Sunday, October 6, 2024
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उन्हें भी जीने का हक़ है – भारती (शोधार्थी)

उन्हें भी जीने का हक़ है…

(ट्रांसजेंडर विज़िबिलिटी दिवस के परिप्रेक्ष्य में)

 

सूनी राह अनजान डगर
मैं भी चाहती हूं अब अपना घर
लिंगभेद की नीति पर
करा क्यों मुझे अपनों ने बेघर
मासूम कदम, अनजान डगर
ना जानूं मंजिल है किधर
पथराई आंखों से देखती हूं
शायद आ जाए अपनों की
कोई खोज-खबर…

अस्मिता विस्फोट के इस दौर में आज विविध विमर्शों का प्रवाह चल रहा हैं। इसके अंतर्गत हाशिये पर जीवन जी रहे समुदायों को केंद्र में रखा गया है। इन्हीं में से एक समुदाय किन्नरों का है।

दरअसल हमारे समाज में दो लिंगों के अतिरिक्त एक अन्य लिंग का भी अस्तित्व है जिसे हम अकसर हिजड़ा, किन्नर, उभय लिंगी, तृतीय प्रकृति, छक्का, खोजवा इत्यादि नामों से जानते है। यह नाम इनकी पहचान नहीं बल्कि जीवन को अभिशप्त करने वाली ऐसी संज्ञाएं हैं जिसके कारण इनके अस्तित्व पर अनेकों प्रश्न चिह्न लगते नज़र आते है।

समाज का एक ऐसा तबका जिसकी तादाद में इज़ाफ़ा होना उनके लिए किसी ज्वालामुखी विस्फोट से कम नहीं है। जिस प्रकार ज्वालामुखी विस्फोट के उपरांत अनेकों तत्त्व धरा पर प्रस्फुटित होते है ठीक उसी प्रकार किन्नर बालक का जन्म होना भी उसके साथ बहुत सी समस्याओं को लेकर आता है। ये समस्याएं आजीवन उसके इर्द-गिर्द घूमती रहती है इनका प्रभाव इतना अधिक गहरा होता है कि परिवार के अन्य सदस्य भी इससे पल्ला छुड़ा लेते है।

नियति का क्रूर मज़ाक कहूं या फिर इस सभ्य समाज की विडंबना… सभी ने इनके जीवन को अभिशप्त किया हैं। समाज में दी जानें वाली संज्ञाएं इनके मानसिक पटल पर क्या-क्या दृश्य बनाती है उसका हम तनिक भी अंदाजा नहीं लगा सकते।

समाज की धुरी स्त्री – पुरुष के परस्पर संबंधों पर टिकी है लेकिन जब इनके संसर्ग से ही किसी तृतीय लिंग की उत्पत्ति होती है तो खुशियों की गूंज अकसर गूंगी क्यों हो जाती है। परिवार की दहलीज पर किसी तीसरे लिंग को आने की अनुमति क्यों नहीं दी जाती? क्यों उसकी अस्मिता को नकारा जाता है? क्यों उसकी किलकारियों को दफनाया जाता है? क्यों किसी कूड़े के ढेर में फेंकते हुए इस सभ्य समाज के हाथ नहीं कांपते? क्यों अमानवीय कृत्य करते हुए उनका कलेजा नहीं कांपता?

क्या समाज इतना सभ्य नहीं कि किसी अमानवीय कृत्य को ना करें ? सब – पढ़े, सब – बढ़े के नारे से गूंजते नारो की आवाज़ किन्नरों की बस्ती में अकसर खामोश नजर आती है। बाल-विकास के कार्यक्रम में क्यों इनकी गिनती नहीं हो पाती है। जिस देश में नदी, पेड़ – पौधे, पशु-पक्षी सभी को पूजा जाता है। हर अंश में उस परमात्मा के अंश को देखा जाता है फिर उसकी बनाई एक विशेष कृति के प्रति ऐसा दुर्व्यवहार क्यों? ऐसे अनेकों सवाल है जो मेरे मन – मस्तिष्क पर बार – बार प्रश्न चिह्न अंकित करते है।

मेरा समाज से सीधा सवाल है  – क्या वे इंसान नहीं? क्यों एक तृतीय लिंग को समाज घर-परिवार का हिस्सा नहीं माना जाता क्यों उसके अस्तित्व को नकारा जाता है। सभ्य समाज का यह नकार उनके संपूर्ण जीवन को धिक्कार में तबदील कर देता है। यह तबदीली उनके जीवन को किस कदर प्रभावित करती है उसका अनुमान लगाना आसान नहीं है।

पग-पग पर उनके लिए कंटीला रास्ता कोई और नहीं सिर्फ हम बना रहे है। अपनी इस उपलब्धि पर मूक दर्शक बन केवल उनके जीवन को दुर्गम बना रहे हैं। अभी जिस बच्चे ने आंख भी नहीं खोलीं, ठीक से होश नहीं संभाला उसे किसी अन्य व्यक्ति को सौंपते हुए क्यों सभ्य समाज का दिल नहीं पसीजता? क्यों उनके मन में उस मासूम के प्रति दया भाव नहीं जागता।

जिस धरा पर देवो ने जन्म लिया जिनकी बाल-लीलाओं का वर्णन आज भी सुनकर हम आत्म-विभोर हों उठते हैं। ऐसी पावन धरा पर जन्म लेने वाले बच्चों का जीवन इतना विषाक्त क्यों ? क्या समाज के बनाए मापदंड किसी के जीवन को दंडित करने के लिये हैं या फिर किसी व्यक्ति के जीवन को एक नई दिशा देने के लिए हैं।

जिस देश में मौसम के अनुकूल सभी जीव-जंतुओं तक को आश्रय प्रदान किया जाता है ऐसे देश में किसी विशेष वर्ग के सिर से उसकी छत छीनना कहा तक उचित है। जिस देश की सरकार सड़कों पर रहने वाले लोगों के लिये आश्रय उपलब्ध कराती है ऐसे देश में लिंग के आधार पर अबोध बालक को आश्रयहीन करना कहा तक न्यायोचित हैं। धर्म और समाज के ठेकेदार किसी के जीवन को किस कदर तबाह कर रहें हैं उस तबाही का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।

आज ऐतिहासिक तिथि 15 अप्रैल है इसी तिथि को 2014 में ट्रांस-जेंडर बिल लाया गया था। उसके बाद भी न जानें कितने नियम कानून बने और बदले मेरी समस्त सभ्य समाज से केवल एक ही अपील है इन्हें भी इंसान समझो। सरकार चाहे कितने भी नियम कानून बना ले लेकिन जब तक आप और हम इनको अपने परिवार का अंग नहीं मानेंगे तब तक काग़ज़ी कार्यवाहियों पर केवल सरकारी दफ्तरों में धूल की चादर चढ़ती रहेगी। कृपया इन्हें भी सम्मानपूर्वक जीवन जीने दो।

भारती
(पीएच.डी शोधार्थी )
हिन्दी विभाग
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, समरहिल, शिमला-171005
दूरभाष – +917428741436

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1 टिप्पणी

  1. एक ज्वलंत मार्मिक विषय पर कलम चलाई है भारती ने साधुवाद वैसे इस विषय को कई कई बार चिंतनशील लोगों द्वारा उठाया जाता रहा है सवाल है हम सब का नजरिया बदलने का थर्ड जेंडर के प्रति सहज सामान्य और दोस्ताना व्यवहार अपनाने का हम आशा रखे की धीमे ही सही परिवर्तन होगा | भारती जी की सराहना की जानी चाहिए इस लेख के लिए |

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