‘सारु अब तक स्टेशन नहीं पहुंचा।‘ 
‘आप सारू को नहीं जानते न ?’
सारु यानि सारांश त्रिपाठी.. मेरा जिगरी यार । हम दोनों शुरू से ही एक ही स्कूल में पढ़ते थे………. दक्षिण मुंबई में कुलाबा के होली नेम स्कूल में । होली नेम हाई स्कूल हम दोनों के घर के नजदीक पड़ता था। मैं शहीद भगत सिंह मार्ग पर कुसरोबाग कॉलोनी में रहता था तो सारु कुलाबा मार्केट में, अम्मूमियां सब्जीवाले के बाजू में जो पतली सी गली है न, जो सड़क से दिखाई भी नहीं देती, उसके आखिरी सिरे पर रहता था। एक कमरे के मकान में………. खोली में । उनका दूध का कारोबार था…….. दादाजी के जमाने से। दादाजी पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से भागकर मुंबई आ गए थे.. …… सब कुछ छोड़-छाड़कर । 
कुसरोबाग में रहने के कारण स्कूल में आम लड़के मुझसे कटे-कटे से रहते थे। सबको लगता था कि पारसी लोग तो बहुत ही अमीर होते हैं। उस दिन विक्टर का कम्पास बॉक्स चोरी हो गया, तो मॉनिटर हरजीत ने मेरा नाम लगा दिया। इससे पहले कि जूली मिस मेरी पिटाई प्रारंभ करती, सारु अपनी कॉपी लेकर मिस के पास पहुँच गया और कॉपी में कुछ पढ़ते ही मिस ने मेरी पिटाई का प्रोग्राम अचानक स्थगित कर दिया। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है ? यह तो हमारी पक्की दोस्ती होने के बाद मुझे बाद में पता चला कि लंच टाइम में सारु ने हरजीत को विक्टर का कंपास उठाते देख लिया था और मेरी पिटाई का प्रोग्राम शुरू होने की बारी आई तो सारु कुछ डिफिकल्टी पूछने के बहाने से जूली मिस के पास चला गया और अपनी कॉपी में लिख कर ले गया कि कंपास हरजीत ने चुराया है। उसने खुद देखा है। पिटने से बचने की खुशी से ज्यादा खुशी इसलिए हुई थी कि लड़कियों के सामने इज्जत बच गई, जिसकी परवाह मुझे हमेशा रहती थी।
‘’बख़्तू…………..।‘’ 
‘’मैं बिल्कुल नहीं चौका। यह आवाज तो मैं बेहोशी की हालत में भी पहचान सकता हूँ। बख और फिर तू………….. को लंबा खींचकर तो सारु ही बोलता है और उसकी उस तू ssssss में जो मिठास, गर्मजोशी और दुलार है, उसका मैं कायल हूं।
 “साले सारु । तू अब आ रहा है, जब गाड़ी छूटने वाली है।” मैंने उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा।
‘’छूटने वाली है….. अरे ! अभी तो 04.50 ही हुआ है और गाड़ी 05:10 पर रवाना होती है। तुम लोग कब पहुंचे सारु?” अपनी आदत के मुताबिक वह लापरवाही से बोला ।
“देख सारु तुझे तो पता ही है कि पप्पा कहीं भी समय से एक घंटा पहले पहुँचते हैं। स्टेशन हो, सिनेमा हो, सर्कस हो, ड्रामा हो, बर्थडे हो, शादी हो, पार्टी हो, वोटिंग हो, अस्पताल हो या मौत-मट्टी हो। हम  तो 04.10 पर यहाँ पहुंच गए थे। 
‘’अच्छा ! अब सब लोग ठीक से बैठ गए न ?’’
 सारु ने बख़्तू का पीएनआर 139 पर चेक कर लिया था। कोच नंबर सी 3 पी 1 बख्‍़तावर मिस्त्री एम 33 सीट नम्बर 54 ।
‘’अरे ! तुझे तो तेरी पसंद की विंडो सीट मिली है बख़्तू। 
02123 डाउन मुंबई पुणे डेक्कन क्वीन अपने निर्धारित समय 05 बजकर 10  मिनट पर प्लेटफॉर्म क्रमांक आठ से रवाना होने को तैयार है। यात्रियों से अनुरोध है कि वे अपने निर्धारित स्थान पर बैठ जाएं। चलती गाड़ी पकड़ने का प्रयास न करें। यह खतरनाक है। हम आपकी सुरक्षित एवं सुखद यात्रा की कामना करते हैं। ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ।
 उद्घोषणा अभी समाप्त भी नहीं हुई थी कि सारु ने बख़्तू को गले लगा लिया । 
‘’तुम बाबा जी लोग भी ना अपनी बिरादरी में किसी को भी शामिल ही नहीं करते। वरना तेरी सगाई और शादी मेरे बिना हो जाए !’’ 
 बख्‍़तू  कुछ भी नहीं बोल पाया, बस मुस्कुराकर रह गया। बख़्तू जब मुस्कुराता था तो उसकी मुस्कुराहट होठों के कोनों से हौले से फिसलकर ठुड्डी पर आकर ठहर जाती थी और सारु को लगता था कि वह बख़्तू के होठों के कोने पकड़कर उस मुस्कुराहट को वहीं क्यों नहीं चिपका पाता ?
कोच में बख़्तू के माता पिता के अलावा सात महिलाएं एवं पांच पुरुष रिश्तेदार भी थे जो रूपिया पेरवनु यानि सगाई के लिए जरूरी है क्योंकि सगाई में पांच या सात महिलाएं अवश्य होनी चाहिए | लेकिन नौ से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 
बख्‍़तू  की सीट पप्पा के बगल में ही थी। तीन सीटों वाली कतार में बीच में पप्‍पा, खिड़की वाली सीट पर वह और पप्‍पा की बाईं ओर एक सहयात्री अधेड़ आयु का सिर पर बालों की फसल उखड़ चुकी थी। इस कोरोना काल में बस इतना ही तो दिखाई देता है बाकी चेहरा तो मास्‍क की आड़ में छिप जाता है। डेक्‍कन क्‍वीन में आम तौर पर अपरिचित सहयात्री वार्तालाप का सिलसिला प्रारंभ नहीं करते, पर मैं देख रहा था कि पप्‍पा के बगल में बैठे सज्जन पता नहीं क्यों पप्पा से बात करने को उतावले से दिखाई दे रहे थे। गाड़ी चिंचपोकली से निकल रही थी।अब दादर आएगा । चाय वाला बगल से गुजर रहा था। उस सज्जन ने चाय ले ली और पप्‍पा से पूछा 
‘’अंकल आप चाय लेंगें ?’’ 
