होम ग़ज़ल एवं गीत अखिल भण्डारी की ग़ज़लें – ‘जिस तरफ़ जाता नहीं कोई उधर जाना... ग़ज़ल एवं गीत अखिल भण्डारी की ग़ज़लें – ‘जिस तरफ़ जाता नहीं कोई उधर जाना है’ द्वारा अखिल भण्डारी - November 22, 2020 310 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 – गुफ़्तुगू में कुछ न कुछ तो अन-कहा रह जाएगा गुफ़्तुगू में कुछ न कुछ तो अन-कहा रह जाएगा उस से मिल कर भी मुझे शायद गिला रह जाएगा वो चला जाएगा उस के बाद क्या रह जाएगा सिर्फ़ यादों का मुसलसल सिलसिला रह जाएगा उस की बातें वक़्त के सहरा में गुम हो जाएँगी वो जो कहता था किताबों में लिखा रह जाएगा बंद कर लेगा वो दरवाज़े दरीचे सब मगर एक दरवाज़ा न जाने क्यों खुला रह जाएगा ख़्वाब तो ले जाएगा वो नींद भी ले जाएगा उस के मेरे दरमियाँ बस रतजगा रह जाएगा मैं बिखरता जा रहा हूँ ख़ुश्क पत्तों की तरह इन हवाओं में कहीं मेरा पता रह जाएगा इस जहाँ में तेरा भी कोई तो होगा मोतबर अपने हक़ में ख़ुद कहाँ तक बोलता रह जाएगा सुब्ह से किस सोच में डूबा हुआ है तू ‘अखिल’ दिन गुज़र जाएगा और तू सोचता रह जाएगा 2 – जिस तरफ़ जाता नहीं कोई उधर जाना है जिस तरफ़ जाता नहीं कोई उधर जाना है दिल है आवारा इसे अपनी डगर जाना है मैं तो भटका हुआ राही हूँ मिरी फ़िक्र न कर मेरे हमराह बता तूने किधर जाना है गो तेरे शहर में तफ़रीह के सामाँ हैं बहुत मैं मुसाफ़िर हूँ मुझे अगले नगर जाना है इक न इक दिन ये मसाफ़त भी गुज़र जाएगी इक न इक दिन तो मुझे लौट के घर जाना है वो परिंदा है हवाओं से उलझने दो उसे इस नशेमन को तो हर हाल बिखर जाना है इतनी शिद्दत से जो इक़रार-ए-वफ़ा करता था हाँ उसी शख्स़ ने इक रोज़ मुकर जाना है गिर के अख़लाक़ से जीना भी है कैसा जीना ख़ुद की नज़रों से उतरना भी तो मर जाना है कब तलक ढोना है मुझ को ये तनासुख़का अज़ाब मैंने इक रोज़ क़यामत से गुज़र जाना है एक टूटी हुई कश्ती का सहारा ही सही आख़िरश हम को भी उस पार उतर जाना है संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझपे नज़रे इनायत मगर कीजिए सुभाष पाठक ‘ज़िया’ की ग़ज़लें डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.