जाने किसमें मन रमा, किससे लाग विहाग ।
जाने किस पर रीझकर, खुशियाँ बांटे फाग ।।
केश,कपोल,कपाल,कुच, पेट,पृष्ठ,परिधान ।
फागुन ने सब कुछ रंगा, मन में छेड़ी तान ।।
सर्द गर्म फागुन हुआ, उड़ी याद की गर्द ।
कभी मिलन का सुख भरे, कभी विरह का दर्द ।।
चोली, लहंगा, चूनरी, सब में भरी उमंग ।
फिरे चुटीला झूमता, फागुन के क्या रंग ।।
फिर संयम डगमग हुआ, प्रेम फिर गया जाग ।
फागुन मतवाला हुआ, रह रह गाये फाग ।।
पीली चूनर ओढ़कर, धरती हुई सकाम ।
मस्त हवाएँ दे रहीं, फागुन का पैगाम ।।
नयना जादूगर हुए , देह हुई कचनार ।
फागुन छूकर दे गया, मुक्त-प्रेम-उपहार ।।
वाह सुन्दर दोहे. फागुनी रंग से रंग गया मन