Saturday, July 27, 2024
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जितेन्द्र पात्रो की दो कविताएँ

1
कोशिश ये नहीं आसमां में मेरा घर हो,
सिर्फ मेरे हिस्से की दो ग़ज़ ज़मीन मुझे दे दो ।
कोशिश ये नहीं अकेला मेरा सफर हो,
सिर्फ मेरे हिस्से का संसार मुझे दे दो ।।
कोशिश ये नहीं सफलताओं का अंबार हो,
सिर्फ मेरे हिस्से का दीलें अधिकार मुझे दे दो ।
कोशिश ये नहीं उत्कर्ष भरी महफ़िल हो,
सिर्फ मेरे हिस्से की तन्हाई मुझे दे दो ।।
कोशिश ये नहीं स्वप्न भरी रातें हो,
सिर्फ मेरे हिस्से का दर्पण मुझे दे दो।
कोशिश ये नहीं मेरे हाथों में हाथ हो,
सिर्फ मेरे हिस्से की परछाई मुझे दे दो ।।
कोशिश ये नहीं चाहतों का व्यापार हो,
सिर्फ मेरे हिस्से का तिरस्कार मुझे दे दो ।।
कोशिश ये नहीं काफिलें चारों ओर हो,
सिर्फ मेरे हिस्से की अंतिम विदाई मुझे दे दो ।।
कोशिश ये नहीं आसमां में मेरा घर हो,
सिर्फ मेरे हिस्से की दो ग़ज़ ज़मीन मुझे दे दो ।।

 

2

जहाँ मैं गुनगुनाऊँ , लबों पर तुम्हारा नाम आए,
जहाँ मैं गाऊँ , संगीत भरा तुम्हारा पैगाम आए ।।
मेरी यादों पर तुम्हारा हक हो,
मेरी परछाई पर न कोई शक हो।
जहाँ मैं चलूँ , हर कदम पर तुम्हारा साथ चले,
जहाँ मैं ढलूँ , शिल्प में तुम्हारे हाथ ढले।।
मेरी नींदों पर तुम्हारा हक हो,
मेरे सपनों पर न कोई शक हो।
जहाँ मैं डगमगाऊँ , तुम्हारा तेज़ मेरे दिल में जले,
जहाँ मैं लड़खड़ाऊँ , तुम्हारा हौसला मेरे सीने में पले ।।
मेरे हर उत्साह पर तुम्हारा हक हो,
आंखों की नमी पर न कोई शक हो ।।
जहाँ मैं करूँ संघर्ष , तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे साथ रहे,
जहाँ मैं करूँ उत्कर्ष , तुम्हारी मोहब्बत मेरे साथ रहे ।।
मेरी विजय पर तुम्हारा हक हो,
काँटों पर न कोई शक हो ।।
मेरी सफलता पर तुम्हारा हक हो,
मेरे स्वाभिमान पर न कोई शक हो।।
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