मेरे देश का नाम इलाहाबाद है, उसकी राजधानी इल्लाबाद है।
सब लोग हंसने लगे।
और तुम्हारे पापा क्या करते हैं?
मेरे पापा चाकलेट बनाते हैं।
तुम्हारी मम्मी क्या करती हैं?
मेरी मम्मी झाडू लगाती हैं।
कृतार्थ की बात सुनकर सब लोग हंसी से लहालोट हो जाते हैं लेकिन कोने में बैठी अमृता को घबराहट होने लगती है।
अमृता अपने बेटे को रोज़ पूरा पूरा वाक्य रटाती थी। ऐसे बोलते हैं ऐसे कहते हैं कहो कि मेरी मम्मी आफिस में काम करती है, जब कोई पूछे कि वह आफिस कैसे जाती है, तब कहना कि वह आफिस बस से जाती है। मेरे पापा चाकलेट लेकर आते हैं। वह पूरी कोशिश करती थी कि सारे वाक्य सरल हों। लेकिन ऐसा कहां हो पाता था। सवाल तो अपने मिज़ाज में ही जटिल होने के लिए बने होते हैं। खासतौर पर जब सवाल में सूचना से ज्यादा कुछ सूंघने का उतावलापन हो, तब कृतार्थ कुछ का कुछ बोलने लगता था।
कभी-कभी कृतार्थ एकदम वैसे ही बोलता था जैसे उसकी मां ने सिखाया था। कभी-कभी तो वह ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करता था कि वह चौंक जाती थी। वह दिन अमृता के लिए बिलकुल अलग होता। वह आफिस में चहकने लगती थी, लेकिन जिस दिन कृतार्थ कुछ का कुछ बोलता अमृता बहुत चिड़़चिडी हो जाती। वो पूरे दिन बडबड़ाती रहती थी। आफिस में जब कोई अपने बच्चे के मार्क्स बताता या कहता कि उनका बच्चा स्कूल में अच्छा परफा्रम कर रहा है तो उसे भीतर से कसक उठने लगती थी। इस कसक को एक दर्द में कोई आसानी से बदल देता जब पूछता-
आपका बेटा भी तो तेरह साल का हो गया होगा। किस क्लास में पढ़ता है?
वह देखती थी कि दूसरे बच्चे कितनी जल्दी जल्दी बोलते हैं, तेजी से दौड़ते हैं, कितने जल्दी से लिख लेते हैं फिर वह खुद ही इस बात को झिटक देती थी।
जब दूसरे बच्चों के माता पिता इस बात की शिकायत करते थे कि ये जब देखो तब फोन पर रहता है। गेम खेलता रहता है। बचपन में कलरिंग करता था लेकिन अब तो इसको ये सब बोर लगता है।
तब अमृता को लगता था कि वह भी ऐसे ही शिकायत करे पर क्या बोलेगी कि उसका बेटा एक ही काम को देर तक करता है इतनी देर तक कि दूसरा बोर हो जाय लेकिन वो बोर नहीं होता है। वह स्कूटी चलाने की जिद नहीं करता है। वह तो धीरे-धीरे पीछे चलता है। कितने साल तक तो साइकिल का पहिया भी उल्टा चलाता रहा, कितनी मुश्किल से पैंडिल आगे मारना सीखा है.. तेजी से चलती दुनिया में पीछे चलता कोई बहुत पीछे छूट जाता है या लोग छोड़ देते हैं। अमृता को खुद नहीं समझ आता कि वह क्या चाहती है। कभी कभी वह भी इस रेस में शामिल होकर देखती थी और शामिल होते ही उसे ग्लानि होने लगती थी। उसे लगता था कि किसी नन्हें बच्चे के पंखुरे पकड़कर वह खींच रही है, उसके साथ होने में उसे प्यार नहीं है बल्कि मजबूरी है। उसका दिमाग एक अजीब सी यात्रा पर रहता था।
जब भी वह कहीं भी कृतार्थ को लेकर जाती थी, उसके छोटे छोटे वाक्यों के लिए, उसकी लथर कर चलती आवाज़ के लिए ज्यादातर के कान सुन्न मिलते थे या उसके हिस्से का वक्त सबके हिस्से का मसखरा बन जाता था। अमृता को तब हंसी कैसे आ सकती थी। लोग भूल जाते थे कि बहुत कम ही सही उस बुद्धि में भी कृतार्थ जान जाता है- फर्क हंसने और हंसी उड़ाने का।