 ‘’जी नहीं ! शुक्रिया । ‘’ पप्‍पा बस मुस्कुराकर रह गए। चाय पीने के बाद उसकी उत्कंठा से भरी आंखें एवं कुछ कहने को बेताब होठों को देखकर मैं समझ गया कि अब यह दूसरा सवाल दागेगा और हुआ भी यही ।
‘’माफ कीजिएगा, आप कहाँ तक जाएंगे ? 
हालांकि ये सवाल बेतुका था।
आमतौर पर डेक्कन क्वीन के यात्री पुणे ही जाते हैं, इक्का दुक्का लोनावला । पूना को पुणे कहना अभी तक पप्‍पा की आदत में शुमार नहीं हो पाया था। वैसे पप्पा बहुत बोलते हैं। मशीन स्टार्ट होने में थोड़ा समय लेती है लेकिन एक बार जब चालू हो जाती है तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लेती। मुझे अंदेशा हो चला था कि अब पप्पा की ट्रेन का इंजन चालू होने ही वाला था। पहलू बदलकर उन्होंने इंजन को फर्स्ट नॉच पर डाला और शुरू हो गए। 
‘’आप भी शायद पूना ही जाएंगे ना ? 
‘’हां। जी हाँ । मैं पुणे ही जाऊंगा।‘’ 
‘’आप क्या करते हैं।‘’
‘’ मैं लेखक हूं ।‘’
‘’अच्छा ! नहीं मेरा मतलब था नौकरी । धंधा पानी । घर कैसे चलता है ?
‘’आप क्या करते हैं ? 
‘’उसने प्रश्न का उत्तर न देकर प्रश्न ही दाग दिया।‘’
‘’ मैं तो पुजारी हूं। ‘’ 
‘’जब पूजा से घर चल सकता है तो लेखन से क्यों नहीं। आप रहते कहां हैं । बॉम्बे या पूना।‘’ अपनी बात को कटते देखकर पप्पा ने विषय बदलने का असफल प्रयास किया।
‘’ मैं पुणे में रहता हूं। ‘’ मास्क नाक के नीचे सरकाते हुए सहयात्री ने कहा । 
‘’ वैसे यदि आप बुरा ना माने तो मैं आप लोगों के बारे में सब कुछ जानना चाहूँगा ,यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो।‘’
पप्‍पा ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर इशारा किया। ‘’ यह बख्तावर है मेरा बेटा। हम इसकी शादी करने पुणे जा रहे हैं। ‘’ 
‘’ नहीं ! मेरा मतलब यह नहीं था।‘’  उसने पप्‍पा की बात काटते हुए कहा- मैं पारसी लोगों के बारे में सब कुछ जानना चाहता हूँ। कहीं कुछ पढ़ने, जानने, सुनने को नहीं मिलता ना।
‘’ अच्छा-अच्छा बताता हूँ ।‘’ पप्पा का उत्साह तो देखते ही बनता था। मैंने खिडकी से गर्दन घुमाकर देखा दादर जा चुका था। रेलवे का माटुंगा वर्कशॉप दिखाई दे रहा था।
‘’ किसी जमाने में प्राचीन फारस जिसे आज हम ईरान कहते हैं, पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला हुआ एक विशालाकाय साम्राज्य था। तब पैगम्बर जरथुस्‍त्र ने एक ईश्‍वरवाद का संदेश देते हुए पारसी पंथ की नींव रखी। जरथुस्त्र एवं उसके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब के जिहादी आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा मजहबी एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इसके इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिलालेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है। 
मैंने महसूस किया कि लेखक के अलावा कई जोड़ी कान एवं कई जोड़ी आंखें पप्पा से जुड़ चुकी हैं।
सातवीं सदी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुरातन वैभव तथा शक्ति गंवा चुका था। जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली तो अपने पंथ की रक्षा हेतु अनेक जरथोस्‍त्री धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले  और नावों से हजारों कोस सफर करके भारत के पश्चिमी किनारे पर पहुंचे और उन्होंने मुंबई – सूरत सेक्शन में मुंबई से 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित संजान नाम के एक छोटे से गांव में शरण ली। संजान के राजा जाधव राणा ने हमें शरण दी । फारस से आने के कारण हम फारसी अर्थात पारसी कहलाए।
गुरुजी, गुरुजी, कहते हुए एक लड़का तेजी से अपनी सीट से उठा और हमारे नजदीक आकर कहने लगा कि ‘’मैंने इस बारे में एक कहानी सुनी है।‘’
पप्‍पा ने उसे डांट दिया।  
‘’हां हां सुना रहा हूँ बीच में मत बोलो।‘’ जब हम लोग राजा के दरबार में पहुंचे तो हमें न तो गुजराती आती थी और ना ही राजा को हमारी भाषा। राजा ने गुजराती में नाराजी से कुछ कहा जिसका अर्थ हमने यह लगाया कि हमारे देश में वैसे ही स्थान एवं संसाधन कम हैं। आप लोगों को भी यहाँ परेशानी होगी और हमें भी।
पप्‍पा थूक निगलने को पल भर रुके ।
तब हमारे मुखिया ने एक कटोरे में दूध लिया, उसको लबालब भर दिया किनारों तक, फिर उसमें चीनी डाली और मिलाकर राजा के हाथ में थमा दिया। निहितार्थ स्पष्ट था। डिगरा यही कहानी सुनना चाहता था ना,  पप्पा ने जानना चाहा लेकिन वह लड़का जवाब देता इसके पहले ही एक प्रोफेसर सी लगने वाली  मॉड महिला बीच में बोल पड़ी। 
