फ़िल्मों में एक संवाद और भी बार-बार सुनने को मिलता है – “हर कुत्ते के दिन बदलते हैं!” मुझे कुछ दिन पहले ही इस बात का अंदाज़ हुआ जब एक मित्र ने बताया कि वह दिल्ली में एक साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने जा रही है। साथ में बेटी भी जा रही है। कुत्ते को डे-केयर होम में रख कर जाएंगी। मेरे भीतर का संपादक मचल गया। इतना सुंदर थीम अपने पाठकों तक पहुंचाने का सुअवसर कैसे हाथ से जाने दूं!
बचपन से आजतक जब कभी ‘कुत्ता’ शब्द सुना तो कुछ शब्द और छवियां दिमाग़ में उभर कर सामने आ जाती हैं। – गली का कुत्ता, कुत्ते की मौत मरेगा, स्वामी भक्त कुत्ता, घर का रखवाला कुत्ता वगैरह वगैरह…
फ़िल्मों के सार्वाधिक सफल कलाकार धर्मेन्द्र तो हर फ़िल्म में कुत्तों को धमकाते दिखाई देते थे – “कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊंगा!” शोले में तो वे बसन्ती (हेमा मालिनी) को चिल्ला कर कहते हैं, “बसन्ती, इन कुत्तों के सामने नाचना मत!” कुत्ते भी हैरान होते थे कि अगर बसन्ती औरों के सामने नाच सकती है तो भला उनका क्या कुसूर। धर्मेन्द्र दिन भर तो कुत्तों को धमकाते रहते मगर शाम होते ही ‘काला कुत्ता’ यानी कि ‘ब्लैक डॉग’ का पटियाला पेग बना कर मस्त हो जाते और कभी-कभी ‘गर्म कुत्ता’ यानी कि ‘हॉट डॉग’ को भी नहीं बख़्शते!
कुत्ते पालने का शौक़ भी अमीर लोग ही रखते थे। मिडल क्लास या फिर लोअर मिडल क्लास के पास न तो समय होता था और न ही फ़ालतू पैसा कि ऐसे शौक़ पाल सकें। कुत्ते पालने वाली महिलाओं का ख़ासा मज़ाक भी उड़ाया जाता था कि वे अपने कुत्तों को – ‘माई बेबी‘, ‘मेरा बच्चा’ कह कर पुचकारती रहती हैं। व्यंग्य भी लिखे जाते, “डॉक्टर साहब, मेरा बेबी तीन दिन से कुछ खा नहीं रहा! देखिये न कितना कमजोर है गया है!”
कुछ मिडल क्लास परिवार कुत्ता पाल भी लेते थे मगर उनके लिये एक ही समस्या बनी रहती थी कि यदि शहर से बाहर जाना हो तो कुत्ते को रखा कहां जाए। छोटे शहरों में तो समस्या और भी गहरी हुआ करती। एक साहित्यकार मित्र फ़ोन पर बता रही थीं कि उनकी माँ कहीं आ-जा नहीं पाती हैं क्योंकि कुत्ते को रखने की कोई सुविधा नहीं मिल पाती है।
फ़िल्मों में एक संवाद और भी बार-बार सुनने को मिलता है – “हर कुत्ते के दिन बदलते हैं!” मुझे कुछ दिन पहले ही इस बात का अंदाज़ हुआ जब एक मित्र ने बताया कि वह दिल्ली में एक साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने जा रही है। साथ में बेटी भी जा रही है। कुत्ते को डे-केयर होम में रख कर जाएंगी। मेरे भीतर का संपादक मचल गया। इतना सुंदर थीम अपने पाठकों तक पहुंचाने का सुअवसर कैसे हाथ से जाने दूं!
जब से इस मित्र ने कुत्ता पाला है तब से मैं उनके घर नहीं जा पाया। इसलिये मुझे नहीं मालूम कि उनका कुत्ता किस नस्ल का है… बड़ा वाला है या पूडलनुमा छोटा सा। मगर कुत्ता है तो प्यार भी होगा और जब प्यार है तो उसका ख़्याल भी रखना होगा। और यदि व्यक्ति साहित्यकार है तो संवेदनशील होना तो लाज़मी है। मैं मित्र से यह भी नहीं पूछ पाया कि जब पहले से सिर पर इतने काम हैं, लिखने के लिये समय निकाल पाना किसी उपलब्धि से कम नहीं, तो ऐसे में यह रईसी शौक़ क्यों? मैं कभी भी किसी भी मित्र से उसकी निजी ज़िन्दगी के सवाल नहीं पूछता। मुझे यह हमेशा धृष्टता ही महसूस होती है। मुझे अपने बहुत से मित्रों की पत्नी या उनके पति के नाम भी मालूम नहीं हैं। दरअसल कभी इस बात की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई।
मगर अपनी इस साहित्यकार मित्र के साथ हुई बातचीत से मुझे याद आया कि जब मैं एअर इंडिया में नौकरी के दौरान विदेश यात्राएं किया करता था और पच्चीस साल पहले जब लंदन बसने आया तो मुझे यहां ‘स्ट्रीट डॉग्स’ यानी कि आवारा गली के कुत्ते कभी दिखाई नहीं दिये। इन देशों में पालतुकुत्ते या बिल्ली की सेहत और रहन-सहन का ख़्याल घर के सदस्यों से अधिक ही किया जाता है। जब मुझे पहली बार लंदन में कुत्ते बिल्लियों के डे-केयर सेंटर के बारे में पता चला तो सोचा कि जल्दी से एक फ़ेसबुक पोस्ट इस विषय में लिखी जाए। …फिर बात दिमाग़ से निकल गई।
लदंन में मेरे साथ एक अंग्रेज़ महिला और एक भारतीय महिला काम करते थे। भारतीय महिला को अपने बेटे को चाइल्ड-केयर होम में छोड़ना होता था और अंग्रेज़ महिला को अपना कुत्ता। पता चला कि चाइल्ड केयर में कम पैसे ख़र्च होते थे और डॉग केयर के कईं अधिक। मैं यह सोचता कि मैं तो पूरी तरह से शहरी प्रॉडक्ट हूं… मेरा जीवन तो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में बीता है। यदि मेरे लिये यह इतनी नई सी बात है तो मेरे फ़ेसबुक मित्रों के लिये कितनी अनूठी होगी। मगर मैं अपने कामों में व्यस्त हो गया और भूल-भाल गया।
अब जब पश्चिमी देशों की यह परंपरा भारत में अपने पैर फैला रही है तो हमें इस ओर ध्यान देना होगा और अपने पाठकों तक यह सूचना अवश्य पहुंचानी चाहिये कि कम से कम बड़े शहरों में डॉग केयर सेन्टर मौजूद हैं और वे अब आसानी से घर में कुत्ता पाल सकते हैं।
यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि भारतीय नियमों के अनुसार किसी एक घर में तीन व्यस्क कुत्तों से अधिक नहीं पाले जा सकते। यह एक ऐसा विषय है जिसकी जानकारी ढूंढ पाना बहुत आसान नहीं है। कर्नाटक में सरकार ने इस विषय में स्पष्ट नियम बनाए हैं। वहां फ़्लैट में केवल एक कुत्ता ही पाला जा सकता है। यदि आपके पास बड़ा घर है तो आप तीन कुत्तों तक पाल सकते हैं। हर साल आपको अपने पालतू कुत्ते का लाइसेंस का नवीकरण करवाना आवश्यक है।
