“चलती फिरती आँखों से अजाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन माँ देखी है।”
मुन्नवर राणा ने इस एक शे’र में वह सब कह दिया जो एक बच्चे के लिए माँ होती है।
दरअसल माँ सिर्फ वह महिला नहीं है जिसने औलाद को जन्म दिया। वह अपने आप में एक मुकम्मल इंस्टीट्यूशन है। सबसे पहले माँ वह है जिसके होने से उसके बच्चे हैं, यानी हम सब हैं। जिसने हमें, हमारे होने का हक़ दिया। जिसने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हमको बनाने में लगा दिया और बदले में किसी तरह का मेहनताना भी नहीं लिया।
उसकी कोख में लंबा दौर बिताने के बाद जब-जब रोए, उसी की गोद ने पनाह दी। ऊंगली पकड़ कर चलना सिखाने में उसके सब्र की कोई सीमा नहीं थी। उसीसे प्यार करना, उसी से झगड़ना, उसकी शिकायत भी उसी से करना… यानी दुनिया का सबसे न्यायालय भी वही।
जब-जब दुनिया ने सताया, उसके आँचल ने सम्हाला। उस दिन जब इस धरती का कोई भी सिरा अपना नहीं लग रहा था, तब भी उसकी सारी दुनिया हम ही थे। जब दोस्तों से अनबन हुई, हमने अपने सारे दुखड़े उसी को सुनाए। जब किसी ने हम पर भरोसा नहीं किया, उस दिन भी वह पूरे विश्वास के साथ हमारे साथ खड़ी थी।
ग़लतियों पर उसने हमें डाँटा भी, थप्पड भी लगाए और कान भी उमेठे। मगर वह सब एक पत्थर को मूर्ति का आकार देने का तरीका था। हम और आप आज जो भी हैं, उसी की कारीगरी का कमाल है। जिसने इस हुनर को सीखने के लिए किसी तरह की कोई ट्रेनिंग क्लास अटेंड नहीं की। उसने ट्यूटोरियल भी नहीं लिए। उसने अपने आसपास की माँ, दादी-नानी, ताई-चाची और मौसियों को देखकर यह सब सीख लिया क्योंकि यह सब प्रकृति से उसे मिला है। बस समय के साथ वह इस हुनर को और चमकाती चली गई। जब पहली बार उसने अपने नन्हे से बच्चे को गले लगाया, सब कुछ भुला कर वह सिर्फ “माँ” हो गई।
जिसने अपने होने को अपनी औलाद के होने से जोड़ लिया, उसके लिए क्या कहा जाए? उसके लिए सिर्फ एक दिन नहीं, सारा जीवन उसी के नाम है। हर बच्चे को मातृत्व दिवस की बधाई। हर स्त्री को माँ होना मुबारक, फिर वह किसी भी स्पीशीज़ की माँ क्यों ना हो।
जिन पुरूषों ने स्त्री को समझा, जिन मर्दों ने स्त्री के स्त्री होने का सम्मान किया, उन्हें भी सृष्टि की रचना करने वाले महिला दिवस की बधाई। क्योंकि माँ सिर्फ माँ नहीं है, वह हर एक के हिस्से में आई ऐसी दुवा है, जिसकी कोई मिसाल नहीं है।

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