दोस्तो पर्व है होली का चलो हो कुछ यूँ कोई दुश्मन ना रहे रंग लगाओ कुछ यूँ : आतिश इंदौरी :
यह मौसम के बदलने की आहट है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और यहाँ तक कि इंसान के भीतर भी बदलाव की लहर तरंगित हो रही है। लंबी सर्दियों के बोझिल दिन-रात से निकल कर प्रकृति अंगड़ाई लेने को आतुर है। ठंड से बचाव को जूझते मोटे कपड़ों की तहों से मुक्ति, शरीर से लेकर मन को भी हल्का महसूस करवा रही है।
इन दिनों गली-मोहल्ले, नुक्कड और यहाँ तक कि मुंडेर पर रखे छोटे-छोटे गमलों में जीवन की बहार जगमगा रही है। प्रकृति अनेक रंगों में खिलखिलाते हुए नए बदलाव का स्वागत कर रही है। ठिठुरन से मुक्त हो इंसान के भी प्रकृतिमय हो जाने की ऋतु आ गई है। ये अलसाए तन-मन से मुक्ति के दिन हैं। अबीर-गुलाल की रौनकों वाले, गुजिया, दही भल्ले, कांजी वड़े और चटपटे स्वाद से जीभ को तरो-ताजा करने को जी चाहने लगा है। घरों से दूर रहते बच्चों को माँ के हाथ की बनी गुजिया, शक्कर-पारे और मट्ठी की यादों में डूबकर, घर के भीतरी कोने तक खींच लाने के दिन हैं।
दोस्तों संग उडाए रंग-गुलाल फिर से बचपने की ओर ले जाते हुए-से लगते हैं। बचपन के संग परीक्षाओं का जोर भी जुड़ जाता है। युवाओं ने ज़िंदा दिली की डोर कस कर थामी हुई है। महिलाओं का गर्म कपड़ों, रजाईयों को धूप लगाना, अगले सर्द मौसम के लिए सम्हाल कर रखना शुरू हो गया है। पुरूषों का पंखे-कूलर, एयरकंडीशन की सुध लेने का मौसम है। लंबा शीत-रण पार कर एक बार फिर से पेड़ों की शाखों पर नए पत्तों की कोपलें फूटने लगी हैं। यानी हालात जैसे भी हों, समय बदल ही जाता है। संघर्ष और तनाव के बावजूद जीवन ख़त्म नहीं होता। खुशियाँ, हमारी राह ताकती हैंं।
जीवन हर बार अपनी ओर बुलाता है। यही वह बात है जो बताती है कि कुछ खास अब भी है, जो बाक़ी है। जो बताता है कि हर बदलते दिन के साथ कुछ छूटता है तो कुछ जुड़ता भी है। एक ओर कोई जिम्मेदारी कम होती है तो वहीं दूसरी ओर कुछ बढ़ भी जाती है। यह बदलाव ही जीवन है। कभी दीपावली तो कभी होली है। कभी दीपक बनकर जलना है, रौशनी फैलाना है, तो कभी निराशाओं, नकारात्मकता को होलिका की प्रचंड अग्नि में स्वाहा कर देना है। और अगले ही पल रंगोत्सव में डूब जाना है।
आइए जीवन के अलग-अलग रंगों का आनंद उठाते हैं, होली मनाते हैं।
आज हर शख़्स को देती है सदाएँ होली दोस्तो आओ चलो ऐसी मनाएँ होली : कँवल डिबाइवी :
वाह
होली