आजकल दिल्ली और एन.सी.आर. में ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों की भरमार है। हर दूसरे दिन समाचार पढ़ने को मिल जाता है कि किसी कुत्ते ने किसी सोसाइटी निवासी पर हमला कर उसे घायल कर दिया। याद रखना होगा कि अगर किसी पालतू कुत्ते के काटने से किसी को किसी प्रकार का भी नुक्सान पहुंचता है तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी कुत्ते के मालिक पर होगी। याद रखना होगा कि यदिआपको कुत्ता पालने का हक़ है तो उसे संभालने की ज़िम्मेदारी भी है। संभालना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पालना।
याद रहे जब आप अपने कुत्ते को बाहर सैर करवाने के लिये किसी पार्क में लेकर जाते हैं तो उसकी पॉटी साफ़ करना आपकी ड्यूटी है। ऐसा न करने पर सौ रुपये की दण्ड तक का प्रावधान है। यदि आपका कुत्ता घर के बाहर आवारा घूम रहा है तो वहां का नगर निगम आप पर दो हज़ार रुपये का दण्ड लगा सकता है।
स्मार्टस्क्रेपर्स (Smartscrapers) एक ऐसी वैबसाइट है जो भारत में डॉग डे-केयर सेन्टर्स के बारे में विस्तृत जानकारी देती है। उन्होंने अपनी वैबसाइट को 15 मार्च 2024 को अपडेट करते हुए लिखा है कि भारत में 2081 डॉग डे-केयर सेन्टर हैं। वहां 176 केन्द्रों की ईमेल उपलब्ध हैं; 1163 के फ़ोन नंबर दिये गये हैं और 830 वैबसाइट के लिंक दिये हैं।
“every dog has its day” सत्य है। तभी तो 1,438,911,020(14 अप्रैल, 2024) जनसंख्या वाले भारत में कुत्तों डे-केयर सेंटर्स की इतनी चौंकाने वाली संख्या है।हैरानी हुई जानकर कर, दुःख भी हुआ। अपार्टमेंट्स में कुत्ता पालने का क्या औचित्य है? सुरक्षा गार्ड्स के बाद कुत्ते क्या करते हैं? बस लिफ्ट में आतंक फैलाते हैं और सड़को पर गन्दगी। अकेलापन यहां के भीड़ भरे परिवेश में समस्या नहीं है।
लेकिन फ़ैशन और स्टेटस सिंबल के लिए इन्सान जो ना करे सो थोड़ा।
भारत में पैदा हुए नए चलन की जानकारी देने के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय संपादक महोदय, मैं भारत के राजधानी क्षेत्र के एक उपनगर में रहती हूं यह एक बहु मंजिली इमारत का समूह है जहां आए दिन इस स्वान समस्या पर तकरारे होती रहती हैं। कुत्तों के दिन तो बहुर गए मगर उनसे इंसानों के पीड़ित होते रहने के दिन आ गए हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं कुत्तों को पालने की घोर विरोधी हूं क्योंकि ऐसा करना मुझे उनके प्रति अन्याय लगता है। वे अपने स्वाभाविक जीवन से दूर प्लेट में खाने ,बिस्तर में सोने , रोमों से ढके होने के बावजूद स्वेटर पहनने और इंसान की गोद में बैठे रहने के आदी हो
जाते हैं ।फिर उनकी बहुत अधिक गरिष्ठ भोजन खाकर उत्पन्न हुई ऊर्जा उपयोग में नहीं आती और वह क्रोध में परिवर्तित होती है जिससे वह दूसरों पर आक्रमण करते हैं, यहां तक कि अपने संरक्षक को भी घायल करते नजर आते हैं। बहु मंजिले भवनों में रहने वाले लोगों के लिए, जहां सुरक्षाकर्मी होते हैं ,वहां कुत्तों का पालन निरर्थक ही लगता है, कुत्ते सदैव से रक्षक पशु ही माने गए हैं,।
आगे तो कुत्ते पालना न पाला हर व्यक्ति की अपनी निजी सोच है ।
।मेरे अनुसार एक ज्वलंत सामाजिक विषय पर संपादकीय लिखने के लिए आप बधाई के पत्र अवश्य हैं।
यहाँ जयपुर में भी हैं। न केवल डॉग डे केयर सेंटर बल्कि डॉग हॉस्टल भी हैं। पर वहाँ कोई बहुत अच्छी देखभाल नहीं होती। मेरे परिचित पहले वहाँ अपना कुत्ता छोड़कर बाहर आते-जाते थे। पर उन्होंने पाया कि वापस आने के बाद कुत्ता बहुत डरा सहमा रहता था कई दिनों तक। इसके अलावा जब भी घर में पैकिंग होती कहीं जाने के लिए तो वो भीतर घर में कहीं छुप जाता था। बड़ी मुश्किल से खींच खाच कर उसे बाहर लाना पड़ता था। तब उन्हें खटका हुआ कि हॉस्टल में ठीक से नहीं रखते, कुछ तो गड़बड़ी है। और वाकई ऐसा ही था।
बाद में वे उसे मेरे पास छोड़कर जाते थे।
हमारे देश में अभी इस ओर बहुत काम करना शेष है। खासतौर से संवेदनशील होने की।
आपने संपादकीय में फिर एक अनछुए विषय पर बात की, इसके लिए साधुवाद।
जी हां अब तो बाकायदा डॉग हॉस्टल्स हैं। हमारे छोटे से शहर बुलंदशहर में भी है। तो महानगरों में तो पार्लर्स आदि भी हैं ही। विदेशों की तो फिर बात ही क्या।
परंतु इस समय डॉग बहुत गुस्से में हैं। क्योंकि वे अकेले हैं, जबकि उन्हें इंसान का सान्निध्य प्रिय है। विशेषकर स्ट्रीट डॉग बहुत दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इसीलिए लाइसेंस आदि की आवश्यकता पड़ी।
पालतू कुत्तों को पालने से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने तेजेंद्र जी।आपके सम्पादकीय हमेशा ही समसामयिक विषयों को उठाते हुए सारगर्भित होते हैं। साधुवाद!
लोग मनुष्य पर दया नहीं आती है पर अपने पालतू कुत्ते पर बहुत दया दिखाते हैं। उसकी वजह से पड़ोसी पड़ोसी से लड़ लेते हैं! आपने बहुत मजेदार टॉपिक संपादकीय में लिया मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं अभी-अभी पड़ा।
हर बार आप नया अछूता विषय लेकर आते ह्यो , धन्यवाद। मेरे घर मे भी कुत्ता है अतः कैसे कहूँ अपनी दुविधा। जब मुम्बई रहता था 2009 म् मेरी बहु ने भी लाया था थ एक कविता लिखी थी जो काफी वायरल हुई थी।
कोफ़ी रानी
कोफ़ी रानी बड भागन ,तू कुतिया जनम लीन,
अनिषा गोदिया खिलावें ,गाडी घुमावें रात दिन,
लडकन-बच्चन को भावे, तेरे बहुत वो शौकीन,
तेरी महिमा अपरम्पार, फेमस फ्लैट नो सो तीन,
गरीबन को नहीं रोटी, तुझे फल मिले ग्रीन ग्रीन
भई कुतिया, कौन सो पुण्य पिछले जनम कीन ,
कोनो दिन प्यार मिलो ना, ना मिली कोई टॉफी,
बिनती इतनी राम, अगले बार कीजो मुझे कोफ़ी|
Cats and dogs are both popular pets, each with unique qualities. While any pet requires good attention and thorough care, we find cats to be a perfect fit for our lifestyle. They are incredibly independent, granting us more freedom in our daily lives, and they show affection on their own terms.