‘’बिल्कुल सच कहा आपने बाबाजी ! आपने भारत की तरक्की में चार चाँद लगाए हैं। आप लोग यहाँ रच-बस गए, घुल-मिल गए। भारत के नवनिर्माण में जमशेदजी टाटा का योगदान सर्वोपरि है और आप दूध में शक्कर की तरह घुल तो गए लेकिन आपने अपनी सभ्यता और संस्कृति को आज भी बनाए रखा है।‘’
 गाड़ी कुछ धीमी हो गई थी, देखा, कल्याण निकल रहा था, शाम दबे पांव धीरे-धीरे डिब्बे में प्रवेश कर रही थी जैसे कोई किशोरी अपने प्रेमी से मिलकर आने के बाद सबसे नजरें बचाकर धीरे –धीरे घर में प्रवेश कर रही हो। अब तो यह गाड़ी सीधे कर्जत ही रुकेगी। वहाँ पीछे से बिजली के दो-तीन इंजन लगेंगे और गाड़ी को ढ़केलकर पहाड़ के उस पार लोनावला तक पहुंचाएंगे। जब सामने बैठे दम्पति में से उस भद्र महिला ने यह कहा कि –
‘’हम लोग गॉड को जेहोवा और उसके बेटे को जीसस कहते हैं। आप लोग गॉड को क्या कहते हैं ?’’ – तब मुझे पता लगा कि वे ईसाई है।
‘’अहुरा मजदा अर्थात महान जीवनदाता लेकिन अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं बल्कि शक्ति है, ऊर्जा है । जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है। इनमें एक है अहुरा मजदा की आत्मा स्‍पेंता मैन्यू । दूसरी है दुष्ट आत्मा अंघरा मैन्यू । इस दुष्ट आत्मा के नाश हेतु ही अहुरा मजदा ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव एवं अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया है।‘’
सी वन से सी फोर के चारों एसी सवारी डिब्बों के टिकटों की जांच करने के बाद कोच कंडक्टर अपनी सीट पर बैठने की बजाय पप्पा की बातें सुनने के लिए हमारे पास आकर खड़ा हो गया था। उसकी आंखे चार्ट पर गड़ी थी। यह दिखाने के लिए कि उसे इस बातचीत में कोई रुचि नहीं है लेकिन  उसका पूरा ध्यान पप्‍पा की ही ओर था। 
‘’अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य की इस संघर्ष में केंद्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्‍त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति,आदर्श एवं अमरत्व । इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व की तमाम बुराई को समाप्त कर देगा।‘’
कर्जत आ चुका था। वड़ा पाव बेचने वाले कोच के अंदर तक घुस आए थे। माँ ने, जो पिछली सीटों पर मेरी नौ बहनों एवं बुआओं के साथ बैठी थी, थर्मस से मग में कॉफी निकालकर पप्‍पा के हाथ में थमा दी थी, तब तक पप्‍पा पानी के कुछ घूंट गटक चुके थे। 
‘’हां तो फिर’’ ये ईसाई महिला के पति थे।
 पप्‍पा कुछ बोलते उससे पहले मैं शुरू हो गया ।
‘’देखिए ! मेरा तो यह मानना है कि स्पेंता मैन्यू कोई आत्मा नहीं है बल्कि संवृद्धिशील, प्रगतिशील मन अथवा मानसिकता है।” घर पर सारे धार्मिक ग्रंथ तो मैं बचपन से पढ़ता आ रहा था लेकिन रेलवे में फार्मासिस्ट होने के कारण मेरी दृष्टि अधिक वैज्ञानिक थी और यह अहुरा मजदा का एक गुण है। मैंने बात को आगे बढ़ाया । देखा पप्‍पा भी ध्यान से सुन रहे थे। 
‘’वह गुण जो ब्रह्मांड का निर्माण एवं संवर्धन करता है।  ईश्वर ने स्पेंता मैन्यू का सृजन इसलिए किया था कि एक आनन्ददायक विश्व का निर्माण किया जा सके। प्रगतिशील मानसिकता ही पृथ्वी पर मनुष्यों को दो वर्गों में बांटती है। सदाचारी, जो विश्व का समर्थन करते हैं तथा दुराचारी, जो इसकी प्रगति को रोकते हैं। जरथुस्त्र चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर तुल्य बने, जीवनदायी ऊर्जा को अपनाए तथा निर्माण, संवर्धन एवं प्रगति का वाहक बनें।‘’ 
उसे याद आया कि माधव सरो के समय अपने संदेश में पप्पा ने कहा था। अच्छा ! आप नहीं जानते कि माधव सरो क्या होता है ? विवाह की पूर्व रस्मों या रीति रिवाजों में माधव सरो का बड़ा महत्व है, जो 4 दिन पहले मनाया जाता है, वर और वधू के परिवार वाले गमले में आमतौर पर आम का एक पौधा लगाते हैं। आम के स्थान पर और कुछ भी हो सकता है  पर ज्यादातर आम ही लगाया जाता है यह प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। परिवार के पुजारी द्वारा कुछ पूजा-पाठ किया जाता है। पौधे को शादी के बाद आठवें दिन तक सींचा जाता है और फिर जमीन में कहीं लगा दिया जाता है। तो पप्‍पा ने इस अवसर पर कहा था कि –
‘’विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को हमें कायम ही नहीं रखना है बल्कि अपना विकास एवं संवर्धन भी करना है। हमारे पंथ में जड़ता की अनुमति नहीं है। विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुंचाती है, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ पर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।‘’