कृतार्थ जान जाता था। वह कैसे जान जाता है? अमृता समझ नहीं पाती थी। वो उससे अकेले में कहता कि अंकल मेरा मजाक उड़ा रहे थे। अमृता को लगता कि मज़ाक शब्द कृतार्थ ने जरूर किसी से सुना है। ऐसा नहीं है कि अमृता नहीं जानती थी कि उसका बच्चा क्या समझता है और क्या नहीं। लेकिन वो गुस्से में यही सोचती कि उसने कहीं ये बात सुनी है। क्योंकि वह कई बार सुने हुए शब्द हुबहू दुहरा देता था लेकिन हर बार ऐसा हो, ये जरूरी नहीं था। वह अकसर ही कृतार्थ से नाराज़ रहती थी। उसे लगता था कि मेरे सामने कितनी समझदारी की बातें करता है लेकिन दूसरों से सामने बिल्कुल बुद्धू बन जाता है। उसे कई बार लगता कि वो फोन पर उसकी बातें रिकार्ड कर ले फिर सबको सुनाये। कभी उसे लगता कि कहीं कृतार्थ नाटक तो नहीं कर रहा। कई बार उसे लगता वह कितनी आसानी से कृतार्थ की बात समझ लेती है बाकि लोग न समझने का नाटक करते हैं।
अमृता की अजीब मन स्थिति थी न तो उसे ऐसे लोग पसंद आते जो कृतार्थ की बातों को न समझने का दिखावा करते थे और न ही ऐसे लोग कृतार्थ को अतिरिक्त समझने का दावा करते थे। वो हर दो मिनट पर बताते थे कि उसका बेटा कितना इन्टेलिजेंट है, वो कितना स्पेशल है। उसको घबराहट होती थी जब कोई अतिरिक्त करने लगता। कृतार्थ को ये नहीं पता चला चलता कि कब खाने पर रूक जाना है वह अकसर ही बाकियों के मुकाबले ज्यादा खाता था। अमृता का दिल बैठ जाता जब कोई अतिरिक्त दया दिखाकर उसे खाना देता था। अरे खाने दीजिये बच्चा है। इस वाक्य के साथ एक अजीब सी टेढी मुस्कुराहट उसका दिल छेद देती थी।
कोई फिल्म देखने के बाद अमृता अकसर ही कृतार्थ से पूछती चलो अब बताओ क्या कहानी थी? वो कहता कि आंटी रो रही थी या उनके घर में एक कुत्ता था। पूरी फिल्म का कोई छोटा सा अंश,कोई एक तस्वीर।
अमृता खुद को समझाने लगती- सब लोग भी तो पूरी कहानी का एक छोटा सा ही अंश समझते हैं जैसे कि कैसे हीरोइन ने बाल कटवाये थे या हीरो किस बाइक से आया था और फिर उसी अंश को जिन्दगी में तलाशने लगते हैं फिर अगर कृतार्थ ने एक अंश समझा तो क्या हुआ। अमृता पिछले कई दिनों से चीजों को ऐसे ही समझ रही थी। खुद ही सवाल करती थी। खुद ही जवाब देती थी। और इस प्रक्रिया में खुद को बहुत थका लेती थी।
कब वह बाहर की यात्रा कर रही होती थी कब भीतर की, उसे पता नहीं चलता था। कई बार उसे बोलते हुए लगता था कि ये बात तो वह बोल चुकी है इसी लिए उसे हिचक भी होती थी। कहीं कोई ये न समझे कि एक ही बात को कितना दुहराती है, कभी कभी वह पहला वाक्य ही बहुत गुस्से में बोलती थी जैसे अगले को वह वही बात कई बार बोल चुकी हो और वो समझने को तैयार न हो।
कृतार्थ को उसने फिर नये स्कूल में डाला था। आस पास बहुत कोशिश की कि कोई ऐसा स्कूल मिले जिसमें उसको अलग तरीके से कोई सिखाये लेकिन उस तरह के स्कूल के नाम पर कुछ ऐसा नहीं मिला। कई निजी स्कूलों में डाला जो शुरू शुरू में तो बहुत उत्साह दिखाते थे लेकिन एक दो महीने के भीतर ही शिकायत करने लगते थे। नतीजा ये होने लगा कि कृतार्थ जो जानता था वो भी भूलने लगा। नये स्कूल की टीचर ने शिकायत की ये बहुत जिद्दी है, बात नहीं सुनता। उन्होंने उसे प्लस माइनस करने के लिए दिया था। अमृता ने उन्हें बताया कि उसे गणित सीखने में बहुत दिक्कत है लेकिन टीचर नहीं मानी कहने लगी कि अब तक लोगों ने कायदे से पढ़ाया नहीं। जब भी कोई यह कहता तो अमृता को लगता कि काश अगले की बात सही हो काश वह ऐसे पढ़ाये कि कृतार्थ को गिनना आ जाये।
अमृता ने ऐसे कई पैरामीटर बना लिये थे जैसे वो किसी भाग्य देवता को जानती हो और उससे मोलभाव कर रही हो-बस कृतार्थ की बुद्धि तेरह साल के बच्चे की तरह हो जाये। लेकिन भाग्य देवता को वह कभी भी प्रभावित नहीं कर पायी। थेरेपी सेंटर की तमाम नापजोख में कृतार्थ का आईक्यू चार साल के बच्चे का आता। कई बार तो कृतार्थ जो कुछ घर पर सहजता से कर लेता था, वह भी वहाँ नहीं करता था। अमृता आज उससे फिर नाराज हो गयी- घर पर तो सीधा सीधा लाइन पर चल लेता है यहां क्यों नहीं चलते हो..