When we travel, we rely on our friends and adorable neighbors to feed our cat at home. Unlike dogs, cats may seem to have less emotional attachment and are not as famous for their social skills. As long as our cat is fed properly, he is happy, and so are we.
Dog owners often benefit from having doghouses, which can be a blessing when owners are away for days or weeks. One can only hope that dogs also feel content living without their owners during these times!
अच्छा व्यंग्य किया आपने, इसे थोड़ा और विस्तार दे सकते थे आप, मैं तो कुत्तों के पालन का बहुत समर्थक नहीं हुं क्योंकि हमारे समाज की ये एक ऐसी विडंबना है कि जहां हर पांचवा बुजुर्ग तिरस्कृत हो रहा होता है वहां वही लोग कुत्ते की आव भगत कर रहे होते हैं।
एक लघुकथा लिखी थी. आज टिप्पणी की जगह वही दे रही हूँ –
शर्मिंदा
——–
वह सदा की तरह अपने छोटे से डाॅग को घुमाने निकला। वह भी उनमें से था, जो कुत्तों को बहुत प्यार करते हैं। पेट्स के लिए जान भी दे सकते हैं। दरवाजा खोलते ही उनका शेरू, टफी, बडी साधिकार कार की बगलवाली सीट पर जा बैठता है और वे उसके घने बालों में उँगलियाँ फिराकर, स्नेह से निहार अपना ममत्व जाहिर करते हैं। पालक की गोद में बैठना उन सबका जन्मसिद्ध अधिकार!
वे उन सबको अपने बगल में सोने से भी नहीं रोकते। डाॅग द्वारा मुँह चाटना उन्हें अतिरिक्त खुशी से भर देता है। जगह-जगह बिखरे रोएँ खूब भाते है। उसे लैट्रिन कराने खुद बाहर ले जाना कभी नहीं अखरता, भले मुन्ने की नैप्पी बदलना गुस्से का सबब बन जाए।
हाँ, तो वह अपने डाॅग बडी को पार्क ले गया। कई दिनों से हसरत से देखते गरीब बच्चे ने आगे बढ़ उसके बडी को छूने के लिए प्यार से हाथ बढ़ाया।
उसने तत्काल उसका हाथ झटका, चिल्लाया,
“क्यों छू रहे हो मेरे बडी को? इसे इंफेक्शन हो जाएगा।”
बालक अपने फटे, गंदे कपड़े और मैले हाथों पर बेहद शर्मिंदा। फिर एक अस्फुट स्वर,
“और आपको इनफिकसन नय हो…?”
अनिता जी आज का संपादकीय एक मामले में सफल है। कलकत्ता से भाई सुरेश चौधरी ने टिप्पणी में अपनी कविता पेश की है तो आपने अपनी लघुकथा। संपादकीय पूरी तरह सार्थक हो गया।
आज का संपादकीय मनुष्य के सबसे वफादार मित्र कुत्ते पर केंद्रित है।संतुलित है।पश्चिमी देशों में जनसंख्या का घनत्व कम रहा सो मानवीय संवेदना और सानिध्य की जगह कुत्ते ने ले ली।एक परिपाटी चल पड़ी और एक डॉक्टरी तथ्य भी कि ब्लड प्रेशर ठीक रखना है तो कुत्ता पालो।
अब भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में ऐसी कोई जरूरत महसूस ही नहीं हुई।फैशन या शौकिया तौर पर साधन संपन्न लोग पालते थे।
अब स्थिति बदली ,प्रतिभा का विदेश गमन
और अकेले वो वहां और अकेले ये यहां बस कुत्ता पालन का चलन प्रचलन में आया। बात फिर जनसंख्या बहुल जनता,फ्लैट कल्चर,और शौक के जनून बनने की
नतीजा हुआ कि छोटे छोटे फ्लैट में एक दो नहीं तीन से अधिक कुत्ते,,,आवारा कुत्ते अलग से,,,पिटबुल या आक्रामक नसल के कुत्तों द्वारा बच्चों बड़ों को काटा जाना और फिर कोर्ट का भी रुख।उदाहरण दिल्ली के विकासपुरी की बड़ी सोसायटी में सेना से सेवा निवृत सेना के अधिकारी इन आवारा कुत्तों या पालतू कुत्तों का हड़का कर भगाने पर बिना किसी पूर्व सूचना के कोर्ट में केस दायर!?!!!
कुत्ता ना हुआ झगड़े का कारण बन गया। भारत जैसे देश में पढ़े लिखे लोग भी अविकसित देश की मानसिकता से उनके पालतू कुत्तों द्वारा गंद फैलाने पर कोई रोक नहीं और पकड़े जाने पर झगड़ा और चोरी और सीना जोरी?!!!
भारत और एशिया के कई देशों में कुत्तों के प्रति कहीं न कहीं उहापोह का रवैया कहीं अमानवीय ना हो जाए बस इसी का डर है।
अच्छा प्रसंग है ।
इंसान के बारे में तो सभी लिखते हैं ,पहले आपने गाय पर लिखकर चौका दिया अब कुत्ते के लालन पालन उससे जुड़ी समस्या और समाधान पर कलम चलाई ।
कुत्ता शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करने पर भी दंड निर्धारित होना चाहिए ।वह ईमानदारी और निष्ठा के लिए एक “उपमान “है ।
Dr Prabha mishra
अद्भुत सर,जब मैंने ‘कुत्ते को डे-केयर होम में रख कर जाएंगी’ लाइन पड़ी तो मैं अचंभित हो गई क्योंकि मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी। मुझे गाना याद आ रहा है देख तेरे संसार की क्या हालत क्या हो गई भगवान। कितना बदल गया इंसान। सर मंजुल भगत की एक कहानी है बावन पत्ते और एक जोकर जहां माता-पिता अपनी बेटी सोनू को आया के पास छोड़कर जाते हैं आया उसको इतना डराती-धमकाती है कि वह गुमसुम रहने लगती है और यह तो जीवन की सच्चाई भी है जहां एक आया एक मासूम बच्ची के साथ इतना निर्दयी व्यवहार करती है फिर यह तो पशु है। भारत जैसे देश में डॉग केयर सेंटर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। आपको साधुवाद सर, एक अनछुए पहलु से परिचित कराने के लिए।
नये, अछूते विषय पर लिखा विचारणीय संपादकीय। कुछ लोगों के लिए कुत्ता पालना एक स्टेटस सिम्बल है वहीं कुछ के लिए अपने एकांत को दूर करने का साधन। मेरी एक मित्र ने कहा था -मेरा यह बंटी मेरे एकाकीपन को दूर करने का साधन है। अब ज़ब बच्चे दूर चले गये हैं तब कोई तो हो जिसकी चहल -पहल मेरे मन के साथ घर के भी सूनेपन को दूर कर सके।
यह भी सच है कि कुछ नवसभ्रान्त लोग अपने बच्चों को आया के भरोसे छोड़कर, अपने डॉगी की केयर स्वयं करते हैं।
हम उनको पालें या न पालें लेकिन वे वफादार और संवेदनशील जीव होते हैं । सबसे बुरी बात ये सामने आ रही है कि सम्पन्न युवा दम्पत्ति अपने बच्चों को लाने के, एक डॉगी लाना ज्यादा अच्छा मानने लगे हैं और उसे बच्चा और स्वयं को मम्मी-पापा कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। जो समाज संस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।
कुत्ता मनुष्य का सबसे पुराना साथी है। जब इनसान भरोसे के क़ाबिल नहीं रहता, तब मनुष्य कुत्ते पर भरोसा कर सकता है। मध्यवर्गीय लोग कुत्ते क्यों पालते हैं? केवल सुरक्षा के लिए? नहीं। जैसाकि किसी ने लिखा, अपार्टमेंटों में तो सुरक्षाकर्मी होते ही हैं।
आदमी कुत्ते पालता है भावनात्मक कारणों से। मालिक के साथ कुत्ते का बहुत गहरा रागात्मक संबंध होता है। वह तरह तरह से मालिक के अहं को सहलाता है।
कबीर ने कहा- हौं तो कूका राम का, मुतिया मेरा नाउं। गले राम की जेवड़ी जित खींचे तित जाउँ। मैं तो राम का मोती नामक कुत्ता हूँ। वह जहाँ ले जाए, वहाँ जाता हूँ।
मालिक होने का जैसा बोध आपको कुत्ता कराता है, वैसा और कोई नहीं करा सकता। वह आपका बिना शर्त का गुलाम है। मारो, पीटो, दुरदुराओ, वह बुरा नहीं मानता। उसकी ईगो है ही नहीं। ऐसी स्वामीभक्ति और कहाँ!
