मन की आशाओं में ,
स्वर्ण किरन बन बरसों
धूमिल हों दुःख और निराशा के अंध तिमिर
अश्रु भरी आँखों में
दुखियारे आंगन में
सुख की दुनिया रच दो ,
जागो हे दीप्ति शिखर जागो हे किरण पुंज
बंझिन को पुत्र दो,
ममता का दान लिए,
फैले हैं आंचल के ओर छोर ,
भर दो झोली खाली
सबको वरदान मिले
जागो हे ज्योतिर्मय,
जागो अब दीनानाथ