 गाड़ी रुक चुकी थी। मंकी हिल स्टेशन था। केबिन आ गई थी। यह पहाड़ की चोटी पर है। यहां से ढलान शुरू होती है। दिन के समय गाड़ी रुकते ही दोनों ओर बंदरों की फौज इकट्ठा हो जाती है क्योंकि यात्री उनके लिए खिड़कियों से खाद्य सामग्री फेंकते रहते हैं। मुझे लगा कि पप्पा सो चुके हैं। उनकी आंखें बंद थी। लेकिन बाद में पता चला कि मेरी बातें बड़े ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। मेरे चुप होते ही बोल पड़े ।
‘’जीवन के प्रत्‍येक  क्षण का एक निश्चित उद्देश्य है । यह कोई अनायास ही शुरू होकर अनायास ही समाप्त हो जाने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है। सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से अच्छाई द्वारा अच्छाई के लिए जीना है। हुमत (सदविचार) है, हुउक्‍त (सदवाणी)  तथा हुवर्षत (सदकर्म) जरथोस्त्री जीवन पद्धति के आधार स्तंभ है।‘’
‘’मुझे लगता है कि आपकी जीवन शैली पर फिरंगियों का प्रभाव कुछ अधिक ही है।‘’
 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव-सा दिखने वाला एक युवक शायद बहुत देर से पप्पा के चुप रहने का इंतजार कर रहा था।
‘’ हो सकता है । शायद इसीलिए हमारे धर्म में मठवाद, ब्रम्हचर्य, व्रत-उपवास, आत्‍मदमन आदि की बिल्कुल मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है। निराशावाद एवं अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्‍त्र चाहते थे कि मानव विश्व का पूरा आनंद उठाएं । खुश रहे। वह जो भी करें बस एक बात का ख्याल अवश्य रखें और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित ना हो।‘’ पप्‍पा इसलिए रुक गए क्योंकि गाड़ी लोनावला स्टेशन में प्रवेश कर रही थी। लोनावला उतरने वाले कुछ यात्री अपना सामान लेकर दरवाजे तक पहुंच चुके थे लेकिन वह उतर पाते, उसके पहले ही चिक्की बेचने वाले लड़के डिब्बे में घुस चुके थे। गाड़ी मलवली स्टेशन से गुजर रही थी। वह बहुत दूर बाईं ओर दिखाई दे रही सहयाद्री पर्वत श्रृंखला में स्थित मां एकविरा देवी के मंदिर पर जलती लाइट को देख रहा था। अब लगभग पूरा डिब्‍बा ही बड़े मनोयोग से पप्‍पा की बातें सुन रहा था।‘’
‘’हमारे यहां भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन जीने की मनाही नहीं है। लेकिन यह भी कहा गया है कि इस समाज से तुम जितना लेते हो, उससे अधिक उसे दो। किसी का हक मारकर या शोषण करके कुछ पाना दुराचार है । जो हम से कम संपन्न है, उनकी सदैव मदद करनी चाहिए। ‘’
‘’मौत और आत्मा के बारे में आप क्या कहते हैं ?’’ कहते हुए एक तिलकधारी सज्जन अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए।
‘’ हमारे यहां दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थाई जीत माना गया है । इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ होगा। यदि सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में वास पाएगी और यदि दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्‍य की गहराइयों में जाएगी लेकिन दुराचारी आत्मा की यह स्थिति भी अस्थाई है। आखिर जरथोस्‍त्री पंथ विश्व का अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता है बुराई की सजा को नहीं । यह मान्यता है कि अंततः कई मुक्तिदाता आकर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे, तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्व समर्थवान होंगे। फिर आत्माओं का अंतिम फैसला होगा इसके बाद शरीर का पुनरुत्थान होगा तथा उसका अपनी आत्मा के साथ पुनर्मिलन होगा। समय का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और अहुरा मजदा की सात कृतियां शाश्वत धन्यता में एक साथ आ मिलेंगी और आनंदमय अनश्वर अस्तित्व को प्राप्त करेगी।‘’ पप्‍पा ने एक सांस में अपनी बात समाप्त की।
अब डेक्कन क्‍वीन पुणे स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक एक पर रुक चुकी थी। अनेक लोगों ने पप्पा से हाथ मिलाया। कईयों ने पैर छुए। पता एवं फोन नंबर लिया। स्टेशन पर तनाज़ के पिता परवेज़ तथा मां गुलरुख के अलावा अन्य संबंधियों के साथ ही उसके पेदार बोजोर्ग तथा मादरबोजोर्ग अर्थात दादा-दादी भी उनकी अगवानी करने के लिए आए हुए थे। पुणे के लुल्ला नगर में पारसी कॉलोनी तक पहुंचने में हमें लगभग 1 घंटे का समय लग गया । आज ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था।