ऐसे समर्पित सेवक सेआप प्यार क्यों न करें!
बस एक यही सबसे बड़ा कारण है कुत्ते पालने का।
आदरणीय तेजेन्द्र जी
एक पल के लिए तो संपादकीय हास्यास्पद लगा। पर बात गंभीर है। इसे पढ़कर उस दिन तो नहीं पर आज लिखते हुए एक कहानी याद आ गई। याद नहीं आ रहा लेकिन किसी क्लास में कभी एक कहानी पढ़ाई थी “कुकुर समाधि”कोर्स में थी। यह छत्तीसगढ़ में है यह तो याद था पर शहर का नाम याद नहीं आ रहा था। वह छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है। पालतू जानवरों में गाय और कुत्ता, यह दो ही बेहद ईमानदार पशु है और इनका भारतीय संस्कृति में भी बहुत महत्व है। घर में बनाई गई पहली रोटी गाय की होती है और आखिरी रोटी कुत्ते की। दोनों ही हमारे नवग्रह के दुष्प्रभावों से बचाने में भी हमारे सहयोगी हैं।शनि ,बुध और राहु केतु के दुष्प्रभाव को काटने के लिए कुत्ते को रोटी खिलाने का बहुत महत्व है। पंडित बताते हैं कि क्या खिलाना है ,कब और किस तरह खिलाना है। गाय का भी बहुत महत्व है।
कुकुर समाधि की कहानी बहुत ही मार्मिक है। हमें पूरी याद है लेकिन अगर हम इसे यहाँ लिखेंगे तो आप के लिये टिप्पणी और लंबी हो जाएगी इसलिए टिप्पणी में नहीं,कहानी फिर कभी। बहुत मार्मिक है बाकी उस समाधि पर मंदिर बना हुआ है और लोग वहाँ पर पूजा करते हैं।
हमने कई लोगों से यह सुना है कि कुत्ते को पालने के बाद उनके घर में आर्थिक रूप से समृद्धि हुईहै। और कुछ लोग तो कई प्रजाति के कुत्तों को पालकर महंगे दामों पर बेचने के लिए इसे व्यापार की तरह लेते हैं।
हमारे बड़े बेटे के घर भी Golden retriever female है। उसका नाम मैगी है। बहुत ही प्यारी, बहुत ही मासूम।
हम कभी जानवरों को पालने के पक्ष में नहीं रहे क्योंकि उनकी उम्र बहुत कम होती है और जाते हैं तो बड़ी तकलीफ होती है। फिर बंध भी जाते हैं। और यह भी परिवार से इतना अधिक जुड़ जाते हैं कि इन्हें अकेला रखना या छोड़ना पड़े तो ये सह नहीं पाते। 2 दिन छोड़कर आने पर मैगी को बुखार आ गया था उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना पड़ा।
हम तो पहले छूते ही नहीं थे।बस घिन सी मचती थी और एकदम गिलगिले लगते थे। लेकिन जब घर में हैं तो अपने बच्चों की तरह प्यार हो गया ।
कुकुर समाधि वाले कुत्ते की कहानी बंजारों की टोली से जुड़ी हुई थी जो जान माल की सुरक्षा की दृष्टि से पालते थे।
शौकिया पालने वालों की बात अपन नहीं करते उनकी बात तो वही जाने।
यह बात भी सही है कि कुत्ते को लेकर बहुत सारे मुहावरे हैं लेकिन गलियाँ भी हैं।
लेकिन जिस तरह से सड़क के आवारा कुत्ते बढ़ रहे हैं वह एक बड़ा सिर दर्द है। दुर्घटनाओं की संभावनाएं बढ़ गई हैं।होशंगाबाद में तो एक बार सरकारी अस्पताल से एक बच्चे को उठाकर ही ले गया था ।इतने ज्यादा कुत्ते हो गए थे कि लोगों का चलना फिरना मुश्किल कर दिया था। अभी याद तो नहीं आ रहा, किंतु बाहर से कहीं साउथ से ,कोई टीम आई थी कुत्तों को पता नहीं मरवाने के लिए या कहीं दूर जंगल में छुड़वाने के लिए। लेकिन संभव न हो सका। शायद बजरंग दल वालों ने आपत्ति ली थी।
लेकिन मोहल्ले वाले परेशान इसलिए थे कि कुत्ते बच्चों को ही नहीं, आने जाने वाले लोगों का पीछा कर काट रहे थे। मोहल्ले- मोहल्ले में ग्रुपिंग हो गई थी उनकी। एक मोहल्ले का कुत्ता दूसरे मोहल्ले मैं नहीं जा सकता था।
रात में रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से पैदल आना खतरे से खाली नहीं था।
कुत्तों के ही नवजात या अन्य छोटे मोटे जानवरों के लिये भी खतरा था।
वैसे काफी पहले एक बार एक व्यंग पढ़ा था जिसमें मालिक तो गाड़ी चला रहा था और पालतू पीछे आराम से बैठा था उस पर
जो पालतू होते हैं वह घर में मिले प्रेम के आदी हो जाते हैं इसलिए अगर किसी कारणवश उन्हें बाहर छोड़ना पड़े तो वह उसे झेल नहीं पाते। खाना छोड़ देते हैं या बीमार हो जाते हैं।
हमने एक बार कहीं पढ़ा था की कोई बंदा इंटरव्यू देने किसी शहर में गया था और वहाँ किसी कुत्ते को कोई गाड़ी घायल कर गई थी। उसे दया और उसने उसे अस्पताल पहुँचाया और कुत्तों के केयर के लिए उसने कोई संस्थान खोलने की चाह में रतन टाटा से आर्थिक मदद मांगी थी। उसकी दयालुता से प्रभावित होकर उन्होंने मदद भी की और उसे कोई अच्छी नौकरी भी दी थी।
हर बार की तरह इस बार का संपादकीय भी महत्वपूर्ण ही रहा। इसका उत्तरार्द्ध बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। अनेक नवीन जानकारियों के साथ। इसे हम अपने उन रिश्तेदारों व परिचितों को शेयर करेंगे जिनके घरों में कुत्ते पालतू रूप में हैं।
बहुत-बहुत शुक्रिया तेजेंद्र जी आपके संपादकीय का टिप्पणी लिखने के बाद से ही इंतजार रहता है।
आदरणीय नीलिमा जी, आपने अपनी टिप्पणी में निजी, सामाजिक एवं साहित्यिक सरोकारों को शामिल करके पुरवाई संपादकों के लिये एक और संपादकीय प्रस्तुत कर दिया है। पाठकों की ओर से हार्दिक बधाई।
