे हैं वे आर्डर करेंगे तब सादी शुरू होगी।‘’
मंच पर दुर्लभ दृश्‍य है। संभाग के कमिश्‍नर, जनपद के कलेक्‍टर, एस0डी0एम0, तहसीलदार, नगर निगम, महिला एवं बाल विकास विभाग, आदिम जाति कल्‍याण विभाग के अधिकारी, स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी, जनपद पंचायत के अध्‍यक्ष, सी0ई0ओ0 सत्‍तादल की जिला इकाई के पार्टी प्रवक्‍ता जैसे अतुलित बलधाम मंच पर आसीन हैं।
गहन विमर्श चल रहा है –
‘’1458 जोड़ों का पंजीयन हुआ है जबकि लगभग डेढ़ हजार जोड़े मौजूद हैं।‘’
‘’बिना पंजीयन के कैसे आ गये ?’’
‘’पच्‍चीस तारीख तक पंजीयन किया गया है। जो नहीं करा सके उनका यहीं हो रहा है।‘’
‘’कुछ जोड़े अधिक आयु के लग रहे हैं। विवाहित होंगे। पैसे के लोभ में सम्‍मेलन में शादी कर रहे हैं। सत्‍यापन होना चाहिये।‘’
‘’सत्‍यापन में पूरा दिन बीत जायेगा। बात का बतंगड़ बनाने के लिये मीडिया परसन मौजूद हैं। निंदा छापेंगे कि सत्‍यापन समिति कैसा कर्तव्‍य कर रही है। लोग बात-बेबात बवाल करने में उस्‍ताद हैं। किस अधिकारी – कर्मचारी पर निलम्‍बन की गाज गिरे कहा नहीं जा सकता।‘’
भीड़ तंत्र में ताकत होती है। आम जन कारण –अकारण कब किस विभाग के अधिकारी – कर्मचारी को पीटने लगें, तोड़-फोड़ करें, धरना दें इसका लेखा समदृष्टि विधना भी नहीं रख सकते। अखबार वाले घटना में अतिशयोक्ति डाल कर सुर्खियॉं रचते हैं। शासन-प्रशासन अपनी निष्‍पक्षता और नैतिकता का प्रमाण देने के लिये छोटे-मोटे अधिकारियों –कर्मचारियों को तत्‍काल प्रभाव से निलम्बित कर मामला रफा–दफा कर देता है। मामले की गहराई कोई नहीं जानना चाहता कि यह व्‍यवस्‍था की चूक है अथवा लोग हिंसक हो रहे हैं।
‘’किस्‍सा बताता हूँ। जनपद पंचायत उमरी में विवाह सम्‍मेलन हुआ। एक जोड़े पर सचिव को संदेह हुआ। उसने वहॉं मौजूद स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी से बात की। स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी ने वधू के बेबी बम्‍प को भॉंप लिया। पूँछने पर वह चीखने लगी देख कर जान गये मैं पेट से हूँ ? अधिकारी बोले लेडी डॉंक्‍टर को बुलाता हूँ। आपका झूठ पकड़ लेंगी। आप शादी 
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शुदा हैं। पैसे के लोभ में सम्‍मेलन में शादी कर रही हैं। दूल्‍हा शायद सोच कर आया था दखल दिया जायेगा तो तांडव करेगा। चिलने लगा अपमान करने के लिये सम्‍मेलन कराये जाते हैं ? मुझे यहॉं शादी नहीं करनी। विपक्ष के दो-तीन कार्यकर्ता रूबरू थे। गर्भवती के समर्थन में तन गये सत्‍यापन के समय ध्‍यान क्‍यों नहीं दिया गया ? गरीबों की अस्मिता से खिलवाड़ हो रहा है। इनकी शादी होगी और यहीं होगी।‘’ अरे साहब शादी हो गई फिर भी मामला विधान सभा में उछाला गया।‘’ 
