1 – पंचायत
गांव में चौपाल पर मर्दों की पंचायत बैठी हुई थी। पंचायत में झुनिया सिर झुकाए हुए खड़ी थी। एक तरफ उसका पति और दूसरी तरफ उसका तथाकथित प्रेमी खड़ा था। पंचायत ने झुनिया का पक्ष सुने बिना उसे पराए मर्द से संबंध रखने के जुर्म में निर्वस्त्र कर मुंह पर कालिख पोत कर पूरे गांव में घूमाने का तालिबानी फरमान सुनाया था, जिससे गांव की बहूं बेटियों को इस कृत्य से सबक मिल सके। इधर जैसे ही गांव भर की स्त्रियों को पंचायत के इस फैसले का पता चला तो सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि अब वह गांव की किसी बहूं बेटी के साथ ऐसा जघन्य अपराध नहीं होने देगी। उस वक्त जिस स्त्री के हाथ बेलन, कलछी, झाड़ू इत्यादि जो भी पड़ा लेकर चल पड़ी उस स्थान पर जहां झुनिया को निर्वस्त्र कर मुंह काला करने की तैयारी चल रही थी। बड़ी संख्या में स्त्रियों की फौज आते देखकर पुरुषों की भीड़ झुनिया को छोड़कर भाग खड़ी हुई।
2 – मेडल
आज कारगिल विजय के चौबीस बरस हो गए थे। टीवी चैनलों पर सुबह से ही इसके बारे में दिखाया जा रहा था।
वह कारगिल युद्ध को कैसे भूल सकती है।
यह युद्ध देश तो जीत गया था लेकिन वह अपना सब कुछ हार गई थी।
उसने मेज पर रखी तस्वीर को उठाया और उसे देखकर कहा ।
“तुम झूठे निकले सुरजीत सिंह
तुम झूठे निकले…।”
उसकी आंखों से अश्रु बर्षा होने लगी।और वह अतीत के स्याह हो चुके पन्नों को टटोलने लगी । आज से चौबीस बरस पहले उसने दुल्हन बनकर इस घर में गृह प्रवेश किया ही था कि फौज से संदेश आया सीमा पर तनाव की स्थिति देखते हुए उसकी छुट्टी रद्द कर वापस बुलाया जाता है। उसने एक बार अपनी नई नवेली दुल्हन की ओर देखा और उससे कहा
“मैं जल्दी ही आऊंगा” इतना कहकर वह चला गया।
लेकिन वह फिर कभी लौटकर नहीं आया। आई भी तो एक काली अंधेरी रात में उसके शहीद होने की खबर आई कि हवलदार सुरजीत सिंह नरवरिया दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए ।
सरकार ने उसके अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत वीरता चक्र से सम्मानित किया।
उसके गले से पति के नाम का मंगलसूत्र कब का उतर गया लेकिन उसके नाम का मेडल अभी भी उसके गले में पड़ा है। जो हर वक्त उसकी याद दिलाता है।
बहुत ही मार्मिक लघुकथा
मर्मस्पर्शी लघुकथा, काश हम अपने संस्कारों को अपने में जीवित रखें तो बच्चे भी वही ग्रहण करेंगे।
मन छू गई! साधुवाद!