कृतार्थ अगर तुम मम्मा की बात नहीं मानोगे तो मम्मा मर जायेगी। कृतार्थ ने नया नया मरना समझा था। वो घबरा गया और मां से चिपक गया। उसके चिपकते ही अमृता को फिर से गहरी शर्मिन्दगी होने लगी।
उस रोज़ ज़ोर की बारिश हो रही थी। रह रह कर आकाश में बिजली कड़क रही थी। इतनी तेज गर्जना कि लगता कि दायी तरफ की दीवार हिल गयी हो। उसको रह-रहकर गंगा का ख्याल आ रहा था । उसने बचपन से यही जाना था कि गंगा स्त्री है। वह जब भी परेशान होती तो उससे अपनी तकलीफ कहने आकर बैठ जाती थी। गंगा कैसे-कैसे लोगों को सदियों से देखती आ रही है- क्या गंगा भी थक रही हैं। अमृता को सहनशक्ति गंगा से मिली थी और न सहने की जरूरत का अहसास भी गंगा से होने लगा था। आज बेतरह बारिश हो रही थी वह पैदल चले जा रही थी। कपड़े भीग कर थाकथैइया हो गये थे। सलवार गीली होकर चिपक गयी थी। लग रहा था कि शरीर का वजन बढ गया हो। उसे कोई होश नहीं था कि वो कहां जा रही है।
एकबयक ख्याल आया कि गंगा भीग रही होगी। कैसा लगता होगा जब पानी को पानी भिगोता है, उसको धोता है। दोनों मिलकर दो कहां रह जाते हैं वो तो एक हो जाते है। पीछे से किसी ने हार्न बजाया। वह चौंक गयी। उसे खुद पर ही कोफ्त हुई कि क्या बचकाना रवैया है। बहुत पहले बच्चों के एक डाक्टर ने उससे एक बात कही थी कि कृतार्थ सीख पायेगा या नहीं, अभी कुछ नहीं कह सकते लेकिन आपको सीखने की सख्त जरूरत है। आपको सीखना होगा कि दिमाग एक जटिल संरचना है आपको समझना होगा कि कृतार्थ का दिमाग बहुत ही धीरे धीरे कुछ सीख पायेगा।
अमृता डाक्टर की उस बात के सिर्फ एक अंश को समझ पायी थी कि कृतार्थ का दिमाग सुस्त है। कहानी का दूसरा हिस्सा उससे अकसर ही छूट जाता था कि उसे खुद कुछ सीखना होगा। उसने तो अपनी जिन्दगी की कहानी को अंश में ही समझा था। वह कब समझ पायी थी पूरा। उसने कितनी चीजों को बिलकुल अधूरा समझा था इतना अधूरा की उसे पूरा जीवन ही अधूरी कहानियों का पैच लगने लगता।
कभी उसे लगता कि सबकुछ बहुत धीरे चल रहा है तो कभी लगता कि सबकुछ बहुत तेजी से घट रहा है। यह सच है कि जिन्दगी में घटनाओं की रफ्तार होती है। एक नैनो सेकेंड मे जिन्दगी बदल जाती है ऐसा कुछ लोग कहते हैं लेकिन उसके साथ तो जिन्दगी अलग ही खेल करती थी। घटनायें हमेशा आगे आगे चलती थी वह हमेशा घिसट कर पीछे पीछे। आशुतोष के जीवन में कोई आ चुका है वह समझ गयी थी लेकिन वह भी तो सबकी तरह पूरी बात के एक अंश को ही समझने पर अमादा थी। इतना अंश कि शायद आशुतोष कृतार्थ को लेकर परेशान रहता है। दस साल पहले जब आशुतोष को बिस्तर पर किसी और के साथ बहुत ही अंतरंग बात करते सुना था। जब उसने किसी से कहा था कि यार जिन्दगी नर्क बना दी है इस औरत ने।
पहले तो बच्चा पैदा करने में नाटक फिर जबसे ये पता चला है बेटे का दिमाग कम है, तब से मुझे भी पागल कर दिया है। आशुतोष गुस्से में उस लड़की से कह रहा था। अमृता बिस्तर में जाग रही थी। ऐसा नहीं था कि आशुतोष उसको जागते हुए कुछ नहीं कहता था। वह बहुत कुछ कहता था। तब से कह रहा है जब कृतार्थ ढ़ेढ़ साल का था। बाकि बच्चों सी तरह कृतू नहीं था। जल्दी कोई भाव प्रकट नहीं करता था। बाद में कृतार्थ को डाक्टर को दिखाया कि बोलता नहीं है। डाक्टर ने कई टेस्ट किये और कहा कि सब ठीक है बोलने लगेगा लेकिन वो बाकि बच्चों की तरह चलता नहीं था। सूसू पाटी का भी इशारा नहीं देता था। धीरे धीरे डाक्टर ने बताया कि बच्चे का दिमागी विकास सुस्त है। आशुतोष से तो जैसे झटके में किसी ने प्यार छीन लिया हो या कहें कि वो यूं होता गया कि जैसे कृतार्थ से उसका कोई नाता नहीं। धीरे धीरे वह कृतार्थ से बात भी कम करने लगा था।
तुमने प्रेगनेंसी के समय भी नाटक किया था मैंने कहा था मैंने कहा था कि आफिस नहीं जाओ लेकिन तुमको अपनी नौकरी की लगी थी। जब तब वह बड़बड़ाने लगता।
जब से डाक्टर ने बताया कि बच्चा दिमागी तौर पर सुस्त है तब से आशुतोष शायद ही पूरे परिवार के साथ कहीं गया हो। अमृता के भीतर भी ग्लानि भरती जा रही थी।
अमृता को कुछ भी याद नहीं आ रहा था कि वह कब बीमारी में आफिस गयी। बस उसे इतना याद है कि प्रेगनेंसी में उसका बीपी बढ़ गया था और जब कृतार्थ पैदा हुआ था तब उसने थोड़ी देर के लिए अपनी सांस रोक ली थी। वह उसी दृश्य को कई बार पलट कर देखती थी जैसे कोई रील को बार बार पलट कर देखे। हर बार सोचती है कि आखिर उसने ऐसा क्या किया जिससे उसके बच्चे के साथ ऐसा हुआ।