‘’समाज में आग्रह और नम्रता खत्‍म होती जा रही है। असंतोष बढ़ रहा है। पहले पन्‍द्रह हजार, कपड़े और मंगल सूत्र दिया जाता था। लोग आक्षेप लगाने लगे मंगल सूत्र नकली है। चॉंदी में सोने का पानी चढ़ा है। अब उपहार बंद कर राशि बढ़ा दी गई। पैसे को तो नकली नहीं कहोगे।‘’ 
‘’लोग धूर्तता करते रहेंगे। पृथ्‍वी भ्रष्‍टाचार से दबी रहेगी।‘’ 
‘’बरसात का मौसम है। काले बादल देखिये। कार्यक्रम जितना जल्‍दी सम्‍पन्‍न हो अच्‍छा होगा। वरना लोग इसे भी अव्‍यवस्‍था से जोड़ देंगे। जैसे बादलों को हमने आमंत्रित किया है।‘’
जगरनिया आस लगाये मंच को देख रही है। आर्डर करें तो शादी शुरू हो। देखती है एक बाबू साहब (महिला बाल विकास विभाग का कर्मचारी) संचालन के लिये माइक के ठीक सामने खड़ा हो गया है। शायद यही आर्डर देगा। शहनाई के स्‍वर थम गये। संचालक कुछ देर ओजपूर्ण लहजे में योजना की संक्षिप्‍त रूप रेखा बताता रहा। फिर आशीर्वाद स्‍वरूप दो शब्‍द कहने के लिये एक-एक कर अधिकारियों को आमंत्रित करने लगा। जगरनिया धीरता खो देगी। अब ये सब भाषण देंगे ? न जाने कब तक देंगे। हमें मालूम है रूप रेखा। तभी न आये हैं। फेरे हो जायें तो सटक लूँ। धर ली गई तो लघोत्‍तम खजूर चोटी खींचते हुये कहेगा ले कर ले पैसा वसूल। 
कमिश्‍नर, कलेक्‍टर, अन्‍य अधिकारी संक्षेप में बोले पर सत्‍ता दल का प्रवक्‍ता इतना विस्‍तार में बोला कि जगरनिया की इच्‍छा हो रही थी जिस हाथ को झटक-झटक कर बोल रहा है उसे मरोड़ दे।
‘’………….. आप लोगों के सहयोग से आज मुख्‍य मंत्री कन्‍यादान और निकाह योजना उत्‍कर्ष पर है। मैं बताते हुये गौरवान्वित हूँ आज लगभग डेढ़ हजार जोड़े परिणय सूत्र में बँधने जा रहे हैं। ऐसे सम्‍मेलन समाज में समरसता का संदेश देते हैं। ………… आप लोगों ने सम्‍मेलन में भागीदारी कर वह राशि निश्चित रूप से बचाई है जो वैवाहिक उपक्रम में आवश्‍यक – अनावश्‍यक कारणों से खर्च हो जाती है। बचा ली गई राशि को आप जरूरी मद में लगा सकते हैा। …………… आप लोगों ने सरकार पर भरोसा किया इसके लिये मैं आप सभी का आभारी हूँ। मुस्लिम भाई-बहनों का विशेष रूप से आभार व्‍यक्‍त करना चाहता हूँ ………….. आप लोग अधिक से अधिक लोगों को योजना की जानकारी दें ताकि प्रत्‍येक वर्ग के लोगों को लाभ मिले। ………… आप सभी के सुखमय सफल वैवाहिक जीवन की कामना करते हुये नानक और शीतल का विशेष रूप से आभार व्‍यक्‍त करना चाहता हूँ। ये एक-दूसरे के पथ प्रदर्शक बनने जा रहे हैं। ………… मैत्री सामाजिक संस्‍था की अध्‍यक्षा हमारे बीच उपस्थित हैं। वे संस्‍था की ओर से नानक और शीतल को व्‍हील चेयर भेंट करना चाहती हैं। नानक और शीतल मंच पर आयें ………..