दूसरा दिन रूपिया पेरवनु यानी सगाई का दिन था। शाम को जब हम तनाज़ के घर पहुंचे तो उसकी मां गुलशन ने अपने दरवाजे पर हमारा स्वागत किया और उसकी मौसी एक चांदी की ट्रे लेकर आई जिसमें पानी की केटली,  कुछ चावल,  चीनी मिट्टी का बर्तन,  गुलाब की पंखुड़ियां,  एक कच्चा अंडा, एक नारियल तथा कुछ सूखे खजूर करीने से रखे गए थे। मौसी ने अपने हाथ में अंडा लिया और मेरे सिर के चारो ओर पहले घड़ी की दिशा में छः बार फिर घड़ी की विपरीत दिशा में छ: बार घुमाकर जमीन पर पटककर तोड़ दिया। यही प्रक्रिया नारियल के साथ भी दोहराई गई। सगाई की सारी रस्में होने तक मैं अपलक तनाज़ को निहार रहा था। तनाज़ बाटलीवाला कितनी सुंदर थी। कितनी कोमल, कितनी नरम। उसका अंग-प्रत्यंग कोमलता से भरा हुआ था | बिल्कुल अपने नाम की तरह तनाज़ अर्थात कोमलांगी । 
खाना बेहद लजीज़ था। धनसक, खीमा पाव और बाद में मेरा पसंदीदा एप्पल पाय और चॉकलेट माउस । शादी की सारी रस्में यानी हथेवारो, नाहन आदि पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न हुई। रिसेप्शन कोरेंथियन क्लब में संपन्न हुआ। मेरे ससुर परवेज़ बाटलीवाला टाटा मोटर्स में काम करते थे लेकिन कोरोना के प्रतिबंधों के कारण मेहमानों की तादाद अधिक नहीं थी। खाने में पारंपरिक पारसी व्यंजनों मटन बेरी पुलाव, चिकन फरचा, सॉसनी मच्छी,  सल्‍लीबोटी के अलावा शाकाहारी भोजन की व्यवस्था भी की गई थी क्योंकि एक तो मेरे भायखला के बहुत से मित्र शाकाहारी थे और दूसरे तनाज़ के सेंट हेलेना हाई स्कूल एवं ससुर जी के टाटा मोटर्स के बहुत से लोग भी शाकाहारी थे। रिसेप्शन देर रात तक चलता रहा। रात हम सबको यही रहना था। सुहाग कक्ष ऊपरी मंजिल पर था। तनाज़ की सहेलियों की चुहलबाजी के चलते कब रात का 1:00 बज गया पता ही नहीं चला। थकान के मारे हम दोनों का बुरा हाल था। शादी के जोड़े में ही कमर सीधी की। मैं सोफे पर ही लुढ़क गया। बाद में पता ही नहीं चला कि कब हम गहरी नींद के आगोश में समा गए।
 सुबह जब लगातार बज रही कॉल बेल से दोनों की नींद खुली तो दिन काफी चढ़ आया था। अरे ! आज तो आशीर्वाद लेने उदवाड़ा जाना है। याद आते ही वह फौरन बाथरूम में घुस गया । शॉवर के नीचे नहाते हुए वह सोच रहा था कि कल रात सुहागरात मन जाती तो दिल के सारे अरमान पूरे कर लेता, लेकिन खैर । उदवाड़ा पहुंचने के लिए पहले मुंबई पहुंचना था – लिहाजा वह और तनाज़ दोनों उदवाड़ा के लिए रवाना हो गए। दो दिन बाद उदवाड़ा से लौटते ही पता चला कि तनाज़ के पिता परवेज़ कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उसने तनाज़ को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन तनाज़ ने कहा कि वह अपने पिता से बेहद प्यार करती है और पिता भी उस पर जान छिड़कते हैं। ऐसी हालत में वह उनकी देखभाल करना चाहती है। उसने तनाज़ को समझाने की बहुत कोशिश की कि यह बीमारी बहुत ही खतरनाक है।संक्रमण का खतरा तो है ही और अभी हाल ही में तो उनकी शादी हुई है और सुहागरात ——-  लेकिन तनाज ने एक न सुनी और वह वसई रोड आते ही ट्रेन से उतर पड़ी। उसे शायद पता था कि यहां से पुणे जाने वाली गाडियां मिलती है। कोरोना ग्रसित रोगियों की सेवा में अपने आपको झोंक देने वाला बख्‍़तावर चाह कर भी वसई रोड नहीं उतर पाया क्योंकि उसे तो कल सुबह आठ बजे अपनी ड्यूटी पर रेलवे अस्पताल, भायखला पहुंचना था।‘’ 
इयूटी पर पीपीई किट पहनने और ड्यूटी के बाद पूरे समय मास्क लगाने, दस्ताने पहनने, घर पहुंचते ही नहाने, पूरे कपड़े धोने, बार-बार हाथ धोने, सैनिटाइजर के फव्वारों से खुद को भिगोने, पौष्टिक भोजन लेने, प्रातः प्राणायाम, कपाल-धौती, अनुलोम-विलोम, योग तथा व्यायाम करने, रोज तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, हल्दी का काढ़ा पीने, विटामिन-सी की गोली लेने की सलाह न सिर्फ वह सबको देता रहता था बल्कि खुद भी वह सारी बातों पर अमल करता था। इन दिनों उसका तकिया कलाम बन गया था कि –‘’बीमारी से सावधानी और सावधानी में ही सुरक्षा है।” 
वीडियो कॉल की वजह से आजकल बड़ी आसानी हो गई है। प्रायः रोज ही उसकी तनाज़ से बातें हुआ करती थी। फिर दूसरी लहर आई। रोगी बढ़ने लगे।  बातों का सिलसिला धीरे-धीरे कम-कम होता हुआ लगभग बंद-सा हो गया। हां ! संदेशों का आदान-प्रदान चलता रहा।
तनाज़ के पिता को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। होम क्वारनटाइन में ही वे ठीक हो गए, लेकिन इससे तनाज की मां संक्रमित हो गई और उन्हें फिर से अपने घर में  हीं कैद हो जाना पड़ा। तनाज़ ने लक्षण दिखाई न देने और कोई तकलीफ न होने के कारण टेस्ट नहीं कराया। हालांकि उसने सेल्फ टेस्टिंग किट पुणे भिजवा दिया था और तनाज़ से कहा था कि वह भी तुरंत अपना टेस्ट करा ले। लेकिन तनाज इसके लिए राजी नहीं हुई।