आ0तेजेन्द्र जी! आपका सम्पादकीय पढ़ा। भारत में पहले कम ही लोग कुत्ते पालते थे लेकिन अब चलन काफ़ी बढ़ गया है। लेकिन मुझे याद है बचपन में हम लोग पिल्लों को घर उठा लाते थे क्योंकि वो बहुत प्यारे लगते थे और उनको बोरी पर बिठाते किसी बर्तन में डाल कर दूध भी उनके आगे रखते पर माँ उन्हें बाहर छुड़वा देती थी। हमने भी 2-3 कुत्ते पाले जिसमें एक बहुत प्यारा छोटी ब्रीड का था। और वो बहुत ही लाडली था मेरे पति का। उनके ऑफ़िस से आने का समय पता था उसे ,जा कर दरवाज़े पर बैठ जाता था और जब वो आते तो इतना ख़ुश होता जैसे नाच रहा हो दुम हिलाता उन पर कूदता। लेकिन उसकी मृत्यु पर मेरे पति को बहुत ही अधिक दुख हुआ इतना जैसे किसी बच्चे के जाने का हो। अगर आप पालते हैं कोई भी प्राणी पशु या पक्षी तो अपनी प्राप्त जगह के अनुसार ही पालना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दूसरों को कोई असुविधा न हो। जो कुत्ते नहीं पालते उन्हें कुत्तों से बहुत ही डर लगता है। पर जो पालते हैं वो उन्हें बहुत प्यार करते हैं और कुत्ते भी अपने से अधिक अपने पालक को प्यार करते हैं।
डॉ.शर्मा जी , रोचक एवं नूतन जानकारियों से
भरा सम्पादकीय पढ़ा। अपनी कालोनी से संबंधित
कुछ अनुभव साझा करना चाहते हैं। यहाँ स्ट्रीट डाग्स सड़क पर बैठना पसंद नहीं करते स्कूटर, मोटरसाइकिल की सीट पर या गाड़ी की छत पर बैठते हैं । बड़ी गाड़ी उन्हें अधिक पसंद है। ग्रहों को शांत करने के लिए युवा इन्हें बढ़िया बिस्किट , पनीर और डाग फूड बड़े चाव से बिना नागा खिलाते हैं। कुत्तों के लिए वाट्सएप ग्रुप बने हैं जिसके द्वारा एक स्थान पर रोटियां दूध इकट्ठा किया जाता है और उन्हें परोसा जाता है। तकरीबन घरों के आगे उनके लिए बर्तन रखें हैं।
खा पीकर बलिष्ठ कुत्ते राहगीरों को काटने से गुरेज़
नहीं करते। भयंकर जानलेवा हादसे हो चुके हैं।
खेद का विषय है कि कुत्तों के लिए रोटियां सुलभ हैं
पर घर बुजुर्ग उनसे वंचित हैं।
“every dog has its day” सत्य है। तभी तो 1,438,911,020(14 अप्रैल, 2024) जनसंख्या वाले भारत में कुत्तों डे-केयर सेंटर्स की इतनी चौंकाने वाली संख्या है।हैरानी हुई जानकर कर, दुःख भी हुआ। अपार्टमेंट्स में कुत्ता पालने का क्या औचित्य है? सुरक्षा गार्ड्स के बाद कुत्ते क्या करते हैं? बस लिफ्ट में आतंक फैलाते हैं और सड़को पर गन्दगी। अकेलापन यहां के भीड़ भरे परिवेश में समस्या नहीं है।
लेकिन फ़ैशन और स्टेटस सिंबल के लिए इन्सान जो ना करे सो थोड़ा।
भारत में पैदा हुए नए चलन की जानकारी देने के लिए हार्दिक आभार।
शैली जी टिप्पणी के लिए आभार। आपकी पालतू कुत्तों को लेकर ख़ासी नाराज़गी है। आपका भी एक पाइंट ऑफ व्यू है।
आदरणीय संपादक महोदय, मैं भारत के राजधानी क्षेत्र के एक उपनगर में रहती हूं यह एक बहु मंजिली इमारत का समूह है जहां आए दिन इस स्वान समस्या पर तकरारे होती रहती हैं। कुत्तों के दिन तो बहुर गए मगर उनसे इंसानों के पीड़ित होते रहने के दिन आ गए हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं कुत्तों को पालने की घोर विरोधी हूं क्योंकि ऐसा करना मुझे उनके प्रति अन्याय लगता है। वे अपने स्वाभाविक जीवन से दूर प्लेट में खाने ,बिस्तर में सोने , रोमों से ढके होने के बावजूद स्वेटर पहनने और इंसान की गोद में बैठे रहने के आदी हो
जाते हैं ।फिर उनकी बहुत अधिक गरिष्ठ भोजन खाकर उत्पन्न हुई ऊर्जा उपयोग में नहीं आती और वह क्रोध में परिवर्तित होती है जिससे वह दूसरों पर आक्रमण करते हैं, यहां तक कि अपने संरक्षक को भी घायल करते नजर आते हैं। बहु मंजिले भवनों में रहने वाले लोगों के लिए, जहां सुरक्षाकर्मी होते हैं ,वहां कुत्तों का पालन निरर्थक ही लगता है, कुत्ते सदैव से रक्षक पशु ही माने गए हैं,।
आगे तो कुत्ते पालना न पाला हर व्यक्ति की अपनी निजी सोच है ।
।मेरे अनुसार एक ज्वलंत सामाजिक विषय पर संपादकीय लिखने के लिए आप बधाई के पत्र अवश्य हैं।
सरोजिनी जी, पालतू कुत्तों के बारे में विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
यहाँ जयपुर में भी हैं। न केवल डॉग डे केयर सेंटर बल्कि डॉग हॉस्टल भी हैं। पर वहाँ कोई बहुत अच्छी देखभाल नहीं होती। मेरे परिचित पहले वहाँ अपना कुत्ता छोड़कर बाहर आते-जाते थे। पर उन्होंने पाया कि वापस आने के बाद कुत्ता बहुत डरा सहमा रहता था कई दिनों तक। इसके अलावा जब भी घर में पैकिंग होती कहीं जाने के लिए तो वो भीतर घर में कहीं छुप जाता था। बड़ी मुश्किल से खींच खाच कर उसे बाहर लाना पड़ता था। तब उन्हें खटका हुआ कि हॉस्टल में ठीक से नहीं रखते, कुछ तो गड़बड़ी है। और वाकई ऐसा ही था।
बाद में वे उसे मेरे पास छोड़कर जाते थे।
हमारे देश में अभी इस ओर बहुत काम करना शेष है। खासतौर से संवेदनशील होने की।
आपने संपादकीय में फिर एक अनछुए विषय पर बात की, इसके लिए साधुवाद।
आपने एक नया कोण जोड़ कर संपादकीय को और पुख़्ता बना दिया है।
जी हां अब तो बाकायदा डॉग हॉस्टल्स हैं। हमारे छोटे से शहर बुलंदशहर में भी है। तो महानगरों में तो पार्लर्स आदि भी हैं ही। विदेशों की तो फिर बात ही क्या।
परंतु इस समय डॉग बहुत गुस्से में हैं। क्योंकि वे अकेले हैं, जबकि उन्हें इंसान का सान्निध्य प्रिय है। विशेषकर स्ट्रीट डॉग बहुत दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इसीलिए लाइसेंस आदि की आवश्यकता पड़ी।
एक और उत्कृष्ट संपादकीय।आपको हार्दिक बधाई।
इस ख़ूबसूरत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार निर्देश निधि जी। आज के कुत्तों के ग़ुस्से के बारे में नयी जानकारी दी है आपने।
पालतू कुत्तों को पालने से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने तेजेंद्र जी।आपके सम्पादकीय हमेशा ही समसामयिक विषयों को उठाते हुए सारगर्भित होते हैं। साधुवाद!