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जगरनिया अन्‍यमनस्‍क हो गई। जैसे उसका हक मारा गया है। नानक और शीतल को क्‍यों, देना है तो सबको दो। मेरे घर में भी हो जायें दो-चार कुर्सियॉं।  देखती है काला चश्‍मा धारण किये भाई का हाथ थाम लाठी से राह टोहता नानक मंच की ओर जा रहा है। अरे गिरधारी यह तो सूरदास है। सड़क दुर्घटना में एक पैर खो चुकी शीतल बैसाखी पर है। अरे गिरधारी यह तो एक पैर वाली है। नानक और शीतल मंच पर आ गये। दोनों को अगल-बगल खड़ा कर सम्‍मुख व्‍हील चेयर रखी गई। सदस्‍यायें इर्द गिर्द अर्द्धचन्‍द्राकार घेरा बना कर खड़ी हो गईं। स्‍थानीय टी0वी0 चैनल और स्‍थानीय अखबारों के कैमरा परसन ने तस्‍वीरें लीं। तस्‍वीरें अगले दिन अखबारों की शोभा बनेंगी। यहॉं कई राष्‍ट्रीय – अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सामाजिक संस्‍थाओं की जिला इकाई गठित हैं। इनके सदस्‍य अखबार में छाया चित्र छपवाने का नफीस शौक रखते हैं। अनाथ आश्रम, वृद्ध आश्रम में यदि तीन सीलिंग फैन भेंट करते हैं तो सदस्‍य सीलिंग फैन के साथ अपनी तस्‍वीर अखबारों में शर्तिया छपवाते हैं। एक बार मैत्री संस्‍था की इन सदस्‍याओं ने प्रसूति वार्ड में दो-दो केले बॉंटते हुये मरीजों को फलाहार कराया जैसे सर्वोत्‍तम शीर्षक के साथ सचित्र समाचार छपवाया था। 
औपचारिकतायें पूर्ण हुईं। 
जगरनिया ने अमन पाया। अब मुकाम की ओर अग्रसर होना है। निकाह वाले अपने निर्धारित स्‍थान पर आ गये। कन्‍यादान वाले वेदी के चहुँ ओर एकत्र हो गये। बैण्‍ड की थाप पर वर-वधू ने एक-दूसरे को माला पहनाई। काजी और पुरोहित अपने कर्तव्‍य पर लग गये।
इधर परिणय ने गति पकड़ी उधर पेट पूजा होने लगी। पूड़ी, सूखी सब्‍जी, बूँदी के लड्डू वाले गत्‍ते के डिब्‍बे जन समूह में वितरित हो रहे हैं। लोग खुल कर खाते, खुल कर बोलते हुये मुख को दोनों कामों में लगाये हुये हैं –
‘’कुछ सादी सुदा लोग भी यहॉं सादी कर रहे हैं।‘’
‘’सबकी कुण्‍डली लगता है जेब में रखे हो।‘’
‘’चार जोड़ों को चीन्‍हता हूँ। एक के तो तीन साल की बच्‍ची है। एक कुलबोरनी को टोला का आदमी मिल गया है।‘’
‘’सत्‍यापन होना चाहिये। फरेबियों को चार पनही रसीद करो।‘’
‘’लोग निडर होते जा रहे हैं। सत्‍यापन करने वालों को रगेद (दौड़ा) लेंगे। लोग पुलिस के सिपाही, मास्‍टर, डॉंक्‍टर को पीटने लगते हैं। अभी अखबार में पढ़ा तहसीलदार ने अवैध रेत ले जाने वालों को मौके पर पकड़ लिया तो लोगों ने उनके कपड़े फाड़ दिये।‘’
‘’इसीलिये सत्‍यापन कर अफसर अपनी फजीहत नहीं कराते। जानते हैं ये ऐसी वास्‍तविकतायें हैं जिन्‍हें समाज से अलग नहीं किया जा सकता।‘’
‘’बड़े पैमाने पर बडे़ घोटाले होते हैं। ये बेचारे गरीबी रेखा वाले तो छोटे दॉंव मारते हैं। कमा लेने दो अड़तालीस हजार।‘’