बाकि औरतों के इतने नखरे नहीं थे जितने तुम्हारे थे। तुम्हारी हर चीज में नखरा था। आशुतोष उस पर चिल्ला रहा था।
इस पूरे आरोप-प्रत्यारोप के दौरान भी अमृता को कुछ नहीं सुनायी देता था। उसे लगता था कि बहुत जल्दी सब कुछ ठीक हो जायेगा। अमृता को मानो कुछ न सुनाई देता हो उसे लगता था कि डाक्टर की बात गलत है। कुछ बच्चे थोड़ा देर से बोलते चलते हैं। वह आशुतोष से लड़ना नहीं चाहती थी। उसे बस बात करने से लिए कोई चाहिए था। आशुतोष उससे बात करने से कतराता था।
आखिर तुम बात ही क्या करती हो आज कृतार्थ को हाईफीवर आ गया। आज उसको लैट्रिन हो रही है। डाक्टर ने कहा है कि ये सब होगा। लेकिन तुम अपनी डाक्टरी लगाती हो।
एक रात बिस्तर पर आशुतोष उसको समझाने लगा- वी शुड प्लान नेस्ट बेबी।
अमृता को लगा जैसे किसी ने उसे ऊंची पहाड़ी से ढ़केल दिया है। सबकुछ बहुत तेज। इतना तेज की दो साल की उम्र के बच्चे को रिप्लेस करने के लिए दूसरे बच्चे की प्लानिंग।
तुम्हारी यही प्राब्लम है नखरा! आशुतोष बहुत ही चिड़चिड़ा कर बोल रहा था।
आशुतोष उससे दूर जा रहा था। उसकी एक और दुनिया बन रही थी। उस दुनिया में एक ऐसी तस्वीर थी जिसमें हँसता-खिलखिलाता, तेजतर्रार बच्चा हो। खुशदिल बीवी हो..अमृता कभी उसकी इस तस्वीर का हिस्सा थी। आज जिसे वह नखरा कहता है, कभी उसी को वह कहता था कि तुम्हारा यही सोचने का तरीका तुमको खूबसूरत बनाता है।
अमृता को वह आशुतोष चाहिए था जो उससे प्यार करता हो, जो उसके बच्चे से प्यार करता हो। लेकिन प्यार की जगह मजबूरी ले चुकी थी। उसे दिखने लगा कि आशुतोष को घर आने की जल्दी नहीं थी। संबंधों की लाश बहुत भारी होती है। इतनी भारी कि एक रात काटना भी दूभर हो जाता है।
कुछ दिन पहले अमृता को घर के बाहर एक चाभी पड़ी मिली थी। वह बहुत ही सुन्दर की-रिंग में लगी हुई थी। चाभी के ऊपर लिखा हुआ था हीरो। अमृता सोचने लगी कि ये चाभी जिसकी है- उसे इसकी कितनी जरूरत हुई होगी। उसने पास ही सटी हुई बाउन्ड्री पर कील के ऊपर टांग दिया। तब पर भी रहा नहीं गया, उसने उसकी फोटो खींची और गली के व्हास्टएप ग्रुप में डाल दी कि जिसकी चाभी हो आकर ले जाये। दिन- हफ्ते-महीने बीत गये, चाभी जस की तस टंगी है। उसका विकल्प ढूढ़ लिया गया होगा। वह सुन्दर की-रिंग में लगी चाभी वैसे ही लटकी है। उस पर ज़ंग लग गयी है।
अमृता का ध्यान अकसर ही कहीं टिक जाता था। उसे लगता था कि सबकुछ बहुत तेजी से भाग रहा है। हर चीज का सब्सीट्युट बाजार के पास है। जब भी कुछ खो जाता है, लोग उसको नहीं ढ़ूढते है, भाग कर बाजार चले जाते हैं- वहां वह बहुतायात उपलब्ध है। जबकि खोई चीजें इंतजार करती रहती हैं कि उन्हें कोई ढूढ़ ले। वह पड़े-पड़े ज़ंग खा जाती हैं। क्या बोतलों में बंद मैसेज को अब कोई खोल कर नहीं पढ़ता किसे फुर्सत है। जितनी देर में कोई बोतल समुन्दर से निकाल खोलेगा, उतनी देर में वो गूगल से कितने मैसेज डाउनलोड कर सकता है। क्या आदमी अगर छूट जाता है तो उसे छोड़ दिया जाता है। क्या तेज-तेज भागते लोग बूढे बीमार लोगों को छोड़ देंगे। उसे लगता था कि पूरी दुनिया एक तेज रफ्तार वाली गाड़ी पर सवार है। जहां से दृश्य इतनी तेजी से बदल जाते हैं जैसे वो जगहें नहीं हो, गांव नहीं हो, पतली नुकीली खप्पचियां हों। अमृता पूरे समय इसी उतार-चढ़ाव से गुजरती रहती थी।
उस दिन बस में एकदम जर्जर सी बूढ़ी औरत बार बार कंडक्टर से पूछ रही थी- भैइया ये बस कहां ले जा रहे हो।
वो बामुश्किल खड़ी हो पा रही थी वो बोल भी ऐसे रही थी कि समझने के लिए जोर देना पड़ रहा था मानो आर्तनात कर रही हो- भैइया ये बस कहां ले जा रहे है।
बस में कुछ लोग जोर जोर हंसने लगे।
कोई पीछे से चिल्लाया- अम्मा तुमको लंदन ले जाकर छोड़ देंगे। हँसी का ठहाका फिर फूटा।
कंडक्टर उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहा था। वह बूढ़ी औरत जब भी बस रूकती तो उतरने लगती। कंडक्टर डपट कर कहता बैठी रहो।
अमृता से नहीं रहा गया। वह थोड़ा डाँट के बोली- भाई बताते क्यों नहीं कि इनको कहां ले जा रहे हो। इनके साथ कौन है?