लोग मनुष्य पर दया नहीं आती है पर अपने पालतू कुत्ते पर बहुत दया दिखाते हैं। उसकी वजह से पड़ोसी पड़ोसी से लड़ लेते हैं! आपने बहुत मजेदार टॉपिक संपादकीय में लिया मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं अभी-अभी पड़ा।
इस सार्थक टिप्पणी के लिये आभार भाग्यम जी।
हर बार आप नया अछूता विषय लेकर आते ह्यो , धन्यवाद। मेरे घर मे भी कुत्ता है अतः कैसे कहूँ अपनी दुविधा। जब मुम्बई रहता था 2009 म् मेरी बहु ने भी लाया था थ एक कविता लिखी थी जो काफी वायरल हुई थी।
कोफ़ी रानी
कोफ़ी रानी बड भागन ,तू कुतिया जनम लीन,
अनिषा गोदिया खिलावें ,गाडी घुमावें रात दिन,
लडकन-बच्चन को भावे, तेरे बहुत वो शौकीन,
तेरी महिमा अपरम्पार, फेमस फ्लैट नो सो तीन,
गरीबन को नहीं रोटी, तुझे फल मिले ग्रीन ग्रीन
भई कुतिया, कौन सो पुण्य पिछले जनम कीन ,
कोनो दिन प्यार मिलो ना, ना मिली कोई टॉफी,
बिनती इतनी राम, अगले बार कीजो मुझे कोफ़ी|
ख़ूबसूरत कवित्त भरी टिप्पणी सर। बहुत बहुत आभार।
Very interesting Sir
Cats and dogs are both popular pets, each with unique qualities. While any pet requires good attention and thorough care, we find cats to be a perfect fit for our lifestyle. They are incredibly independent, granting us more freedom in our daily lives, and they show affection on their own terms.
When we travel, we rely on our friends and adorable neighbors to feed our cat at home. Unlike dogs, cats may seem to have less emotional attachment and are not as famous for their social skills. As long as our cat is fed properly, he is happy, and so are we.
Dog owners often benefit from having doghouses, which can be a blessing when owners are away for days or weeks. One can only hope that dogs also feel content living without their owners during these times!
Dhanyawad, Best regards
Thanks Pooja for a meaningful reaction to the editorial.
अच्छा व्यंग्य किया आपने, इसे थोड़ा और विस्तार दे सकते थे आप, मैं तो कुत्तों के पालन का बहुत समर्थक नहीं हुं क्योंकि हमारे समाज की ये एक ऐसी विडंबना है कि जहां हर पांचवा बुजुर्ग तिरस्कृत हो रहा होता है वहां वही लोग कुत्ते की आव भगत कर रहे होते हैं।
आलोक आप निरंतर पुरवाई संपादकीय पर टिप्पणी देते हैं। हार्दिक आभार।
एक लघुकथा लिखी थी. आज टिप्पणी की जगह वही दे रही हूँ –
शर्मिंदा
——–
वह सदा की तरह अपने छोटे से डाॅग को घुमाने निकला। वह भी उनमें से था, जो कुत्तों को बहुत प्यार करते हैं। पेट्स के लिए जान भी दे सकते हैं। दरवाजा खोलते ही उनका शेरू, टफी, बडी साधिकार कार की बगलवाली सीट पर जा बैठता है और वे उसके घने बालों में उँगलियाँ फिराकर, स्नेह से निहार अपना ममत्व जाहिर करते हैं। पालक की गोद में बैठना उन सबका जन्मसिद्ध अधिकार!
वे उन सबको अपने बगल में सोने से भी नहीं रोकते। डाॅग द्वारा मुँह चाटना उन्हें अतिरिक्त खुशी से भर देता है। जगह-जगह बिखरे रोएँ खूब भाते है। उसे लैट्रिन कराने खुद बाहर ले जाना कभी नहीं अखरता, भले मुन्ने की नैप्पी बदलना गुस्से का सबब बन जाए।
हाँ, तो वह अपने डाॅग बडी को पार्क ले गया। कई दिनों से हसरत से देखते गरीब बच्चे ने आगे बढ़ उसके बडी को छूने के लिए प्यार से हाथ बढ़ाया।
उसने तत्काल उसका हाथ झटका, चिल्लाया,
“क्यों छू रहे हो मेरे बडी को? इसे इंफेक्शन हो जाएगा।”
बालक अपने फटे, गंदे कपड़े और मैले हाथों पर बेहद शर्मिंदा। फिर एक अस्फुट स्वर,
“और आपको इनफिकसन नय हो…?”
– अनिता रश्मि
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अनिता जी आज का संपादकीय एक मामले में सफल है। कलकत्ता से भाई सुरेश चौधरी ने टिप्पणी में अपनी कविता पेश की है तो आपने अपनी लघुकथा। संपादकीय पूरी तरह सार्थक हो गया।
आज का संपादकीय मनुष्य के सबसे वफादार मित्र कुत्ते पर केंद्रित है।संतुलित है।पश्चिमी देशों में जनसंख्या का घनत्व कम रहा सो मानवीय संवेदना और सानिध्य की जगह कुत्ते ने ले ली।एक परिपाटी चल पड़ी और एक डॉक्टरी तथ्य भी कि ब्लड प्रेशर ठीक रखना है तो कुत्ता पालो।
अब भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश में ऐसी कोई जरूरत महसूस ही नहीं हुई।फैशन या शौकिया तौर पर साधन संपन्न लोग पालते थे।
अब स्थिति बदली ,प्रतिभा का विदेश गमन
और अकेले वो वहां और अकेले ये यहां बस कुत्ता पालन का चलन प्रचलन में आया। बात फिर जनसंख्या बहुल जनता,फ्लैट कल्चर,और शौक के जनून बनने की
नतीजा हुआ कि छोटे छोटे फ्लैट में एक दो नहीं तीन से अधिक कुत्ते,,,आवारा कुत्ते अलग से,,,पिटबुल या आक्रामक नसल के कुत्तों द्वारा बच्चों बड़ों को काटा जाना और फिर कोर्ट का भी रुख।उदाहरण दिल्ली के विकासपुरी की बड़ी सोसायटी में सेना से सेवा निवृत सेना के अधिकारी इन आवारा कुत्तों या पालतू कुत्तों का हड़का कर भगाने पर बिना किसी पूर्व सूचना के कोर्ट में केस दायर!?!!!
