कुछ समय पहले मैं बाल मनोविज्ञान पर एक लेख पढ़ रही थी। लेखक ने एक प्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक के कथन को ‘कोट’ किया था। उनके अनुसार बच्चों के लिए हर चीज़, नयी होती है। हर नयी चीज़ उनके मन में सवाल पैदा करती है। अपने आसपास को देखकर बच्चों के मन में हर दिन हजारों सवाल उठते हैं।
मेरा मानना है कि जिन बच्चों के हाथ में मोबाइल थमा दिया जाता है, वे सवाल नहीं करते। इसका सीधा-सा अर्थ है कि सहज-सुलभ आकर्षण, मानसिक विकास को बाधित करता है। ऐसे बचपन को चाही-अनचाही सामग्री खुद-ब-खुद उपलब्ध हो जाती है। उसके लिए यही पर्याप्त है। यानी उसकी सोचने-समझने की सीमा निर्धारित कर दी गई है। वह परिवार के साथ रहते हुए भी अकेलेपन में रहना सीख जाता है। वह सवाल नहीं करता… दरअसल वह बात ही नहीं करता।
इसी प्रकार का व्यवहार आपके साथ भी होता है। इसका तरीक़ा अलग हो सकता है। यात्राओं के दौरान आप अपने आसपास नजर डालिए, अधिकतर लोग मोबाइल में व्यस्त मिलेंगे। परिवार के चार लोग, सब के सब इस छोटे से डिब्बे के गुलाम हैं। यानी किसी चीज़ को देख-समझकर, किसी अन्य व्यक्ति से उसकी चर्चा करने, सवाल करने की संस्कृति ख़त्म हो रही है। ऐसा अचानक नहीं हुआ। यह धीरे-धीरे हुआ। मगर इसके भयानक परिणाम अब सामने आ रहे हैं। हमने अधिकतर चीजों पर प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है। आपसी रिश्ते हों, कुछ जानने-समझने की बात हो, असामान्य घटनाएं हों, सब कुछ देखकर भी हम चुप रहते हैं।
आप ऐसी स्थिति में जब भी ख़ुदको पाएं, तुरंत से सम्हल जाएं। टेलीविजन या मोबाइल के पास आपकी चाबी नहीं होनी चाहिए। अपने जीवन का अधिकार अपने पास रखें। इसी तरह आपको जब भी लगता है कि कोई व्यक्ति डरा कर, रौब ड़ाल कर या अपने प्रभाव से आपको बोलने, बात करने, सवाल पूछने से रोकता है, ऐसे में आप उसी पल अलर्ट हो जाएं। ऐसा कार्यस्थल या सामाजिक व्यवस्था से लेकर बेहद निजी रिश्तों में भी हो सकता है। संभव है कि आपकी बातें, आपके सवाल सामने वाले को असुविधाजनक स्थिति में डालते हों। इसी कारण आपको सवाल पूछने, बात करने से रोका जा रहा हो। परन्तु आपको रूकना नहीं है। यह रोक आपकी बढ़त को ख़त्म कर सकती है। इसीलिए पढ़ना, समझना, सुनना-गुनना जारी रखें। अपने दिमाग को खुराक देते रहें जिससे वहाँ सवालों की खेती हर दिन लहलहाती रहे। इस तरह हम दरकते परिवारों को, काम-व्यवसाय में आने वाले रूखापन को भर सकेंगे।
हम भारतीय लोग बातें करने, रिश्ते बनाने-निभाने के लिए पहचाने जाते हैं। आइए अपने आप को पुनर्जीवित करें। अपनी पहचान को फिर से हासिल करें। एक-दूसरे से बातें करें, सवाल-जवाब करें। कुछ अपनी कहें, कुछ आपकी सुनें। आइए, सवाल करें। आइए, बातें करें।