Tuesday, October 8, 2024
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अभिनव इमरोज़ एवं साहित्य नंदिनी पत्रिकाओं का लोकार्पण…

 

मार्च 2024 के ‘अभिनव इमरोज़’ एवं ‘साहित्य नंदिनी’ पत्रिकाओं के विशेषांक वन्दना यादव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को केन्द्र में रख कर प्रकाशित हुए हैं। वरिष्ठ संपादक श्री देवेन्द्र कुमार बहल इन पत्रिकाओं के संपादक हैं और इन अंकों की अतिथि संपादक हैं डॉ. रेणु यादव।

दोनों पत्रिकाओं का लोकार्पण 7 अप्रैल की दोपहर दिल्ली स्थित वास्तु कला अकादमी, सेकुलर हाउस में हुआ। मंच पर प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत (संकालाध्यक्ष साहित्य अध्ययन पीठ एवं कुलानुशासक, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली) डॉ दीपक पांडेय (सहायक निदेशक) केंद्रीय हिंदी संस्थान), प्रोफेसर बन्दना झा, (विभागाध्यक्ष, जेएनयू), सूर्य कांत शर्मा (वरिष्ठ मीडिया कर्मी और आलोचक), लता विनोद नोवाल (साहित्यकार, मुंबई), डॉ रेनू यादव, श्री देवेंद्र कुमार बहल, वन्दना यादव तथा इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के अध्यक्ष चंद्रमणी ब्रम्हदत्त उपस्थित थे। कार्यक्रम के सूत्रधार रहे साहित्यकार और कला अध्येता विशाल पाण्डेय।

प्रोफेसर बन्दना झा ने वन्दना यादव को माइक्रो स्कोपिक व्यू से दुनिया को देखने वाली लेखक कहा। तो वहीं सूर्य कांत शर्मा के अनुसार वन्दना साहित्य के भोर का तारा है। प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत ने वन्दना यादव के लेखन को गहन शोध से उपजा रचनाकर्म और नया एवं अलग दृष्टिकोण रखने वाली कलमकार कहा। सूर्य कांत शर्मा ने बहुत गहराई से दोनों पत्रिकाओं के लेखों को खंगालते हुए वंदना जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।

केवल एक दिन पूर्व मिली सूचना के बावजूद साहित्य से जुड़े प्रबुद्ध जनों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों और मित्र-परिचितों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। जिसमें वास्तु कला अकादमी के अध्यक्ष श्री प्रशांत वाजपई, नूतन पांडेय जी (केंद्रीय हिन्दी निदेशालय), अनुज कुमार, पूजा कौशिक, अम्बरीन ज़ैदी, रणविजय राव, सोना लक्ष्मी राव, पुष्पराज यादव, निम्मा, डॉ सतीश यादव, अभय सिंह जेलदार, रेखा शर्मा, कल्पना मनोरमा, अशोक गुप्ता (प्रकाशक अद्विक प्रकाशन) बिपिन, शिव मोहन यादव, स्वाति चैधरी, श्रीमती निर्मल यादव (वन्दना यादव की माता जी), शिवानी यादव, कर्नल पुष्पेंद्र यादव, निर्मला यादव तथा सोभिका राव (असिस्टेंट प्रोफेसर ह्यूमन एनाटॉमी) भी मौजूद थे

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1 टिप्पणी

  1. संपादन स्कंध का आभार ।इस बेहतर और विश्लेषित रिपोर्ट को स्थान प्रदान करने के लिए।
    आशा है इसी प्रकार के साहित्यानुरागी प्रयास पुरवाई के बहुआयामी रूप में अहम होंगें।

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