जाने किसमें मन रमा, किससे लाग विहाग ।
जाने किस पर रीझकर, खुशियाँ बांटे फाग ।।
केश,कपोल,कपाल,कुच, पेट,पृष्ठ,परिधान ।
फागुन ने सब कुछ रंगा, मन में छेड़ी तान ।।
सर्द गर्म फागुन हुआ, उड़ी याद की गर्द ।
कभी मिलन का सुख भरे, कभी विरह का दर्द ।।
चोली, लहंगा, चूनरी, सब में भरी उमंग ।
फिरे चुटीला झूमता, फागुन के क्या  रंग ।।
फिर संयम डगमग हुआ, प्रेम फिर गया जाग ।
फागुन मतवाला हुआ, रह रह गाये फाग ।।
पीली चूनर ओढ़कर, धरती हुई सकाम ।
मस्त हवाएँ दे रहीं, फागुन का पैगाम ।।
नयना जादूगर हुए  , देह हुई कचनार ।
फागुन छूकर दे गया, मुक्त-प्रेम-उपहार ।।
फागुन संक्रामक हुआ, बांटे प्रेम-बुखार ।
मन ढूँढे ऐसी जड़ी , जिससे हो उपचार ।।
कौन नहीं है प्रेम में,पशु-पक्षी,नर-नारि ।
फागुन के  द्रुम झूमते , पाकर प्रेम-बयारि ।।
फागुन ने ऐसा छुआ, तन-मन उठें  तरंग ।
अजब खुमारी छा गयी, बिना पिये ही भंग ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला समकालीन छंद-आधारित कविता के चर्चित नाम हैं. चार पुस्तकें प्रकाशित. आधा दर्जन पुस्तकों का संपादन. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - trilokthakurela@gmail.com

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