बख्‍़तावर की कुर्सी के बाईं ओर लगे फार्मास्यूटिकल कंपनी के सुंदर से कैलेंडर के कई पृष्ठ पलटे जा चुके थे। बाह्य रुग्ण विभाग में तो रोगी आने से कतराते थे। लिहाजा काम का दबाव थोड़ा कम था तो उसकी नजर स्क्रीन पर गई। यह तनाज़ थी। काम के समय वह मोबाईल को म्यूट कर देता था। उसने साउंड बढ़ाया और तनाज़ से बात करना शुरू कर दिया। उसे जानकर राहत मिली कि अब दोनों की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है, लेकिन तनाज़ ने अभी भी अपना टेस्ट नहीं किया था। लॉकडाउन में स्कूल तो पूरी तरह से बंद हो चुके थे। ऑन लाइन पढ़ाई जारी थी। रेलगाड़ियाँ, बसें, टैक्सी सब बंद थे।
तनाज़ की स्कूल की एक सहेली तानिया ससून अस्पताल में डॉक्टर थी। एक दिन उसने मैसेज किया कि वह मुंबई जा रही है। यदि वह चाहे तो उसे सुरक्षित मुंबई पहुंचा सकती है। उसने कई बार बख्‍़तावर से कहा था कि या तो वह पुणे आ जाएं या उसे मुंबई बुलाने का कोई इंतजाम कर दे लेकिन बख्‍़तावर संक्रमण की बात कह कर हर बार टाल जाता था। लिहाजा उसने तानिया को रिटर्न मैसेज कर दिया कि वह उसके साथ मुंबई आयेगी ।
निर्धारित समय पर तानिया एम्बुलेंस लेकर उसके घर पहुंच गई। एम्बुलेंस को देखते ही फटाफट आस-पड़ोस की खिड़कियां खुल गई और कानाफूसियों का दौर प्रारंभ हो गया। इससे पहले कि किसी को कुछ जानने-समझने का मौका मिलता। तनाज पीपीई किट पहनकर एम्बुलेंस पर सवार हो गई और पलभर में ही सायरन बजाती हुई एम्बुलेंस मेन गेट से बाहर हो गई और वॉचमैन की यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई कि 507 वाली मास्टरनी को कोरोना हो गया है और हालत ख़राब होने के कारण उन्हें बड़े अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया जा रहा है।
इधर मुंबई में कुसरो बाग के मेन गेट से धड़धड़ाती हुई गार्डन का गोल चक्कर लगाने के बाद एम्बुलेंस डी विंग के सामने आकर रुकी। शाम का समय था। बख्‍़तावर हाल ही में अस्पताल से लौटा था। डी विंग के तीसरे माले पर अपने बेडरूम की खिड़की से झांककर उसने नीचे देखा कि पीपीई किट पहने एक शख्सियत पिछले दरवाजे से नीचे उतरी और एम्बुलेंस उसे छोड़कर वापस चल दी। कुसरो बाग की खिड़कियों में ग्रिल न होने के कारण उसे सब कुछ बिल्कुल साफ- साफ दिखाई दे रहा था। उसे लगा शायद उसके विंग मे कोई पेशंट ठीक होकर घर वापस आ गया है। उसने चाय की चुस्की ली ही थी कि डोर बेल घनघना  उठी, उसने पप्पा को कई बार कहा है कि यह घनघनाने वाली घंटी बदलकर टिंग टांग वाली कोई दूसरी लगवा लें, आदमी अपनी धुन में हो तो इससे क्षणभर के लिए कलेजा थर्रा जाता है, लेकिन पप्पा जरा ऊंचा सुनते हैं, लिहाजा उसने अब इस बारे में बोलना छोड़ दिया है। दरवाजा उसने ही खोला। पीपीई किट के अंदर से झांकती हरी आंखें, पलकों पर अपेक्षाकृत बड़े काले बाल, नाक की नोंक पर काला गोल मस्सा, मदहोश कर देने वाली मुस्कान । त——ना——ज़——-  वह इतनी जोर से चीखा कि पप्पा-मम्मा दौड़कर उसके पीछे आकर खड़े हो गए। 
“वॉशरूम किस तरफ है।” पीपीई किट उतारे बिना तनाज़ ने पूछा। उसे अब तक विश्वास नहीं हो रहा था,  उसने बाएं हाथ से इशारा कर दिया।
लगभग घंटे भर बाद तनाज वॉशरूम से निकली। नीले लैगईन और क्रोशिये के सफेद टॉप से तनाज़ का यौवन छलक रहा था। बख्‍़तावर की रीढ़ की हड्डी में एक सनसनी-सी दौड़ने लगी। उसके अछूते सौंदर्य को अपलक निहार रहे बख्‍़तावर की तंद्रा तब टूटी जब तनाज़ उसकी आंखों के सामने ऊपर-नीचे अपनी हथेली हिलाने लगी। वह झेंप गया।
 “तनाज़ ! तुम इस तरह अचानक।‘’ 
‘’ तो क्या बैंडबाजे के साथ आती। “
‘’तुम तो मेरे आने का कोई इंतजार करने से रहे।” वह समझ नहीं पाया कि उसकी आवाज में उलाहना अधिक है या शिकायत ?
 “चलो कोई बात नहीं। तुमने टेस्ट तो कराया होगा। नेगेटिव है न?” उसके दिल की बात जुबान पर आ गई। 
“नहीं कराया। तुमने कराया क्या ?” तनाज के स्वर में झुंझलाहट थी। 
‘’मैं क्यों कराऊँ ? न मम्‍मा-पप्‍पा संक्रमित हुए थे और न मैं? तुम्हारे यहां मम्मा-पप्‍पा दोनों कोरोनाग्रस्त थे। ‘’ उसने सफाई दी । 
‘’ तुम तो मरीजों के बीचे मैं रहते हो न यदि ‘’— कहकर वह उसके नजदीक आने लगी।
‘’अच्छा ! तुम आराम करो, मुझे कुछ काम करना है।” कहकर वह तेजी से अपने बेडरूम में चला गया और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