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‘’सुना है नगर निगम में आवेदन करने जाओ तो बाबू पॉंच हजार रिश्‍वत मॉंगता है कि अड़तालीस हजार पाओगे।‘’
‘’बहस छोड़ो। पूड़ी-तरकारी खाओ।‘’
अपने इर्द-गिर्द से आ रहे विमर्श को जगरनिया के माई बाबू सुन रहे हैं। बात एक होती है लेकिन दिमाग अपने अनुसार आशय ढूँढ़ता है। माई का सूखा आनन अधिक सूख गया। यदि जगरनिया रंगे हाथों पकड़ ली जायेगी, जेल जाना पड़ेगा। बाबू ने ढाढ़स महसूस किया। जगरनिया ही नहीं कई लोग फायदा उठा रहे हैं। मैं अरचनिया और सरोजिया का काज सम्‍मेलन में कराऊँगा। यदि कहीं संबंध जम जाता है तो अगले सम्‍मेलन की रौनक बनूँगा।
उधर पाणिग्रहण गति पकड़ रहा है, इधर एक बच्‍चा परिवार से बिछड़ गया। हिचक कर रोते बच्‍चे को किसी कृपालु ने मंच पर पहुँचा दिया। समय-समय पर व्‍यवस्‍था से संबंधित निर्देश दे रहे संचालक ने उद्घोषणा की – छ- साल का बच्‍चा जो अपना नाम डुग्‍गू बता रहा है, मंच पर है। उसके माता-पिता मंच पर आयें ………. 
अद्भुत यह रहा डुग्‍गू की माता को डुग्‍गू के मिलने का संज्ञान पहले, बिछड़ने का बाद में मिला। वह बातों में इतनी मुब्तिला थी कि चेत न था गुड्डू बिछड़ गया है। सूचना सुनकर धावक की भॉंति मंच पर पहुँची। डुग्‍गू जिस तरह हिचक कर रो रहा था अनुमान लगाया जा सकता है बिछड़ गये बच्‍चे किस भय और मानसिक प्रताड़ना से गुजरते हैं। संचालक, माता को समझाने लगा – लापरवाही से बच्‍चे इधर-उधर हो जाते हैं। दोष पुलिस व्‍यवस्‍था पर डाल दिया जाता है कि अराजकता बढ़ रही है ……….। माता डुग्‍गू को छाती से चिपकाये टूट कर रो रही थी। संचालक उसे चार पनही मार देता तो भी अनुकम्‍पा मानती। वह तो सिर्फ लापरवाही की ओर संकेत कर रहा था।
विवाह सम्‍पन्‍न हुआ।
जोडि़यॉं बन गईं।
कृपालु काले बदरा नहीं बरसे।
आभार व्‍यक्‍त किया गया – सानंद वातावरण में विवाह सम्‍मेलन सम्‍पन्‍न हुआ।
जगरनिया के लिये सब कुछ पुनरुत्‍थान की तरह है। 
लघोत्‍तम ने माना जगरनिया की पेशकश सफल रही। उसने मोह से जगरनिया को देखा –
‘’टोरिया लग रही है।‘’
जगरनिया की इच्‍छा हुई आय लव यू बोल कर जश्‍न मनाये पर लघोत्‍तम उसे इस लायक कभी नहीं लगा। कुछ न बोली। लघोत्‍तम ने दोहराया ‘’टोरिया लग रही है।‘’
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जगरनिया न चाहते हुये भी उत्‍फुल हो गई। लगा आत्‍मा में नव परिणीता की तरह अबीर छितरा गया है।
‘’दूसरी बार सिरीमती बनी हूँ। खाते में रकम आ जाये तो इंडियन काफी हाउस में डोसा-इडली खाऊँ।‘’
लघोत्‍तम चंचल हो गया ‘’रिलैक्‍स कर। सादी हो गई। पैसा भी आ जायेगा।‘’
जगरनिया पॉंचवें दिन प्रभाती के घर पहुँची।
प्रभाती को कौतूहल है ‘’बहन की शादी हो गई ?’’