कुत्ता ना हुआ झगड़े का कारण बन गया। भारत जैसे देश में पढ़े लिखे लोग भी अविकसित देश की मानसिकता से उनके पालतू कुत्तों द्वारा गंद फैलाने पर कोई रोक नहीं और पकड़े जाने पर झगड़ा और चोरी और सीना जोरी?!!!
भारत और एशिया के कई देशों में कुत्तों के प्रति कहीं न कहीं उहापोह का रवैया कहीं अमानवीय ना हो जाए बस इसी का डर है।
भाई सूर्यकान्त जी आपने मुद्दे को सही पकड़ा है। इस प्रबुद्ध टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
अच्छा प्रसंग है ।
इंसान के बारे में तो सभी लिखते हैं ,पहले आपने गाय पर लिखकर चौका दिया अब कुत्ते के लालन पालन उससे जुड़ी समस्या और समाधान पर कलम चलाई ।
कुत्ता शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करने पर भी दंड निर्धारित होना चाहिए ।वह ईमानदारी और निष्ठा के लिए एक “उपमान “है ।
Dr Prabha mishra
आदरणीय प्रभा जी आपने तो मुद्दे को बिल्कुल नये नज़रिये से उठा लिया। हार्दिक आभार।
अद्भुत सर,जब मैंने ‘कुत्ते को डे-केयर होम में रख कर जाएंगी’ लाइन पड़ी तो मैं अचंभित हो गई क्योंकि मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी। मुझे गाना याद आ रहा है देख तेरे संसार की क्या हालत क्या हो गई भगवान। कितना बदल गया इंसान। सर मंजुल भगत की एक कहानी है बावन पत्ते और एक जोकर जहां माता-पिता अपनी बेटी सोनू को आया के पास छोड़कर जाते हैं आया उसको इतना डराती-धमकाती है कि वह गुमसुम रहने लगती है और यह तो जीवन की सच्चाई भी है जहां एक आया एक मासूम बच्ची के साथ इतना निर्दयी व्यवहार करती है फिर यह तो पशु है। भारत जैसे देश में डॉग केयर सेंटर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। आपको साधुवाद सर, एक अनछुए पहलु से परिचित कराने के लिए।
अंजु जी, पुरवाई का प्रयास रहता है कि अपने पाठकों का हर सप्ताह किसी नये विषय से परिचय करवाए। हार्दिक आभार।
नये, अछूते विषय पर लिखा विचारणीय संपादकीय। कुछ लोगों के लिए कुत्ता पालना एक स्टेटस सिम्बल है वहीं कुछ के लिए अपने एकांत को दूर करने का साधन। मेरी एक मित्र ने कहा था -मेरा यह बंटी मेरे एकाकीपन को दूर करने का साधन है। अब ज़ब बच्चे दूर चले गये हैं तब कोई तो हो जिसकी चहल -पहल मेरे मन के साथ घर के भी सूनेपन को दूर कर सके।
यह भी सच है कि कुछ नवसभ्रान्त लोग अपने बच्चों को आया के भरोसे छोड़कर, अपने डॉगी की केयर स्वयं करते हैं।
सुधा जी, आपकी टिप्पणी कम शब्दों में गहरा अर्थ लिये है। हार्दिक आभार।
शुनि चैव श्वपाके च,पण्डिता समदर्शना:।’ पण्डित ही पण्डित चहुंओर।
हम उनको पालें या न पालें लेकिन वे वफादार और संवेदनशील जीव होते हैं । सबसे बुरी बात ये सामने आ रही है कि सम्पन्न युवा दम्पत्ति अपने बच्चों को लाने के, एक डॉगी लाना ज्यादा अच्छा मानने लगे हैं और उसे बच्चा और स्वयं को मम्मी-पापा कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। जो समाज संस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।
रेखा जी आपकी चिन्ता जायज़ है। आभार।
कुत्ता मनुष्य का सबसे पुराना साथी है। जब इनसान भरोसे के क़ाबिल नहीं रहता, तब मनुष्य कुत्ते पर भरोसा कर सकता है। मध्यवर्गीय लोग कुत्ते क्यों पालते हैं? केवल सुरक्षा के लिए? नहीं। जैसाकि किसी ने लिखा, अपार्टमेंटों में तो सुरक्षाकर्मी होते ही हैं।
आदमी कुत्ते पालता है भावनात्मक कारणों से। मालिक के साथ कुत्ते का बहुत गहरा रागात्मक संबंध होता है। वह तरह तरह से मालिक के अहं को सहलाता है।
कबीर ने कहा- हौं तो कूका राम का, मुतिया मेरा नाउं। गले राम की जेवड़ी जित खींचे तित जाउँ। मैं तो राम का मोती नामक कुत्ता हूँ। वह जहाँ ले जाए, वहाँ जाता हूँ।
मालिक होने का जैसा बोध आपको कुत्ता कराता है, वैसा और कोई नहीं करा सकता। वह आपका बिना शर्त का गुलाम है। मारो, पीटो, दुरदुराओ, वह बुरा नहीं मानता। उसकी ईगो है ही नहीं। ऐसी स्वामीभक्ति और कहाँ!
ऐसे समर्पित सेवक सेआप प्यार क्यों न करें!
बस एक यही सबसे बड़ा कारण है कुत्ते पालने का।
डॉक्टर साहब आपकी टिप्पणी दिल को छूने वाली है। आप हमेशा पुरवाई संपादकीय का समर्थन करते हैं। हार्दिक आभार।
आदरणीय तेजेन्द्र जी
एक पल के लिए तो संपादकीय हास्यास्पद लगा। पर बात गंभीर है। इसे पढ़कर उस दिन तो नहीं पर आज लिखते हुए एक कहानी याद आ गई। याद नहीं आ रहा लेकिन किसी क्लास में कभी एक कहानी पढ़ाई थी “कुकुर समाधि”कोर्स में थी। यह छत्तीसगढ़ में है यह तो याद था पर शहर का नाम याद नहीं आ रहा था। वह छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है। पालतू जानवरों में गाय और कुत्ता, यह दो ही बेहद ईमानदार पशु है और इनका भारतीय संस्कृति में भी बहुत महत्व है। घर में बनाई गई पहली रोटी गाय की होती है और आखिरी रोटी कुत्ते की। दोनों ही हमारे नवग्रह के दुष्प्रभावों से बचाने में भी हमारे सहयोगी हैं।शनि ,बुध और राहु केतु के दुष्प्रभाव को काटने के लिए कुत्ते को रोटी खिलाने का बहुत महत्व है। पंडित बताते हैं कि क्या खिलाना है ,कब और किस तरह खिलाना है। गाय का भी बहुत महत्व है।
कुकुर समाधि की कहानी बहुत ही मार्मिक है। हमें पूरी याद है लेकिन अगर हम इसे यहाँ लिखेंगे तो आप के लिये टिप्पणी और लंबी हो जाएगी इसलिए टिप्पणी में नहीं,कहानी फिर कभी। बहुत मार्मिक है बाकी उस समाधि पर मंदिर बना हुआ है और लोग वहाँ पर पूजा करते हैं।
हमने कई लोगों से यह सुना है कि कुत्ते को पालने के बाद उनके घर में आर्थिक रूप से समृद्धि हुईहै। और कुछ लोग तो कई प्रजाति के कुत्तों को पालकर महंगे दामों पर बेचने के लिए इसे व्यापार की तरह लेते हैं।