कंडक्टर ने मुंह खोला कि इनको प्रयागराज बस अड्डे लेकर जाना है। मेडम काहें परेशान हो रही है। गाँव में इनका लड़का बैठा के सहेजा है कि प्रयागराज में इनके रिश्तेदार इनको लेने आयेंगे।
लोग बहुत तेज तेज चल रहे हैं। कभी सरकारें तेज चलने के लिए कारपोरेट का हाथ पकड़ती थीं। अब तेज चलने के लिए के लिए कारपोरेट ने उसका हाथ पकड़ लिया है। पीछे पीछे बहुत सारे लोग घिसट रहे हैं, ये तो अमृता समझती थी। अमृता खबरों से इतर कुछ फोन में ढूढ़ने लगती है। वह देखने के लिए कुछ खोलती है और ऊंगली जरा सी फिसलती है कि एडवरटिजमेंट दिखने लगते हैं। सबकुछ बहुत तेज है। एक सेकेंड नैनो-सेकेंड। तभी एक वीडियो दिखता है भारत के सबसे पुराने जंगल हसदेव अरण्य के कटने का। एक बिजली से चलने वाली आरा मशीन तेजी से सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को तेजी से काट कर रही थी। अमृता वहीं ठिठक गयी वह ये भी देख नहीं सकी कि उस पेड़ पर क्या था। वह उस पेड़ पर बैठे पक्षियों को देखना चाहती थी।
जानना चाहती थी कि सैकड़ों साल पुराने पेड़ो पर जब पक्षी घोंसला बनाते हैं तो क्या किसी तरह की आश्वस्ति आती है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मशीन ने पांच मिनट का भी समय नहीं लिया और न ही वीडियो इस पर रूका। तुरंत दूसरा वीडियो आ गया अमृता ने फिर हसदेव का वीडियो स्क्रोल करके देखा उसके बाद तुरंत ही दूसरा वीडियो आ गया उसने देखा कि दो विशाल इमारते एक मिनट में मलबे में तब्दील हो जाती है। सबकुछ बहुत जल्दी, इतना जल्दी कि अमृता का दिमाग उसको प्रोसेस ही नहीं कर सकता था। लेकिन तकनीक के दिमाग ने निष्कर्ष निकाला कि वह ध्वंस की तस्वीरे देखना चाहती है इसीलिए लाइन से ऐसे वीडियो दिखने लगे। वह घबरा गयी।
सच तो यह था कि वह रात को उठती थी तो बाथरूम की कुंडी ढ़ूढ़ने लगती थी। सारे स्विच दबाने के बाद ही बत्ती आन कर पाती थी..यहां तक कि जब किसी ने उसे बताया कि जीपीएस लगा कर फलां अस्पताल पहुँच जाओ तो वह दाये का बायें करती रही। वह दायें-बायें के सीधे डायरेक्शन को अब भी किसी बच्चे की तरह तय करती थी। खुद के हाथ छूकर। ऐसा एकबार नहीं उसके साथ कई बार हुआ। उसे हमेशा लगता था कि अगर कोई उसे पूरे घर में आँख बंद करके, चार चक्कर कटा दे, वह आंख खुलने के बाद दीवार से टकरा सकती थी। सबकुछ इतना तेज क्यों है। वह समाचार भी नहीं सुन पाती है। जल्दी-जल्दी हांफ-हांफ कर बोलते लोग। उन्हें क्या बताने की जल्दी है..कृतार्थ को तो एक वाक्य बनाने में वक्त लगता है। कृतार्थ उससे बाते कर लेता था लेकिन जैसे ही कोई और उससे सवाल पूछने लगता वह कुछ नहीं बोल पाता था। लोग सवालों की शक्ल में रस्म अदायगी करते हैं। कृतार्थ को रस्म अदायगी से क्या वास्ता। कृतार्थ उलझी बातें नहीं कर पाता है। लोग उलझी बाते करते ही क्यों है..
