नेत्र विशेषज्ञ निखिल कौशिक,एक लेखक, कवि, फिल्म निर्माता हैं. कुंवर बेचैन के बहुत निकट. इनकी फिल्म “भविष्य-दी फ्यूचर” में कुंवर बेचैन के गीत “बदरी बाबुल के अंगना जइयो, व् नदी बोली समुन्दर से…” लिए गए. निखिल का मानना है के कुंवर बेचैन जैसे साहित्य कार आपने साहित्य के माध्यम से हमेशा जीवित रहते हैं.
कुंवर जी,
आप हैं, आप हैं;
बस यूं ही पल भर के लिए ओझल जैसे:
किसी के पास से गुज़रे, किसी के पास में ठहरे कहीं तट को छुआ केवल, कहीं उतरे बहुत गहरे…..
मुझे पता है आप अपनी प्रशंसा सुनने के लिए कविताएँ नहीं कहते, आपने स्वयं ही बताया था की माँ सरस्वती आपकी झोली में जो शब्द, जो भाव डाल देती है उन्हें दूर दूर जन मानस तक पहुँचाना आपका धर्म हो जाता है. अपने अपनी कलम से इस धर्म को बखूबी निबाहा है. आपने पूरी मानव जाति को संदेश दिया है मिल जुल के रहने का चलने का साथ देने का:
पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है पर तू ज़रा सही साथ दे तो और बात है!
कैसे आपके शब्द गगन पर छाई बदरी को आदेश देते हैं के वो परदेस में बसी बिटिया का सन्देश समुन्द्र पार माँ को, बाबुल को, सखियों को, भैया तक पहुंचाए| ऋचा शर्मा जब इन शब्दों को स्वर देती हैं तो भावनाएं स्वयं आँख की हद तक पहुँच उन्हें नम कर देती हैं|
“नदी बोली समंदर से, मैं तेरे पास आई हूँ, मुझे अब गा मेरे शायर मैं तेरी ही रुबाई हूँ….अषित देसाई जब इस गीत को स्वर देते हैं- तो नदी का दर्द और उसका गौरव लिए आपके शब्द हम तक पहुँचते हैं. अपने कर्तव्य निबाहते हुए कैसे एक नदी: घाटियों के प्यार, फूलों भरे त्यौहार, ऊंचाइयों के अकेलेपन को छोड़; सम्पूर्ण श्रंगार कर समुन्द्र की समर्पिता बन अपने धर्म को निबाहती है.
ऐसा नहीं के काव्य व् लेखन पर आपका एकाधिकार है, किन्तु आपका लेखन एक दर्शन है, एक प्रोत्साहन है जो जीवन की कठिनाइयों, विषमताओं को सरल कर जीने का मार्ग प्रकाशित करता है.
मैं प्राय सोचता हूँ, और पूछता हूँ आपसे कि आप केवल मुस्कुराते क्यों है, आपको कभी क्रोध क्यों नहीं आता, तब आप बताते हैं कि आप किसी आलोचना को भी मान का अधिकारी मानते हैं:
दुनिया ने मुझ पर फेंके पत्थर जो बेहिसाब मैंने उन्हीं को जोड़ के कुछ घर बना लिए!
अपने काव्य से, अपनी साहित्यिक रचनाओं से एक पूरी बस्ती स्थापित कर दी है आपने जिसमे तरुवर कि छाँव है, सुदृढ़ दीवारों का सहारा है. पथिक जहाँ पल दो पल का विश्राम कर, उत्साह बटोर जीवन मार्ग पर अग्रसर होता है. साहित्य जगत में ऐसे अनेक कवि-साहित्यकार हैं जिन्होंने आपकी प्रेरणा से आपके प्रोत्साहन के तले कलम उठाने का साहस बटोरा है. उन्हें इस बात का आश्वासन है, कि आप उन्हें सुधार सुझाव ही नहीं, बल्कि जीवन की विषमताओं को सहज करने की विधि भी समझायेंगे.
फिल्म ‘टशन’, में ‘बदरी बाबुल के अंगना जइयो… कि कुछ पंक्तिया ली गईं- किन्तु आपका नाम क्रेडिट में नहीं दिया, मैंने फिल्म निर्माताओं से संपर्क कर इस पर आपत्ति जताई, तो उन्होंने क्षमा मांगते हुए बताया की लेखिका ने इस गीत को हमेशा से एक लोक गीत के रूप में सुना – समझा है; मैंने जब आपको ये बात बताई तो अपने कहा- “हमारी किसी रचना को लोक गीत का दर्जा दे दिया जाये, तो इससे बड़ा क्रेडिट और क्या हो सकता है….”
निजी तौर पर मुझ जैसे अनेक लेखक-कवि-साहित्य प्रेमी आपके संग सहज अनुभव करते हैं. हर कठिनाई, सुख दुःख के हर पल में आपकी कोई रचना एक आश्वासन स्वरुप उपस्थित मिलती है, ये सांत्वना उस युवती कि तरह है जिसके नयनो से सपना मात्र इतनी दूर है, जितनी दूर किसी प्रेयसी का प्रियतम उसके गांव से होता है.
आप हैं
और अब आप और भी हैं
क्योंकि अब आपकी बातें होंगी, और आपके शब्द जीवन मार्ग में उस दूसरे पॉव की तरह रहेंगे जो ज़रा भी साथ देता है तो और बात होती है!
स्वर्गीय कुँवर बेचैन को श्री निखिल जी द्वारा दी गई श्रधांजलि
भाव पूर्ण है ।
साधुवाद
प्रभा
निख़िल जी की ये कुंवर बेचैन के लिए लिखी गयी shrandhajali बहुत ही भावात्मक और दिल को छू लेने वाली है. अति सुंदर.