Friday, May 17, 2024
होमलेखवन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ - ना उम्र की सीमा...

वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का…!

इंसान की उम्र का हर पड़ाव खूबसूरत होता है। यह खूबसूरती अपने साथ चुनौतियाँ भी लेकर आती है। बालपन से युवाकाल की ओर बढ़ते हुए बहुत कुछ, बहुत जल्दी-जल्दी बदल रहा होता है। 
लड़कपन की उम्र जोश से भरी होती है। इस उम्र के बच्चों के मन में किसी किस्म का ड़र, भय, आशंका या हार जाने की भावना नहीं होती। इस उम्र में “कुछ करने” की चाहत दिवानगी की तरह मन-मस्तिष्क पर सवार रहती है। उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें किसी किस्म की चिंता, या असफलता का डर नहीं होता क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि ‘वे जो भी करेंगे, सही करेंगे।’ यदि एक प्रतिशत किसी तरह की चिंता होती है, तब भी वह सिर्फ परिवार की ओर से “टुकाई” की होती है। 
इससे आगे बढ़ता जीवन, युवाओं का होता है। उन्हें रोकने-टोकने की आशंका भी कम ही रहती है। यह उम्र जुनून से भरी और “कुछ बड़ा” कर गुजरने को उकसाती है। इस उम्र की चाहत, जमाने को बदल देने को ललकारती है। इससे आगे बढ़ती उम्र के कदम, कैरियर की चिंता तले दबने लगते हैं। थोड़ा और आगे बढ़ते ही जोश, जिम्मेदारियों के नीचे दबने लगता है। घर-परिवार की ज़रूरतों, जिम्मेदारियों से फारिग होने पर शरीर ढ़लता हुआ-सा जान पड़ता है। 
प्रत्येक व्यक्ति का यही जीवनचक्र है। अब सोचने की बात यह है कि यदि सभी इसी दौड़ में एक-दूसरे के आगे-पीछे दौड़ रहे हैं तब ‘कुछ नया’ कौन कर रहा है? ‘कुछ एकदम नया-सा’ करने के बारे में कौन सोच रहा है? 
बचपन को ‘अभी तुम पहले कुछ सीख लो, तब कुछ करना।’ कह कर रोक दिया जाता है। युवाओं को ‘अनुभवहीन’ करार दे दिया जाता है। इससे अगले पायदान पर खड़ी उम्र को, ‘तुम्हारे आइडियाज को फाइनेंस कौन करेगा?’ कह कर रोक देने वाले, अपने खुद के लिए, ‘हमारी तो उम्र बीत गई है।’ कहते मिल जाते हैं। 
सवाल अब भी यही है कि – ‘यदि उम्र का हर पड़ाव अपने साथ कोई ना कोई मुश्किल लिए चल रहा है, तब आसान समय किसके पास है?’ मुद्दे की बात यह है कि जो भी करना है, इसी समय करना है। उम्र चाहे जो हो, या आप चाहे जहाँ हो। 
उम्र यदि बाधक बनती तब सचिन तेंदुलकर, नीरज चोपड़ा, प्रज्ञानानंदा या कुश्ती में हमारी युवतियों की खेप कभी अपनी पहचान ना गढ़ पाती। इसी तरह बढ़ती उम्र के साथ कुछ नया और चुनौतीपूर्ण करने की उम्मीद, वैज्ञानिकों से चंद्रयान की सफलता का इतिहास ना रचवाती। यानी उम्र तो कोई मुद्दा ही नहीं है। मुद्दा अगर कुछ है तो वह “इंसानी सोच” है। 
इसका मतलब हुआ कि कामयाबी की ओर कदम बढ़ाने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती। इसी तरह सफलता की राह पर बढ़ते कदमों को सिल्वर स्पून लेकर पैदा होना, पैमाना नहीं है। जब, जिस उम्र में कुछ नया करने का विचार आए, उसी पल उस विचार पर अमल करना शुरू कर दें। निर्णय आपको करना है। मेहनत आपको करनी है क्योंकि कुछ नया करने का विचार आपका है। आज तक के रटे-रटाए रास्तों से अलग चलने का सपना, आपने देखा है। नई सफलता पाने की ख्वाहिश आपकी है। यदि यह चाहत आपकी है, तब आपके सपने के लिए मेहनत भी तो आपकी ही होगी। 
उम्र का कोई दौर ऐसा नहीं होता जब इंसान अपनी मानसिक सीमाओं को चुनौती ना दे सके। अपने लिए सीमाएं आप खुद निर्धारित करें। उन सीमाओं को विस्तार भी खुद से दें। समाज की बनाई सीमाओं को तोड़ना सीखें जो आपके हौसले की उड़ान को रोकती है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि आप कुछ अद्भुत करने के लिए बने हैं। 
हिन्दी फिल्म ‘प्रेम गीत’ के लिए इंदीवर के लिखे और जगजीत सिंह के गाए गीत को कुछ इस अंदाज में गुनगुनाइए कि चुनौतियों का सर चकरा जाए – ‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन…’
वन्दना यादव
वन्दना यादव
चर्चित लेखिका. संपर्क - yvandana184@gmail.com
RELATED ARTICLES

4 टिप्पणी

  1. Uttam rachana…… Initiative ideas and constructive concepts can be floated by any one in any age group….. There is no bar for age n experience…. Thanks to the Writer Vandna Ji who is capable of thinking out of box It was nice reading.

  2. बहुत खूब कहा मोटिवेशनल
    हौसला कॉच से नहीं स्टील से बना फिर देख
    कैसे चलती है तेरे साथ हवा फिर देख।
    बधाई।
    @ नीरद,THE REBEL,
    सरस्वती नगर बालाघाट 481001

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest

Latest