होम कविता डॉ गीता द्विवेदी के दोहे कविता डॉ गीता द्विवेदी के दोहे द्वारा डॉ गीता द्विवेदी - November 22, 2020 245 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet जीवन देता है सबक, सही समय अनुसार, मोह भंग कर आपका, रचता यह संसार। बड़े बड़ो की बानी यह, मत कर अन्धा प्यार, छाह भी अपनी न रहे, जो ढले धूप व्यवहार। अपना साथ निभा मनवा, दिन रैन सुमिर रघुनंदन, वर्ना घुट कर रह जाएगा, न सुनेगा कोई कृन्दन। उनसे तू बचता रहे, जो करे तुझे कमज़ोर, अपनी ताकत बन सदा, वर्ना टूट जाएगी डोर। मत रह किसी के आसरे, राम सहारा सबका, सांस आस दी उसने तो, करेगा नइया पार। रिश्तों को जी भर जिएँ, बढ़े प्यार मनुहार। हाट नहीं बिकते मिले, लाख करो व्यापार। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं चंद्र मोहन की तीन कविताएँ सूर्यकांत शर्मा की कविता – कोई समझा नहीं कुसुम पालीवाल की कविता – आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ 1 टिप्पणी अति सुन्दर रचना। इसी तरह रचनाएं प्रस्तुत करती रहें। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
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