Monday, May 20, 2024
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वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – शीशमहल

शीशमहल का नाम आते ही राज प्रसाद, किले और महलों की याद आ जाती है। शीशमहल यानी एक ऐसा कक्ष जिसकी दीवारों और छतों पर शीशे जड़े हों। इस कक्ष में हर ओर आपको अपना अक्स दिखाई देता है। किसी भी एंगल से देखने पर आपको अपनी ही अनेक छवियां दिखाई देती हैं। मार्डन आर्किटेक्चर में भी इस तरह के कमरों का निर्माण होता है। खासतौर पर बड़े होटलों, अथवा किसी प्रदर्शनी आदि के स्थान पर लोगों को आकर्षित करने के लिए इन्हें बनाया जाता है। ऐसे ही कुछ स्थानों में लिफ्ट में लगाए शीशे भी शीशमहल में होने का आभास करवाते हैं। 
इस तरह के स्थान पर खड़े होकर आपको अपनी ही अनेक प्रतिकृतियाँ दिखाई देती हैं।  दरअसल ऐसा सामने लगे शीशे में, पीछे की ओर वाले आईने से दिखाई दे रहे अक्स के कारण होता है। यह भ्रमित करने वाली स्थिति है जो पहले-पहल देखने पर कौतूहल जगाती है। दो-चार बार के दोहराव तक भी यह मजेदार लग सकता है। ख़ुदको आगे-पीछे, दाएं-बाएं से देखना, और देखते रहना शुरू-शुरू में अच्छा लगता है। असल में शीशमहल में खड़े होना, अपने आपको फिल्मी पर्दे पर देखने जैसा आभास करवाता है।
शीशमहल में बिताए कुछ पल, किसी के लिए जीवन भर की पूंजी हो सकते हैं। छत और दीवारों में लगे आईनों में दूर तक ख़ुद को देखना, भ्रम की स्थिति है। असल जीवन में स्वयं को देखना, भ्रम नहीं है। जैसे हम हैं, और हमारे कर्म जिस तरह के हैं, वही परिणाम के रूप में सामने आता है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए जितनी मेहनत आप करते हैं, उस परिश्रम और लगन का परिणाम भी आपको ज़रूर मिलता है। इसी तरह अन्य लोगों के साथ आपका व्यवहार जैसा होगा, बदले में आपके साथ भी उसी तरह का व्यवहार किया जाएगा।
आपके साथ होने वाला व्यवहार, आपको मिलने वाले परिणाम, आपके व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं। इसीलिए अपने कर्म, अपने रिश्तों और अपनी जुबान के साथ, हमेशा इमानदार रहें। यही वह खासियत है जो आपको भीड़ से अलग यानी “खास” बनाती हैं। आपका जीवन एक प्रकार से जीवित शीशमहल है। यहाँ आपको वही परिणाम मिलने वाले हैं, जिसके लिए आपने तैयारी की है। यदि तैयारी सकारात्मक है, इमानदार है, तब परिणाम भी सकारात्मक मिलेंगे। अब इस स्थिती को उलट कर देखिए  – आपको जो परिणाम मिल रहे हैं, वे आपकी जीवनशैली और कार्य-व्यवहार का प्रतिरूप हैं।
बात यह है कि ख़ुदको देखने के लिए, आपको किसी शीशमहल तक जाने की ज़रूरत नहीं है। वहां बाहरी आवरण दिखाई देता है मगर असल जीवन में आप कैसे हैं, यह आपका पारिवार के साथ संबंध, सामाजिक दायरा, आपके मित्र-दोस्तों के साथ आपका किया जाने वाला व्यवहार तय करेगा। अपने आप को देखने के लिए आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। आपका शीशमहल हर पल आपके साथ है। इसमें जब चाहें, आप अपना किरदार देख सकते हैं इसीलिए ऐसा जीवंत शीशमहल बनने का प्रयास करें जिससे अन्य लोग भी प्रेरणा लेना चाहें। 
वन्दना यादव
वन्दना यादव
चर्चित लेखिका. संपर्क - yvandana184@gmail.com
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2 टिप्पणी

  1. कम्बल की क़ीमत से सर्दी की तेज़ी या कमी तय नहीं होती, होती है ‌हमारी ज़हनियत और महसूस करने की सोच से, सिर्फ़ एक छोटा सा दर्पण हमें उतनी ही आसूदगी दे जाता है जितना शीश महल वर्ना ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं ख़ुदकशी का मंज़र नामा बने कर रह जाती,समझ की परिधि से निकल कर एहसास के मानी अता करती यह तहरीर वाक़ई जीने को ज़ीना बनाने की सलाहियत दरवाज़ा दिखातीं है बधाई माननीया वन्दना जी सुप्रभात
    @नीरद

    • आपको सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद गोपाल देव नीरद जी।

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