अमृता हमेशा की तरह अपनी भूल भुलैया में भटक रही थी। उसे निकलने का रास्ता नहीं समझ आ रहा था। तभी कंडक्टर उसके नजदीक आकर बोला- मैडम आज उतरना है कि नहीं।
ये आवाज उसके कान पर आकर झन्न से लगी। अकसर ही उसके साथ होता था कि गंतव्य पर पहुँच कर तय नहीं कर पाती थी कि यहीं उतरना है या कहीं और।
…
दिमाग के कितने हिस्से हैं। क्या कोई हिस्सा पूरे समय अतीत में रहता है वो क्या चाहता है? क्या वो अतीत में लौट कर कुछ ठीक करना चाहता है। क्या ये करना संभव होता है। हालीवुड की कई फिल्मों में टाइम ट्रैवल होता है। अमृता भी किसी टाइम मशीन में जाना चाहती थी। उसे किसी से माफी मांगनी थी। वह यह भी जानती थी कि सबसे भौंडी संवेदना वो होती है, जो खुद पर बीतने के बाद ही आये। अमृता के ऊपर कुछ बीत रहा था वह कुछ समझ रही थी। वह ठीक वैसे ही समझ रही थी जैसे जब वो दसवीं में थी तो सोचती थी कि अब वापस आंठवी में चली जाये और अंग्रेजी का पेपर आराम से कर लेगी। तब भी दसवी का इम्तेहान उतना ही चुनौती पूर्ण लगा था लेकिन अतीत का आठवी का इम्तेहान आसान लगने लगा था। लेकिन जिन्दगी ये मौके नहीं देती है। वह किसी मुनाफे के लिए चल रहे स्कूल की तरह हैवी ट्युशन फीस लिये बगैर कुछ भी नहीं सिखाती है। अमृता अतीत की भूलभुलैया में वापस पहुंच गयी थी। वह भूल चुकी थी कि कृतार्थ की प्रिसिंपल ने उसे मिलने के लिए बुलाया है और वह प्रिसिंपल आफिस के बाहर बैठकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रही है।
ग्यारहवीं कक्षा की बात थी। अरोड़ा मैम ने चुपके से उसे बुलाकर रेसेस के पीरियड में कहा था कि प्लीज एक बार मेरे क्वार्टर में जाकर मेरी बेटी को खाना खिला दो। अरोड़ा मैडम की प्रैक्टिकल में ड्युटी थी। वह बहुत ही कम बोलती थीं। स्कूल के ही जर्जर हो चुके क्वार्टर में रहती थी। पूरे स्कूल में कुल चार टीचरस् के रहने के लिए क्वार्टर बना था और एक सेट प्रिसिपल के लिए था। लेकिन स्कूल में सिर्फ दो में ही लोग रहते थे। एक में रजनी श्रीवास्तव मैडम जो अकसर ही अपने शहर चली जाती थी और छुट्टी पर रहती थी। दूसरी अरोड़ा मैम जो कभी भी छुट्टी पर नहीं जाती थी। अमृता को अरोड़ा मैम की बेटी के बारे में पता था। वह डाउनसिन्ड्रोम की शिकार थी। एक बच्चा गाड़ी में हमेशा बैठी रहती थी, सिर एक ओर झुकाये और मुंह से लार निकली रहती थी। हाथ पांव भी उसके अपने वश में नहीं थे। मैडम के कहने पर अमृता उनके कमरे में गयी और वहीं बैठ कर मैडम को कोसने लगी। उसने लड़की की ओर देखा भी नहीं, खाना खिलाना तो दूर की बात है। और मैम से कह दिया कि मैम उसने खाना नहीं खाया। बाद में उसे अलका से पता चला कि उस लड़की को खाना खिलाओ तो वब खा लेती है और बात करो तो मुस्कुराती भी है।
अमृता को खटका हुआ कि कहीं वो बोल तो नहीं पाती। कहीं उसने अपनी मां को बता दिया कि कैसे मैं बैठकर कोस रही थी, तब क्या होगा। उसने तय किया कि अगली बार अरोड़ा मैडम कहेंगी तो खाना खिला दूंगी। अरोड़ा मैडम ने उससे दुबारा खाना खिलाने के लिए नहीं कहा। वैसे भी वह किसी से कम ही बोलती थी लेकिन कभी कभी उनकी प्रैक्टिकल में ड्युटी लग जाती थी, तब वो किसी स्टुडेंट से कहती थी। अलका कभी-कभी उस लड़की को खाना खिलाने जाती थी। उसने बताया कि उस लड़की का नाम स्मृति है। अमृता के मन में आया कि अबकि बार उस लड़की से मिलूंगी तो उसको उसके नाम से पुकारूंगी देखूंगी कि वह समझती है कि नहीं। वह लड़की छह-सात घंटे अकेले रहती है। मैडम अरोड़ा किसी तरह बीच बीच में पानी पिलाने जाती थी। ट्रस्ट का स्कूल था। उन्होंने पहले ही मैडम को वार्निंग दे दी थी कि अपनी प्राब्लम पर्सनल ही बना कर रखियेगा। कानो कान ये बात सबको मालूम थी कि मैडम अरोड़ा के पति उनके साथ नहीं रहते हैं। मैडम का क्वार्टर पानी पीने वाली जगह के पास ही था। उनके कमरे की खिड़की खुली रहती थी और उनकी बेटी के बच्चा गाड़ी का मुंह खिड़की की ओर ही रहता था।
अमृता अब स्मृति को झांककर देखती थी। उसने कई बार सोचा कि स्मृति कहके पुकारे और देखे कि वह की हरकत करती है कि नहीं। लेकिन उसका साहस नहीं हुआ। उस दिन अलका के साथ वह भी अरोड़ा मैडम के कमरे में गयी। अलका चम्मच- चम्मच स्मृति को खाना खिला रही थी। अलका ने प्यार से उसको पानी पिलाया और उसका मुँह पोछा। अमृता ने स्मृति को छुआ और धीरे से कहा स्मृति! स्मृति ने सिर नहीं उठाया और मुस्कुरायी और लार की एक लकीर नीचे तक आ गयी। तभी अरोड़ा मैंम आ गयीं। उन्होंने कहा कि बच्चों तुम लोग जाओ। उस दिन वह इस तरह बोल रही थी जैसे कुएँ के भीतर से आवाज आ रही हो। किसी चीज से टकरा कर दुहरी होकर। अमृता को लगा कि मैम उससे अभी तक नाराज हैं। वह दोनों चुपचाप अपनी क्लास में आ गयीं। अगले दिन पता चला कि अरोड़ा मैडम को नोटिस दे दिया गया है कि वो अपनी बेटी का खुद इंतजाम करे। अगर आगे से पाया गया कि वह बच्चों को अपनी बेटी की मदद करने भेजती हैं तो उनकी सेवायें समाप्त कर दी जायेंगी।
कुछ महीनों बाद अरोड़ा मैंम स्कूल छोड़कर चली गयीं। अमृता अब भी अकसर वह खिड़की झांककर देखती थी और समझने की कोशिश करती थी कि नाम लेकर पुकारने पर वह लड़की कैसे मुस्कुरायी थी।
ये नाम में क्या जादू होता है। कैसे कोई उस नाम से जुड़ जाता है।
अमृता सोच ही रही थी कि तभी किसी ने अमृता के नजदीक आकर बोला-
आप कृतार्थ की मदर हैं।
मैंम आप कृतार्थ की मदर हैं? प्रिंसीपल मैम बुला रही है।
अमृता की तन्द्रा टूटी।
जी।
अगले ही पल वह प्रिंसीपल के कमरे में थी। एक साफ सुथरा कमरे में बड़ी सी मेज पर कुछ फाइले रखीं थी। कोने में ट्राफियां सजी थी। एक बोर्ड पर पूर्व प्रिसीपलस् के नाम और दूसरी दीवार पर मेरीटोरियस बच्चों के साथ ढेर सारी मुस्कुराती हुई तस्वीरे पूरे कमरे में एक रूआब, एक रूतबा भर रही थी।
प्रिंसीपल मैम ने ज्यादा वक्त नहीं लिया।
आप कृतार्थ की मदर हैं।
जी मैडम।
आप अपने बच्चे को टायलेट एटीकेट्स तो सिखाइये..।
आज उसने क्लास में ही टायलेट कर दिया है।
मैम ट्रीटमेंट करवा रहे हैं। आइ एम सारी.. अमृता बुदबुदाने लगी।
मैडम बाकि बच्चे भी हैं बाकि पेरेन्टस् को पता चलेगा तो वो हमारे स्कूल से अपने बच्चे के नाम कटा लेंगे। हम एक बच्चे पर दया दिखा कर अपना स्कूल तो बंद नहीं कर सकते। आप जैसे भी ट्रेन कीजिए लेकिन जब तक आपका बच्चा ट्रेन्ड नहीं हो जाता, उसको स्कूल नहीं भेजिये। एक बात और मैडम थोड़ी सी सख्ती जरूरी है माइंड मत कीजिएगा।
अमृता से कुछ नहीं बोला जा रहा था। हर बार उसे बुलाकर लताड़ा जाता था और वह गिड़गिड़ाती थी। ये इस महीने में तीसरी बार था। आठ महीने हो गये इस स्कूल में नाम लिखाये। कृतार्थ को इसके पहले भी स्कूल से निकाला जा चुका था। अमृता के पास ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां वह कृतार्थ को रखती। उसे अपनी भी नौकरी करनी थी नहीं तो घर कैसे चलता। आफिस में भी उसे क्या नहीं झेलना पड़ता ऐसे अचानक निकलने के लिए। ऐसा कितनी बार हो गया था कोई गिनती नहीं थी। कृतार्थ घर पर भी पैंट में कभी-कभी सूसू कर देता था लेकिन अगर दो बार पूछो तो टायलेट चला जाता था। कई बार पूछने पर कहता था नहीं आयी लेकिन थोड़ी ही देर में बैठे बैठे ही टायलेट कर देता था। अमृता को बहुत गुस्सा आ रहा था। जोर जोर से रोने का मन कर रहा था। उसको कृतार्थ पर बहुत गुस्सा आ रहा था। कृतार्थ एक कोने में सिर झुकाये खड़ा था।
अमृता ने कृतार्थ को एक्टिवा के पीछे बिठाया। उसका दिमाग बुरी तरह उलझ चुका था। उसी उलझन में वह गाड़ी की स्पीड बढ़ाती गयी। इतनी तेज़ कि कृतार्थ ने उसको डर के कस कर पकड़ लिया।
गाड़ी शहर के भीड़ भरे बाज़ार में जाकर लगा दी। कृतार्थ का हाथ पकड़कर बाजार में खड़ी हो गयी और कहने लगी कि अब तुम यही रहो। तुम मां की बात नहीं मानते हो जब स्कूल में आंटी पूछती है कि टायलेट लगी है तो ना क्यों कहते हो? जाओ, मम्मा तुमको यहीं छोड़कर चली जायेगी। अब अम्मा तुमको लेने कभी नहीं आयेगी।
बाजार में बहुत भीड़ थी। फल-सब्जी वाले जोर जोर से चिल्ला रहे थे। लोग सब्जियों पर निगाह गड़ाये आदमी को धकियाते तेजी-तेजी चल रहे थे। अमृता को न जाने क्या हुआ था। वह कृतार्थ का हाथ छोड़कर एक दुकान के पीछे छिप गयी। उसने तय किया कि वह उसकी ओर देखेगी भी नहीं। ये उसने कितनी देर किया होगा उसे खुद भी याद नहीं। शायद वो समय का वह हिस्सा था जिसको कभी नहीं गिना जा सकेगा। उसको सिर्फ कृतार्थ के दिल की धड़कन सुनायी दे रही थी। पूरी पृथ्वी पर तेजी से धड़कता कुछ। वह पसीने से तर हो गयी। उसको लगा कि कृतार्थ कहीं चला गया है बहुत दूर।
वह वहाँ कभी नहीं पहुंच पायेगी, वो उसकी भाषा कभी नहीं समझ सकेगी। उसको लगा कि वो एक बिजली वाली आरी है, उसने तेजी से एक पेड़ को काट दिया ह। बहुत तेजी से सब कुछ खत्म कर दिया है.. वह भाग कर कृतार्थ के पास गयी। कृतार्थ उस जगह पर नहीं था। अमृता जैसे किसी नदी में डूब रही हो। वो अनायास ही कृतार्थ-कृतार्थ चिल्लाने लगी। कृतार्थ गली के किनारे एक ओर खड़ा था। फटी-फटी आंखो से सबकुछ देख रहा था। धक्कामुक्की में लोगों ने उसे किनारे लगा दिया था। अमृता ने उसे कस कर गले लगा लिया और उलझी-उलझी बातें करने लगी।
मम्मा का मन करता है कि तुम सब बच्चों की तरह हो जाओ, जल्दी जल्दी चला करो बोला करो धीरे धीरे चलोगे तो लोग तुमको ऐसे ही छोड़ देंगे.. जब मम्मा कहीं गलती से छोड़कर चली जाय तो उस जगह से हटते नहीं। कोई पूछे तो कहते हैं मेरी मम्मा आ रही है वो बस पास की दुकान तक गयी है।
कृतार्थ के सामने जटिल वाक्यों का पूरा संसार खड़ा हो गया था। उसकी आंखे बिना किसी भाव के जैसे की वो कुछ नहीं पहचानती-एकटक देखने लगी। अमृता का जटिल संसार अनावृत हो गया था। वह खुद भी उतनी सरल नहीं थी जैसी की वह दुनिया से अपेक्षा करती थी। उसके सामने स्मृति का चेहरा कौंध रहा था।
शाम को छक कर बारिश हो रही थी। लाइट चली गयी थी। अमृता को मोमबत्ती जलाने का जी नहीं कर रहा था। ऐसा लग रहा था जब जिन्दगी में ही अंधेरा है तो अंधेरे में रहने से क्या डर। सबकुछ एक सार तो दिखायी देता है। कृतार्थ भी चुपचाप एक कोने में सहमा सा बैठा हुआ था। थोड़ी देर में अमृता को चेत हुआ और उसने मोमबत्ती जलायी।
तभी कृतार्थ ने उसका हाथ पकड़ा और कहा- मम्मा सबकुछ ठीक हो जायेगा।
अमृता एकदम से चौक पड़ी कि ये वाक्य इसके पास कहां से आया, क्या ये मेरी तकलीफ समझता है क्या ये समझता है क्या कुछ घट रहा है। तुरंत ही अमृता को वापस संदेह होने लगा कि जब समझते हो तो ठीक क्यों नहीं हो जाते। वह कृतार्थ से वह सबकुछ कहने लगी जो उसके भीतर था। फिर यकायक ठहर गयी और धीरे धीरे कहने लगी देखो बेटा टायलेट आये तो टायलेट जाते हैं, जब कोई नाम पूछे तो अपना नाम बताते हैं, तुम सबको बता दो कि तुमको सबकुछ आता है। है ना!
कृतार्थ फटी आंखों से सबकुछ सुन रहा था। उसने धीरे से अमृता का हाथ पकड़ लिया। अमृता ने भी उसके दोनों हाथों को सीने से चिपका लिया और उसे लगा कि उसने कृतार्थ का नहीं बल्कि स्मृति का हाथ पहली बार पकड़ा है। एकदम नरम नाजुक हाथ जो गर्माहट पहचानते हैं।
आपकी कहानी हृदय के भाव जो हर किसी के पास छुपा हुआ होता है, पर किसी के सामने अभिव्यक्ति कर नही पाता ।आप उसे इस कहानी के माध्यम से सफलता पूर्वक अभिव्यक्त किए है । ये कहानी हर किसी के व्यथा को खुले आँखो से देखते हुए कोरे कागज पर उकेर रहा है।
Very nice and touching story of a mother and her special child.
It clears the picture of the irony of life and mother’s love towards her child.
आपकी कहानी हृदय के भाव जो हर किसी के पास छुपा हुआ होता है, पर किसी के सामने अभिव्यक्ति कर नही पाता ।आप उसे इस कहानी के माध्यम से सफलता पूर्वक अभिव्यक्त किए है । ये कहानी हर किसी के व्यथा को खुले आँखो से देखते हुए कोरे कागज पर उकेर रहा है।