डिनर पर चारों ने ढेर सारी बातें की। कुसरोबाग की खासियत है कि यहां बिना ग्रिल की बड़ी-बड़ी खिड़कियां हैं। लगभग हर कमरे में बालकनी सहित एक बड़ी खिड़की है। डिनर के बाद तनाज़ ने बालकनी में आकर ऊपर देखा, आसमान में बादल नहीं थे। निरभ्र आकाश में तारे अपनी ड्यूटी पर हाजिर हो रहे थे। उसे लगा कि आज उसकी भी रात तारों से भरी होगी। वह वापिस ड्राइंग रूम में आकर मम्मा-पप्‍पा के साथ टीवी देखने लगी। नेट फ्लिक्स पर राजेश खन्‍ना की फिल्म ‘थोड़ी सी बेवफाई’ आ रही थी। फिल्म समाप्ति की ओर थी। जम्हाई लेते हुए पप्पा कहने लगे –
‘’देखो ! कभी-कभी गलतफहमियों के कारण रिश्ते किस तरह तबाह हो जाते हैं ।‘’ फिल्म समाप्त हुई। मम्मा-पप्पा सोने के लिए अपने बेडरूम में चले गए तो उसने आहिस्ता से अपने बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, लिहाजा हल्की-सी थाप से खुल गया। देखा बख्‍़तावर गहरी नींद में है। उसके खर्राटें पूरे कमरे में गूंज रहे थे। ओ माई गॉड ! उसके यहां तो कोई खर्राटें नहीं लेता। उसने बख्‍़तावर के पास सोने का असफल प्रयास किया फिर उठकर ड्रॉइंगरूम में सोफे पर आ गई और उसे कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया, पता ही नहीं चला।
बाद के दिनों में वह यह सोचकर अपने बेडरूम में ही सोने लगी कि कोई एक दिन की बात थोड़े ही है। पहाड़-सी जिंदगी काटनी है उसे इस आदमी के साथ, जो उसका पति कहलाता है,  खर्राटों के साथ सोने की आदत तो डालनी ही होगी। एक सप्ताह में ही उसे यह महसूस होने लगा कि उसका पति उसके नजदीक आने से, उसे छूने से, उसे प्यार करने से बचता रहता है। पहले तो उसे लगता था कि अस्पताल में काम का दबाव ज्यादा होने के कारण वह थक जाता है, लेकिन सप्ताहांत में उसकी यह आशंका निर्मूल साबित हुई। शनिवार को अस्पताल आधे दिन बाद बंद हो जाता है, लेकिन बख्‍़तावर शनिवार को भी देर शाम तक ही घर पहुंचा, पूछने पर कहने लगा कि स्टॉक चेकिंग के लिए तो सप्ताह भर समय ही नहीं मिलता इसलिए शनिवार को हम लोग काम पूरा कर लेते हैं। 
इतवार को सब लोग फोर्ट स्थित बनाजी लिमजी अग्यारी गए। अग्यारी से लौटते समय उसकी सास गुलरुख ने बख्‍़तावर  से कहा- “डिकरा, बख्‍़तू बहू को कहीं घुमाएगा नहीं क्या ?” तब बड़े बेमन से बख्‍़तावर ने उसे ले जाकर एशियाटिक लाइब्रेरी की सीढि़यों पर बैठा दिया, उसने देखा वहाँ प्रेमी जोड़े एक-दूसरे से सटकर सेल्फी लेने में व्यस्त है। सबसे ऊपर की सीढ़ी  पर प्री-वेडिंग शूट चल रहा है। एक पंजाबी नवविवाहित जोड़ा आलिंगनबद्ध आंखें मींचे लाइब्रेरी के विशाल खंबे से टिका समाधि की अवस्था में है और मेरा बख्‍़तावर मुझसे सुरक्षित दूरी बनाकर मेरे पास बैठा है। मुझे सामने दिखाई दे रहे हॉर्निमन सर्किल का इतिहास बताने में खोया हुआ है।
 दोपहर जिम्मी बॉय में लंच लेकर हम पैदल ही फ्लोरा फाउंटेन पहुंच गए और वहां कुछ समय बिताने के बाद चर्चगेट स्टेशन होते हुए पिज्जा बाय द बे के सामने मरीन ड्राइव पर समुद्र की ओर पैर लटकाकर चहारदीवारी पर बैठ गए। लेकिन उतने पास नहीं, जितने पास होना चाहिए। दोपहर का समय है। जनवरी की गुनगुनी धूप। सूरज की तिरछी किरणें लहरों के साथ अठखेलियां करते हुए मादक स्वर लहरियां बिखेर रही हैं। दूर एक मछुआरा लहरों पर हिचकोले खाती नांव पर खड़े होकर अपना जाल खींच रहा है। उसने हौले से अपनी बाईं हथेली राजभवन की ओर निहार रहे बख्‍़तावर के दांये हाथ पर रख दी। बख्‍़तावर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की लेकिन उसके रोम-रोम में मादक अनुभूति की तरंगे प्रवाहित होने लगी।
“बख्‍़तावर” उसने चुप्पी तोड़ी
‘’हुं’’
“कुछ बोलो न’’
“क्या””
” क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?”
“ऐसा तुमसे किसने कहा?”
 “कुछ कहना जरूरी होता है क्या? कुछ बातें कही नहीं, समझी जाती है।‘’
 “क्या तुम किसी और को चाहते हो और उससे शादी करना चाहते थे?”
“यार ! तुम बकवास मत करो । ऐसी कोई बात नहीं है।”
“फिर क्या बात है ? शादी के बाद सुहागरात आती है ये तो तुम जानते होंगे ? कि नहीं जानते। एक सप्ताह हो चुका है, तुमने मुझे अब तक छुआ तक नहीं है।”
‘’देखो तनाज़, वो सब कुछ तो हमें जिंदगी भर करना है। तुम्हारे यहां मम्मा-पप्‍पा पॉजीटिव थे और फिर तुमने अपना टेस्ट भी नहीं कराया है, क्या पता वायरस तुम्हारे शरीर में आँख-मिचौली खेल रहा हो। बस और सात दिनों की ही तो बात है। ये 14 दिनों का क्‍वारन्टाइन पीरियड बीत जाने के बाद फिर देखना। तुम अपना टेस्ट करा लेना। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद तो तुम मेरी सुहागरात देखना। दो-चार दिन तो तुम बिस्तर से हिलने के भी काबिल नहीं रह पाओगी।” कहते हुए बख्‍़तावर ने दांए हाथ से उसके सिर पर प्यार से एक चपत लगा दी।‘’
लाज़ से तनाज़ की कनपटियां लाल हो गई। मन का बोझ उतर गया। छि: !  वह क्या कुछ सोच रही थी ?
