Sunday, October 6, 2024
होमकहानीउषा साहू की कहानी - सा’ब (मुंशी प्रेमचंद की एक कथा पर...

उषा साहू की कहानी – सा’ब (मुंशी प्रेमचंद की एक कथा पर आधारित)

हरिप्रसाद ऑफिस से थका–हारा आया और आँगन पड़ी हुई टूटी खटिया पर बैठ गया । उसकी पत्नी रोहिणी पानी का लौटा और सकोरे में मूँगफली ले कर आ गई, बोली “लो जरा पानी पी लो, तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ :…। जैसे ही रोहिणी मूँगफली का सकोरा रख कर गई, दोनों बेटियाँ सकोरा के पास आकर खड़ी हो गईं और टकटकी लगाकर देखने लगीं । रोहिणी रसोईघर से देख रही थी। वहीं से चिल्लाकर बोली, “… चलो भागो यहाँ से, बाप को जरा झूठा मुह कर लेने दो । तुम दोनों तो पूरे दिन बकरियों की तरह कुछ न कुछ खाती ही रहती हो …” ।
रोहिणी साड़ी के पल्लू से पकड़ कर, पीतल के ग्लास में चाय ले आई । हरिप्रसाद ने गमछे से ग्लास पकड़ा और जैसे ही मुंह को लगाया, सामने से ऑफिस का चपरासी आता हुआ दिखा । बड़े ही गुस्से में दिख रहा था । था तो भारतीय, परंतु गोरे लोगों की झूठन खा-खा कर और उनकी गुलामी कर-करके अब वह “बीच वाला” बन गया था । भारतीय तो रहा ही नहीं और अंग्रेज़ बनने से रहा । उस चपरासी का नाम तो लक्ष्मण था, पर अंग्रेजों ने उसे लकमन बना दिया था ।
आते से ही चिल्लाकर बोला, “… अरे हरिया तू यहाँ बैठकर चाय पी रहा है, सा’ब तुझे ऑफिस में बुला रहे हैं, जल्दी चल…” । हरिप्रसाद चाय का सरूटा भरते हुये बोला, “…अरे ऐसी क्या आफत आ गई, मैं तो ड्यूटी खत्म करके ही आया था…” चपरासी डंडा फटकारते हुए बोला, “…अरे भाड़ में गई तेरी ड्यूटी, जल्दी चल, सा’ब बहुत गुस्से मेँ हैं, ग्लास रख और चल …” ।  शोर सुनकर रोहिणी रसोई से बाहर निकल आई और बोली, “…अरे लाला का गज़ब कर रहे हो, आदमी थका – हारा आया है, जरा सांस तो ले लेने दो …”। चपरासी रोहिणी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए  बोला, “…भौजी तू जानती नहीं हैं, सरकारी नौकरी कैसी होती है, चल उठ रे हरिया …”
हरीप्रसाद अपनी टूटी चप्पल पाव मेँ लटकाकर चपरासी के पीछे–पीछे चलने लगा । चपरासी लंबे–लंबे डग भरता हुआ चला जा रहा था और हरिप्रसाद उसके पीछे घिसटता हुआ चल रहा था ।
दोनों जैसे ही ऑफिस मेँ पहुंचे, देखा, सा’ब हाथ मे हंटर लिए, गुस्से के मारे लाल-पीला हो रहा था । हरिप्रसाद को देखते ही बोला, “ए मेन टुम स्टोर के सामान का फाइल किदर रखकर गया, यू ब्लेकी, सुअर का बच्चा, वर्क का इंपोर्टेन्स समझता नहीं है, अम टुमको अभी काम से निकाल ड़ेगा…” । हरिप्रसाद अपमान का जहर अंदर ही अंदर पीता रहा और सोचने लगा इसका हंटर लेकर इसी को सूतूँ और नौकरी छोडकर चला जाऊं । फिर दोनों बेटियों का ख्याल आया, घर द्वार का खयाल आया । सा’ब हंटर फटकारे, उसके पहले ही गुस्से को पीते हुए बोला, “…सा’ब आपके कमरे में ही तो रखी है, टेबिल पर…”। उदर क्यों रखी, हम इधर बाहर ढूंढ रहा था । यू एडिएट, हम टुम को अबी काम से निकल देगा । हरिप्रसाद गिड़गिड़ाते हुए बोला, “…नहीं सा’ब ऐसा अनर्थ न करना । दूसरी नौकरी कहाँ ढूंढुगा” ? मन ही मन बोला, साला कमीना, खुद की गलती और मुझे घर से बुलवा लिया ।