हमारे बड़े बेटे के घर भी Golden retriever female है। उसका नाम मैगी है। बहुत ही प्यारी, बहुत ही मासूम।
हम कभी जानवरों को पालने के पक्ष में नहीं रहे क्योंकि उनकी उम्र बहुत कम होती है और जाते हैं तो बड़ी तकलीफ होती है। फिर बंध भी जाते हैं। और यह भी परिवार से इतना अधिक जुड़ जाते हैं कि इन्हें अकेला रखना या छोड़ना पड़े तो ये सह नहीं पाते। 2 दिन छोड़कर आने पर मैगी को बुखार आ गया था उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना पड़ा।
हम तो पहले छूते ही नहीं थे।बस घिन सी मचती थी और एकदम गिलगिले लगते थे। लेकिन जब घर में हैं तो अपने बच्चों की तरह प्यार हो गया ।
कुकुर समाधि वाले कुत्ते की कहानी बंजारों की टोली से जुड़ी हुई थी जो जान माल की सुरक्षा की दृष्टि से पालते थे।
शौकिया पालने वालों की बात अपन नहीं करते उनकी बात तो वही जाने।
यह बात भी सही है कि कुत्ते को लेकर बहुत सारे मुहावरे हैं लेकिन गलियाँ भी हैं।
लेकिन जिस तरह से सड़क के आवारा कुत्ते बढ़ रहे हैं वह एक बड़ा सिर दर्द है। दुर्घटनाओं की संभावनाएं बढ़ गई हैं।होशंगाबाद में तो एक बार सरकारी अस्पताल से एक बच्चे को उठाकर ही ले गया था ।इतने ज्यादा कुत्ते हो गए थे कि लोगों का चलना फिरना मुश्किल कर दिया था। अभी याद तो नहीं आ रहा, किंतु बाहर से कहीं साउथ से ,कोई टीम आई थी कुत्तों को पता नहीं मरवाने के लिए या कहीं दूर जंगल में छुड़वाने के लिए। लेकिन संभव न हो सका। शायद बजरंग दल वालों ने आपत्ति ली थी।
लेकिन मोहल्ले वाले परेशान इसलिए थे कि कुत्ते बच्चों को ही नहीं, आने जाने वाले लोगों का पीछा कर काट रहे थे। मोहल्ले- मोहल्ले में ग्रुपिंग हो गई थी उनकी। एक मोहल्ले का कुत्ता दूसरे मोहल्ले मैं नहीं जा सकता था।
रात में रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से पैदल आना खतरे से खाली नहीं था।
कुत्तों के ही नवजात या अन्य छोटे मोटे जानवरों के लिये भी खतरा था।
वैसे काफी पहले एक बार एक व्यंग पढ़ा था जिसमें मालिक तो गाड़ी चला रहा था और पालतू पीछे आराम से बैठा था उस पर
जो पालतू होते हैं वह घर में मिले प्रेम के आदी हो जाते हैं इसलिए अगर किसी कारणवश उन्हें बाहर छोड़ना पड़े तो वह उसे झेल नहीं पाते। खाना छोड़ देते हैं या बीमार हो जाते हैं।
हमने एक बार कहीं पढ़ा था की कोई बंदा इंटरव्यू देने किसी शहर में गया था और वहाँ किसी कुत्ते को कोई गाड़ी घायल कर गई थी। उसे दया और उसने उसे अस्पताल पहुँचाया और कुत्तों के केयर के लिए उसने कोई संस्थान खोलने की चाह में रतन टाटा से आर्थिक मदद मांगी थी। उसकी दयालुता से प्रभावित होकर उन्होंने मदद भी की और उसे कोई अच्छी नौकरी भी दी थी।
हर बार की तरह इस बार का संपादकीय भी महत्वपूर्ण ही रहा। इसका उत्तरार्द्ध बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। अनेक नवीन जानकारियों के साथ। इसे हम अपने उन रिश्तेदारों व परिचितों को शेयर करेंगे जिनके घरों में कुत्ते पालतू रूप में हैं।
बहुत-बहुत शुक्रिया तेजेंद्र जी आपके संपादकीय का टिप्पणी लिखने के बाद से ही इंतजार रहता है।
आदरणीय नीलिमा जी, आपने अपनी टिप्पणी में निजी, सामाजिक एवं साहित्यिक सरोकारों को शामिल करके पुरवाई संपादकों के लिये एक और संपादकीय प्रस्तुत कर दिया है। पाठकों की ओर से हार्दिक बधाई।
ऊपर हमारी टिप्पणी में हास्यास्पद पद को मनोरंजक पढ़ा जाए।
आ0तेजेन्द्र जी! आपका सम्पादकीय पढ़ा। भारत में पहले कम ही लोग कुत्ते पालते थे लेकिन अब चलन काफ़ी बढ़ गया है। लेकिन मुझे याद है बचपन में हम लोग पिल्लों को घर उठा लाते थे क्योंकि वो बहुत प्यारे लगते थे और उनको बोरी पर बिठाते किसी बर्तन में डाल कर दूध भी उनके आगे रखते पर माँ उन्हें बाहर छुड़वा देती थी। हमने भी 2-3 कुत्ते पाले जिसमें एक बहुत प्यारा छोटी ब्रीड का था। और वो बहुत ही लाडली था मेरे पति का। उनके ऑफ़िस से आने का समय पता था उसे ,जा कर दरवाज़े पर बैठ जाता था और जब वो आते तो इतना ख़ुश होता जैसे नाच रहा हो दुम हिलाता उन पर कूदता। लेकिन उसकी मृत्यु पर मेरे पति को बहुत ही अधिक दुख हुआ इतना जैसे किसी बच्चे के जाने का हो। अगर आप पालते हैं कोई भी प्राणी पशु या पक्षी तो अपनी प्राप्त जगह के अनुसार ही पालना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दूसरों को कोई असुविधा न हो। जो कुत्ते नहीं पालते उन्हें कुत्तों से बहुत ही डर लगता है। पर जो पालते हैं वो उन्हें बहुत प्यार करते हैं और कुत्ते भी अपने से अधिक अपने पालक को प्यार करते हैं।
ज्योत्सना जी इस प्यारी सी टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार। इस टिप्पणी में आपके अपने भावनात्मक अनुभव भी शामिल हैं।
डॉ.शर्मा जी , रोचक एवं नूतन जानकारियों से
भरा सम्पादकीय पढ़ा। अपनी कालोनी से संबंधित
कुछ अनुभव साझा करना चाहते हैं। यहाँ स्ट्रीट डाग्स सड़क पर बैठना पसंद नहीं करते स्कूटर, मोटरसाइकिल की सीट पर या गाड़ी की छत पर बैठते हैं । बड़ी गाड़ी उन्हें अधिक पसंद है। ग्रहों को शांत करने के लिए युवा इन्हें बढ़िया बिस्किट , पनीर और डाग फूड बड़े चाव से बिना नागा खिलाते हैं। कुत्तों के लिए वाट्सएप ग्रुप बने हैं जिसके द्वारा एक स्थान पर रोटियां दूध इकट्ठा किया जाता है और उन्हें परोसा जाता है। तकरीबन घरों के आगे उनके लिए बर्तन रखें हैं।
खा पीकर बलिष्ठ कुत्ते राहगीरों को काटने से गुरेज़
नहीं करते। भयंकर जानलेवा हादसे हो चुके हैं।
खेद का विषय है कि कुत्तों के लिए रोटियां सुलभ हैं
पर घर बुजुर्ग उनसे वंचित हैं।