‘’बहन ………… ?’’
‘’अखबार में लिखा है पैसे के लालच में कुछ शादी शुदा लोगों ने सम्‍मेलन में शादी की। पहचानी न जायें इसलिये दो-चार औरतें घूँघट में थीं।‘’
जगरनिया की आत्‍मा का अबीर आतंक में बदल गया। उसकी शिनाख्‍त तो नहीं कर ली गई ? किसी दिन पुलिस आकर कहे जेल चलो। लघोत्‍तम कहे-ले कर ले रिलैक्‍स।
‘’अखबार वाले पता नहीं क्‍या लिखते हैं दीदी। मैं तो वहीं थी। इतना अच्‍छा इंतजाम था। सानंद वातावरण में सादी हुई। अरचनिया बहुत खुश है। पैसा मिलेगा न दीदी ?’’ 
जगरनिया का मुख आग्रह और कातरता से लरज रहा था।
‘’मिलेगा।‘’
पैसे की प्रतीक्षा में माह बीत गया। दूसरा ……….तीसरा माह भी। उसकी स्थिति दॉंव हारे हुये खिलाड़ी की तरह हो गई है। लघोत्‍तम अलग प्रपंच करता है। चाय पीते हुये प्रभाती से बताने लगी –
‘’दीदी, खाते में पैसा नहीं आया।‘’
‘’सरकार ने भुगतान रोक दिया है। बताना भूल गई अभी किसी दिन अखबार में खबर थी इक्‍यावन हजार के लालच में कई ऐसे जोड़ों ने सम्‍मेलन में शादी की है जो पहले से शादी शुदा थे। राज्‍य के सामाजिक न्‍याय विभाग ने जिला कलेक्‍टरों से जॉंच कराने को कहा है। कलेक्‍टर जॉंच करायेंगे। जो सही (पात्रता रखते हैं) पाये जायेंगे उनको भुगतान मिलेगा, जो गलत (अपात्र) होंगे उनके विरुद्ध एक्‍शन लिया जायेगा।‘’ 
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जगरनिाया के प्‍याले से गरम चाय छलक कर उसके पैर में गिर गई। चेहरे में अपराध करने के बाद की सफेदी पुत गई।
‘’एक्‍सन क्‍या है दीदी ?’’
‘’कार्यवाही। सजा भी हो सकती है पर घबरा मत। अरचनिया को भुगतान मिलेगा।‘’
जगरनिया शेष बची चाय न पी सकी।
लग रहा था सजा पाने वालों की सूचि में सबसे ऊपर उसका नाम होगा।    


सुषमा मुनीन्द्र
सुषमा मुनीन्द्र
संपर्क - sushmamunindra@gmail.com
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1 टिप्पणी

  1. मुख्यमंत्री की कन्यादान और निकाह योजना, उसके आयोजक, विभाग अधिकारी और उसके अंतर्गत होने वाले समस्त भ्रष्टाचारों की,धांधली की ,आपने विस्तार से जानकारी दी है। और गरीबी में उम्मीद रखते हुए लोग किस तरह गलत फायदा उठाने के लिए भी प्रयास रहते हैं इसका भी आपने पुख्ता ब्योरा दिया कि पैसे के लालच में झूठी दूसरी शादी भी रचने को तैयार हो जाते हैं,पर झूठ या गलत कभी ना कभी सामने आ ही जाता है और इसी तरह जगरनिया भी उलझन में उलझ गई। उसका सारा विश्वास पानी- पानी हो गया। और वह वाइब्रेशन हो गई सजा के डर से।
    सरकारी कामों में होने वाले भ्रष्टाचार की पोल खोलती अच्छी कहानी के लिए आपको बधाई सुषमा जी!

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