हरिप्रसाद किसी तरह लड़खड़ाता हुआ घर पहुँचा । घर के दरवाजे पर, पत्नी और दोनों बच्चियाँ, अपलक उसी की राह देख रही थीं । पत्नी बोली, “क्या हुआ, नाशमिटे, ठठरी बंधे ने काहे को बुलाया था तुम्हें ड्यूटी के बाद” । “…कुछ नहीं एक फाइल नहीं मिल रही थी, जबकि मैं उसकी टेबिल पर् ही रखकर आया था…” । “फिर क्या कहा तुमने उससे …? हरिप्रसाद कैसे कहे कि अपनी नौकरी बचाने के लिए मैं उसके सामने गिड़गिड़ाया । नकली मुस्कराहट दिखाते हुए बोला, “…मैंने गुस्से से कहा, दिखाई नहीं देता क्या, क्या तुम्हारी आंखे फूटी हैं, फाइल टेबिल पर ही तो रखी है । फालतू मुझे परेशान किया । और मैं घर आ गया …। रोहिणी अब ये समझ ले, नौकरी तो मेरी गई, अब घर कैसे चलेगा । पर मैं क्या करता, मेरा आत्म सम्मान मुझे धिक्कार रहा था…”। रोहिणी बोली, “… अरे नौकरी गई तो जाने दो, भूखे नहीं मरेंगे, हम दोनों मिलकर मेहनत मजूरी करेंगे । घी लगी नहीं खाएँगे, तो रूखी खाएँगे । सत्यानाश हो उसका …” ।
“…रोहिणी तू सच कह रही हो न…”  “और नहीं तो क्या, आत्म सम्मान से बड़ा कुछ है क्या” ?
रोहिणी की बात सुनते ही हरिप्रसाद के शरीर में एक अजीब – सी स्फूर्ति आ गई । रोहिणी से बोला, तू रोट्टी बना, मैं जरा बाहर जा रहा हूँ, अभ्भी आता हूँ …” और घर से निकल पड़ा । रास्ते में उसने एक लाठी ले ली और सीधा ऑफिस पहुँच गया । ऑफिस में सा’ब, एक हाथ में कुत्ते का पिल्ला लिए, मेम साहब के साथ बैठकर शराब पी रहा था ।  हरिप्रसाद सीधा अंदर घुसा और, टेबिल पर लाठी फटकारते हुये बोला, “… अब बोल क्या बोल रहा था मुझे एडियट, सुअर का बच्चा, जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी…” । सा’ब हरिप्रसाद का यह रूप देखकर घबरा गया । उसने कभी सोचा भी नहीं था, मेरा कोई मातहत ऐसा भी कर सकता है । हरिप्रसाद फिर गरजा, “…सॉरी बोल, नहीं तो मेम साहब के सामने ही तुझे इस लाठी से धोऊँगा, क्या करेगा, नौकरी से निकाल देगा न, संभार तेरी नौकरी, नहीं करना मुझे, रखले अपने पास ।  “…अरे हरिप्रसाद वह तो मैं फाइल को देख नही पाया था, इसके वास्ते टुमको बुलाया, सम टाइम हो जाता है ऐसा …” ।  हरिप्रसाद उसकी बात अनसुनी करके लाठी फटकारते हुये बोला, “कान पकड़ कर सॉरी बोलता है या फिर मैं … ” “सॉरी हरिप्रसाद यार, हम तो तुम्हारा फ्रेंड है… ”।  “…अरे छोड़, काहे का फ्रेंड, जाता हूँ, कल से नहीं आऊँगा काम पर …” । “…. अरे नहीं हरिप्रसाद टुम कल से काम पर आना, तूमे कोई कुछ नहीं कहेगा…” ।
हरिप्रसाद ने वह लाठी तोड़कर वहीं ऑफिस में फेंक दी और मूछों पर ताव देते हुये वहाँ से घर की तरफ़ निकल गया ।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest