“एहि सूर्यमृ सहस्राशो तेजो राशे जगत्पते:
अनुकम्प्य माम् भक्त्या, गृहाण अर्ध्य् दिवाकर:*
हे जगत पिता सूर्य,सहस्र तेजोमयी किरणों से अलंकृत,मुझ आकिंचन भक्त पर अपनी कृपा करिए, मेरे द्वारा  श्रद्धापूर्वक दिए गए अर्ध्य को स्वीकार करें**
सूर्य जगत पिता हैं,तेज,ओज, और प्रकाश के स्वामी हैं,प्रकृति की महानतम शक्ति के रुप में उनकी पूजा की जाती है,, संपूर्ण विश्व की उर्ज्वसिता और गतिशीलता के परिचायक सूर्य की पूजा सदियों पुरानी है,,शायद तब से,जब मानव ने पहली बार निरभ्र आकाश में जगमगाते शक्ति और आलोक के विशाल पुंज को देखा होगा, पहले भय और फिर उत्सुकता ने जन्म लिया होगा,,उसी परंपरा में समय के अंतराल में सूर्य, शक्ति,ओज,साहस, आरोग्य,गति,मति, वृद्धि और आस्था के प्रतीक बन गये,,आस्था और विश्वास का यह विरल प्रवाह लोकरंजना और लोक कल्याण के पर्व छठ की अवधारणा के रुप में दिखाई देता है,,
यह महान पर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाता है अतः इसे छठी, या स्त्रीलिग संबोधन में*छठी मैया*के रुप में जाना जाने लगा,,यह छठ पर्व ग्राम शहर महानगर की सीमाओं को लांघ कर अब तो विदेशों में भी भारतीयों के द्वारा पूजित है, प्रचलित है,, पुराणों में कथा है कि कृष्ण के पौत्र साम्ब को कुष्ठ हो जाने पर उसके शमन के लिए सूर्य पूजक मग ब्राह्मणों को बुलाया गया था, उन्होंने सूर्य पूजा और उसके विविध अनुष्ठानों से प्राप्त उर्जा से साम्ब को स्वस्थ कर दिया था,,ये मग ब्राह्मणों की आस्था भी थी जिसने भगवान सूर्य की शक्ति से विश्व को परिचित कराया,,तब से हर शोक ,रोग ,कष्ट, संतान और सुख की प्राप्ति के लिए छठ पूजा यानि सूर्य पूजा की परंपरा मूलतः बिहार एवं उत्तर प्रदेश से चल कर अब भारत के प्रत्येक क्षेत्र का अंग बन गई है,,
यह पर्व मुख्य रुप से चार दिनों का कठिन अनुष्ठान है जिसमें शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है, सबसे पहला दिन  नहाय खाय का है जब व्रत करने वाली सौभाग्य वती स्त्री पवित्र स्नान करने के बाद शुद्ध और पवित्र भोजन ग्रहण करती हैं, दिन भर उपवास कर के शाम को केले के पत्ते पर छठी मैया को भोग अर्पण किया जाता है,खीर और रोटी इस दिन का मुख्य प्रसाद है,जिसे मिट्टी के बने चूल्हे पर गाय के दूध और गुड़ से व्रती स्वयम् बनाती है,, दूसरे दिन सूर्यास्त के सूर्य को अर्घ्य देने और नमन करने की परंपरा है,नदी के जल में खड़े होकर बास के बने हुए सूप में सभी उपलब्ध फलों, और गुड़ आटे और घी से बनी मिठाई जिसे लोक परंपरा में ठेकुआ कहते हैं, धूप दीप के साथ चढाया जाता है,,, और जल अथवा दूध से अर्ध्य देते हैं,, सुदूर स्थानों से चल कर महिलाएं बच्चे बूढ़े व्रती स्त्रिया सभी नदी तालाब की ओर प्रस्थान कर ते है,,आस्था और विश्वास का यह उमड़ता हुआ सैलाब,भक्ति के भाव सागर में डुबकियां लगा रहा होता है,, कहीं कोई थकान नहीं,,बस सबकी एक ही मंजिल,, छठी मैया को अरघ देना है, दर्शन करना है,, सिर पर डाला,को उठाए कतारबद्ध चलते  हुए  लोग **काचहि बास के बहगिया ,बहगी लचकत जाय,ई बहगी केकरा के जैहे,,ई सुरूज देव के जाए**गीत की स्वर लहरियां वातावरण में गूंजती है,विश्वास की जड़ें और गहरी होती जाती हैं,,,    एक अपूर्व मेले जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है, जुड़े हुए हाथों और भींगे मन में बस एक ही प्रार्थना—
**जागो आदित्यनाथ
जागो हे भुवन दीप
मन की आशाओं में ,
स्वर्ण किरन बन बरसों
धूमिल हों दुःख और निराशा के अंध तिमिर
अश्रु भरी आँखों में
दुखियारे आंगन में
सुख की दुनिया रच दो ,
जागो हे दीप्ति शिखर जागो हे किरण पुंज
बंझिन को पुत्र दो,
ममता का दान लिए,
फैले हैं आंचल के ओर छोर ,
भर दो झोली खाली
सबको वरदान मिले
जागो हे ज्योतिर्मय,
जागो अब दीनानाथ
छठ पर्व का दूसरा दिन -सृष्टि के साक्षात् देवता उदीयमान सूर्य को नमन करने के साथ ही लोक आस्था के महान उत्सव का समापन —”उगिह सुरुज देव -अरघ के बेर ‘गीत की मधुरता मन को छू जाती है, प्रकृति के शक्ति पुंज भगवान भास्कर की पूजा का पवित्र पर्व छठ -आस्था, विश्वास ,भाव भरी  मान्यताओं  का अनूठा  सांस्कृतिक उत्सव ,,,,संवेदनाओं के सलिल प्रवाह में छलकते मन के आंसू और सूने घर आँगन में  चहकते बचपन की  कामनाएं हैं तो कहीं जीवन,तन ,मन,के अंधकार को दूर कर खुशियों के उजाले की चाह,,,,सबकी आशा पूर्ण करना प्रभु दीनानाथ,,, बरस रही हैं भावनाएं ,,  संवरती कामनाएं ,,मन की थाह से ,अटल  गहराइयों से  कातर स्वरों की पुकार जरूर सुनना –हे छठि  मैया  !,,रस्ते पर,गलियों में,सड़कों पर गूंजते गीत और संग संग चलते कदमो की एक ही मंजिल -नदी के तट  पर ही तो अर्ध्य देना है, चलो,कहीं देर न हो जाये ,,बच्चो,वृद्धों,महिलाओं एवं छठ व्रतियों के बीच अथाह उत्साह का माहौल ,,मन भर आता है -बार बार ,,कैसा मोह है जो बढ़ता ही जाता है,श्रद्धा का आवेग,पवित्रता का अहसास मन पर छाने लगता है,- कांचहिं बांस  के बहंगिया -बहँगी लचकत जाय — स्वर की  विह्वलता मार्मिकता की सृष्टि करती है,,,,यही एक विशेषता भरा संदेश भी समाज को मिलता है, जहाँ बेटी की कामना की जाती है,–रूङकी झुनकी बेटी मंगिले-पढ़ल पंडितवा दमाद छठी मैया -अरज सुनिल हमार ”,,सामाजिक समरसता और मंगल कामना का यह पुनीत पर्व सार्थक हो ,,,,सफल हो,,अनेक शुभ-कामनाएं !

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