अगले सप्ताह के पहले दिन ही तनाज़ को स्कूल से बुलावा आ गया। अब निजी वाहन से पुणे जाने की अनुमति मिल सकती थी। पुलिस पास जारी कर रही थी। वह पास लेकर बुधवार को पुणे रवाना हो गई। डॉ. तानिया किसी काम से अपनी गाड़ी लेकर जे. जे. हॉस्पिटल आई थी, तो वापसी में उसे लेती हुई गई। देर रात पहुंचे तो डॉक्टर तानिया उसे काहुन रोड कैम्प स्थित अपने बंगले पर ले गई। यह कहकर कि दोनों सहेलियाँ लॉकडाउन के बाद आज पहली बार मिली हैं, जमकर बातें करेंगी ।
कयानी के वॉलनट केक का एक टुकड़ा मुंह में डालते हुए डॉ. तानिया ने प्लेट उसकी ओर सरका दी और कहने लगी- “और सुना यार ! क्या हाल है ? तू तो बड़ी बुझी-बुझी सी, मुरझाई हुई लग रही है। जबकि अभी तो तेरे खिलने, रंग बिखेरने, खुशबू लुटाने और इंद्रधनुषी सपनों में खोने के दिन है।”
“क्या बताऊं यार तानिया” कहकर उसने एक गहरी सांस ली और सारी हकीकत बयान करने के बाद बोली- ” यहां तो बहारों के मौसम में पतझड की वीरानी झेल रही हूं”
“अच्छा यह बात है।” डॉ. तानिया की हिरनी-सी लंबी आंखे और भी फैल गई थी। उसने शून्य में निहारते हुए बोलना प्रारंभ किया- “देख यार मैं  डॉक्टर हूँ। एमडी । और तेरा मियां सिर्फ फार्मासिस्ट। वो क्या मुझसे ज्यादा जानता है। मुझे नहीं लगता कि तुझे 14 दिन क्वारेन्टाइन में रहने की जरूरत है। तुममें कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं। अब हम चखायेंगे मजा तेरे मियां को। अब देखते जाओ। आगे-आगे होता है क्या? चल कल मेरे साथ ससून अस्‍पताल। तेरा टेस्ट कराती हूँ। रिपोर्ट तो नेगेटिव ही आनी है तेरी। फिर ये नेगेटिव रिपोर्ट तेरे मियां को भेज देना और उससे अपनी रिपोर्ट भी भेजने को कहना। डॉ.  तानिया ने अपनी योजना पर ख़ुशी से चहकते हुए कहा- 
“उसकी रिपोर्ट—  किसलिए ? उसके घर में तो किसी को कोरोना नहीं हुआ और न ही उसे कोई लक्षण है वो तो अस्पताल में काम करने के कारण अपने आप का इतना ध्यान रखता है कि उसे कभी छींक भी नहीं आती।” वह डॉ. तानिया के इस प्रस्ताव से चौंक गई थी। 
“हां! हां! उसे कोरोना नहीं है। तो मैं भी कहाँ उसकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट मांग रही हूं।” डॉ. तानिया ने कुटिलता से मुस्कराते हुए कहा- “मुझे तो उसकी मर्दानगी का सबूत चाहिए।”
“क्या ? तू ये क्या कह रही है तानिया।”  तनाज़ को अपने पैरों तले की जमीन खिसकने का एहसास हुआ।
 “हां मेरी प्यारी तनाज़  ! मुझे अब पक्का यकीन हो चला है कि तेरा मियां इस काबिल ही नहीं है कि किसी के साथ सुहागरात मना सके, वरना तुझ जैसी ऐसी हसीन, चुलबुली, शोख एवं जवान लड़की, जिस पर पूरा वाडि़या कॉलेज मरता था, किसी बांके जवान को अपने बिस्तर पर मिल जाए तो वो क्या मुंह फेरकर सो जाएगा। सोचो, मेरी जान —-  सोचो।” उसके मन की उर्वर जमीन में शक का बीज बोकर डॉ. तानिया डिनर की तैयारी करने किचन में घुस गई। 
‘’ अच्‍छा तो यह बात है। वह सोचने लगी और पीपीई किट पहनकर कुसरोबाग में घुसने से लेकर आज तक की सारी घटनाएं उसकी आंखों के आगे चलचित्र-सी घूमने लगी। घर पहुँचकर उसने सिलसिलेवार सारी बातें अपने मम्‍मी-पप्‍पा को बताई तो वे उसके भविष्य के प्रति चिंतित हो उठे।
मामला पारसी पंचायत में पहुंचा। तनाज़ की कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट पंचायत को प्रस्तुत की गई। बख्‍़तावर पूर्ण पुरुष था । उसने खुद आगे आकर अपनी मर्दानगी का सबूत पंचायत के सामने रख दिया। दोनों की आखें चार हुई। उसने मुंह फेर लिया।
पप्पा ने पंचायत को बताया कि अब उनका बेटा तनाज़ के साथ रहने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि जिस रिश्ते की बुनियाद ही अविश्वास पर टिकी हो, उसे निभाने का कोई मतलब ही नहीं है। पंचायत ने दोनों पक्षों को समझाया कि हमारी कौम तेजी से घट रही है,  हमारे तलाक के नियम भी बड़े पेचीदा है, इस मामले में तो तलाक हो ही नहीं सकता, क्योंकि तलाक पर भले ही आप सहमत हो, दूसरा पक्ष सहमत नहीं है, आपसी सहमति नहीं बन रही है तलाक के लिए। लिहाजा दोनों को साथ ही रहना होगा, यही समाज के हित में है।
बख्‍़तावर और उसके मम्मा-पप्‍पा ने पंचायत का निर्णय भारी मन से स्वीकार कर लिया, तनाज़ का परिवार तो यही चाहता था। तनाज़ उसे पहले ही बता चुकी थी कि डॉ. तानिया उसकी बचपन की एकमात्र सहेली है, जिसे वह बचपन से अपनी हर बात बताती आ रही है। बख्‍़तावर ने तनाज़ का हाथ थामते हुए कहा “तनाज़ बधाई हो। तुम नेगेटिव हो और मैं पॉजीटिव हूँ और हां — डॉ. तानिया वेलडन। ‘’ डॉ. तानिया ने झेंपकर तुरंत अपना मोबाइल ऑन कर दिया।
मुंबई पहुंचने पर तनाज़ की सुहागरात आई और चली गई, लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ, जैसा तानिया ने सोचा था। यह एक नर और मादा शरीर के मिलन के अलावा कुछ नहीं था। समय का पहिया अपनी गति से भागता रहा लेकिन उन दोनों के बीच हमेशा बनी रही एक ———  सुरक्षित दूरी।
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शब्‍दों के परे ( निबंध संग्रह), अक्षरों की मेरी दुनिया ( निबंध संग्रह), पीली रोशनी का समंदर ( कहानी संग्रह) का प्रकाशन. साहित्यिक पत्रिका ‘सृजन’ एवं आत्मकथा ‘अतीत की पगडंडियां’ एवं भारतीय रेल की पत्रिकाओं रेल दर्पण, ज्ञानदीप, इंद्रायणी, कोयना, रेल सुरभि, उड़ान आदि का संपादन. संप्रति : निदेशक ( राजभाषा ), भारत सरकार, रेल मंत्रालय, रेलवे बोर्ड, रायसीना रोड, नई दिल्‍ली– 110001. मोबाइल - 8828110026, ईमेल - vipkum3@gmail.com,

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